दो बूंद आंसू
दो बूंद आंसू
मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गयी और मुझे छुट्टी नहीं मिल पाई इस कारण रात्रि मे ही मेरी पत्नी उनके पास चली गई थी मेरे नास्ते लिए पूडी और आलू की सब्जी बनाकर रख गयी थी। पिताजी के बारे में सोचते हुए पता नहीं कब नींद आ गई और रात में खाना भी नहीं खा पाया। सुबह सुबह घूमने के लिए मैं बाहर निकला तो एक कुत्ते की भौंकने की आवाज आई और एक चीख सुनाई दी - - मैं दौड़कर बाहर गया तो देखा फेंके हुए सामानो के बीच में एक छै-सात साल की लड़की गिरी पड़ी हुई थी और कुत्ता उसकी ओर बढ़ रहा था, मैं डंडा लेकर तेजी से भागा । उस बच्ची की कोहनी और घुटने पर खून बह रहा था । फटी हुई फ्राक को एक हाथ से पकड़े हुए थी। मैंने उससे पूछा क्या कर रही है? वह मुझे आश्चर्य से देख रही थी मानो कह रही हो
कि आप पागल हैं क्या? इतना भी नहीं दिखते बाबूजी खाना बीन रही थी। मैने उससे खड़े होने के लिए कहा लेकिन दर्द के कारण खड़ी भी नहीं हो पा रही थी--मैंने उसे उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया लेकिन वह डर गयी। अचानक मुझे जाने क्या सूझा, उसमें अपनी बच्ची नजर आई। मैंने उसे दोनों हाथों से उसको उठा लिया,इस हड़बड़ी में बच्ची घबरा गई और उसका फ्राक से हाथ छूट गया, फ्राक की पोटली में समेटे गए चावल के दाने जमीन पर गिर गए । वह कभी मुझे देख रही थी कभी चावलो को देख रही थी। और उतरने के लिए मचल रही थी
मैं उसे ले कर के अपने घर पर आया और बरामदे में बैठाकर उसके पैरों और हाथों को डिटोल से साफ कर दवाई लगायी। मैंने उससे पूछा तुम खाना खाओगी ? वह मुझे एकटक देखने लगी, सूखे हुए होठ, बिखरे बाल। उसकी नजरें कुछ न कह कर भी बहुत कुछ रहीं थीं। मैंने अपनी रिस्टवाच उतारी, हाथ धोये और उसके लिए कल की रखी हुई पूड़ी लेने अंदर चला गया ।
मैं चारों पूड़ी लेकर आ गया और अचार और सब्जी के साथ उसे खाने के लिए दिया, वह अभी भी मुझे देख रही थी। मैंने उसे कहा बेटा- तुम मेरे सामने ही खाना खा लो। वह कुछ कहना चाह रही थी किंतु कह नहीं पा रही थी, मैं पानी लेने के लिए घर के अंदर गया, बाहर आकर देखा वह लड़की अपने फ्राक में कुछ लपेटे हुए भाग रही थी - - मैंने उसको आवाज दी लेकिन वह अनसुनी कर के लगड़ाती हुई तेजी से जा रही थी। अचानक मेरी नजर टेबल पर पड़ी वहां मुझे रिस्टवाच नजर नहीं आयी तो वह मेरी रिस्टवाच लेकर भाग रही है मेरे भले पन का यह नतीजा निकला - - मुंह से गाली निकली कि साले खुद चोरी करते हैं और बच्चों को भी यही सिखाते हैं--मैं तेजी से उसके पीछे चल दिया
आगे-आगे वह लगड़ाती तेजी से भाग रही थी। उसे लग रहा था कि यदि वह मेरे हाथ आ गयी तो मैं जाने क्या कर डालूंगा पीछे-पीछे मैं भाग रहा था किन्तु नालों और कूड़े के ढेरों के कारण तेज नहीं दौड़ पा रहा थाआगे जो बस्ती शुरू हो रही थी, बस्ती कहां थी नालों के बीच में बने हुए टूटे-फूटे मकानों की श्रंखला शुरू हुई थी । जहां पर हमारी तरह जीवित प्राणी रहते अचानक वह एक मकान के अंदर चली गई--मैं उसके दरवाजे पर जैसे तैसे पहुचा और उसे आवाज देने वाला कि मेरा हाथ पैंट की जेब से टकराया। अरे रिसटवाच मेरी जेब में ही थी,फिर वह क्या चुरा कर भागी थी--मैंने दरवाजे से घर के अंदर झांक कर देखा, वह छोटी सी लड़की अपनी पोटली से पूड़ी निकाल रही थी । अम्मा तुझे भूख लगी थी ना । एक साहब ने मुझे ये पूड़ियां दी है। तुम भी तो भूखी थी ,मैं अकेले कैसे खा लेती, इसलिए भागकर लेकर आई हूं। दोनों एक दूसरे को खाना खिला रही थी, एक दूसरे की आंखों में आंसू टपक रहे थे। काश मानवता भरी अंजुरी इतनी बड़ी होती कि टपकते हुए अश्रुओं को मोती के मानिंद अपनी अंजुरी कैद कर पाते। । काश। मुझे अपने आप पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी कि गरीब होने के कारण बिना कुछ सोचे समझे उसे चोर बना दिया--शायद यही हमारी फितरत है। मेरी आंखों से दो बूंद आसूं टपक गये, शायद प्रायश्चित के थे - -