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Sudha Adesh

Abstract

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Sudha Adesh

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दम तोड़ती योग्यता

दम तोड़ती योग्यता

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प्रिंसीपल साहब हम अपने पुत्र दीपक को पूरी फीस देकर इस स्कूल में पढ़ा रहे हैं फिर भेदभाव क्यों ?’ अमित शंकर ने प्रिंसीपल की इजाजत पाकर सीट पर बैठते हुये कहा।

‘ मैं कुछ समझा नहीं...भेदभाव...कैसा भेदभाव...?’ प्रिंसीपल ने आश्चर्य से पूछा।

‘ आपकी नाक के नीचे ये सब हो रहा है और आपको पता ही नहीं है।’ व्यंग्य से अमित शंकर ने कहा।

‘ आप क्या कहना चाह रहे हैं, ठीक से कहिये...पहेलियाँ न बुझाइये।’ 

‘ मेरा बेटा दीपक क्रिकेट अच्छा खेलता है पर उसका स्कूल की क्रिकेट टीम में नाम नहीं है !! क्या केवल इसलिये कि वह दलित का बेटा है ?’ अमित शंकर की आवाज में क्रोध झलक रहा था।

‘ ऐसा कैसे हो सकता है ? मैं अभी खेल शिक्षक को बुलाकर पूछता हूँ।’ कहते हुये उन्होंने घंटी बजा दी।

चपरासी के आते ही उन्होंने उससे खेल शिक्षक अविनाश को बुलाने का आदेश दिया। अविनाश के आते ही प्रिंसीपल साहब ने कहा…

‘ दीपक के पिताजी अमितजी कह रहे हैं कि आप बच्चों के साथ भेदभाव करते है। दीपक क्रिकेट खेलने में अच्छा है पर आपने उसे स्कूल की क्रिकेट टीम में नहीं रखा।’

‘ दलित होने के कारण...’ अमित शंकर जोड़ा।

‘ सर, आरोप सरासर गलत है। दीपक से अच्छे अन्य बच्चे खेल रहे हैं। दीपक को भी मैं टफेनिंग दे रहा हूँ। अगर वह अच्छा खेलेगा तो उसे भी टीम में सम्मिलित कर लिया जायेगा। हम केवल योग्यता देखते हैं जाति नहीं...हमारे लिये सब बच्चे बराबर हैं आखिर हमें अपनी टीम को अव्वल बनाना है जिससे दूसरे स्कूलों के साथ खेलकर जीत हासिल कर सके। ’

‘ यह सच नहीं है...आपने मेरे बेटे को अच्छा खेलने के बावजूद केवल दलित होने के कारण स्कूल की टीम में नहीं लिया।’ अमित ने अविनाश की बातों को नकारते हुये कहा।

‘ यही सच है...अगर आपका यही मत है तो अगर प्रिंसीपल साहब आदेश दें तो कल पता लगाता हूँ कि इस स्कूल में कितने दलित छात्र हैं। उनकी एक अलग टीम बनाई जा सकती है जिससे किसी दलित बच्चे के माता-पिता को कोई शिकायत न हो। कम से कम क्रिकेट में तो आरक्षण नहीं होना चाहिये...योग्यता अभी तक सर्वोपरि रही है और होनी ही चाहिये। ’ कहते हुये अविनाश ने हाथ जोड़ दिये थे।

‘ मैं देख लूँगा...आपको और आपके स्कूल को भी...।’ कहते हुये अमित शंकर चले गये।

दूूसरे दिन सभी प्रमुख अखबारों की हैडलाइन थी...शहर के प्रतिष्ठत स्कूल में छात्रों के साथ भेदभाव...। पूरा वाकया पूरे जोर-शोर से छपा था। पन्द्रह दिन के अंदर ही न केवल दीपक को स्कूल की क्रिकेट टीप में शामिल कर लिया गया वरन् पिछले पाँच वर्षो से स्कूल का खेलों में अद्वितीय प्रदर्शन करने के बावजूद अविनाश को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। मैनेजमेंट कुछ नहीं कर पाया क्योंकि अमित शंकर के दलित कार्ड के आगे सभी विवश थे।


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