ए डिनर नाईट
ए डिनर नाईट
15 मार्च का वो दिन जो मेरी लाइफ के सबसे खास इंसान का जन्मदिवस है उस दिन उस इंसान के मेरे साथ ना होने से उसकी कमी को पूरी करने के लिए शायद शर्मा जी को भेजा गया था । वो खास इंसान थे मेरे नानाजी....... इस दुनियां में अगर कोई मेरे लिए भगवान से भी ऊपर है तो सिर्फ वो हैं ।मेरे नानाजी ने मुझे जीने का सबब सिखाया जिंदगी के हर पहलु को कैसे संभालना है जिंदगी के हर रंग को मैंने उन्हीं से सीखा है।उनकी अहमियत मेरीजिंदगी में क्या है ये शब्दों में बता पाना मुमकिन नहीं। उनके जाने के बाद जिंदगी में एक अनजाना सा डर बस गया ।हालतों से इतना डरी की अकेले कहीं रुक नहीं पाती थी रातों में डर से उठ कर बैठ जाती थी और अकेले न कमरे में बैठ सकती थी ना कही जा सकती थी ।जिंदगी की इस कठिन पड़ाव में परिवार के साथ साथ और मेरे दोस्त और मेरे पहले प्यार ने मुझे बहुत सहारा दिया ।ये वही प्यार था जिसके जिक्र मैंने पहले किया था प्रदीप । नानाजी के जाने के बाद मेरे एग्जाम के चलते में एक महीने के लिए जयपुर आयी थी ।दीदी प्रदीप और मेरी एक और दोस्त जेनी।इन्होंने मुझे हंसाया हिम्मत दी सहारा दिया ।प्रदीप को मेरी बहुत चिंता थी वो रोज दिन में आता और मुझे खाना खिलाता और तस्सली पाकर पूरा दिन मेरे साथ गुजारता ।और इसी दौरान एक दिन शर्मा जी से मुलाकात हुई जिसे मैंने पार्ट 1 में बताया है ।
एक तरफ खुद को संभालने लगी लेकिन दूसरी ही तरफ दिमाग सिर्फ नकरात्मक चीजों की तरफ रहने लगा ।प्रदीप के साथ रह कर में उसके नजरिये को और करीब से जानने लगी और उस वक्त वो मेरे दिल के सबसे करीब था ।इसलिए उसकी हर छोटी बड़ी बात पर में बहुत गहनता से सोचने लगी और हर वक़्त ये चाहने लगी की बस ये मेरे साथ युही रहे ।इन दिनों मैंने उसमे कुछ परिवर्तन देखे जिससे मेरे दिमाग में एक सोच ने जन्म लिया ।जैसे की हर रिश्ते में लड़ाई होती है उसी तरह एक रिश्ता दोस्ती का जो मेरा जेनी के साथ था उसमे भी लड़ाई हुई ।प्रदीप को मैंने सारी बात बताई और उसने मुझे समर्थन भी दिया लेकिन शाम को में और दीदी प्रदीप से मिले और फिर उस लड़ाई की चर्चा हुई ।प्रदीप ने कहा की शायद जेनी को ये लगता है की आशिता इतनी सुंदर नहीं है इसलिए वो इसे साथ ले जाने में उसे शर्म आती हो ।उसके मुँह से ये बात सुन के मेरे अंदर कहीं बहुत जोर से दर्द हुआ क्योकि जेनी से लड़ाई एक दोस्त के नाते हुई और उसकी मुझ पर ये टिप्पणी कभी भी नहीं हो सकती थी ।उस पल में मेरे दिमाग में यही आया की इसके दिमाग में ये सारी बातें है उसे ऐसा लगता है की मैं सुंदर नहीं हूँ?
मुझे उस वक़्त इतना बुरा लगा की मैं वहां से जाने लगी और दीदी ने उसे कहा ये तूने गलत बोला है जा और मना उसे । उसने उस वक़्त तो मुझे मना लिए लेकिन मेरे दिमाग में एक चिंगारी रह गयी।
सब अपनी जगह सही थे लेकिन वक़्त ना जाने क्यों मुझे पागल बनाये जा रहा था वो रोने की आवाजें वो मेरी नानी से नाना की निशानियां दूर करना चारों तरफ बस चीखे और गमगीन माहौल ये इस कदर मुझ पर साया बना चुके थे की में सही गलत की पहचान भूलने लग गयी ।
एक महीना खत्म हुआ और मैं घर वापस आ गयी । अब मेरी दुनियां में सिर्फ मैं और मेरी नानी थे ।
सुबह शाम घर का काम और रात में नानी से बातें और फिर नींद । बस यही मेरी लाइफ बन गयी थी । सबके पास सिर्फ एक ही बात होती थी और वो थी मेरी शादी ।जबकि मैं प्रदीप के साथ अपनी लाइफ बिताना चाहती थी ।मैं सारे दिन प्रदीप को कहती की सब दबाव बना रहे है मैं ज्यादा दिन तक उन्हें नहीं रोक पाउगी । और उसका एक ही जवाब होता था मैं अभी शादी नहीं कर सकता । जैसे तैसे मैंने घरवालों को शादी अभी ना करने के लिए मना लिया और इस तरह 8 महीने बीत गए ।
पर हालत वही थे ।मैंने मेरी जिंदगी सिर्फ नानी तक सिमित बना ली थी लेकिन जिंदगी का हर मकसद मैंने ख़त्म कर लिया था ।उसके लिए कभी मामा से कभी पापा से ताने भी सुनने पड़ते थे ।एक दिन मजाक मस्ती में मेरी और नानी की छोटी सी बहस हो गयी जो की बढ़ गयी ।मुझे खुद पे गुस्सा आने लगा की मैंने कहाँ कमी छोड़ दी । जब भी पैसे मांगती तो यही सवाल होता की क्या करेगी बहुत से चीजे ऐसी होने लगी जिसकी ठेस मेरे स्वाभिमान को लगने लगी ।मेरी मौसी मेरी दोस्त की तरह थी जो उस वक़्त नानी के घर आई हुई थी जो ये सारे वाकया को देख रही थी ।
मैंने मौसी से कहा की मौसी इतना करने के बाद एक थोड़ी सी इज्जत की उम्मीद हर किसी को होती है जब कोई नानी के साथ नहीं रह रहा था मैंने मेरी पढाई और खुद को पूरा सौंप दिया था ।अब मौसी मुझे मेरे लिए जीना है प्लीज मुझे यहाँ से जाने दे मुझे ना पैसे चाहिए न ही कुछ और मैं चाहे कैसे भी दिन हो रह लुंगी लेकिन मुझे अब खुद की नजरों में खड़ा होना है ।इस सब का ये मतलब नहीं था की वो मुझसे प्यार नहीं करते सब मुझे वापस जयपुर भेजने के लिए मान गए और एक महीने का खर्चा लेकर मैं जयपुर आ गयी ।
मेरे जयपुर आने की बात मैंने कुछ दिनों तक प्रदीप को नहीं बताई । जब मैंने उसे बताया तो उसे बहुत खुशी हुई क्योंकि वो कहता रहता था अपने लिए कुछ कर और मेरे इस कदम से उसे बहुत अच्छा लगा ।मैं दिन रात नौकरी की तलाश मैं रहती लेकिन अभी तक मुझे कोई सफलता नहीं मिली ।और प्रदीप ने भी इस वक़्त मेरी कोई मदद नहीं की जो मैं देख कर अंदर से दुखी भी हुई ।वो कहने को कहता है की मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ पर जब आज मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी वो मेरे साथ नहीं ।उसने बातों में कहा जरूर की तू पढ़ खर्चे की परवाह मत कर मैं देख लूंगा ।स्वाभिमान की चोट खाये मैं कभी उससे पैसे नहीं लेती लेकिन उस साथ को जरूर तरस रही थी ।इन दिनों वो मुझसे मिलने भी आया ।हमने साथ वक़्त बिताया ।
इस दिमागी दौर के चलते मैं छोटी छोटी बातों से परेशान हो जाया करती थी जो बाकि सबको छोटी और मुझे बड़ी लगती थी । जब मैं घर पर थी प्रदीप मुझसे कभी बात करता था कभी नहीं उस दौरान उसका कोई एग्जाम जो की जयपुर था वो देने आया और दीदी और जेनी से भी मिल कर गया लेकिन दूसरी ही तरफ मुझसे ये कहा की मैंने पेपर ही नहीं दिया । जब कभी मेरे साथ होता और अगर उसके दोस्त दिखते तो या तो खुद छुप जाता या मुझे रुकने के लिए कहता । ये सारे दोस्त उसकी क्लास के थे मैं ये सोचती थी उनके सामने मुझे नहीं दिखाने का या मुझे अपनाने में शायद वो उतना मुझे लेके भरोसे में नहीं था की मैं उसके लायक हूँ । मैंने हर बार इन चीजों को टाल दिया लेकिन इस बार इस नयी चीज को अपने जहन से नहीं निकाल पायी मैं उससे मिलने गयी और दी ने मुझे तैयार किया और मैं बड़ी ही खुश थी अचानक तेज़ बारिश होने लगी । और मैं भागी भागी उसके पास पहुंची उसने मुझे देखा और कहा ये क्या पहना हुआ है और तेरी कैप कहाँ है ? जा लेके आ ।
हो सकता है ये उसकी परवाह हो लेकिन एक बार उसे सुन के मुझे बहुत बुरा लगा और मैं उससे मुँह फेर कर खड़ी हो गयी और बारिश के रुकने का इन्तजार करने लगी ।वो मुझे सॉरी बोलने लगा पर जैसे ही बारिश रुकी मैं दी के पास गयी और कपड़े बदलने लगी दी ने पूछा क्या हुआ? मैं चुप थी बहुत बार पूछने पर मैं रो पड़ी और सब बताया ।दी बोली मैं चलती हूँ तेरे साथ मैंने कहा नहीं दी रहने दो । मेरे मना करने पे भी वो मेरे साथ चले और प्रदीप को समझाया सब सही करने को और उसने सॉरी बोला और फिर चुप ।उसकी चुप्पी मुझे चुभ रही थी पर दी की मौजूदगी में सारा मामला शांत हुआ और अगले दिन प्रदीप घर चला गया ।
उसकी बातें सब मेरे दिमाग में चल रही थी उन्हें मैं कैसे भी जहन से नहीं निकाल पा रही थी ।पर इतने ही वक़्त में एक ख़ुशख़बरी मेरे पास आयी मुझे एक जॉब मिल गयी और अगले ही दिन उसे ज्वाइन करना था ।लाइफ की इस ख़ुशी का मैंने बहुत अच्छे से वेलकम किया ।
दी ने मुझे बहुत प्यार दिया और मेरा टिफ़िन बना के दिया और दही चीनी के साथ मुझे आल द बेस्ट बोल के ऑफिस भेजा ।
नौकरी ज्वाइन करने के बाद भी काम मुझे मेरे दिमाग को पूरी तरह बिजी नहीं रख पा रहा था । 2 3 दिन तक इस सोच से परेशान रात भर ना सो सकी और सुबह जब दी ने मुझे परेशान देखा तो पूछा क्या बात हुई?
मैंने मेरे दिल की सारी उधेड़ बून दी को बताई । दी ने मुझे सलाह दी की तेरे मन में जो भी है एक बार उससे बात कर और सारी चीजे साफ़ कर ले ।मैं जानती हूँ प्रदीप के मन ऐसा कुछ भी नहीं होगा फिर भी उससे बात करले ताकि तू चैन से रह सके ।
मैंने उसी वक़्त प्रदीप से बात की और अपने सवाल उसके सामने रखे ।उसने बड़े अच्छे से मेरे सवालों के जवाब दिए लेकिन कब वो बातचीत लड़ाई बन गयी और कब उसने अपनी असफलता का सारा भार मुझ पे डाल दिया कुछ पता नहीं लगा ये पहली बार नहीं था जब उसने मुझे अपनी असफलताओ का श्रेय मुझे ना दिया हो और मुझे छोड़ के ना गया हो लेकिन इस बार एक लड़की का आत्मसम्मान ये सब नहीं झेल पाया और हर बार की तरह इस बार मैं उसके सामने मेरे साथ रहने के लिए नहीं रोई ।और वो चला गया ।
उसके जाने के बाद भी मैंने जाने अनजाने उसे बहुत बार फ़ोन किया लेकिन इस बार उसने मन बना लिया था की अब वापस नहीं जाना ।
फैसला ये है की अब आवाज नहीं देनी किसी को... ।
हम भी तो देखे कौन कितना तलबगार है अपना... । ।
और इसी चीज से लड़ते लड़ते शर्मा जी ने मेरी बेरंग जिंदगी में कदम रखा ।
उनके दिल्ली जाने के बाद एक दिन में उन्होंने मुझे अपनेपन का जो अहसास दिलाया उसे भूल पाना मुश्किल था । बहुत दिनों बाद ये प्यार अपनापन महूसस हुआ और ऐसा लगा जैसे नाना ने सच में उन्हें मुझे वापस उठ खड़े होने के लिए भेजा हो ।
हम दोनों बेशक अलग अलग शहर में थे लेकिन एक दूसरे के साथ का अहसास मेरे साथ ही था ।मेरे दिन की दिनचर्या ही बदल गयी थी ।जहाँ सुबह उठते ही क्लास जाना है ऑफिस जाना है खाना बनाना है इन सब बातों की टेंशन रहती थी वही अब रोज सुबह किसी की स्वीट सी गुड मॉर्निंग विश के साथ होती थी जो इस दिनचर्या को करने के लिए एक स्फूर्ति भर देती थी ।
और एक तरीके से तो दिनचर्या ही बदल गयी ।सुबह मेसेज चैटिंग से शुरुआत उसके बाद बीच बीच में कॉल पर बात फिर शाम होने पर भी बातों का सिलसिला खत्म ना हो पाना । बात करने का ये तरीका भी गजब था डिनर के बाद चैटिंग उसके बाद कॉल पर फिर उसके बाद वीडियो कॉल पर एक दूसरे को देखते देखते सुबह के 4 बज जाना उसके बाद 2 घंटे की नींद लेना ।कुछ दिनों तक यही सिलसिला बना रहा ।
जैसा की वो दिल्ली अपनी पढ़ाई के लिए थे और अपना एग्जाम दे चुके थे ।और इन दिनों वो अपने रिजल्ट का वेट कर रहे थे ।
जिस दिन मुझसे मिल कर गए उस दिन घर से बोल कर निकले की मैं दिल्ली जा रहा हूँ लेकिन अभी जयपुर में ही थे । और जैसा की उनके भाई के सामने उनका फ़ोन आना और मेरे बारे में पूछना और दी का उन्हें सब बताना उनके भाई के दिमाग में कुछ अलग चला गया ।
और रात को उनके भाई ने पूछा कहाँ है तू दीपू?
