इच्छित जी आर्य

Tragedy

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इच्छित जी आर्य

Tragedy

दर्द तो होता ही है

दर्द तो होता ही है

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ये इश्क का असर भी न... बिलकुल जादुई ही होता है!

बस दो जोड़ी आँखें हरकत में आती हैं और उनके बीच जाने क्या पनपता जाता है और अंजाम देखने वालों के साथ केवल आँखें ही तो हैं, जो देखती हैं। देखती हैं, और दिखने वाले की जादुई खूबसूरती से बिल्कुल दीवाना हो जाता है... देखने वाला। ठीक बिल्कुल ऐसा ही माइकल के साथ भी हुआ था।


वो तो छः महीने से देख रहा था उसको। देख क्या रहा था, बिल्कुल अपनी पलकें ही बिछाकर रख दी थीं उसने उसके आने-जाने के रास्तों पर। पर, उसको छिप-छिपकर देखते रहने के अलावा, आज तक एक कदम तक आगे न बढ़ा पाया था उसकी ओर। पर आज ही फ़िर एकदम से बहुत कुछ जानने को मिल गया था उसके बारे में। इतना कुछ कि एक बार को तो खुद उसे अपनी आँखों को फोड़कर अन्धा हो जाने की भी चाहत हो गयी थी।


और नहीं तो क्या? आँखों ने ही तो उसे इतना कुछ दिखाया था, पर कभी भी पूरा सच नहीं।


वो देखा गया सबकुछ पूरा सच नहीं था, क्योंकि पूरा सच उसे आज उसका नाम जानकर पता चला था... ... 'शबाना..'


"शबाना" ठीक बिल्कुल यही नाम था, जिससे उसे कॉलेज के हॉस्टल में उससे मिलने आये उसके रिश्तेदारों ने पुकारा था। उसके नाम से है उसके मुस्लिम होने की बात पता चलते ही माइकल ने तो सोच लिया था कि अब वो अपनी जिंदगी के इस हर खूबसूरत पल को बस एक याद बनाकर अपनी जिंदगी से हटा देगा।


माइकल ने तो अपना फैसला ले लिया था। पर, न जाने कब और न जाने कैसे, शबाना ने भी माइकल को उस तरह खुद के पीछे पागलों की तरह आते देखना शुरू कर दिया था और जो नहीं होना चाहिए था, वही इश्क न जाने कैसे उसके दिल में भी कहीं गहरा घर कर बैठा था।


उस दिन शबाना से मिलने आये रिश्तेदारों के जाने के बाद से माइकल ने तो शबाना का पीछा करना छोड़ दिया, पर अब शबाना खुद जाने कहां-कहां से पता करके पेशे से मैकेनिक उस माइकल के घर जा पहुंची। बचपन से ही अनाथ माइकल के घर पर ऐसा कोई न था, जो इश्क़ की राह पर झुलसने को तैयार हो उठे दीवानों को कुछ समझा सके। बस फ़िर क्या था, अपने घर पर आई शबाना को चाह कर भी माइकल किसी तरह की कोई 'न' न कह सका। और फिर चंद हफ्तों में ही उनका प्यार इस परवान पर जा पहुंचा कि शबाना के घरवालों को शबाना और माइकल के निकाह के लिए 'हाँ' कहनी ही पड़ी।


पवित्र रस्मों के ज़रिये एक-दूजे का होने के चन्द दिनों के बाद माइकल को शबाना के बारे में ऐसा बहुत कुछ जानने को मिला, जिसे डॉक्टरी-भाषा में साइकेट्रिक बीमारी नाम से जाना जाता था। अब तो माइकल हर वक़्त, हर घड़ी अपनी निगाहें शबाना पर टिकाये रखता था।


फ़िर, चूँकि शबाना का निकाह कई करीबी रिश्तेदारों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुआ था, निकाह में न आ पाये कई जान-पहचान वालों ने धीरे-धीरे शबाना के घर उससे मिलने आना शुरू किया। अब शबाना काफ़ी सहमी-सहमी रहने लगी थी।


फ़िर एक दिन अपने काम में कुछ फँसा होने की वजह से माइकल शाम को थोड़ा देर से घर पहुंचा। घर पहुंचने के बाद थकान की वजह से थोड़ा सुस्ताने के लिए वो आँखें बन्द करके लेटा। बस उस वक़्त ही जो उसकी आँखें थोड़ा सा देख नहीं पायीं उसकी शबाना को, वही घड़ी कयामत की घड़ी साबित हुई।


दरवाज़ा बन्द करके, कमरे के भीतर आखिरकर आत्महत्या कर ली थी उसने!


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