चायवाला
चायवाला
"छोटू, चाय तो गजब की बनाई है तुमने। चल एक सिगरेट भी दे दे, ताकि चाय का मजा डबल हो जाए।" मिश्रा जी ने कहा ।
"साहब, मैं अपने ठेले पर सिगरेट नहीं बेचता ।" किशोरवय चायवाले ने कहा ।
"क्या ? सिगरेट नहीं रखता ? पागल है क्या ? यहाँ सिर्फ चाय-बिस्कुट बेचकर तू कमाएगा कितना और खाएगा क्या ?" मिश्रा जी ने कहा ।
"सर, भले मेरी कमाई थोड़ी कम होगी, पर मैं सिगरेट और पाउच बेचकर किसी की जिंदगी से खिलवाड़ कर अपनी जेबें नहीं भर सकता ।" चायवाले ने दृढ़तापूर्वक कहा ।
"अबे तू बोल क्या रहा है ? यहाँ हर ठेले में चाय, सिगरेट और गुटखा, पाउच मिलता है और तू धर्मात्मा बना फिर रहा है ? कहाँ पढ़ लिया कि सिगरेट और पाउच बेचना सेहत से खिलवाड़ करना होता है ?" मिश्रा जी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा ।
"सर, ये तो हर पैकेट पर लिखा होता है, जिसे मैंने पढ़ा है और उसके परिणामस्वरुप अपने पिताजी को कैंसर से तिल-तिल कर मरते हुए भी देखा है ?" कहते हुए उसकी आँखें डबडबा गई थीं ।
"ओह ! तुम सही कह रहे हो बेटा । आज से मेरा भी गुटखा, पाउच, सिगरेट सब बंद । चलो, इस खुशी में एक कप चाय और पिला दो ।" मिश्रा जी ने माहौल को थोड़ा-सा हलका करने के लिहाज से कहा ।
'शौक से पीजिए और यह चाय मेरी तरफ से रहेगी।" उसने चाय देते हुए कहा।