उन्होंने फिर झूठ कहा दिल्ली ।
जैसे तैसे वो बात वही संभल गयी ।
जहां एक और आज की मुलाकात से मैं बहुत खुश थी वही दूसरी ही और उनके भाई को सब पता लग गया उसकी टेंशन थी ।शर्मा जी शुरू से ही पढ़ने में बहुत होशियार थे इस वजह से उनके परिवार की उम्मीदें उनसे कुछ ज्यादा थी ।इस लिए शायद मन्नू भईया को इस नए रिश्ते से उनकी पढ़ाई प्रभावित ना हो जाये इस चीज का डर था ।इस डर से मैं और दीदी भी अवगत हो गए थे इसलिए उस रात दी ने मुझे बहुत समझाया और मैंने सोच लिया की एक दुरी बनाउंगी ।
मैं और मन्नू भैया हम एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे ।मन्नू भईया और दीदी के साथ मैंने बहुत वक़्त बिताया था ।और वो प्रदीप से भी मिले हुए थे ।इसलिए यहां अपने भाई के लिए सोचना गलत नहीं था और ना ही मैंने उन्हें गलत समझा ।
दिन में साथ वक़्त बिताने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कैसा लगा मिल कर मेरा आँखों वाला प्यार देख कर ।
उन्होंने मुझे पहले प्यार की परिभाषों में एक इस प्यार के बारे में जिक्र किया था ।जरुरी नहीं प्यार छू कर या कह कर महसूस किया जाये या बताया जाये एक प्यार होता है आँखों वाला जिससे एक दूसरे को देख कर ही उसके बारे में उसकी फीलिंग्स के बारे में समझ लिया जाता है ।
हाँ देख लिया आपका आँखों वाला प्यार (मैंने जवाब में कहा)
जैसा की मन में सोच लिया था की इनसे दुरी बनानी है तो उनके सवालों के जवाब भी रूखे तरीके से दे रही थी ।
बात चलते चलते उन्होंने कहा:- सुनो
सुनाइए मैंने जवाब में कहा
शर्माजी:- i love you
सुन कर दंग रह गयी पर उसी पल खुद को संभाला उनकी पढ़ाई और इतनी जल्दी प्यार कभी होता है क्या इन सब के बारे में सोचने लगी
मेरे मन में एक ओर उनके लिए कुछ जज्बात थे दूसरी ओर की कही ये सिर्फ मुझे फ़साने के लिए तो नहीं कर रहे है क्योकि जैसा मैंने सबसे सुना और जाना तो यही सुना की शर्माजी एक प्ले बॉय है ।वो सिर्फ टाइमपास के लिए लड़कियों से बात करते है ।और ये सब दिमाग में चलते मैंने उन्हें रिप्लाई किया ।
ये कब हुआ?इंसान को इतनी भी नहीं फेंकनी चाहिए बस करो अब ।
शर्माजी:-ठीक है चल बाय ।
मैं :-अरे यार आप भी हद करते हो ।
शर्माजी:-यार देख जब में सीरियस होता हूँ तब तू मजाक करने लग जाती है ।
मैं:-अरे तो यार हफ्ते भर में प्यार होता है क्या ?अच्छा तो आप सीरियस हो ।
शर्माजी :- हाँ
मैं :- अच्छा ठीक है बोलो फिर ।
शर्माजी:- सच में तेरे लिए फीलिंग्स आ गयी है मेरे दिल में पता नहीं तुझे मुझे देख कर लगा के नहीं लेकिन आज मेरी आँखों में अलग ही चमक थी ।
(सुन के और इस सब को महसूस करके बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन खुद को सम्भलना था और इन बातों में कितनी सच्चाई है मैं ये भी नहीं जानती थी इसलिए इस बात को मजाक में ले गयी ।)
मैं- अच्छा तो कोई घायल हो गया ।
शर्माजी:-घायल नहीं तड़प रहा हूँ तुझसे दूर हूँ लेकिन बहुत याद आ रही है तेरी ।
मैं:-इन यादों को यहीं जयपुर छोड़ के जाओ क्योकि वहां जाके बहुत पढ़ना है ।
शर्माजी:- वो तो मैं पढ़ लूंगा ।
मैं:- पक्का ।
शर्माजी:-हाँ पक्का तुझे लगता है तुझसे अभी तक कुछ झूठ बोला है?
मैं:-पता नहीं भरोसा कर पाना मुश्किल है ।क्या सच है क्या झूठ समझ नहीं आ रहा ।
शर्माजी:-क्यों मुश्किल क्यों है ।
मैं:- फ्लेर्टी लड़कों पर भरोसा करना मुश्किल ही होता है ।कभी इसके साथ तो दूसरे पल किसी और के साथ ।
शर्माजी:- मैं और फ्लेर्टी ।
मैं :- हाँ तो जो हो वो तो मानो ।
शर्माजी:- अगर तुझे ऐसा लगता है तो तू समझ ही नहीं पायी है मुझे मैं सिर्फ दी के साथ ऐसे मजाक करता हूँ बाकि मैं ऐसा नहीं हूँ ।
मैं:-पर मेरा अभी आप पर भरोसा कर पाना मुश्किल है बाकि अभी सब अच्छा चल रहा है तो अभी में जीते है ।
शर्माजी :- लेकिन भरोसे की बात अभी है ना और रिश्ते की 3 नीवों में ये सबसे जरूरी है ।तभी कोई रिश्ता बन सकता है ।
शर्माजी ने फिर कहा की मैं बेशक टपोरी फ्लेर्टी और दिलों से खेलने वाला लगता हूँ लेकिन एक सच ये भी है की मैं बहुत ही ज्यादा भावनाओं में बहने वाला इंसान हूँ जो की अंदर से बहुत कमजोर है ।मैं किसी भी इंसान से बहुत जल्दी जुड़ जाता हूँ और तुझसे मेरा कुछ जुड़ाव हो गया है शायद ये तू माने या ना माने ।
शर्मा जी की बातें सुन कर ऐसा नहीं की ये बनाई बातें लगी लेकिन जो उनके अतीत के बारे में सुना और वो किस तरह के व्यक्तित्व वाले इंसान है ये सुन कर दिमाग हर बार दो बातें बोलता की ये सब सच है या फिर मैं भी उनकी लिस्ट में जुड़ रही हूँ ।उन्होंने खुद कहा की तेरा नंबर 169 है ।मैं जब भी उनसे बात करती तब एक सवाल फिक्स था की शर्माजी ये सब सच है न और वो यही कहते हाँ ।
पर कुछ दिन की इन बातों के सिलसिलों ने उन्हें कहीं ना कहीं मेरी आदत बना दिया था मेरा मन भी मनचला हो गया था रह रह कर कहता था की उनसे बात करू ।बात भरोसे की आती तो डर लगता की कैसे करू फिर उन्हीं की बात याद आती की 2 टूटे हुए इंसान ही एक दूसरे को पूरा कर सकते है । एक कश्मकश मैं फस गयी थी क्या करूं और क्या नहीं कुछ समझ नहीं पा रही थी और एकदम से उनसे बात करना भी बंद नहीं कर सकती थी पर बातों का सिलसिला तो रुक ही कहा रहा था ।और दी बार बार ये देख कर मुझे समझा रही थी ।लेकिन उन्हें ये चीजे ये बातें कौन समझाये उनसे कुछ कहा भी नहीं जा सकता और ये समझ पाना भी मुश्किल था की वो मेरा साथ क्यों चाहते थे क्या सच में उन्हें मुझसे प्यार हो गया था या सिर्फ अपने खाली वक़्त को काट रहे थे लेकिन उनकी ये बेकरारी मेरी सोचने की शक्ति को बंद कर देती थी ।मैंने दीदी को बताया की वो बोलते है की तुझसे प्यार हो गया है लेकिन दीदी बोलती इतनी जल्दी कभी प्यार हुआ है क्या और दीपू को प्यार हो जाये ये मुमकिन नहीं ।
रोज देर रात तक बातें करना सिर्फ एक दूसरे की दिल की सुनना इन सब का मुझ पर अलग ही असर हो रहा था वो हर रात की बातचीत में ना जाने कितनी बार अपने प्यार का इजहार करते थे और हमारा साथ मेरे परिवार को अपना परिवार मानना जबकि मैं उनसे अपनी निजी जिंदगी की बातें कभी भी उनसे नहीं करती थी और वो बार बार मेरे दिल से सब बातें निकलवाने की कोशिश करते मुझे हंसाते और हर रात यही बोलते की जब तू सुबह उठेगी तब एक सुकून की मुस्कराहट के साथ उठेगी ।ये सब मेरे दिल तक पहुंचने के बाद भी मैं चुप रही और उन्हें ये नहीं कहा की मैं ये नहीं जानती की आप मुझसे प्यार करते हो या नहीं लेकिन ये जो अहसास है या प्यार मुझे आपसे हो गया है ।
और आख़िरकार एक दिन उनके आई लव यू का जवाब मैंने दे दिया । इस जवाब से पहले पुरे दिन सोचा और दीदी को भी नहीं बताया लेकिन खुद को रोक नहीं पाई और बोल दिया जो होगा देखा जाएगा वो करे ना करे मैं तो करती हूँ यही बहुत है ।
एग्जाम के एक दिन पहले दी ने कहा आज बात मत करना मैंने कहा ठीक है नहीं करुँगी ।और थोड़ा दुरी बना उससे कल को उसका रिजल्ट खराब रहा तो सबकी नजरों में तू ही जिम्मेदार होगी ।दीदी की बातें सुन मैं रो पड़ी और कहा दीदी क्या मैं कुछ गलत कर रही हूँ उनसे बात करके सुकून मिलता है एक ख़ुशी मिलती है ये सबकी नजरों मैं गलत क्यों है ।
दीदी ने कहा :- तुझे उससे बात करते हुए कुछ ही दिन हुए है और तेरा ये हाल है जबकि तुझे पता है ना की ना ही उसे कभी तुझसे प्यार होगा ना ही तुम एक हो सकते हो और कहीं तूने उसे ये जो तू महसूस कर रही है उसे तो नहीं बता दिया ।
मैंने दी से झूठ बोला नहीं दीदी नहीं बताया ।
दीदी :- बस तो खुद पे काबू रख और चीजों को दिल से मत जोड़ तुझे बात करना अच्छा लग रहा है कर पर हद में ।
दीदी की बात सुन कर मैंने सोच लिया था की नहीं करुँगी पर वो किसी तरह मानने को तैयार नहीं थे बोले 30 मिनट मैंने कहा नहीं बोले ठीक है 25 मिनट मैंने कहा नहीं अच्छा चल 10 मिनट मैंने बोला वो तो हो गए बात करते करते अब कल एग्जाम के बाद करेंगे और मैंने गुड़ नाईट बोल कर फ़ोन कट कर दिया ।
सोचते सोचते कब नींद आ गयी पता नहीं चला और जब सुबह उठी तो उनके खूब सारे मेसेजस आये हुए थे ।जिसमे उन्होंने अपने दिल की बातें लिखी और अपने प्यार का इजहार किया ।उस पलक तक मैं सो रही थी और वो एग्जाम सेंटर पहुंच चुके थे और उनका फ़ोन भी अब ऑफ था ।मैंने उनके वो मेसेज पढ़े और उन्हें गुड लक विश किया और मेसेज कर कर के उनके एग्जाम खत्म होने का इंतजार कर रही थी ।
उनका एग्जाम खत्म हुआ और एग्जाम के बाद उनका मेसेज आया उनके मेसेजेस से उनका मूड सही नहीं लग रहा था ।मेरे बहुत बार पूछने पर भी उन्होंने मुझे नहीं बताया और फिर उसके बाद बोले
शर्माजी :- यार जिस एग्जाम की तैयारी के लिए मैं दिल्ली था और जिसके रिजल्ट का इंतजार पुरे घरवाले कर रहे थे वो रिजल्ट आ गया और मैं वो एग्जाम पास नहीं कर पाया अब घरवालों से किस मुँह से बात करूँगा ।
इस बंदे का व्यवक्तित्व बेशक लोगों के सामने कुछ भी था लेकिन पढ़ाई के लिए उसका जज्बा बहुत था और इस रिजल्ट से कही न कही उन्हें बहुत दुःख हुआ और फिर भी दुनियां के सामने वो खुद को बहादुर दिखा रहा था जबकि अंदर से वो पूरा टुटा हुआ था ।
जैसे तैसे मैंने अपनी बातों से उन्हें हिम्मत देने की कोशिश की लेकिन ऐसा लग रहा था की शायद मेरे शब्द वो असर ना कर पा रहे हो । उन्होंने मुझे किसी को भी रिजल्ट बताने से मना किया था और इस वजह से मैं दीदी को भी नहीं बता पायी जबकि कही न कहीं उनकी बातें उन्हें बहुत हिम्मत देती ।पुरे दिन मेरी उनसे अच्छे से बात नहीं हुई और देर रात उनका फ़ोन दीदी के पास आया और उन्होंने दीदी को अपना रिजल्ट बताया और तब तक मन्नू भईया को भी पता लग चूका था और उन्होंने इतना ही कहा की बस अब जयपुर आजा । उन्होंने बहुत देर तक दीदी से बातें की और मैं सोने का नाटक कर रही थी ।
इतनी देर की बात में उन्होंने एक बार भी मेरा जिक्र नहीं किया तो अच्छा नहीं लग रहा था फिर जब बात खत्म होने को आयी तो उन्होंने दीदी से कहा की आशिता से बात करवा तो दीदी ने कहा वो सो गयी और उन्होंने दी को गुड नाईट बोल कर फ़ोन कट कर दिया । पर मैं सोई कहाँ थी बहुत मन था उनसे बात करने का लेकिन अब कर भी नहीं सकती थी और मन मसोस कर सो गयी ।
अगले दिन सुबह उन्होंने शिकायत की मुझसे बिना बात करे सो भी गयी ।
मैंने कहा की नींद आ गयी थी ।
शर्माजी :- एक खुशखबरी है ।
मैंने पूछा क्या?
