Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

दिव्य शक्ति ..

दिव्य शक्ति ..

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दिव्य शक्ति ..कल बारहवीं का आखिरी पर्चा था। रात्रि सोने के पहले मैं, पानी का जग लेकर रसोई से लौट रहा था। तब बैठक कक्ष में टीवी चल रहा था। जैसा प्रायः होता था, दादी-दादा ने समाचार चैनल लगाया हुआ था। 

मुझे तब सुनाई पड़ा -

“17 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी निर्दयता से हत्या कर दी गई।“

17 साल पर मेरा विशेष ध्यान गया, यही मेरी उम्र थी। बिस्तर पर लेटकर नींद आने के पूर्व तक मैं, पढ़े गए अंतिम अध्याय का मनन करना चाहता था। 

मगर इस समाचार से व्यथित हो कर मन, मनन से, उचट गया और मेरे विचारों में वह मार डाली गई लड़की छा गई। मैं, स्वयं अपने से, कई प्रश्न-उत्तर करने लगा कि - 

क्या मेरी, यह उम्र मरने की है 

या 

एक सफल जीवन की बुनियाद रचने की है?

अगर मैं, इस दुर्भाग्यशाली लड़की की तरह यूँ मार डाला जाऊँ तो - मेरे दिवा स्वप्नों का क्या होगा, जिनमें मैं, स्वयं को एक आईएएस बन जाते देखा करता हूँ?

कौन होते हैं ये लड़के जो, मेरे तरह ऐसे दिवा स्वप्न नहीं देखा करते? कैसे वे, सफल व्यक्ति होने की जगह, बलात्कारी और हत्यारे हो जाते हैं?

उनमें कैसे, ऐसी और इस हद तक क्रूरता आ जाती है जिससे वे, किसी लड़की पर जबरदस्ती और उसकी हत्या तक, कर देते हैं?

अगर मैं, ऐसी घिनौनी वारदात करूँ और फिर फाँसी चढ़ाया जाऊँ तो क्या होगा मेरे मम्मी-पापा का? जिन्होंने हमेशा, खुद से ज्यादा, मेरी खुशियों का ध्यान रखा है और जो सपने, उनके अपने जीवन में, साकार नहीं हो सके, उन्हें वे, मेरे जीवन में साकार होते देखना चाहते हैं ?

नहीं नहीं! इस जगत में, किसी भी माँ-पिता का यह सपना तो हो ही नहीं सकता कि - उनका बेटा बड़ा होकर बलात्कारी और/या हत्यारा बने!

और ना ही किसी भी माँ-पिता को, यह सोचना तक पसंद होता होगा कि उनकी लाड़-दुलार से पाली-पोसी गई सुकोमल सी बेटी पर कभी, कोई बलात्कार और उसकी हत्या कर देता है। 

ओह! जब कोई माँ-पिता ऐसा नहीं चाहते हैं तो फिर कैसे, उनके बेटे, ऐसे दुष्ट बन जाते हैं? 

नहीं नहीं! मैं ऐसा, दुष्टों वाला काम करके अपने मम्मी-पापा का सिर लज्जा एवं कलंक से नीचा होते नहीं देख सकता। कभी भी मैं, फाँसी चढ़कर या दंडित हो कारावास जाकर, मुझे लेकर, उनके देखे जा रहे सपनों की हत्या नहीं कर सकता। 

इन सब विचारों से मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। तब मैं, उठकर वॉशरूम गया फिर वापिस आकर मैंने, एक गिलास जल पिया और बिस्तर पर जा लेटा।

मैं, अत्यंत दुःखद इस समाचार से, मन में उत्पन्न विषाद को मन से झटक कर, विषय मनन में ध्यान लगाने का प्रयास करने लगा। इस प्रयास में पता नहीं कब मेरी नींद लग गई। 

