दूसरी 'पहली' दीवाली
दूसरी 'पहली' दीवाली
सितंबर 2021 में माँ का अचानक चले जाना, और इस तरह जाना कि अन्तिम दर्शन के लिये बेटी उन्हें घर भी नहीं ला पायी…..ये सब किसी भूकम्प से कम नहीं था । ऐसा भूकम्प कि जिसमें सब कुछ धराशायी हो जाये। माँ ने ऐसे समय में आँखें मूंद ली थी जब सूर्यास्त का समय नज़दीक था और इसलिये घर के ‘बड़ों’ का ये मानना था कि जिसने अपना अधिकांश जीवन सन्घर्षमय जिया हो अब उसके निर्जीव शरीर को अगले सूर्योदय तक और अधिक संघर्ष ना देते हुए जल्द से जल्द अन्तिम संस्कार कर देना ही सर्वोत्तम होगा।“
वो पल, वो निर्णय, वो रात, वो बारह दिन और वो महीना सब जैसे तैसे बीत गये ।
‘पहली दिवाली’ जब माँ घर में नहीं थी वो भी बीत गयी - जैसे तैसे । कुछ लोग घर तक आये मिलने, कुछ ने फोन से बात कर ली क्योंकि घर ‘दूर’ है और कुछ ने वॉट्सएप्प पर अपनी संवेदना प्रकट कर ली । माँ के बच्चों नें भी जैसे तैसे सादे रूप से अनमने ही सही पर खुद को मज़बूत कर ये ‘पहली दीवाली’ भी बीता ली । आखिर ये भूकम्प एक दुर्घटना बन कर उन्हीं के जीवन में तो आया था।
पर माँ की बेटी को असली ‘पहली दिवाली’ तो 2022 की दूसरी दीवाली आने पर देखने को मिली । दोनों ही दीवाली के बीच माँ के घर में कोई रह गया था तो बस बेटी, माँ के अतिप्रिय पशु-पक्षी, पेड़-पौधें और माँ के संघर्ष का साक्षी – घर का सारा सामान ।
माँ के उसी संघर्ष को मन में रख कर एक बार फिर बेटी ने साफ सफाई, रख रखाव आदि किये । माँ को श्रद्धा सुमन के रूप में, कोशिश करते हुए माँ की तरह दीवाली के दिन पारम्परिक खाना बनाया, शाम ढलने पर दीपक जलाये, खाना खाया भी, पड़ोस में मीठा देकर आई । बस घर के मन्दिर में दीपक जलाने के बाद पारंपरिक पूजा ना कर पाई- थक गयी थी । सजावट करते-करते रुक गयी – घर की रौनक घर में जो नहीं थी । और बाकी – बाकी सब की अपनी अपनी मजबूरी थी – कोई मन से दूर था तो कोई रास्तों से दूर ।