शर्माजी :- मैं जयपुर आ रहा हूँ वो भी हमेशा के लिए ।
मैं :- ये सुन मुझे बहुत ख़ुशी हुई और इतनी की मन ख़ुशी से नाचने लगा । और मैंने कहा सच ?
शर्माजी:- हाँ कल भाई से बात हुई उसने यही कहा अब जयपुर आजा जो करना यही से करना मेरा बिलकुल मन नहीं है जयपुर आके रहने का । 2 दिन से ज्यादा टिक भी नहीं पाउँगा मैं वहां लेकिन पूरा परिवार यही चाहता है की मैं अब जयपुर ही रहूं ।
मैं :- अरे सब लग जाएगा मन और जिस दिन नहीं लगे उस दिन मुझसे मिल लेना क्या पता मन लग जाये ।
शर्माजी :- वो तो मैं रोज मिलूंगा और तू रोज अपने हाथ का बना खाना खिलाएगी वो भी बिना किसी बहाने के तब पता चलेगा तेरा सच्चा प्यार ।
मैं:- मेरे प्यार को मत ललकारो बहुत ज्यादा है ।
दोनों ने बातें की और बस मिलने का इंतजार कर रहे थे की बस जल्दी से वो आ पल आ जाये जब हम दोनों मिले ।
और कुछ दिनों के इंतजार के बाद वो दिल्ली से जयपुर के लिए रवाना हुए और सुबह सुबह जयपुर पहुंच गए । पहुंचते ही तुरंत उनका फ़ोन आया की बाहर आ मैं आ गया हूँ ।
गणगौर का दिन था दीदी घर गए हुए थे तो मैं फटाफट खुद को आईने में निहार कर उनसे मिलने गयी ।देखा तो पुरे सामान के साथ आये खड़े थे और देख कर उन्होंने मेरा हाथ थामा और एक बार फिर वक़्त रुक गया दोनों ने आखों से एक दूसरे को देख के अपना मन भरा उसके बाद नाश्ता करके वो अपने भाई के पास चले गए और मैं रूम पर आ गयी । दीदी दोपहर तक आने वाली थी तो आज मैंने ऑफिस से छुट्टी कर ली ।
दीदी आये तब मैंने बहुत ही उत्साह से बताया की दीदी वो आ गए ।हाँ हाँ तुझे देख के पता लग रहा है ऊपर से ऑफिस भी नहीं गयी ।फिर हमने खूब बातें की ।
जैसा की गणगौर का त्यौहार था । तो दीदी घर से मिठाई लाई थी । हम खाने बैठे थे तब दीदी ने शर्माजी को फ़ोन किया आ गया तू और क्या कर रहा है ।
शर्माजी:- दाल बाटी खा रहा हूँ घर से आये है ।
दीदी :- अकेले अकेले खा रहा मुझे भी खाने है ।
शर्माजी:-ठीक है चल मैं अभी देने आता हूँ ।
शर्माजी को ये नहीं पता था की मैं ऑफिस नहीं गयी और अर्चना भी आयी हुई थी तो दीदी ने कहा तुम दोनों जा के ले आना थोड़ी देर मैं वो आये फिर मैं और अर्चना उनके पास गए वो मुझे देख के बोले तू गयी नहीं तबसे बैठा बोर हो रहा था यही थी तो मैं मिलने ही आ जाता ।उसके बाद उन्हें अर्चना से मिलवाया मैंने कहा मैं ये सामान ले जाती हूँ दीदी खाना खाने बैठी हुई है ।
खाना देकर वापस आ जाना मैं यहीं बैठा हूँ ।(उन्होंने कहा )
मैं रूम पर आ गयी ।मैं और दीदी जैसा की हम दोनों ने अर्चना से कहा था की तू उनसे फ़्लर्ट करना और देखते है वो बंदा फिसलता है के नहीं । दीदी और मैं ये सब खिड़की से देख रहे थे ।और उन दोनों में बातें हो ही रही थी ।
कुछ देर बाद मैं गयी अर्चना भी अपने रूम पर चली गयी ।मैंने उनसे पूछा कैसी लगी लड़की ।बोले अच्छी है । और फिर हम बातों में लग गए ।
शाम होने लगी फिर मैं डांस क्लास चली गयी और वो अपने रूम पर ।
फिर हमारा मिलना कुछ इस कदर होने लगा वो सुबह सुबह दौड़ लगाने के लिए आते थे और हमे भी साथ ले जाते थे ।अगर कहा जाये तो मिलने का ये एक बहाना निकाला हो जैसे क्योकि शर्माजी बहुत ही आलसी थे और वो इंसान सुबह उठ के दौड़ लगाए एक बार तो किसी को हजम नहीं हुआ ।
दौड़ के बाद हम नाश्ता करते और मैं ऑफिस और वो रूम पर बैठ के पढाई करते थे ।और जब मैं ऑफिस से निकलती तब वो अपने रूम से निकलते और दोनों गार्डन में बैठ के बातें करते ।अपने आप को सही रखने के लिए डांस क्लास का जरिया लिया था वो जरिया बंद हो गया और मेरी खुशियाँ और मेरे सुकून का जरिया वो बनने लग रहे थे ।
मैं तो उनके करीब हो रही थी लेकिन मन में ये शक अब भी था की इनकी तरफ से इस रिश्ते का क्या मोल है ।इस सवाल के दिमाग में आते ही सब सुन हो जाता और फिर यही सोचती की चलने दे जो भी चल रहा है ।
एक दिन शाम को जब मैं ऑफिस से निकली तब मैंने उन्हें फ़ोन किया लेकिन उनका फ़ोन बंद था ।फिर भी मैंने गार्डन में उनका इंतजार किया तब भी ना उनका फ़ोन लगा और ना ही वो आये घंटे भर मैंने गार्डन में उनका इंतजार किया बहुत दिनों बाद अकेले बैठने पर नाना की यादें आने लगी और उन यादों से बचने के लिए मैं रूम पर आ गयी और नाना की तस्वीर को गले से लगा के बहुत फुट कर रोई ।दीदी ने मुझे संभालने की बहुत कोशिश की पर उस वक़्त जैसे मुझे संभाल पाना मुश्किल हो रहा था ।
दूसरी तरफ शर्माजी का फ़ोन मेरे पास आया ।मैंने बात ना करने के लिए दीदी को बोला और दीदी ने उनसे बात की ।
शर्माजी:- आशिता कहाँ है उसे फ़ोन देना ।
दीदी:- अभी वो बात नहीं कर सकती बाद में कर लेना ।
शर्माजी:- अच्छा बात नहीं कर रही तो उसे नीचे भेज दे मैं बैठा हूँ जल्दी भेज ।
दीदी मुझसे कहा वो बुला रहा है नीचे बैठा है जा एक बार ।मैंने मना किया ऐसे नहीं जाऊ ।रो रो के आँखें सुजा रखी थी और ऐसे उनके सामने जाने से कतरा रही थी ।
दीदी ने मेरी आँखों पर चश्मा लगाया और बोली अब चली जा ।दी ने मुझे मना के भेजा और वो राम मंदिर बैठे हुए थे ।उनके हाथ में एक रजिस्टर था ।
शर्माजी:- अरे यार वो मेरा फ़ोन बंद हो गया था और मैं सो गया था इसलिए नहीं आ पाया ।
मैं:- कोई बात नहीं ।
शर्माजी:- तूने आज चश्मा क्यूँ लगाया है रो कर आयी है?
मैं:- हाँ आप आये नहीं न इसलिए ।ये रजिस्टर लेके क्यों घूम रहे हो आज इतना पढ़ लिए ।
शर्माजी:- नहीं इसमें तेरे लिए कुछ है ।
मैं :- मेरे लिए ? मेरे लिए क्या है?
शर्माजी :- खोल के देख ले ।
मैंने रजिस्टर को खोला और देखा उसमे एक कार्ड था और वो भी उनका बनाया हुआ और बहुत सारी तहों में बंद हो रखा था । उसकी हर तह पर उन्होंने अपने जज्बात उतार रखे थे ।जिसका हर शब्द पढ़ कर उनके दिल में मेरे लिए क्या जज्बात है उन्हें समझने की कोशिश कर रही थी और कोई भी उसे पढ़ कर, देख कर यही कहता की ये लड़का मुझसे बहुत प्यार करता है ।आज तक किसी लड़के ने कुछ ऐसा मेरे लिए कभी नहीं किया था ।देख कर आँखें भर आयी ।और जब उन्होंने मुझे चुप कराया तो मैंने उन्हें कस कर गले लगा लिया और कहा प्लीज मुझे कभी छोड़ कर मत जाना ।ये सुन उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और काफी देर तक हम ऐसे ही रहे ।शायद ये पहली बार उस प्यार वाली फीलिंग को बहुत करीब से फील कर रही थी एक सुकून एक शांति कुछ अलग ही था ।और इस तरिके से पहली बार मैं शर्माजी के गले लगी थी उनकी दिल की धड़कने मुझे साफ सुनाई दे रही थी ।जैसे फिल्मों में होता है वैसा फील आने लगा चारो तरफ अँधेरा और हम दोनों स्पॉटलाइट में गाने बज रहे हो जैसे ऊपर से बर्फ की इस लम्बी सी झप्पी के बाद उन्होंने मुझे घर भेजा और खुद भी चले गए ।
एक चमकती मुस्कान के साथ मैं रूम पर आ गयी दीदी और अर्चना ने पूछा क्या बात है बहुत खुश लग रही है ।मैंने उन्हें वो कार्ड दिखाया दोनों एकदम धक्क से रह गए ।दीदी ने कहा मुझे तो आज तक नहीं दिया ।
दीदी ने उन्हें फ़ोन किया और बोला क्या बात है दीपू कार्ड तो बहुत बढ़िया बनाया है ।और दोनों ने कुछ देर खूब बातें की ।
उस दिन से उनके लिए प्यार और बढ़ गया और दीदी ने एक बार फिर समझाया की भावनाओ में मत बह ।
दिमाग और दिल में दिन रात एक लड़ाई चलती रहती थी क्या सच है क्या झूठ समझ नहीं आ रहा था ।जैसा की वो बोलते थे की जिस लड़की से बात करता हूँ जब वो मुझसे अपने प्यार का इजहार कर देती है तो मैं उससे बात करना बंद कर देता हूँ ।लेकिन मैंने उनसे कबका अपने प्यार का इजहार कर दिया था और वो अपने प्यार को मुझ पर बरसाए ही जा रहे थे ।फिर मैंने सोच लिया वो करते है या नहीं ये सोचने की बजाय सिर्फ मैं ये देखु की मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ और मेरा प्यार इस शर्त का मोहताज नहीं की वो भी मुझसे करे ।
दिन निकलने लगे अब वो कभी कभी ऑफिस लंच टाइम में तो कभी मुझे ऑफिस के बाद लेने आने लगे ।और ये देख कर मन्नू भैया का फ़ोन दीदी के पास आया उन्होंने दीदी से मेरे ऑफिस का पता पूछा और मेरे आने जाने का वक़्त पूछा और ये भी पूछा की क्या अब भी आशिता दीपू से मिलती है ।दीदी ने उन्हें सब सच ही बताया की हाँ ये अब भी बातें करते है और मिलते है ।
दीदी ने भईया के सवालों के बारे में मुझे बताया और मुझसे कहा अब दीपू से नहीं मिलेगी तू ।उनकी ये बात सुन कर दुःख हुआ लेकिन मैं उन्हें ना नहीं कह सकती थी इसलिए मैंने बोला ठीक है नहीं करूंगी ।शाम होने पर उनका मेरे पास फ़ोन आया और फ़ोन दीदी ने उठाया ।
शर्माजी ने कहा की मैं बाहर हूँ आशिता को भेज दे ।
दीदी :-नहीं वो नहीं आएगी तो तू वापस चला जा ।
शर्माजी: - अरे मैं नीचे ही खड़ा हूँ थोड़ी देर के लिए भेज दे ।
दीदी :- नहीं वो नहीं आएगी तो तू जा ।
शर्माजी:- अरे मुझे उसका लैपटॉप चाहिए था भाई को काम है उससे ।
दीदी :- मन्नू खुद आ के ले जाएगा अभी तू वापस जा ।
(शर्माजी दीदी की बहुत इज्जत करते थे इसलिए उन्होंने दीदी की बात मान ली और चले गए दोनों को दुःख बहुत हुआ लेकिन उस वक़्त मैं उनसे ये नहीं कह सकती थी की भैया नहीं चाहते हम मिले और बात करे )
अगली शाम शर्माजी फिर मुझसे मिलने आये मैंने दीदी से पूछा जाऊ?
दीदी ने कहा देख मैं तुझे रोज रोकती हूँ मुझे भी अच्छा नहीं लगता आज तू दीपू से कह देना की मन्नू को पसंद नहीं है और जब तक भईया हाँ ना बोले तब तक मैं नहीं मिल सकती और दीपू मन्नू से पूछने वाला है नहीं तो तुझे भी पता लग जाएगा की कितना प्यार है ।
मैं बस इतना जानती थी की मैं शर्माजी की के साथ मेरा सफर कुछ वक़्त का है लेकिन उनके भाई जिंदगी भर का है तो मेर मन में खुद के प्यार को साबित कराने जैसा कुछ नहीं था ।
मैं उनके पास पहुंची उन्होंने मुझे काफी देर तक देखा और मेरा हाथ थाम कर बैठ गए और कहा पुरे एक दिन बाद देख रहा हूँ तुझे ।
मैंने कहा आदत डाल लो अब कम ही दिखा करूंगी ।
शर्माजी:- क्यों ऐसा भी क्या हो गया?
