दिव्यांग महिला।

दिव्यांग महिला।

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"माफ कीजियेगा,अब ये कभी चल नही सकेगी। इनकी रीढ़ की हड्डी में चोट आई है जिसकी वजह से इनके शरीर का निचला हिस्सा बेजान हो गया है। "डॉक्टर ने बताया।

दीप्ति यह सुनकर चौंक गई। उसे यह यकीन नहीं हो रहा था कि अब वह कभी तैर भी नही पायेगी। वह एक राष्ट्रीय स्तर की तैराक थी। उसके अनेक स्वर्ण,रजत और कांस्य पदक इसकी पुष्टि कर रहे थे।

डॉक्टर ने उसे हिलने से मना किया था। वह अपने आप को काफी असहाय महसूस कर रही थी। कुछ समय तक वह समझ नहीं पाई कि उसे अब क्या करना चाहिए।

धीरे-धीरे उसका इलाज शुरू किया गया। उसे काफी तकलीफ होती थी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने तय किया कि वह अपना मुकाम दुबारा हासिल करेगी। उसने पैरा ओलंपिक में हिस्सा लिया। सब लोग कह रहे थे कि लड़की को घर में रखना चाहिए, लड़का होता तो इतनी चिंता की कोई बात नही होती। दीप्ति ने यह सोच लिया था कि वह अपनी जान लगा देगी लेकिन हारेगी नही। जब प्रतियोगिता शुरू हुई तो उसने अपने धड़ का प्रयोग किया तैरने के लिए। जैसे-जैसे प्रतियोगिता आगे बढ़ी,वैसे-वैसे उसका प्रदर्शन बेहतर होता गया। प्रतियोगिता के अंतिम चरण में वह जीत हासिल तो नहीं कर पाई लेकिन उसने अपनी खोई हुई पहचान,अपना आत्मविश्वास फिर हासिल कर ली। अब उसे गर्व था अपने दिव्यांग महिला खिलाड़ी होने पर।


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