आनन्दवन की रेस
आनन्दवन की रेस


मिनी मम्मी का प्यारा वो
मुलायम फूलों सा,
सब का दुलारा वो
सफेद बादल सा,
यहाँ वहाँ हर जगह फुदकता वो
तेज़ हवाओं सा,
सब के मन को सुहाता,
सुन्दर सा प्यारा सा नन्हा सा,
और नाम दिया सब ने उसको गुन्नु प्यारा
दिन भर छलांगें भरता था यहाँ से वहाँ
एक पल में बगिया के इस पार
तो दूजे ही पल में होता था उस पार
था थोड़ा सा शैतान फिर भी था वो सब की जान
फिर भी एक बात से थे सारे जानवर परेशान …..
इतना लाड़ दुलार पा कर होने लगा था गुन्नु घमंडी
दूसरे बच्चों की कमियों पर उड़ाता था उनकी हँसी
एक दिन कछुआ गुटका भैया ने
गुन्नु को पास बिठाया और समझाया-
“देखो गुन्नु, सब की अपनी कमियाँ हैं,
सबकी अपनी अच्छाई,
तुम में कुछ अच्छाई है तो है कुछ कमियाँ भी,
ना कोई सब से अच्छा होता है ना
किसी में सारी दुनिया की बुराई
तुम तो अच्छे बच्चे हो,
फिर क्यों करते हो सबकी हंसाई ”
पलट के बोला गुन्नु
“सुनो गुटका भैया,
मुझ को मत दो ये सब ज्ञान
क्योंकि कमी नहीं है मुझ में कोई
मैं सुन्दर हूँ, मैं तेज़ हूँ,
इसीलिये तो सब का प्यारा हूँ
तुम खुद को देखो
कितना धीरे-धीरे चलते हो,
कहीं भोज में जाना हो सवेरे
तो दोपहर तक पहुँचते हो ”
ये सब कह कर, भैया का मन दुखा कर,
चल दिया वहाँ से गुन्नु ऊँची ऊँची कूद लगा कर
गुटका भैया ने सोचा गुन्नु छोटा है मासूम है –
क्या कह गया उसे कहाँ अभी ज्ञान है
“पर कैसे गुन्नु को समझाया जाए
कैसे ये सिखाया जाए कि हम मन से सुन्दर हो तो
कोई बात है तन की सुन्दरता आज है कल नहीं ”
सोच में खोये भैया चले जा रहे थे,
थोड़ा परेशान नज़र आ रहे थे,
तभी कहीं किसी पेड़ से टपक पड़ी बिल्ली मौसी और बोली -
“कर रहे हो बोलो भैया इतनी चिंता क्यों ओर किस की ?”
कह सुनाया सारा किस्सा गुन्नु का मौसी से,
बोली सयानी मौसी – समय आ गया है भैया,
“चलो सुनाएं गुन्नु को हमारे बचपन की ‘वो’ कहानी”
चले दोनों जब मिनी बहन के घर की ओर,
साथ हो लिये और भी बड़े और बच्चे जो मिलते हर ओर
फूला ना समाया आज बिल्ली मौसी को देख कर गुन्नू,
“आओ प्यारी मौसी,
लाओ मेरी लस्सी,
देखे राह तुम्हारी लाड़ला तुम्हारा गुन्नु ”
प्यार से गले लगाया बेटे गुन्नु को,
सिर भी उस को सहलाया,
और गोद में बिठा कर उस को ये बतलाया –
नहीं लाई मैं आज मलाई,
नहीं लाई कोई मिठाई,
लेकिन आज सुनाएगी बिल्ली मौसी तुमको एक कहानी --
एक दिन अपने आनन्दवन में पड़ी थी
एक खरगोश और कछुए को दौड़ लगानी
आनन्दवन में खरगोश ने बनाया जब
बार-बार कछुए की धीमी चाल का मज़ाक,
तब कछुए को भी एक दिन आया गुस्सा और वो बोला,
“चल मैदान में घमंडी खरगोश हो जाए अब तो आर या पार ”
हैरान परेशान सारे जानवर पहुचें दौड़ के मैदान में,
देखने क्यूँ कछुए ने डाला खुद को इस मुश्किल इम्तिहान में
शेर राजा ने बिगुल बजवया महामंत्री लोमड़ी चालाक से,
और झंडा लहराया गोलू मोलू गजराज ने
कछुआ चला ही था दो कदम,
कि खरगोश ने लगाई पांच छलांग और
पहुँच गया नदी के पास नीम की ठंडी छाँव में
