Dr. Pradeep Kumar Sharma

Classics Inspirational Children

3.9  

Dr. Pradeep Kumar Sharma

Classics Inspirational Children

दोहरी जिम्मेदारी

दोहरी जिम्मेदारी

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आधी रात के लगभग का समय रहा होगा, जब मेहरा जी कि नींद खुल गई। उन्होंने देखा बेटे के रूम की लाइट जल रही है। झाँक कर देखा, उनका बेटा रोहन पढ़ाई में लीन है। 

 मेहरा जी चुपके से किचन में गए और रोहन के लिए चाय बनाकर ले आए। रोहन आश्चर्यमिश्रित खुशी से बोला, "अरे पापा आप कब उठ गए ? और ये चाय ? मम्मी की तरह आपको पता कैसे चल गया कि मुझे अब चाय पीने की जरूरत है ?"

 मेहरा जी रोहन के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा माता-पिता को अपने बच्चों की बहुत सी चीजें अपने आप ही पता चल जाती हैं। और जब दोनों में से कोई एक नहीं रहता, तो दूसरे की जिम्मेदारी दोहरी हो जाती है। यदि मैं अभी कहूँ कि बेटा सो जाओ, बहुत रात हो गयी है, तो तुम्हारा जवाब होगा, नहीं पापा, मुझे थोड़ी देर और पढ़नी है। आखिरकार मम्मी का अपने बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना जो पूरा करना है।"

 रोहन बोला, "हाँ पापा, सो तो है। काश ! आज मम्मी होतीं।"

 "चलो जल्दी से चाय पी लो, नहीं तो ठंडी हो जाएगी। आज तुम्हारी मम्मी होती तो वह भी यही कहती।" मेहरा जी विषय बदलते हुए शांत भाव से बोले।


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