मैं:- कुछ हुआ नहीं लेकिन रोज मिलना आपकी पढ़ाई को प्रभावित करता है और फिर भईया ने आपको यहां पढ़ाई के लिए बुलाया है उन्हें भी अच्छा नहीं लगेगा आपका यूँ वक़्त बर्बाद करना ।
शर्माजी :- यार शाम के वक़्त ही तो निकलता हूँ पुरे दिन रूम पर बंद तो नहीं रह सकता ना और उसमे भाई को क्या दिक्क्त? और तुम्हारे आलावा कोई और दोस्त भी नहीं है यहां ।
मैं :- तो दोस्त बनाओ मुझसे मिलना कम करो ।
शर्माजी :- कल दीदी ने भी नहीं मिलने दिया अब तू भी ऐसे बोल रही है ठीक है ।तू ये बता तू मिलना चाहती है या नहीं ।
मैं :- ऐसा नहीं है हम कम भी तो मिल सकते है ना जिससे किसी को दिक्क्त ना हो भईया को भी सही लगे ।
शर्माजी :- शाम के आलावा कितना मिलते है तू ही बता दे और भाई को क्या दिक्क्त होगी भाई से कहलवा दूँ तू कहे तो तब तो मिलेगी ना मुझसे ।
मैं :- मैंने ऐसा कब कहा ।
शर्माजी :- अब तो भाई जब तक ना बोल दे तब तक नहीं मिलु ।
और उसके बाद वो मुझे बाय बोल कर चले गए ।
मैंने रूम पर आके दीदी को सारी बात बताई दीदी ने कहा उसकी इतनी हिम्मत नहीं वो मन्नू से पूछ ले और अगर पूछ भी लेता है तो अपनी टेंशन तो खत्म ।
शर्माजी की बहन के यहां शादी थी तो वो 2 दिन वही थे उनका फ़ोन खराब हो गया था तो वो अपनी दीदी के फ़ोन से मुझसे बात करते थे वो भी फेसबुक पर ।
शादी का न्योता दीदी के लिए भी था ।दीदी को सुबह ही निकलना था मन्नू भैया और शर्माजी के साथ ।मैंने दीदी को तैयार किया और वो लोग दीदी को लेने आ गए ।मैंने उन्हें खिड़की से देखा सूट बूट में किसी हीरो से कम नहीं लग रहे थे और थोड़ी ही देर में वो लोग आँखों से दूर हो गए थे ।दी के जाने के बाद मेरा भी ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ और मैंने छुट्टी कर ली और अकेले में रोते रोते सो गयी ।शाम को मैंने दीदी को फ़ोन किया की वो कब तक आ रहे है ।और पीछे से मन्नू भैया की आवाज आ रही थी और इतने में दीदी ने उन्हें फ़ोन दे दिया और वो बोले आशिता तू शादी में क्यों नहीं आयी और अब अकेली रूम पर क्या कर रही है अभी आजा ।
मन्नू भईया से बहुत दिन बाद बात करके मैं बहुत खुश हुई और उन्होंने ये तक कहा की मैं दीपू को भेज रहा हूँ तो उसके साथ आजा ।ये सब सुन मैं बहुत हैरान थी और उस वक़्त शादी में ना आने के लिए मैं उन्हें मना नहीं कर पायी ।फ़ोन कटने के बाद मैंने दीदी को फिर से फ़ोन किया और दीदी से पूछा की दीदी सच बताओ मैं आऊं क्या ? दीदी ने कहा अरे आगे से बुलाया है तो आजा ज्यादा मत सोच फटाफट आजा ।
मैंने शर्माजी को फ़ोन किया और वो मुझे लेने आ रहे थे मैं फटाफट तैयार हुई ये सोच कर वहां उनका पूरा परिवार होगा वो मुझे देखेंगे तो अच्छी लगना है ।और फिर तैयार हो कर नीचे आई मैंने जैसे ही शर्माजी को देखा दौड़ कर उनके गले लग गयी और कहा की आज भईया ने मुझसे इतने दिन बाद बात की है मैं बहुत खुश हूँ ।उन्होंने कहा मैंने कहा था भाई ऐसा कुछ नहीं सोच रहा चल अब चलते है सब इंतजार कर रहे होंगे ।
कुछ ही देर में हम वहां पहुंच गए उन्होंने कहा तू दीदी को फ़ोन करले हम साथ में अंदर जाएंगे तो सब गलत समझेंगे ।मैंने दीदी को फोन किये और उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया और जब मैंने उन्हें ढूंढा तो वो मन्नू भईया और बाकि सबके साथ नाच रही थी ।जैसे ही दीदी ने मुझे देखा वो मुझे भी खींच कर ले गयी और भईया भी वही थे ।कुछ देर नाचने के बाद हम लोग खाने की तरफ जाने लगे तभी दीदी ने मुझसे कहा चल तुझे सबसे मिलवाती हूँ ।और सबसे पहले वो सामने से आ रहे शर्माजी के पापा के सामने ले गयी ।पापा ने पहले अपना रुमाल निकाल कर दीदी के माथे के पसीने पोंछे और कहा खूब नाच ली आज तो ।दीदी ने मुस्कुरा कर कहा हाँ अंकलजी ।फिर दीदी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा अंकल जी ये मेरी दोस्त है मेरे साथ ही रहती है रूम पर कोई नहीं था तो मैंने इसे यहां बुला लिया ।
मैंने उन्हें नमस्ते किया और उन्होंने बड़े ही प्यार से मेरे सर पर हाथ रखा और बोले क्या नाम है बेटा आपका ?
जी आशिता ।मैंने जवाब में कहा ।
अच्छा नाम है खाना खा लिया ?
नहीं बस खाने ही जा रहे है ।
जाओ अच्छे से खाना खाओ ।(उन्होंने कहा )
उसके बाद दीदी मुझे जिनकी शादी थी उनसे मिलने लेकर गयी और वही पर शर्माजी और उनके जीजू दूल्हे के साथ खड़े थे ।मैंने दूल्हे को बधाइयाँ दी और दीदी ने कहा की ये मेरी दोस्त है और हम बातें करने लग गए ।सब एक घेरे में खड़े थे और मैं शर्माजी के बगल में खड़ी थी कुछ ही देर मन्नू भईया अपने किसी रिश्तेदार के साथ आये और आते ही कहा आशिता ये है हमारी प्रीती मेरी भांजी ।मैंने उन्हें अभिनन्दन किया और सब बातों में लग गये ।उस पल जो ख़ुशी हुई उन्हें शब्दों में बता पाना मुमकिन नहीं इतनी इज्जत मिली मुझे और ऐसा लगा जैसे मैं इसी परिवार का हिस्सा हूँ और बगल में खड़े शर्माजी भी पति वाली फीलिंग दे रहे थे । मैं बहुत खुश थी बहुत ज्यादा ।
उसके बाद हमने खाना खाना शुरू किया सभी साथ में ही खा रहे थे बहुत अच्छा लग रहा था तभी शर्माजी की बड़ी बहन(रूही दीदी )और मम्मी आई मम्मी किसी दूसरी आंटी के साथ बातों में मशगूल थे और रूही दीदी हमारी तरफ आई दीदी ने मुझे उनसे भी मिलवाया तब रूही दीदी ने कहा सुबह ही आ जाते खूब मस्ती करते, खाना अच्छे से खाना ये कह कर वो चली गयी ।खाना खाने के बाद मैं और दीदी खड़े थे दी ने शर्माजी को बुलाया और कहा दीपू हमें घर कौन छोड़ कर आ रहा है ?
अभी थोड़ी देर में निकल रहे है । (शर्माजी ने कहा)
(इतनी देर में मन्नू भईया आ गए तभी अचानक शर्माजी ने कहा)
शर्माजी :- भाई कुछ बात पूछनी थी?
भईया :- हाँ बोल ।
शर्माजी :- भाई मैं आशिता से बात करता हूँ इसमें तुझे कोई परेशानी थोड़ी है ?
भैया :- नहीं मुझे क्या परेशानी होगी ।
(शर्माजी ने जब मेरा नाम लिया तब मैं थोड़ा दूर हो गयी थी तो भैया ने मुझे बुलाते हुए कहा)
भईया:- आशिता एक बात बता मैंने कभी तुझे कुछ कहा?
मैं :- नहीं भईया ।
शर्माजी:- किसी को भी आशिता और मेरी बातचीत से कोई दिक्क्त नहीं तो दीदी अब ठीक है ।
दीदी :- हाँ ठीक है मिलो बात करो मुझे भी कोई दिक्क्त नहीं है ।
एक बार के लिए किसी को भी यकीन नहीं हुआ शर्माजी ने ये कहा भईया दीदी एक पल के लिए हैरान थे ।
शादी के दौरान मैं शर्माजी के पुरे परिवार से मिली बस मम्मी से ना मिल सकी ।लेकिन मेरी ख़ुशी सातवें आसमान पर थी ।
आते वक़्त भी शर्माजी ने मुझे और दीदी रूम छोड़ा और मैंने इस खूबसूरत दिन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया ।मेरे मन में उनके लिए इज्जत और प्यार और बढ़ गया ।और मेरा मन हुआ की मैं उन्हें कोई तोहफा दूँ जो वो अपने साथ रख सके इसलिए मैंने उनका और उनके भाई का एक स्केच बनाया ।उसे देख कर भईया और शर्माजी बहुत खुश हुए और और उसकी की खूब तारीफ की ।
एक दिन जब मैं और शर्माजी गार्डन में बैठे थे तब दीदी का फ़ोन आया ।
दीदी:- आशिता मैं क्लास में थी तब प्रदीप का फ़ोन आया था और जब क्लास से फ्री हुई तो मैंने उसे कॉल किया तो वो यही है और मिलने आ रहा है थोड़ी देर मैं ।
मैं:- ठीक है दीदी आप मिल लो मैं और शर्माजी अभी गार्डन में है ।
मैंने शर्माजी को बताया वो बोले ऐसे उदास ना हो चल गार्डन का एक चक्कर लगा के आते है और फिर चाय पिने चलते है ।
मैं और शर्माजी चाय पिने थड़ी पर पहुंचे तो हमने देखा की प्रदीप और दीदी भी उसी चाय की थड़ी पर चाय पी रहे थे । ब्रेकअप के बाद मैंने पहली बार उसकी झलक देखी ।उस वक़्त मन में उबाल तो बहुत जोर का उठा लेकिन शर्माजी साथ थे तो उस वक़्त सम्भलना जरुरी था ।उस वक़्त मैंने ये सोचा की ब्रेकअप के बाद वो भी मुझे पहली बार देख रहा है और किसी दूसरे लड़के के साथ देख के वो जरूर मेरे पास आएगा और बोलेगा की क्या है ये सब पर उस वक़्त शर्माजी ने मेरी भावनाओ को समझा तो वो मुझे इधर उधर की बातें करके हंसाने लगे और चाय खत्म करके हम राम मंदिर आ गए थे ।शर्माजी को वही बैठा कर मैं पहली बार उनके लिए खाना बना कर लायी और पेड़ के नीचे बैठ कर दोनों ने खाना खाया ।खाना खत्म हुआ उसके कुछ देर बाद दीदी वहां आये ।
शर्माजी ने दीदी से पूछा वहां क्या बात हुई ।
दीदी :- वो एग्जाम के बारे में मुझसे पूछने आया था तो उसको मैंने कुछ टॉपिक समझा दिए उसके बाद हमने तुम लोगो को वहां देखा ।पहले वो जेनी से मिल कर आया था ।और मुझसे पहले उसने तुम दोनों को वहां देखा था और उसी ने मुझे बताया ।मैंने उससे कुछ सवाल किये जिनके जवाब उसके पास नहीं था मैंने कहा की अभी यहां आई हूँ इसका मतलब ये नहीं की आज भी तेरी दोस्त बन के आयी हूँ सिर्फ इंसानियत के नाते आयी हूँ और जो तूने आशिता के साथ किया है उसके बाद मुझे तुझसे जवाब चाहिए थे जो तेरे पास नहीं है तो आज के बाद अशिता की तरफ आने की कोशिश मत करना ।
दीदी की मेरे प्रति परवाह देख मैं बहुत खुश थी और दूसरी ही तरफ प्रदीप की बेपरवाही ने दुःख दिया ।पर इस दुःख से मैं उभर चुकी थी शर्माजी जितने जिंदादिल इंसान को अपनी जिंदगी में पाकर ।
मेरे ऑफिस के बॉस को अपने ऑफिस के लिए कोई और लड़की मिल गयी थी और उन्होंने मुझसे जाने को कहा और इस तरह मैं फिर बेरोजगार हो गयी ।सैलरी लेकर मैं उस ऑफिस से आ गयी और शर्माजी को बताया उन्होंने मुझे दिलासा दिलाया जल्द ही कुछ ढंग का मिल जाएगा ।उन्होंने 2 3 जगह पर जॉब के लिए बात की लेकिन अभी कुछ भी मुमकिन नहीं हो पा रहा था ।मेरे बैंक अकाउंट में नानी के डलवाये हुए काफी पैसे थे लेकिन मैंने कभी उनका इस्तेमाल नहीं किया था । दीदी ने मुझसे कहा की जब तक जॉब नहीं मिल रही तब तक तू पढ़ाई कर ले अभी भर्ती भी आई हुई है ।मैंने सोचा नानी से बोल के कुछ पैसे उधार ले लू जब तक एग्जाम ना हो जाये फिर जॉब लग के धीरे धीरे वापस दे दूंगी ।नानी ने कहा जितनी जरूरत है ले ले और अच्छे से पढ़ाई कर ।एक अरसे बाद पढ़ाई पर वापस आई और थोड़ा थोड़ा पढ़ना शुरू किया ।
दिन बीत रहे थे और शर्माजी और मेरा प्यार बढ़ता जा रहा था ।इन दिनों उन्हें एक नया शौक लगा थिएटर का । रोज शाम को वो थिएटर क्लास जाते थे और मैं बालकनी में बैठ के उनका इंतजार करती थी और जब वो क्लास से आते तो रूम के सामने राम मंदिर आ कर बैठ जाते फिर दोनों कुछ वक़्त साथ बिताते ।और वो अपने थिएटर के किस्से सुनाते ।अपने नाटक की कहानी बताते और रात को फ़ोन पर बात करते वक़्त उसका रियास करते और मैं बस उन्हें सुनती ।कुछ दिन बाद शर्माजी का प्ले था और वो भी उदयपुर में ।वो 2 दिन के लिए उदयपुर गए हुए थे और उनके प्ले को प्रथम इनाम मिला था ।जिसे पाकर वो बहुत खुश थे ।मुझे भी उनकी इस कला के बारे में पता चला ।
एक दिन दीदी अर्चना और मैं बैठ कर बातें कर रहे थे तभी दीदी का फ़ोन बजा ।ये फ़ोन शर्माजी की बड़ी बहन का था ।दीदी ने फ़ोन उठाया और उनका हाल चाल पुछा ।थोड़ी देर बाद रूही दीदी ने दीदी से पुछा तू किसी आशिता को जानती है क्या ?