मुड़ कर देखा तो आया नहीं उसे कछुआ कहीं नज़र,
लगा सोचने नदी किनारे सुस्ता लूँ थोड़ा,
चार छलांग में जीत जाऊंगा जो आया धीमे-धीमे चलता कछुआ अगर
तालियों का शोर सुन कर खुश हो रहा था खरगोश,
घमंड से फुला नहीं समा रहा था,
नदी किनारे सो गया, नीम की ठंडी छाँव में, खो कर अपने होश
पर कछुआ रुका नहीं, थका नहीं, ना ही उसने ली चैन की साँस,
जब तक धीमे - धीमे ही सही, पर पहुँच ना गया वो भी नदी के पास
हैरान था खरगोश को यूँ सोता देख कर,
अच्छे मित्र की तरह जगाया भी उसको पास जा कर
खरगोश ने आँख ना खोली अपनी, और सोते सोते ही बोला -
“सोने दो अभी तो समय है धीमे कछुए को आने में,
जीत जाऊंगा मैं तो बस एक छलांग लगा कर ”
कछुआ समझ गया था इस के आलस और घमंड का कोई इलाज नहीं,
“अच्छा भाई” कह कर चल दिया कछुआ करने अपनी भलाई
शोर अचानक तेज़ हुआ,
खरगोश को कुछ आभास हुआ,
आँख खुली ढोल नगाड़ों की जब आवाज़ हुई
कुछ सोचा ना समझा,
बस इधर-उधर कछुए को देखा
और जब दिखाई नहीं दिया कछुआ तो झटपट लम्बी लम्बी दो छलांग लगाई
हाँफ गया था दौड़ के दूसरे छोर पहुँच कर,
इतनी जल्दी लम्बी दो छलांग लगा कर
सारा घमंड उसका हवा हो गया,
सारी नींद भाग गयी,
और चेहरे पर उदासी छा गयी,
जब देखा उसने कछुए को मिल रही है जीत की बधाई ढेर सारी
और भालू की पीठ की सवारी
अब सब हंसने लगे थे खरगोश को देख कर,
बना रहे थे मज़ाक उस का उसकी नींद को ले कर
चलने लगा जब वो अपना मुँह लटका कर,
बोला कछुआ उसके पास आ कर
कछुए की बातें सुन कर फिर से उसकी हँसी लौट आई,
कछुए के चारों ओर घूम घूम कर खुशी से छलांग लगाई
सारे जानवर खुश हो गये सुन कर
जब खरगोश ने कहा अपने कान पकड़ कर,
“कभी नहीं करूँगा आलस और घमंड अब किसी बात पर ”
मीलु माँ, कछुआ भाई और सब ने जब देखा गुन्नु को,
तो सब लगे सोचने – “क्या बात इस को कुछ समझ में आई?”
बोला आखिर छोटा गुन्नु –
“मौसी कहानी तो तुमने अच्छी सुनाई
पर ऐसी क्या बात कही कछुए ने
कि निपट गयी सारी लड़ाई !?”
तब गुटका भैया ने गुन्नु का हाथ थाम कर उस को ये समझाया-
“खरगोश तेज़ ज़रूर होता है
देखने में सुन्दर भी होता है
पर देखो कैसे कहानी वाला खरगोश तेज़ भागते भागते थक गया,
और थक कर सो गया,
इसीलिये तो कहते हैं कि जो सोता है वो खोता है
कछुआ धीमा था,
पीठ पर इतना भारी खोल था,
फिर भी अपनी राह चलता रहा,
थक कर भी चलता रहा
जीतने के लिए खरगोश को सोता ही छोड़ आगे बढ़ जाता,
पर सच्चे मित्र की तरह सोते खरगोश को जगाया ”
और मिनी मम्मी ने भी गुन्नु को सिखाया -
“कोई कितना सुन्दर है ये उस के मन से पता चलता है
अच्छा बच्चा सब की मदद करता है,
मन का सुन्दर सच्चा बच्चा सब का मान भी रखता है ”
“समझ गया माँ पूरी बात”-
बोला गुन्नु माँ को बाहों में भरकर
झट से भागा रसोई के अन्दर,
लाया लस्सी एक कटोरा भरकर,
पीयो मेरी प्यारी मौसी,
मैं भी सीख गया हूँ आज तुम्हारी कहानी सुन कर
हाथ जोड़ कर बोला अपने कछुए भाई से –
चलो गुटका भैया, चलते हैं उसी नीम की छाँव में,
पर आज तुम्हारी सी धीमी चाल चलूंगा मैं भी।