Dr. Pradeep Kumar Sharma

Classics Fantasy Inspirational

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Dr. Pradeep Kumar Sharma

Classics Fantasy Inspirational

प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

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डिप्टी कलेक्टर रमेश कुमर जी स्वर्गलोक में धर्मराज के रजिस्ट्रार चित्रगुप्त जी के सामने हाथ जोड़े खड़े थे। चित्रगुप्त जी पिछले लगभग घंटे भर से अपने रिकॉर्ड में रमेश जी के पूरे जीवन-काल के पाप-पुण्य का हिसाब-किताब देख रहे थे। बहुत देर से खड़े रहने के कारण उनके पैर दुखने लगे थे। वहाँ पर बैठने के लिए ढंग की कोई कुर्सी या सोफा भी खाली नहीं था। थोड़ी देर बाद चित्रगुप्त जी ने उन्हें एक पर्ची में कुछ लिखकर दी और कहा, ‘‘आप अंदर जाकर धर्मराज जी को यह पर्ची दे दीजियेगा।’’

रमेश जी पर्ची लेकर अंदर घुसे। वहाँ उन्होंने देखा कि धर्मराज जी के आसन के सामने चार-पाँच देव-पुरुष बैठे गपिया रहे हैं। रमेश जी चुपचाप कोने में खड़े में हो गए। यहाँ भी खड़े-खड़े उन्हें आधा घंटा बीत चुका था। तब धर्मराज ने उनसे कहा, ‘‘हाँ जी, दिखाओ अपनी पर्ची।’’ 

सुनकर मानो रमेश जी की जान में जान आ गई। पर्ची उन्हें देते हुए बोले, ‘‘लीजिए, प्रभु।’’

‘‘उफ, क्या करते हो जी। चैन से सोने तो दो। नींद में भी न जाने क्या-क्या उल-जलूल बड़बड़ाते रहते हो।’’

बगल में सो रही अपनी पत्नी की झिड़की सुनने के बाद रमेश जी की नींद खुल गई, ‘‘ओह ! तो यह सपना था।’’ 

अगले दिन से रमेश जी ने उनसे मिलने के लिए आने वाले आगंतुकों को कभी भी अनावश्यक प्रतीक्षा नहीं करवाई।


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