दीदी :- हाँ दीदी मेरे ही पी.जी.में रहती है ।
रूही दीदी :- तुझे पता है दीपू का और उसका चक्कर चल रहा है और वो दीपू को हुक्का और बाकि नशों के लिए उकसाती है?
दीदी ने फ़ोन स्पीकर पर लिया और हम तीनों उनकी बातें सुन रहे थे ।उन्हें ये भी लगा की हम सारी मर्यादें लाँघ चुके थे ।और वो रोने लगे और बोले अगर पापा को ये सब पता लगेगा तो क्या होगा पापा वैसे ही दिल के मरीज है उन्होंने बहुत कुछ बोला ।उन्हें ये भी लगा की शर्माजी ने शादी मैं मुझे इसलिए बुलाया ताकि वो मुझे परिवार से मिला सके ।
शादी के दौरान जब शर्माजी रूही दीदी के घर रुके हुए थे तो उनके फ़ोन में खुद की फेसबुक आई.डी. लॉग आउट करना भूल गए जिसके वजह से जीजू ने मेरी और उनकी सारी बातचीत पढ़ ली ।उस बातचीत में हर तरीके की बात थी उन्होंने अपने परिवार की कुछ बातें मुझे बताई हुई थी कुछ ऐसे किस्से जो किसी को नहीं पता वो भी उसमे थे और मेरे प्रति उनका दिखाया हुआ प्यार भी था जिसका रूही दीदी ने गलत मतलब निकाल लिया था और एक फोटो जो उन्होंने हुक्के के साथ खिचवा रखी थी उससे उन्हें यही लगा की ये सब मेरी ही वजह से कर रहे है । उस वक़्त रूही दीदी के लिए मैं और शर्माजी दोनों नकारात्मक हो चुके थे ।
दीदी :- रूही दीदी मुझे नहीं पता ये सब चल रहा है पता होता तो मैं ये सब होने ही ना देती ।और शादी में तो मैंने ही बुलाया था क्योकि वो यहां अकेली थी ।
रूही दीदी :- तू दीपू को कुछ मत बताना मैं खुद बात करूंगी उससे ।चल अभी मैंने फ़ोन रखती हूँ ।
दीदी की इस बात से थोड़ा सा अजीब लगा फिर सोचा की दी क्यूँ मेरी वजह से बुरी बने ।जैसा की रूही दीदी ने बोला की शर्माजी को मत बताना तो दीदी ने मुझसे भी यही कहा लेकिन उस वक़्त मैंने जिद्द की कि मैं तो उन्हें बताउंगी ।मेरे दिमाग में यही था की शर्माजी को ये बात पता होनी चाहिए अगर अचानक घरवाले बोलेंगे तो वो क्या जवाब देंगे ।दीदी और मन्नू भईया की हर बार सोच कर चुप रही हूँ लेकिन अब शर्माजी के बारे में सोचना चाहती थी ।
मेरी जिद्द के आगे दीदी ने कहा ठीक है मैं भी साथ चलूंगी ।मैंने शर्माजी को फ़ोन किया और उन्हें पार्क में बुलाया ।मैं और दीदी वहां पहुंचे और कुछ ही देर में शर्माजी भी आ गए ।
पहले तो दीदी ने उन्हें कहा की दीपू तू इतना लापरवाह क्यों है?
शर्माजी :- क्या हुआ ये तो बता और ऐसे अचानक क्यों बुलाया मुझे ।
उस वक़्त मैंने चुप रहना सही समझा और मैं चुप रही ।
दीदी ने उन्हें पूरी बात बताई और शर्माजी ने सारी बातें सुनी और हंस कर कहा बस ये बात है तुम दोनों परेशान मत हो मुझ पर छोड़ दो मैं देख लूंगा ।
दीदी :- तू अकेला क्या देख लेगा कुछ हल निकालते है ।
शर्माजी :- अरे तुम छोडो ज्यादा से ज्यादा मेरी पिटाई होगी और तुम परेशान मत हों ।
उस दिन मुझे ये भी पता लगा की शर्माजी की पिटाई भी होती है वो भी इतने बड़े होने के बाद ।
दीदी :- पर मैं तो फस गयी ना रूही दीदी मेरे बारे में क्या सोच रही होंगी की मैंने ही तुम दोनों को मिलाया है और तुम्हारे रिश्ते को मैंने ही बढ़ावा दिया है ।
और फिर शादी में भी मैंने मेरी दोस्त बना के मिलवाया था ।और शुरु से बोल रही थी अब तो तुम दोनों बात और मिलना बंद कर दो ।
दीदी की बात सुन कर एक बार बुरी लगी पर हो सकता है वो अपनी जगह सही हो लेकिन क्या अपनी दोस्त के लिए उनका कोई फ़र्ज़ नहीं ।
शर्माजी :- अरे तू बोल देना मुझे कुछ नहीं पता ये दोनों ने फेसबुक पर मिले आगे मुझे नहीं पता और हम दोनों का मैं देख लूंगा ।
दीदी :- ऐसे क्या बोल रहा मुझे अकेला छोड़ के तुम दोनों का सोच रहा है }
शर्माजी :- अरे मैं इसलिए बोल रहा हूँ ताकि तू इस मामले से बच जाये ।
दीदी :- पर घरवालों को बोलेगा क्या ।
शर्माजी :- जो बात है वही और तुझे पता है मैं बहुत जिद्दी हूँ बोल दूंगा प्यार करता हूँ शादी करनी है ।
दीदी(अचम्भे से) :- बोल तो ऐसे रहा है जैसे घरवाले मान जाएंगे और तेरे मान भी गए तो इसके तो बिलकुल भी नहीं मानने वाले ।
शर्माजी :- माने क्या घर से उठा लाऊंगा इसे तो ।जब अपने घरवालों को मना लूंगा तो इसके घरवालें भी मान जाएंगे ।
शर्माजी की बात सुन कर उस वक़्त बहुत ख़ुशी हुई और सोच कर अच्छा लगा की वो अपने प्यार को बताने और पाने की हिम्मत रखते है और मेरे लिए किसी की ये भावना मुझे सातवें आसमान पर पहुंचाने के लिए बहुत है ।उन्होंने बड़ी शीतलता से इस परेशानी को समझा और उसी ही शीतलता से इसे सुलझाया ।उन्होंने मुझसे रिश्ता खत्म नहीं किया ना ही मिलना और बात करना बंद किया ।इन दिनों हम और करीब आये वो रोज मेरे पास आते और हम बस चुप-चाप बैठे रहते और बस सोचते रहते की कभी भी घर से फ़ोन आ सकता है ।और वो फ़ोन आया मन्नू भईया और शर्माजी को पापा ने घर बुलाया ।शर्माजी ने पहले तो जाने से इंकार किया फिर मन्नू भईया ने कहा मैं चल रहा हूँ ना साथ में परेशान मत हो ।भाई के साथ वो घर चले गए उस वक़्त रूही दीदी भी वही थी और उनके घर पहुंचने पर एक दिन कुछ बातचीत नहीं हुई पर अगले दिन बहसबाजी शुरू हुई शर्माजी ने कोई जवाब नहीं दिए और घर से जयपुर आ गए उस वक़्त मन्नू भईया ने उनका पक्ष लिया ।
शर्माजी आते ही सीधे मुझसे मिले और सारी बात मुझे बताई मैं जान कर खुश थी की मन्नू भईया ने उनका पक्ष लिया ।वो बिलकुल सही बोलते थे की उनका उनके भाई के साथ रिश्ते को हर कोई नहीं समझ सकता पर मेरे लिए अच्छी बात यही थी की एक भाई दूसरे भाई के लिए खड़ा हुआ ।इस सब ने मेरी तरफ से इस रिश्ते को और मजबूती दे दी थी ।
सब बहुत अच्छा चल रहा था इसी बीच अर्चना रूम खाली करके जा चुकी थी और उसकी छोटी बहन प्रियंका उसकी जगह रहने लगी थी ।शुरू शुरू में मेरी और प्रियंका की इतनी बात नहीं होती थी पर धीरे धीरे हम दोस्त बन गए ।
एक रात की बात है जब मैं और प्रियंका कुछ सामान लेने बाहर निकले हमने उस दिन जेनी को राम मंदिर बैठे देखा पर उसके साथ कुछ नए दोस्त थे और जेनी से मेरी बातचीत बंद थी ।कुछ चीजों के चलते वो मेरे लिए नकारात्म हो चुकी थी ।हम दोनों रूम पर आ गए और दीदी को बताया ।बहुत दिन बाद उसे देख पुराने बीते दिन याद आने लगे जब हम चारों साथ रहा करते थे और अब एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देखते है ।
अगली दोपहर प्रदीप का फ़ोन दीदी के पास आया ।
प्रदीप:- दीदी वो मैं जयपुर ही रहने आ रहा था तो आपकी नजर में कोई रूम हो तो बता देते ।
दीदी :- अभी तो मेरी नजर में कोई रूम नहीं है एक दोस्त रहते है उनसे पूछ कर बता दूंगी ।
प्रदीप :- अच्छा ठीक है ।
दीदी ने फ़ोन रख दिया और हम सोचने लगे की उसने दी को ही फ़ोन क्यों किया लेकिन अब अगर प्रदीप वापस मेरी जिंदगी में आने की कोशिश कर रहा है तो अब बहुत देर हो चुकी थी कोई और है जो मुझे अपने दिलों जान से चाहता था और मैं उसे किसी भी हालत में धोखा नहीं दे सकती थी ये चीज मैं अच्छे से जानती थी ।
कुछ दिन बाद प्रदीप का जन्मदिन था और मैंने उसे विश नहीं किया लेकिन दीदी ने उसे विश किया तो उसने पार्टी में दीदी को बुलाया । दीदी ने मुझसे पूछा मैं जाऊ या नहीं ।मैंने दीदी को कहा ये फैसला आपका है आप जो चाहो देख लो ।दीदी ने मुझसे चलने को कहा पर मैंने कहा ना उसने मुझे बुलाया है और न ही मुझे जाना है शर्माजी आने वाले है तो मैं उनसे मिलने जा रही हूँ ।
दीदी पार्टी में चले गए और मैं शर्माजी के पास पर मेरा मन भरा हुआ था ।उसके पिछले जन्मदिन पर मैंने उसके पुरे रूम को सजाया था और दीदी के साथ मिलकर केक कट कराया था । वो सारी यादें मुझे याद आ रही थी और दुःख भी हो रहा था की उसने ऐसा किया ।मेरे इन भावो को मैं ज्यादा देर तक शर्माजी से छुपा ना पायी और उन्होंने जान लिया की मैं दुखी हूँ ।उन्होंने मेरे कंधे पे हाथ रखा और कहा जस्ट चिल्ल ।उनके इस प्यार को देख मैं रो पड़ी और मुझे रोता देख वो डर गए और मुझे चुप कराने लगे और बोले चल कहीं चलते है गाड़ी पर बैठ ।मैंने खूब मना किया लेकिन वो जिद्द करके ले गए ।जिस जगह वो लेके गए थे वो जगह थी स्टेचू सर्किल ।मैं वहां पहली बार गयी थी और उस जगह से मुझे प्यार हो गया मेरा मन शांत हो गया ।शर्माजी मेरी गोदी में सर रख कर लेट गए और मेरा हाथ थाम कर बड़े प्यार से मुझे देख रहे थे उस प्यारे से लम्हे से मैं सब भूल गयी और बस उस लम्हें की हो जाना चाहती थी मन ही मन भगवान को शर्माजी को मेरी जिंदगी में भेजने के लिए शुक्रिया कर रही थी
दीदी जब वापस आये तो उन्होंने बताया की पार्टी में प्रदीप के कुछ नए दोस्त थे और उनमे से जेनी एक थी ।एक बार के लिए प्रदीप और जेनी पर बहुत गुस्सा आया ।प्रदीप जेनी और मेरी लड़ाई के बारे में अच्छे से जानता था फिर भी जेनी उसकी दोस्त बन गयी और दूसरी ही तरफ जेनी ने उसे अपना दोस्त बनने भी दिया बिना ये जाने की उसने मेरे साथ क्या किया या मुझसे रिश्ता तोड़ दिया ।उस वक़्त प्यार और दोस्ती ने मेरी जिंदगी में एक साथ दम तोड़ दिया ।ना मेरे दोस्त ने मेरी परवाह दिखाई ना मेरे उस कथित प्यार ने ।
कुछ दिनों बाद मैं जब ऑफिस से वापस आ रही थी तब मैंने जेनी और प्रदीप को राम मंदिर एक साथ पढ़ते देखा ।मुझे एक बात जो समझ नहीं आयी की दोनों बहुत दुरी पर रहते थे हमने उन दोनों को कभी राम मंदिर पढ़ते नहीं देखा लेकिन पूरी शहर में हमारे रूम के सामने वाले राम मंदिर ही उन्हें पढ़ने के लिए सही जगह मिली और वो भी शाम को जब मेरे ऑफिस से आने का वक़्त होता तब ।
अब ये मुझे रोज दिखने को मिलने लगा कभी सिर्फ वो दोनों तो कभी उनका पूरा ग्रुप ।ऐसा लगता था मानों जैसे की वो मेरे जले पर नमक छिड़क रहे हो ।जेनी ऐसे चिड़ा रही हो की देख तेरा प्रदीप अब मेरा दोस्त है और प्रदीप ऐसे चिढ़ाता था की देख तेरी दोस्त जिससे तेरी नहीं बनती वो मेरी दोस्त है अब ।
जेनी से मेरी कोई लड़ाई नहीं थी बल्कि मेरा परिवार भी बखूबी उसे जानता था मुझे उसकी दोस्ती पर पूरा भरोसा था मैं उससे बात करू या ना करूं लेकिन वो मेरी दोस्ती और मेरा उस पर भरोसा वो कभी नहीं तोड़ेगी लेकिन जेनी को प्रदीप के साथ देख कर उससे और उसकी दोस्ती से भरोसा पूरी तरह टूट चूका था ।उनका तो जैसे रोज का आना जाना वहां फिक्स हो गया था बेशक प्रदीप के लिए मेरे मन में प्यार नहीं था पर रोज रोज उनको वहां देख कर मेरी आत्मा जलती थी ।एक दिन जब वो लोग वहां बैठे थे तब मैं और प्रियंका भी राम मंदिर बैठे थे तब मैंने प्रियंका को कहा की अपना राम मंदिर बहुत प्रसिद्ध है सभी यहां आते है फिर कुछ देर बाद जेनी प्रदीप कार लेकर आये और हमारे सामने लाकर बहुत तेज आवाज में गाने चला दिए और जोर जोर से हंसने लगे ।उस वक़्त मैं बिना कुछ कहे रूम पर आ गयी ।प्रदीप सपना को अपनी बहन मानता था तो मैंने सपना को सारी बातें बताई जब सपना ने ये सब सुना तो उसे भी बहुत गुस्सा आया और उसने प्रदीप को सुना दिया और वहां बैठने के लिए मना कर दिया ।कुछ दिन तक वो लोग मुझे वहां नहीं दिखे और एक दिन प्रदीप के दोस्त से बात हुई जो प्रदीप का खास दोस्त था उसने मुझे कहा की वो तुम्हारे लिए आया है उसके ऐसे कहते ही मेरा गुस्सा फुट गया और उसमे मैंने ये गलती कर दी की मेरे मन में जो भी जेनी और प्रदीप के लिए था सब निकाल दिया वो भी बुरा से बुरा ।वो मेरी सबसे बड़ी गलती थी किसी से भी मुझे जेनी के बारे में उल्टा नहीं कहना चाहिए था लेकिन उस वक़्त अपने गुस्से पर मैं काबू नहीं रख पायी ।और इस चीज का जवाब दिया प्रदीप जी ने वो भी सपना को ये कह कर की उसे इतना भी नहीं पता की एक लड़की की इज्जत कैसे करते है और ये भी उसने तब कहा जब उसने जेनी को ये बता दिया की मैंने क्या बोला है ।उसने ये तक नहीं सोचा की उसके दोस्त ने उसे बताया तो वो आग लगाने के लिए जेनी को क्यों बता रहा है ।मुझे मेरी गलती का अहसास था और मैंने सोच रखा था की जब भी जेनी से बात होगी तो मैं उससे माफ़ी मांग लुंगी लेकिन जब मैंने ये देखा की जिसने 6 साल एक लड़की के साथ बिताये उस लड़की की इज्जत नहीं की आज वो मुझे इज्जत करना सीखा रहा है तो हंसी और गुस्सा दोनों एक साथ आये पर ये सोच के सही लगा के देर से ही सही कुछ तो सोचने लगा ।लेकिन इसके बाद उनका वहां आना जाना कम हो गया ।
दूसरी तरफ शर्माजी को अपने भाई से बार बार जेब खर्च के पैसे मांगने में शर्म आने लगी तो उन्होंने सोचा क्यों न कोई काम कर लिया जाये जिससे उनका खर्चा निकल जाये ।उन्होंने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया ।और पढ़ाने के लिए पढ़ना जरूरी होता है इसलिए मेरा उनसे मिलना कम होने लगा जहाँ हम दिन में दो बार मिलते थे और ढेर सारी बातें करते थे वहां अब बातें बिलकुल कम और मिलना सिर्फ दिन में एक बार उसका भी वक़्त कम होने लगा लेकिन उस चीज से मैं दुखी नहीं थी बल्कि खुश ही थी ।और शर्माजी के साथ रह कर प्यार के अलग मायने सिखने लगी थी उनकी एक झलक पा कर मैं खुश हो जाया करती थी उनका वो चेहरा मेरी सारी थकान दूर कर देता था ।अब दिन ब दिन बातों में दूरियां दिखने लगी और मुलाकाते भी बंद होने लगी ।जैसा की उन्होंने शुरू में ही कहा था की उन्हें उनकी आज़ादी बहुत प्यारी है और कोई मुझे बांध के रखे वो मुझे बिलकुल पसंद नहीं मैं उन्हें बांधना नहीं चाहती थी इसलिए उन्हें कभी आगे से कॉल नहीं करती थी ।और उनके फ्लिर्टी अंदाज को देखते हुए सबने मुझसे कहा की तेरे साथ उसका वक़्त पूरा हो गया अब वो वापस नहीं आएगा पर मन माने तब ना रोज उसी बालकनी में जा कर बैठ जाती थी की वो आएंगे रोज उन्हें मेसेज करती थी लेकिन वो देख कर अनदेखा कर देते थे उनकी इस बेरुखी से दिल टूटने लगा था ।उन दिनों मेरे पास काम भी नहीं था लेकिन कुछ दिनों के बाद मुझे एक नौकरी मिल गयी थी ।
एक दिन रात को उनका फ़ोन दीदी के पास आया और उन्होंने दीदी को बताया की वो अपनी खुद की कोचिंग खोल रहे है ।मुझे ये जान कर बहुत खुश हुई की वो इतना बड़ा कदम उठा रहे है ।मैंने उन्हें मेसेज कर के बहुत बधाइयाँ दी और उन्होंने धन्यवाद भी कहा ।अब वो जिम्मेदार हो गए थे तो जरूरत से ज्यादा व्यस्त रहने लगे अब तो मैं जो मेसेजेस करती थी वो ये सोच कर नहीं करती थी की कही वो डिस्टर्ब ना हो जाये ।पहले बालकनी में बैठ कर उनका इंतजार करती थी अब मंदिर जाना शुरू कर दिया था ।रोज शाम मैं मंदिर जाती और भगवान से कहती की आज उन्हें मेरी याद दिला दे और वो मुझसे मिलने आ जाये ।लेकिन वो नहीं आते थे और प्रियंका के साथ मंदिर पर बैठ कर मैं अपनी सारी बढास निकाल आती थी ।सबके मना करने पर भी मैं उन्हें फ़ोन करती और वो हर बार यही कहते मैं बिजी हूँ बाद में बात करता हूँ ।अब तो प्रियंका भी मुझे डांटने लगी और मुझे फ़ोन करने से मना भी करती ।एक दिन मैं उन्हें फ़ोन करके खूब रोई आखिर क्यों कर रहे हो ऐसा लेकिन उन्होंने फिर यही कहा अभी बिजी हूँ बाद में बात करता हूँ और फिर वो बाद कभी ना आता ।काफी बार मेरा गुस्सा उन पर निकल जाता तो मैं उन्हें बड़े बड़े मेसेजेस कर देती और वो कुछ रिप्लाई नहीं करते और मैं रो कर सो जाती ।
उनके हाथ पकड़ने की मजबूती जब ढीली हुई ।
तो अहसास हुआ की शायद ये वही जगह है जहां रास्ते बदलने है । ।
कुछ दिनों बाद उनके और मन्नू भैया के कोचिंग के फैसलों को लेकर तकरार होने लगी और कुछ पैसो की जरूरत पड़ने लगी ।मैं ऑफिस में थी और उनका फ़ोन मेरे पास आया ।
शर्माजी:- तेरे अकाउंट में कितने पैसे है मुझे चाहिए ।
मैं :- कितने चाहिए ?
शर्माजी :- जितने है सारे चाहिए मैं तेरे रूम के बाहर हूँ किसी को एटीएम दे कर भेज दे ।
उस वक़्त मैं उन्हें मना नहीं कर पायी और प्रियंका को फ़ोन करके उन्हें एटीएम देने को कहा ।और कुछ देर में मेसेजेस से पता लगा की अकाउंट मैं पैसे खत्म ।रूम पर आ कर मैंने दीदी को बताया की उन्हें जरूरत थी तो दे दिए ।दीदी ने कहा देख ले तेरे हिसाब से ।मुझे इससे कोई दिक्क्त नहीं थी की अब मेरे पास पैसे नहीं है बल्कि उस वक़्त उस बात की ख़ुशी हुई की मैं उनके कुछ काम आ पायी ।उस वक़्त प्रियंका ने भी यही कहा की दीदी जो आजकल आपसे ना मिलते है न बात करते है आप उन पर भरोसा कर इतने पैसे कैसे दे सकती हो और मैं बस यही कहती पैसे तो कैसे भी आ जाएंगे आज मैंने उनकी मदद की है कम से कम वो ऐसे ही याद रख लेंगे की एक लड़की के मेरी मदद की बस वही बहुत ।
उनसे ना मिलने से मेरा उनके लिए प्यार बिलकुल कम नहीं हुआ बस बहुत याद आती थी उनकी और वो भी ऐसी की मेरा मजाक बन जाता ।एक वक़्त की बात है जब रात में सब सोये हुए थे मैं दीदी के बगल में सोई हुई थी और नींद में मैंने उन्हें शर्माजी समझ कर उन्हें गाल पर किस्स कर दिया और दीदी का चेहरा अपनी तरफ करके मुस्कुरा कर सो गयी ।दीदी जग चुके थे उन्होंने उस वक़्त मुझे कुछ नहीं कहा पर सुबह सबके सामने मेरा खूब मजाक बनाया ।मुझे खुद यकीन नहीं हुआ की मैं ऐसा कर गयी ।शर्माजी के बारे में इतना सोचने का नतीजा भारी पड़ गया ।
2 महीने बाद शर्माजी का जन्मदिन आने वाला था मैंने प्रियंका से कहा क्यों न मैं उनकी जिंदगी के खास लम्हों को एक एल्बम जो मैं खुद बनाऊ उसमे उतार देना चाहती हूँ
प्रियंका:-दी आईडिया तो अच्छा है पर आप उन्हें दोगे कैसे वो ना बात करते है तो मिलना तो दूर की बात ।
मैं:- वो बाद की बात है वो एल्बम भी बने तो ।
प्रियंका मेरा साथ देने के लिए तैयार हो गयी ।उनके जन्मदिन से करीब 2 महीने पहले मैं उनके गिफ्ट की तैयारी करने लगी जबकि मैं ये तक नहीं जानती की उस गिफ्ट की कोई कदर भी होगी के नहीं ।बस इतना था की मुझे ये करना है वो भी उनके लिए ।
बीते दिनों जब वो थिएटर जाते थे उनकी मुलाकात एक लड़की से हुई अंजना ।वो लड़की दिखने में बहुत ही सुंदर थी थिएटर के सभी लड़के उसके दीवाने थे और शर्माजी यही कहते थे की उन्हें वो बिलकुल पसंद नहीं है ।बात हजम होने लायक थी नहीं लेकिन उस वक़्त शर्माजी की हर बात पर मुझे भरोसा था और मैं जानती थी की ये रिश्ता कुछ ही वक़्त का है उन्हें मुझसे अच्छी मिल जाएगी तो वो चले जाएंगे ।
इश्क है वही जो हो एक तरफा;
इजहार है इश्क तो ख्वाईश बन जाती है;
है अगर इश्क तो आँखों में दिखाओ;
जुबां खोलने से ये नुमाइश बन जाती है।
कोचिंग के वक़्त दीदी बीच बीच में कोचिंग जाया करती थी और वहां सब कैसा चल रहा है मैं उन्हीं से जाना करती थी ।आज भी दीदी वहां गए हुए थे और जब वापस आये तो उन्होंने मुझे बताया की अंजना अपने पुरे सामान के साथ वहां बैठी हुई थी और दीपू ने उनसे कहा की तुम्हारे पी.जी. में कुछ दिन इसे रख लोगे क्या कुछ ही दिन में मैं इसके रहने और नौकरी का जुगाड़ कर दूंगा ।दी ने जब मुझे ये बात बताई तो मैं सुन कर हैरान थी ।शर्माजी की हर बात पर भरोसा करने वाली मैं ये क्या सुन रही थी ।उन्हें जो पसंद नहीं उसकी भी इतनी मदद ।उस वक़्त मैंने कुछ नहीं कहा पर रात तक वो लड़की हमारे पास नहीं आयी और उस रात मैंने खुद को यही समझाया शायद उन्हें अपना दूसरा साथी मिल गया जो मुझ से बेहतर है और अगर वो खुश है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है ।
अगले दिन सुबह शर्माजी ने दीदी को फ़ोन किया दीदी उस वक़्त बाथरूम में थे तो फ़ोन मैंने उठाया उन्होंने मुझे बालकनी में आने को कहा ।जब मैं बालकनी में पहुंची तो वो अंजना के साथ बाहर खड़े थे और उसे कहा की जो वो लड़की खड़ी है वही है पी.जी. उसमे चली जा ।मैं उस लड़की को देख रही थी ।कुछ ही पल मैं वो लड़की मेरे सामने थी ।वो लड़की बहुत ही सुंदर थी और उसे देख के थोड़ी सी जलन महसूस हुई ।दीदी कल उसे शर्माजी के वहां देख कर आयी थी और वो रुकने कल से आज सुबह सुबह आयी है इसका तो एक ही मतलब था की वो पूरी रात शर्माजी के साथ थी ।इस चीज को सोच कर दुख तो बहुत हुआ लेकिन मैं कर भी क्या सकती थी ।
मैं उसे अपने रूम में लेकर गयी अपना बेड उसे दिया और उसके लिए खाना बना कर ऑफिस आ गयी ।एक तरफ ख़ुशी थी की शर्माजी को इतनी सुंदर लड़की मिली दूसरी तरफ आँखों में आंसू की फिर मैंने प्यार करने की हिम्मत की लेकिन शायद मेरी किस्मत में प्यार पाना शायद लिखा ही नहीं था ।
2 दिन बाद शर्माजी का जन्मदिन था तो एक ख्याल मेरे दिमाग में ये भी आया की शायद अंजना शर्माजी के जन्मदिन के लिए ही आयी हो ।दूसरी तरफ एक बात और थी दिमाग में वो ये की शर्माजी जानते है की मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ तो किसी दूसरी लड़की को मेरे पास कैसे रुकवा सकते है । शर्माजी मेरे साथ इतना बुरा तो नहीं कर सकते ।दूसरी तरफ जब मैं अंजना के लिए खाना बनाती तो सभी युहीं कहती तुझे तेरी सौत की बड़ी परवाह है पर मेरी नजर में यही था की शर्माजी कुछ सोच के यहां छोड़ के गए है तो मेरी तरफ से कोई कमी नहीं आनी चाहिए ।मुझे ना जाने क्यों शर्माजी और अंजना के रिश्ते को जानने की उत्सुकता थी ।मेरी ये उत्सुकता एक ही तरह दूर हो सकती है उसका फ़ोन चेक करके ।इस चीज में दीदी ने मेरा पूरा साथ दिया रात को सोने के बाद दीदी ने चुपके से उसका फ़ोन लिया और मुझे दे दिया ।जिंदगी में पहली बार कुछ ऐसा किया ये शर्माजी का प्यार जाने मुझसे क्या क्या कराने वाला था ।उसके फ़ोन में शर्माजी और उसकी कोई ऎसी बात नहीं मिली जो कुछ साबित कर सके तो मन अभी भी अशांत ही रहा और इतने बड़े कदम का कोई फ़ायदा नहीं हो पाया ।
शर्माजी के जन्मदिन से ठीक एक रात पहले मेरी उस लड़की से बात हुई उसकी बातों ने ये कहा की शर्माजी और उसके बीच जज्बातों का रिश्ता तो है ही नहीं और जिस्मानी रिश्ता मेरे लिए इतना महत्व नहीं रखता था लेकिन अभी ये सब मेरी ही कल्पनों में चल रहा था तो बस उस चीज से मैं खुश हुई और उससे बात करने के बाद उस एल्बम को पूरा करने में जुट गयी और साथ में ये भी ध्यान रख रही थी की 12 कब बजेंगे ताकि आज मैं उन्हें हक़ से फ़ोन कर सकू नहीं तो हर बार किसी ना किसी बहाने की जरूरत होती थी ।जैसे ही 12 बजे मैंने उन्हें जन्मदिन की बधाइयाँ दी और मन तो बहुत था उनसे बात करने का पर उस वक़्त भी खुद को रोकना ही पड़ा । अगले दिन अंजना हमारे पी.जी. से जा चुकी थी । मैंने उनसे पूछा क्या आपके दिन का कुछ वक़्त मिल सकता है उन्होंने जवाब मैं कहा अभी कुछ कह नहीं सकता पर मुझे दीदी पर ऐतबार था की कुछ ही वक़्त के लिए सही पर वो उन्हें बुला लेंगी ।और शाम को दीदी के बुलाने पर वो आ भी गए और मन्नू भईया भी आये थे हमने मिलकर उनका बर्थडे केक काटा ।मन्नू भईया केक कटने के बाद जा चुके थे और शर्माजी को भी उनके दोस्त के पास जाना था लेकिन दीदी मेरे दिन को खास बनाना चाहती थी तो उन्होंने शर्माजी से मेरे साथ फोटो खिचवाने को कहा और फिर उन फोटो के बहाने ही सही वो मेरे करीब आये और उन सांसो को मैंने बहुत अरसे बाद महसूस किया मेरी ख़ुशी इतनी थी की आखों से झलक रही थी ।दीदी के कहने पर जो गिफ्ट्स मैंने दिए वो उन्होंने मेरे सामने ही खोले और वो सब देख कर मैं बहुत खुश थी ।थोड़ी देर का खुशनुमा वक़्त बिता कर हम वापस आ गए ।
एक मुलाकात के बदले मैं ना जाने कितने दिन उन्हें याद करके ख़ुशी ख़ुशी निकाल दिया करती थी ।बेशक ये प्यार मेरे लिए एक तरफ़ा था पर इसमें मेरे लिए पूरी संतुष्टि थी ।
बहुत सुकून मिलता है जब उनसे हमारी बात होती है,
वो हजारो रातों में वो एक रात होती है,
जब निगाहें उठा कर देखते हैं वो मेरी तरफ,
तब वो ही पल मेरे लिए पूरी कायनात होती है । ।
एक रात हम सभी दोस्त मस्ती कर रहे थे और खूब खिलखिला रहे थे आज तो आंटी ने भी डांट लगा दी की आवाज मत करो उस डांट के बाद हम चुप हुए ।मैं अपना फ़ोन चलाने लगी ।और जो मैंने देखा उसके बाद मेरे होश उड़ गए ।प्रदीप का एक्सीडेंट हो गया था और ये खबर मुझे उसी के स्टेटस से मिली ।
मैंने दीदी को बताया और मैं उस वक़्त हम दोनों परेशान हो गए थे ।बेशक उस लड़के का हमारी जिंदगी में कोई मतलब नहीं था लेकिन इसका मतलब ये नहीं की उसके साथ कुछ बुरा होगा तो हमे फर्क नहीं पड़ेगा ।उन दिनों सपना ही प्रदीप से बातचीत करती थी मैंने उसे फ़ोन किया और कहा एक बार पता तो कर वो ठीक है न ज्यादा तो नहीं लगी । उसने कहा परेशान मत हो मैं करती हूँ बात ।प्रदीप ने सपना का फ़ोन कई बार करने पर भी नहीं उठाया और जब आखिर में उठाया तो कुछ नहीं बोला ।उसके बाद मैंने ही उसे फ़ोन किया तो मेरा फ़ोन भी उसने नहीं उठाया और उसके बाद फ़ोन बंद आने लगा ।
दीदी ने मुझे समझाया की अगर उसे कुछ हुआ होता तो इस तरह टूटी गाड़ी के स्टेटस ना लगाता तो परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है ।दीदी की बात में दम था उसके बाद हम लोग सो गए ।
सुबह उठ कर एक बार जानने की इच्छा थी की सब ठीक है न सपना से राय ले मैंने जेनी को फ़ोन किया और उसने मुझे कहा की उसका नहीं उसकी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ है वो ठीक है ।मैंने उसके बाद उसे धन्यवाद दे कर फ़ोन काट दिया ।उसके बाद जेनी का दुबारा फ़ोन आया ।और उसने कहा की ये बात प्रदीप को बतानी है या नहीं ।
मैं :- मुझे क्या पता तुझे जो करना है कर ।
जेनी :- नहीं बता दे बताऊ या नहीं वैसे भी मैं तो हूँ ही बदनाम फिर मेरा नाम खराब हो इससे अच्छा आप बता दो ।
मैंने उससे प्रदीप के दोस्त से कही सारी बातों के लिए माफ़ी मांगी जो की मैंने सोच रखा था की जिस दिन उससे बात होगी उस दिन मुझे उससे माफ़ी मांगनी है ।हमारे बीच बहुत लम्बी बातचीत हुई ये मेरी कमी थी या खूबी लेकिन उस वक़्त मैं सब भूल गयी की इसने पप्रदीप का साथ दिया जबकि अब जितना वो इस दोस्ती के लिए आगे आ रही है और मुझसे इतनी बात कर रही है उस वक़्त क्या वो सब भूल गयी थी ।उस दिन हम शाम को मिले उसे बहुत दिन बाद अपने सामने पाकर और बात करके अच्छा लग रहा था उस दिन उसे पता लगा की शर्माजी से मैं प्यार करती हूँ अब तक उसे यही लग रहा था की सिर्फ प्रदीप को दिखाने के लिए मैं ये सब कर रही हूँ ।और सबसे बड़ी बात जिससे मुझे दुःख हुआ वो ये थी की उसे मेरे और प्रदीप के अलग होने का कारण तक नहीं पता और बिना कारण जाने उसने प्रदीप का साथ दिया । मैंने उससे ये तक भी कहा की हमारी मुलाकात हुई है और बातें हुई इस बारे में प्रदीप को मत बताना ।उसके बाद मैं रूम पर आ गय ।इन दिनों शर्माजी से कोई बात नहीं हो रही थी मैं उनसे राय लेना चाहती थी की मैं क्या करूं जिससे कुछ भी प्रभावित ना हों ।
अगले दिन जब जेनी से बात हुई शायद उस वक़्त तक वो मन बना चुकी थी की मेरी और प्रदीप की मुलाकात करवानी है ।शाम को उसने मुझे एक रेस्टोरेंट में बुलाया जहां पर वो दोनों पहले से मौजूद थे ।मुझे ना ही उत्साह था और न ही किसी चीज का दुःख इसलिए प्रदीप को अपने सामने देख कर भी मेरा मन स्थिर था ।मैंने उसे हेलो कहा और हमने कुछ खाने को मंगवाया प्रदीप बिलकुल शांत बैठा हुआ था जेनी उसे डांट रही थी की कुछ तो बोल वैसे तो बहुत बोलता है ।मेरे मन में यही आया की मुझसे तो कम ही बोलता था शायद अब बहुत बोलने लग गया हो ।बीते दिनों में उनकी बहुत सी तस्वीरें देखी थी जिसमे वो लोग घूम कर आये थे ।प्रदीप के इस रूप से मैं पूरी तरह अपरिचित थी ।पर अच्छा था की उसे एक अच्छा फ्रेंड ग्रुप मिला ।
थोड़ी देर बाद जेनी ने मुझसे और प्रदीप से कहा की तुम्हे कुछ सुलझाना हो तो सुलझा लो ।मैंने जेनी से कहा मुझे कुछ नहीं सुलझाना आज आने का मतलब ये बिलकुल नहीं था की मुझे कुछ सुलझाना है और मैंने फिर यही सवाल प्रदीप से किया की क्या तुझे कुछ सुलझाना है उसने भी ना में जवाब दिया ।बस उस वक़्त मुझे यही लगा की हम दोनों के दर्मिया कुछ है ही नहीं तो सुलझाना क्या है ।फिर जेनी ने कहा की अशिता को ऐसा लगता है की तूने उसे इसलिए छोड़ा क्योकि वो सुंदर नहीं है तो वो बोला नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है उस वक़्त उसकी उस बात पर मुझे बहुत गुस्सा आया क्योकि वो झूठ बोल रहा था फिर मैंने उससे कहा की अपनी आखिरी बात क्या हुई थी उसने जवाब में कहा याद नहीं ।फिर मैंने उससे आगे जो कुछ भी पूछा उसने हर चीज के लिए मना ही किया ।उसके हर एक जवाब से मैं असंतुष्ट थी लकिन मुझे उससे कोई वास्ता नहीं रखना था ।जेनी मुझसे रोज मिलने लगी और उसके साथ प्रदीप भी होता था ।एक दिन हम बैठे हुए थे तभी जेनी ने कहा की प्रदीप हमारी एक फोटो लेना तो ।उसने हमारी फोटो ले दी उसके बाद जेनी ने कहा ये फोटो तो अपलोड होगी ताकि सबको पता तो लगे की अपनी फिर से दोस्ती हो गयी है ।मैं उस वक़्त चुप रही ना जाने मन में एक सवाल उठा की क्यों करना है उसे क्यों सबको बताना है ।मैं शर्माजी से पहले ही इस मामले में राय ले चुकी थी की अगर भविष्य में ऐसा कुछ हुआ तो आप मुझ पर ऐतबार करोगे उन्होने यही कहा की मुझे तुझ पर भरोसा है इसलिए आज बेशक वो मुझसे बात नहीं कर रहे थे और बेशक प्रदीप मुझसे मिल रहा था लेकिन मेरा निस्चय निश्चित था की मैं सिर्फ शर्माजी से प्यार करती हूँ और प्रदीप मेरे लिए दोस्त से बढ़ कर कुछ नहीं है ।
पर शायद रोज मिलने और बातें करने की वजह से प्रदीप ने शायद यही समझा की ये रिश्ता वापस वैसा हो सकता है ।और इस रिश्ते को वापस वैसा बनाने के लिए कोशिशें करने लगा और उसने हद तब कर दी जब मेरे दिल में जगह बनाने के लिए मेरे सामने जेनी की बुराई करने लगा मुझे एक पल ये समझ नहीं आया की जिसने इसकी इतनी मदद की आज उसी की मेरे सामने उड़ा रहा है तब समझ में आया ये किसी का भी नहीं हो सकता उसने मुझे खूब ताने भी दिए उसके कुछ दोस्तों ने भी मुझसे बात की और एक बार ऐसा भी हुआ की वो बीमार हुआ और मेरे सिवा उसने किसी को नहीं बताया ।इंसानियत के नाते उस वक़्त मैंने उसका पूरा साथ दिया ये सोच कर दिया की अगर ये सब सच में मेरे प्यार की वजह से हो रहा है तो मैं नहीं चाहूंगी की कोई भी उस दर्द से गुजरे जिससे मैं गुजरी थी ।जब मुझें समझ आया की प्रदीप क्या सोच रहा है इसलिए मैंने उसे वक़्त देना कम करते करते बंद कर दिया ।
एक दिन दी को देखने वाले आये मतलब अब दीदी की शादी के तैयारियां ।और दीदी की शादी पक्की हो गयी ये खबर जितनी अच्छी थी उतनी ही मेरे लिए थोड़ी सी दुःख भरी थी ।दीदी अब मुझसे दूर चले जाएंगे हमने बहुत वक़्त साथ बिताया और उन्हें मैंने अपने परिवार का हिस्सा ही माना था और हमेशा एक बड़ी बहन वाली ही इज्जत दी थी अब तक वो मेरे हर दुःख और ख़ुशी मैं मेरी साझेदार थी ।इन दिनों एक लड़का मेरी जिंदगी में आया वो मेरे लिए मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया था ।वो मेरे खाली वक़्त को पूरा करता मुझे हँसता मेरा ध्यान बांटता ताकि मैं शर्माजी को याद कर के दुखी ना रहु ।उन दिनों वो मेरा सच्चा साथी बन गया था ।दीदी की शादी के दौरान भी उसने मेरी बहुत मदद की ।और शायद इतना अच्छा दोस्त मिल पाना आसान नहीं होता ।
कुछ दिनों बाद प्यार का दिन आने वाला था वैलेंटाइन डे ।वैलेंटाइन के दिन शुरू हुए और मैंने हर एक दिन की उन्हें बधाईया दी ।पर उनका जवाब कभी ना आता ।सोचा शायद 14th फरवरी को आये लेकिन उस दिन भी मैं इंतजार करती रही पर उनका कोई जवाब ना आया ।और फिर मैंने ये दिन अकेले ही बिताया ।
दीदी की शादी का दिन आ गया ।शादी में शर्माजी भी आमंत्रित थे ।मैंने साड़ी पहनी हुई थी वो भी पहली बार उस वक़्त मैं चाहती थी की वो पलक भर मुझे देखे ।शादी में शर्माजी का पूरा परिवार आया हुआ था तो उनसे बात कर पाना मुमकिन नहीं था ।इसलिए उस चीज से ध्यान हटा कर शादी का आनंद उठाने लगी ।तभी अचानक किसी ने मेरी कमर को छुआ मैं डर गयी और गुस्से से पलट कर देखा तो कोई और नहीं ये शर्माजी थे जो मेरे साथ शैतानी करके भाग गए ।उनका इस तरह शैतानी करना उस वक़्त मेरे दिल को पागल कर गया और फिर मेरा सारा ध्यान शादी से हट कर उन पर जाने लगा ।जब दीदी वरमाला के लिए स्टेज पर आयी तो शर्माजी खाना खा कर अपने परिवार के साथ चले गए ।और सुबह दीदी भी विदा हो गए और एक तरीके से मैं जयपुर मैं अकेली हो गयी ।पर अभी एक दोस्त बाकि थी जयपुर में शाहिदा ।मेरी सभी दोस्त शर्माजी को जानती थी और सबकी उनसे बातचीत थी ।शाहिदा भी कुछ दिनों में वापस अपने घर जाने वाली थी और मैं अकेली रह जाउंगी ये सोच उसने शर्माजी से बात की और कहा भईया मैं भी जयपुर से जा रही हूँ और मेरे बाद तो अशिता दीदी बिलकुल अकेले हो जाएंगे आप प्लीज उनका ध्यान रखना ।
शाहिदा ने तो अपनी जिम्मेदारी पूरी की पर क्या शर्माजी से उनकी जिम्मेदारी पूरी करने की उम्मीद की जा सकती थी?शर्माजी को मुझसे ढंग से बात किये 10 महीने हो गए थे उनकी एक झलक पाने के लिए रोज मंदिर में दुआ मांगती थी लेकिन उन्होंने सिर्फ तब याद किया जब उन्हें जरूरत थी तो शाहिदा जो की अभी सबसे छोटी थी वो उसकी उम्मीदों पर उतर पाते किसी के लिए भी इस सवाल के उत्तर में हाँ कह पाना मुश्किल था ।
मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कुछ ही दिनों बाद मेरी छोटी बहन मेरे साथ रहने आने वाली थी उसके आने की तारीख भी तय हो चुकी थी तो सिर्फ कुछ ही दिन थे जो मुझे अकेले बिताने थे तो मुझे कोई परेशानी नहीं थी ।लेकिन शाहिदा के जाने के बाद अचानक शर्माजी का फोन मेरे पास आया कहा की क्या कर रही है मैंने कहा कुछ नहीं खाना बनाउंगी ।
शर्माजी :- क्या बना रही है ।
मैं :- दाल बना ली है बस रोटी बनानी है ।
शर्माजी:- रोटी मत बना वो मैं पैक करा के ले आता हूँ खाना साथ खा लेंगे ।
मैं(आश्चर्य से):-क्या हुआ आज गलत नंबर लग गया क्या ?
शर्माजी (हँसतें हुए):- नहीं नहीं ।चल थोड़ी देर में राम मंदिर आ कर फ़ोन करता हूँ ।
बहुत वक़्त बाद उनके साथ बिता कर बहुत अच्छा लगा ।अब फिर से वो मुझे वक़्त देने लगे थे ।उनका परिवार अब जयपुर से वापस अपने घर जा रहा था ।जब तक परिवार यहां था शर्माजी अपने परिवार के साथ खाना खाते थे लेकिन उनके जाने के बाद उन्होंने एक दिन मुझसे कहा क्या मेरा खाना भी बना लिया करेगी क्या?
मेरे लिए इससे बड़ी ख़ुशी की बात क्या हो सकती थी मैं उनके लिए खाना बनाने लगी और रात का खाना साथ खाने लगे ।
कुछ दिन बाद मेरी बहन मेरे साथ रहने के लिए आ गयी थी ।मैंने शर्माजी को अपनी बहन से मिलवाया ।उन्होंने मेरी बहन के प्रति बहुत परवाह दिखाई उसे अपनी किताबें पढ़ने को दी और एक बड़े भाई की तरह उसके साथ रहने लगे ।मैं सुबह उठ कर हम तीनो के लिए खाना बनाती और खुद का लंच लेकर ऑफिस जाते वक़्त उनका लंच राम मंदिर रख देती और वो दोपहर में फ्री होकर खाना खा कर वही डब्बा रख जाते ।
मुलाकाते बढ़ने लगी शर्माजी और मेरी बहन की दोस्ती हो गयी ।दोपहर का खाना अब वो लोग साथ खाने लगे ।एक दिन शर्माजी का दोस्त भी उनके साथ आया वो शर्माजी का अच्छा दोस्त था वो दोस्त की जब भी उसे जरूरत होती शर्माजी उसके लिए खड़े रहते और उस दोस्त की ख़ुशी के लिए कुछ भी करते ।शर्माजी के साथ आने लगे और हम रोज शाम को खूब बातें करते ।पर उस दोस्त के दिमाग में जाने क्या चल रहा था वो समझ पाना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था ।उसने मुझे शर्माजी और मेरी बहन के रिश्ते को देखने का नजरिया बदल दिया उसने ये तक कहा की कहीं शर्माजी के वापस आने की वजह मेरी छोटी बहन तो नहीं है?कही उसके लिए तो वो तुमसे अच्छे से बात तो नहीं कर रहा है ।
मेरे मानने में वो शर्माजी का अच्छा दोस्त था मुझसे ज्यादा शर्माजी ने उसके साथ वक़्त बिताया था ।उसकी बातों पर एक पल यकीन तो नहीं हुआ लेकिन उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज कर पाना भी मेरे लिए आसान नहीं था ।इसी बीच मेरा घर जाना हुआ ।दीदी का सगा भाई(बिट्टू)भी वही रहता था तो मैंने सोचा उससे भी मिल लिया जाये ।
बिट्टू और शर्माजी एक ही स्कूल में पढ़ते थे और शर्माजी का चरित्र चित्रण लड़कियों के मामले में खराब था ।बिट्टू का भी यही मानना था की शर्माजी कभी किसी से प्यार नहीं कर सकते बस लड़कियों को अपने जाल में फसा कर अपना मतलब साधते है ।जब मैं बिट्टू से मिली तो उसने भी यही कहा की अपनी बहन को उससे दूर रखना ।
इन दोनों की बातें मेरे दिमाग में घर कर चुकी थी ।अब अगर शर्माजी मजाक में भी मेरी बहन का हाथ पकड़ते तो मैं उसे गलत ले लेती पर मैंने शर्माजी को अभी तक कुछ नहीं कहा लेकिन इनकी दोनों के रिश्ते की गहराई मेरे और शर्माजी के रिश्ते पर भारी पड़ने लगी ।मुझे ऐसा लगने लगा की वो मुझसे ज्यादा मेरी बहन पर ध्यान देते है ।और हमारी लड़ाईया शुरू होने लगी वो वापस क्यों आये थे ये मैं नहीं जानती थी पर उनके आने से न मेरा और शर्माजी का रिश्ता सही चल रहा था और ना ही मेरी बहन और मेरा ।हमारे बीच बहस का कारण भी शर्माजी बनने लगे ।
वो मेरी बहन से ना मिल पाएं इसलिए मैं खाना फिर से मंदिर पर रख कर जाने लगी और वो खा कर चले जाते कहीं ना कहीं शर्माजी को मेरा ये बरताव समझ में आने लगा और इसलिए जब जब हमारी लड़ाई होती शर्माजी सर झुका कर मेरे सामने बैठ जाते और मुझसे लड़ाई का कारण पूछते और मैं उन्हें उनकी गलतियां गिनाती और वो मान जाते की हाँ उनकी ये गलती है । एक दिन मैंने उन्हें अपने दिमाग की सारी बात बताई उस दिन वो बहुत शर्मिंदा हुए और मुझे अपना चेहरा दिखाने से कतराने लगे ।लेकिन वो मुझसे मिलने आये और मुझसे कहा की तेरी छोटी बहन मेरे लिए मेरी बेटी समान है और बेटी के बारे में कोई बाप ऐसा कैसे सोच सकता है मुझे दुःख है की मैं तेरा भरोसा नहीं कमा पाया क्योकि इसका जिम्मेदार भी मैं ही हूँ जो तुझे बीच मैं छोड़ कर गया लेकिन जब जब मैं तेरे पास आया तूने मुझे उसी आदर के साथ अपनाया जैसे पहले अपनाया था तेरा प्यार ही था की मैं तेरे पास वापस आया और उसकी वजह तेरी बहन नहीं है मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ क्योकि शायद इतना मेरे लिए कोई नहीं कर सकती तूने बिना किसी शर्त के मुझसे प्यार किया है बेशक अभी तुझे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं लेकिन अब जब से आया हूँ तेरा ही बन के आया हूँ और अब मैं तुझसे दूर नहीं रह सकता तू चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न करले मैं तुझसे दूर नहीं जाऊंगा प्लीज एक बार मुझ पर भरोसा कर मैं तेरा भरोसा नहीं तोडूंगा ।
शर्माजी की बात सुन कर आँखें भर गयी जिस प्यार के लिए मैं दुआएं मांग रही थी चाहती थी वो मेरे सामने आ जाये मुझसे प्यार करे आज वो सब मेरे साथ हो रहा है तो मैं उस पर ऐतबार नहीं कर पा रही हूँ प्यार की नीव है भरोसा मेरी नींव में दरार क्यों आ रही है मैंने शर्माजी को नहीं खुद को एक मौका दिया ।
अब जब वो रोज शाम मुझसे मिलने आते तो मेरे लिए एक लव लेटर लिख कर लाते और अपने जज्बातों को मुझ तक पहुंचाने की कोशिश करते ।मैं उन्हें अकेले में पढ़ती और बहुत खुश होती और इस दिन के लिए भगवान को धन्यवाद देती ।और सब कुछ वापस अच्छे से चलने लगा ।एक दिन मेरी छोटी बहन स्कूल से जल्दी आ गयी थी उसने लंच भी नहीं किया था और शर्माजी का खाना भी मंदिर पर रखा हुआ था तो उसने कहा मैं शर्माजी के साथ ही खाना खा लेती हूँ मैंने हाँ भर दी ।शाम को जब मैं घर पहुंची तो मेरी बहन ने मुझसे कहा की जो खाना तू वहां रख कर जाती है गर्मी की वजह से रोटियां अख़बार में लिपटी भी कड़क हो जाती है आज मैंने एक निवाला खाया मुझसे खाया नहीं गया ।ये सुन मैं हिल गयी और ना जाने कितने दिन से शर्माजी वो खाना खा रहे थे सिर्फ मेरा भरोसा जीत सके सिर्फ इसलिए आखें आंसुओं से भर गयी और खुद पर शर्म आने लगी ।शाम को जब शर्माजी आये तो उनसे नजरे नहीं मिला पायी और उनसे माफ़ी मांगी ।उसके बाद फिर से मेरी बहन और शर्माजी साथ में खाना खाने लगे ।
शर्माजी का मेरे लिए प्यार बढ़ने लगा वैसे तो हम रोज लड़ाई करते थे और रोज वो मुझे मनाते थे ।अब मुझे भी अच्छा लगने लगा तो काफी बार तो मैं बिना किसी बात के उनसे नाराज हो जाया करती थी और फिर वो गिफ्ट्स रोजेज ला कर मुझे मनाते ।हम दोनों हमारे वर्तमान में बहुत खुश थे एक अपनी ही दुनियां बना ली थी और पियूष मिश्रा के गाने "घर" को सुनते हुए अपने भविष्य की कल्पना करने लगे ।लेकिन हम जानते थे की हमारा मिलन नहीं हो सकता ।वो ब्राह्मण थे और मैं नीची जाती की तो समाज के हिसाब से ये होना ना मुमकिन था और इस बात से हम दोनों पूरी तरह वाकिफ थे इसलिए शादी की बात आते ही हम चुप हो जाते क्योकि कही न कही हमें पता था की हमारे रस्ते अलग होने है ।
एक दिन शाम को खाना बना कर मैं शर्माजी के पास राम मंदिर पहुंची ।उन्होंने आज कुछ मीठे की फरमाइश रखी थी तो मैंने हलवा बनाया था ।हमने खाना खाया उसके बाद शर्माजी खड़े हुए और अपने एक पैर को मोड़ कर बैठ गए और अपनी जेब से अंगूठी निकाली और मेरी तरफ कर के कहा की मैं ये नहीं कहूंगा की मुझसे शादी करेगी वो मुझे पता है तू भी यही चाहती है लेकिन ये अंगूठी इस चीज के लिए नहीं है की हमारी शादी हो कर ही रहेगी ये सिर्फ इस बात का प्रमाण है की मैंने आज तक जितना तुझसे प्यार किया है उतना किसी से नहीं किया और मैं ये नहीं चाहता की इस प्यार को मैं मौका ना दूँ मैं ये भी नहीं चाहता की जैसे दुनियां मेरे बारे में गलत सोचती है वैसा तू भी सोचे इसलिए इस प्यार को मैं मेरे घरवालों के सामने रखूंगा मैं ये जानता हूँ की वो मना ही करेंगे लेकिन जब आज तक मैंने हर काम को शिद्द्त से किया है तो इसे कैसे बीच में छोड़ सकता हूँ पर मैं तुझसे उम्मीद करता हूँ की तू भी ज्यादा उम्मीदे ना लगाए की घरवालें मान जाएंगे वो माने या ना माने पर मेरा प्यार हमेशा रहेगा और जिस दिन वो मान गए उस दिन ये अंगूठी भी सही ऊँगली मैं उनके सामने ही पहनाऊंगा ।अभी के लिए किसी और में पहना रहा हूँ ।और उन्होंने अंगूठी पहना दी ।मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी की एक लड़का जो मेरी जिंदगी में आया जिससे किसी को उम्मीद नहीं थी की वो किसी से प्यार कर सकता है और खुद के अलावा किसी और की सोच भी सकता है वो मेरे सामने ये सब कह रहा है उस वक़्त मेरे मन में ये बिलकुल नहीं था की घरवाले मानेंगे के नहीं मन था तो ये की इस पूरी दुनियाँ को मैं चिल्ला चिल्ला कर ये बताऊ की मैंने आज मेरा प्यार पा लिया है आज मैंने मेरे शर्माजी को पा लिया है और वो मुझसे प्यार करते है और उस दिन से मैं उनकी आशिता शर्मा बन गयी ।
होशवालों को खबर क्या…
बेखुदी क्या चीज़ है…
इश्क कीजिये…फिर समझिये…
ज़िन्दगी क्या चीज़ है!
आप सभी के प्यार को देखते हुए मैं इस कहानी को पूरा कर पायी हूँ मुझे उम्मीद है आप को ये कहानी जरूर अच्छी लगी होगी और अगर नहीं तो मैं कोशिश करूंगी की इससे अच्छा लिख पाऊँ ।कमेंट करके मुझे आपके रिव्यु जरूर दें ।
आप सभी के प्यार के लिए बहुत बहुत आभार ।