रात के गहराने के साथ साथ, मेरी निद्रा भी गहरी होती चली गई। फिर रात्रि के अंतिम पहर में, निद्रा हल्की होने लगी और सोने के पूर्व, रात्रि चले विचारों ने, मेरे अर्धचेतन मन में, एक स्वप्न स्वरूप खींच दिया। जिसमें मैं देख रहा था कि - 

रोज रोज लड़कियों, औरतों पर बलात्कार और हत्या के समाचारों ने मुझे ऐसा व्यथित किया कि मैंने, बारहवीं की परीक्षा दे देने के बाद एक दिन पापा के लेटर पेड पर कुछ पंक्तियॉं लिखी -

पूज्यनीय दादा-दादी, पापा एवं मम्मी, 

मन की शांति के लिए कुछ समय के लिए मैं, अज्ञात वास पर जा रहा हूँ। आप सभी चिंता नहीं कीजियेगा, परीक्षा परिणाम आने के पूर्व तक मैं, सकुशल वापिस आ जाऊँगा। मेरे बारे में कोई कुछ भी पूछे तो उन्हें यह बताइए कि मैं, अवकाश होने से, अपने मित्रों के साथ भ्रमण पर, केरल गया हूँ। मैंने, मम्मी के लॉकर से 5000 रूपये लिए हैं। जिनसे इस प्रवास में, मैं, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करूँगा। क्षमा याचना सहित। 

यह पत्र छोड़कर अगली सुबह, घर में किसी के जागने के पूर्व दबे पाँवों, एक पिट्टू बेग लेकर, मैंने घर छोड़ दिया। अगले दो दिनों में, मैंने कहीं ट्रेन में और कहीं बस में यात्रा की एवं मैं, केदारनाथ पहुँच गया। 

केदारनाथ में रहने का स्थान बनाने के पूर्व, मैंने अपने लिए दो जोड़ी गेरुवी लुंगी और कुरता, खरीद लिए। फिर एक सराय में रहने लगा। 

अगले दिनों में मेरी दिनचर्या सुबह ही स्नान आदि से निवृत्त होकर मंदिर जाने, वहाँ की भक्ति एवं धर्म विद्वान के सत्संग सुनने को हो गई। मैं, भोजन आदि, धर्मालुओं के द्वारा, वहाँ चलाये जाते किसी भंडारे या किसी भोजनालय में कर लिया करता। 

अपनी सुनी गई धर्म चर्चा पर मैं, प्रत्येक रात्रि सोने के पहले, मनन किया करता। जिसमें इस प्रश्न का उत्तर खोजता कि मुझे, यह मनुष्य जीवन, किस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिला है। 

ऐसे 15 दिन-रात तक यह क्रम चलता रहा। तब एक रात्रि मैं, निष्कर्ष पर पहुँच गया कि मेरा जीवन, मुझे, समाज में नारी की दशा में सुधार लाने एवं परिवार-समाज में, उन्हें आदर तथा पुरुष समान, उन्नति अवसर दिलाने के लिए, कार्य करने हेतु मिला है। 

उस रात्रि मैंने संकल्प लिया कि -

जीवन में, मैं, कभी भी किसी नारी के साथ छल नहीं करूँगा। यह भी कि कभी कोई भटकी (जो मेरी पत्नी नहीं) नारी, मुझमें रूचि ले या किसी लाचारी में अपना सर्वस्व मुझे सौंपने को तैयार भी हो, तब भी मैं, उसकी देह को भोगने की जगह उसे, उसके शील बनाये रखने की प्रेरणा दूँगा।     

साथ ही यह कि जितना मेरा सामर्थ्य होगा उस अनुसार मैं, किसी जरूरत मंद नारी की सुरक्षा, सम्मान और उसके भरण पोषण की व्यवस्था बनाने में उसकी सहायता करूँगा। 

यह भी कि जब भी, दुष्टों द्वारा छली जा रही किसी भी नारी का पता मुझे, मिलता है तो मैं, उसे, उनके चंगुल से मुक्त कराