दुब्रोव्स्की - 16

दुब्रोव्स्की - 16

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राजकुमार वेरेइस्की की सगाई पड़ोसियों के लिए अब रहस्य न रह गई थी। किरीला पेत्रोविच बधाइयाँ स्वीकार करत, शादी की तैयारियाँ हो रही थीं। माशा निर्णायक घोषणा को एक-एक दिन आगे धकेलती जा रही थी, साथ ही बूढ़े मंगेतर के साथ उसका व्यवहार एकदम ठण्डा एवम् थोपा गया-सा था। राजकुमार को इसकी परवाह भी न थी। उसकी मौन स्वीकृति से प्रसन्न वह प्रेम पाने की कोशिश भी नहीं कर रहा था।

मगर समय गुज़र रहा था। आख़िरकार माशा ने कुछ हलचल करने का फ़ैसला कर ही लिया। उसने राजकुमार वेरेइस्की को पत्र लिखा, उसके हृदय में उदारता की भावना जगाने का प्रयत्न किया, साफ़-साफ़ स्वीकार किया कि उसके दिल में उसके प्रति जरा भी आकर्षण की भावना नहीं है, विनती की कि वह उसका हाथ माँगने से इनकार कर दे और ख़ुद ही उसकी पिता के ज़बर्दस्ती वाले अधिकार से रक्षा करे। उसने चुपचाप ख़त राजकुमार वेरेइस्की को थमा दियााा, उसने एकान्त में उसे पढ़ा और अपनी दुल्हन की स्पष्टवादिता ने उसके दिल को ज़रा भी नहीं छुआ। उलटे उसने शादी जल्दी-से-जल्दी कर लेना आवश्यक समझा और इसलिए यह ज़रूरी समझा कि वो ख़त अपने भावी श्वसुर को दिखा दे।

किरीला पेत्रोविच क्रोध में पागल हो गया, बड़ी मुश्किल से राजकुमार ने उसे इस बात के लिए मनाया कि माशा को यह एहसास न होने दे कि ख़त की बात उसे मालूम है। किरीला पेत्रोविच इस बारे में उसे कुछ भी न कहने पर राज़ी हो गया मगर उसने यह निश्चय कर लिया कि समय खोना ठीक नहीं और शादी दूसरे ही दिन के लिए निश्चित कर दी। राजकुमार को यह बड़ी अकलमन्दीपूर्ण चाल प्रतीत हुई, वह अपनी दुल्हन के पास गया, उससे बोला कि पत्र ने उसे बहुत दुखी कर दिया है, मगर उसे विश्वास है, कि समय के साथ-साथ वह उसके प्यार के लायक हो जाएगा कि उसे खोने का विचार ही उसके लिए बड़ा कठिन है और वह स्वयम् अपने लिए मृत्युदण्ड स्वीकार नहीं कर सकता। इसके पश्चात् उसने बड़े आदर से उसका हाथ चूमा और किरीला पेत्रोविच के निर्णय के बारे में एक भी शब्द कहे बिना चला गया।

मगर अभी वह मुश्किल से आँगन के बाहर निकला ही होगा कि उसके पिता अन्दर आए और सीधे-सीधे उसे अगले दिन तैयार रहने का आदेश दे बैठे। राजकुमार वेरेइस्की की बातों से परेशान मारिया किरीलव्ना की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली और वह पिता के पैरों पर गिर पड़ी।

“पापा" , वह आर्त स्वर में चिल्लाई, “प्यारे पापा, मुझे मत मारो, मैं राजकुमार से प्रेम नहीं करती, मैं उसकी पत्नी बनना नहीं चाहती।”

“इसका क्या मतलब है”, किरीला पेत्रोविच गरजा, “अब तक तो तुम चुप थीं और राज़ी थीं,और अब, जब सब कुछ निश्चित हो चुका है, तुम नख़रे कर रही हो और इनकार कर रही हो। बेवकूफ़ी मत करो, इससे तुम मुझसे कुछ भी न पा सकोगी।”

“मुझे मत मारो” बेचारी माशा दोहराती रही, “क्यों मुझे अपने से दूर भगा रहे हो और एक अप्रिय आदमी के हवाले कर रहे हो, क्या आप मुझसे उकता गए हैं ? मैं पहले की ही तरह आपके साथ रहना चाहती हूँ। प्यारे पापा, मेरे बिना आपको बड़ा उदास लगेगा और भी ज़्यादा उदास हो जाएँगे आप, जब सोचेंगे कि मैं दुखी हूँ। पापा ! ज़बर्दस्ती मत कीजिए, मैं शादी करना नहीं चाहती हूँ।”

किरीला पेत्रोविच के दिल को छू लिया इन बातों में मगर उसने अपनी उलझन छिपा ली और उसे धकेलते हुए गम्भीरता से बोला,

“यह सब बकवास है, सुन रही हो न ? मैं तुमसे बेहतर जानता हूँ कि तुम्हारी ख़ुशी किसमें है। आँसुओं से कुछ नहीं होने वाला, परसों तुम्हारी शादी हो जाएगी।”

“परसो !” माशा बोली, “ऐ ख़ुदा,नहीं, नहीं, असम्भव ! यह नहीं हो सकता ! पापा, सुनो, अगर आपने मुझे मार डालने का फ़ैसला कर ही लिया है, तो मैं अपने बचाने वाले को भी ढूँढ़ लूँगी, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते, आप देख ही लेंगे, आप डर ही जाएँगे कि आप मुझे किस मोड़ पर ले आए हैं !”

“क्या ? क्या ?” त्रोएकूरव बोला, “धमकियाँ ! मुझे धमकियाँ ! बदतमीज़ लड़की ! जानती , मैं तुम्हारे साथ वह सुलूक करूँगा जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं। तुम मुझे ‘बचाने वाले’ से डराती हो। देख लेंगे, कौन तुम्हें बचाता है।”

“व्लादीमिर दुब्रोव्स्की”, माशा बदहवासी में बोल पड़ी।

किरीला पेत्रोविच ने सोचा कि वह पागल हो गई है और उसकी ओर विस्मय से देखने लगा।

“बस हुआ," उसने कुछ देर ख़ामोश रहकर कहा, जिसका चाहे इंतज़ार कर लो, मगर अभी तो इसी कमरे में बैठी रहो, तुम शादी होने तक यहाँ से बाहर न निकलोगी,” इतना कहकर किरीला पेत्रोविच बाहर निकल गया और उसने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया।

बेचारी ग़रीब लड़की बड़ी देर तक रोती रही उस सबकी कल्पना करके जो उसकी राह देख रहा था, मगर इस आवेगपूर्ण सम्भाषण के बाद उसका दिल कुछ हल्का हुआ, और वह शांतिपूर्वक अपने भविष्य के बारे में और अपने अगले कदम के बारे में विचार करने लायक हुई। सबसे महत्वपूर्ण बात थी, इस अनचाही शादी से छुटकारा पाना, डाकू की पत्नी बनना उसे अपने लिए तैयार किए जा रहे नर्क के मुकाबले स्वर्ग के समान प्रतीत हुआ। उसने दुब्रोव्स्की द्वारा छोड़ी गई अँगूठी की ओर देखा। उसका बहुत जी चाहा कि एकान्त में उससे मिले और निर्णायक क्षण से पूर्व उसकी सलाह ले। उसे पूर्वाभास हुआ कि शाम को वह कुंज के निकट दुब्रोव्स्की को देख सकेगी, उसने शाम होते ही वहीं जाकर उसका इंतज़ार करना चाहा। शाम होने लगी। माशा तैयार हु, मगर दरवाज़े पर ताला लगा हुआ था। नौकरानी ने दरवाज़े के उस पार से जवाब दियाकि किरीला पेत्रोविच ने उसे बाहर निकलने देने की इजाज़त नहीं दी है। वह कैद में थी। घोर अपमानित, वह खिड़की के नीचे बैठ गई और देर रात तक बिना कपड़े बदले बैठी रहीअविरत काले आकाश की ओर देखती हुई। सुबह-सुबह उसकी आँख लगी, मगर यह हल्की नींद डरावने सपनों के आगे न ठहर सकी और अन्दर आती सूर्य की किरणों ने उसे जगा दिया।


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