Rubita Arora

Inspirational

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Rubita Arora

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दो सवालिया आँखें

दो सवालिया आँखें

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पेशे से शहर के जाने माने वकील शर्मा जी जो अब अपने काम से रिटायरमेंट ले चुके है, आज अपना समान पैक करने मे व्यस्त थे। बडी सावधानी से अपनी एक एक चीज बैग में डाल रहे थे ताकि कोई जरूरी चीज छूट न जाए। तभी उनका बेटा अनुज बडे में दाखिल हुआ। बोला, "पापा!! मैं क्या सुन रहा हूँ?? आप घर छोड़कर वृद्ध आश्रम रहने जा रहे है.. पापा आप ऐसा क्यों कर रहे है?? आखिर क्या कमी रह गई आपकी सेवा में?? लोगों को पता चलेगा तो कितनी हंसी उडायेंगे मशहूर वकील वेद प्रकाश शर्मा वृद्ध आश्रम में...ऐसा मत कीजिए पापा.. आपको कोई तकलीफ है तो एक बार मुझसे कहिए..आप जैसा चाहेंगे बिल्कुल वैसा होगा.. बस आप वृद्ध आश्रम जाने का विचार छोड़ दीजिए।" शर्मा जी अपना चश्मा साफ करते हुए बोले, "बेटा!! वृद्ध आश्रम जाने का मन तो मेरा भी कभी नहीं था.. मै तो हमेशा से यही चाहता था अपना बुढापा यही तुम्हारे पास रहकर बिताऊँ.. पोते को अपनी आँखों के सामने बडा होता देखूं.. उसके बचपन मे अपना बचपन जी उठूँ परंतु अब...??"


"अब क्या पिताजी..?? सोहम के साथ जो हुआ उसका दुख हमें भी हैं लेकिन हम कर भी क्या सकते है..?? इलाज तो चल ही रहा है.. ईश्वर ने चाहा तो वह बिल्कुल ठीक हो जाएगा..।"


"लेकिन बेटा कभी सोचा उसकी इस हालत का जिम्मेदार कौन है..?? वो अभी मात्र आठ साल का था.. अभी तो बचपन भी अठखेलियाँ कर रहा था उसके साथ.. लेकिन इधर हमारी आकांशाए इतनी हावी हो गई उस पर.. और हम हमेशा उससे बडो की भांति व्यवहार की उम्मीद करने लगे..। जो मन खुले आसमान में उडना चाहता था उसे नियमों में कैद करना शुरू कर दिया..। उस मनहूस दिन को तो मैं कभी नहीं भूल सकता जब पार्क से लोटते वक्त दूसरे बच्चों की भांति उसने भीी कहा, दादा जी!! मुझे पीज़ा खाना हैं..। मैंने उसे समझाना चाहा, बेटा!! यह तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं.. मम्मी पापा को पता चलेगा तो गुस्सा करेंगे.. परन्तु वह अपनी जिद्द पर अडा रहा और फिर इस बूढ़े का मन भी ललचा उठा..। सोचा सेहत के लिए अच्छा तो नहीं परन्तु कभी कभी खाने में बुराई भी क्या है..बस फिर हम दोनों ने मिलकर पीज़ा खाया..। डाँट से बचने के लिए हम दोनों ने घर न बताने की सोची..। घर घुसते ही खाने की प्लेट ने हमारा स्वागत किया..।बुढापे का हवाला देते हुए मैं तो जैसे तैसे बच निकला पर वह मासूम तुम्हारे गुस्से का शिकार होता चला गया..। पेट में जगह नहीं थी उसके और इधर खाने को मना करते ही बिना उसके मन को समझे तुम लोगों ने उस पर बरसना शुरू कर दिया..। कितनी लाचारी से उसने मेरी तरफ देखा.. मानो कहना चाहता था दादा जी आपको तो पता है फिर आप क्यों चुप हो..?? पर सच बताऊँ तुम लोगों का क्रोध देखकर मै भी डर गया था बेटा.. कुछ न बोल सका.. और फिर खुद को बचाने के लिए उस मासूम ने जब प्लेट पटकी तो तुमने खींच कर एक थप्पड़ जड़ दिया..। नन्ही जान अपने पर हुए अकस्मात हमले की वजह से अपना नियंत्रण खो बैठी और उसका सिर जाकर दीवार पर लगा..। दिमाग की कोई नस दबने से आज अस्पताल में बिस्तर पर लाचार पडा है..मुँह से कुछ नहीं बोलता पर उसकी खामोश आँखों में सवाल है मेरे लिए..। हर बार पूछती है, दादा जी!! आप तो सब जानते थे.. फिर आप मेरी मदद को आगे क्यों न आए..?? आप कैसे इतने स्वार्थी हो गए, दादा जी..?? क्यों मुझे सब कुछ सहने के लिए अकेला छोड़ दिया जब पीज़ा खाने की गलती हम दोनों ने मिलकर की थी..?? सच बताऊँ, बेटा!! सारी उम्र इंसाफ के लडाई लडने वाला यह वकील आज अपनों की अदालत में मुजरिम के कटघरे में खडा होकर रह गया..। नहीं हिम्मत मुझ में उन दो सवालिया आँखों का सामना करने की.. बस इसी लिए यहां से कायरों की भांति मुँह छिपाकर भाग रहा हूँ। शायद यही मेरा पश्चाताप होगा।"


अनुुुज रोते हुए, "नहीं पापा!! ऐस मत कहिए.. सच में आप दोनों का गुन्हेगार कोई और नहीं मै हूँ..।काश!! मै अपने बच्चे की भावनाओं को समझ पाता तो शायद आप दोनों को कोई बात मुझसे यूं छिपाने की नौबत न आती..। काश!! मैं एक कठोर बाप व बेटा बनने से पहले एक अच्छा इंसान बन पाता..। देखिए न पापा!! ईश्वर ने मेरे गुनाहों की सजा मेरे बेटे को दी हैं..। मै भी तो उसी दिन को कोस रहा हूँ जब मैने बिना सोचे समझे उस मासूम पर हाथ उठा दिया..। काश!! उससे पहले ही मेरे हाथ टूट गए होते..। भूल गया था मैं नियम और कायदे हम बच्चों की भलाई के लिए बनाते हैं उनसे उनकी आजादी छीनने के लिए नही..। पापा!! अब मैं अपनी गलती को सुधारना चाहता हूं आपकी तरह एक अच्छा पिता बनते हुए अपने बेटे को दिल से प्यार करना चाहता हूं.. उसकी हिम्मत बनकर हर मुसीबत का सामना करने की ताकत उसमें भरना चाहता हूं.. कहीं नही जा रहे पापा आप ब्लकि यही रहकर आपको मेरा मार्ग दर्शन करना है..।" अनुज शर्मा जी के गले लग गया और शर्मा जी सोचने लगे,सच मे भागना तो किसी मुश्किल का हल नहीं हो सकता..। मुझे भी यही रहकर उन दो सवालिया आँखों का सामना करते हुए अपने पोते को आश्वासन देना हैं अब ये दादू हमेशा तुम्हारेे साथ हैं...।


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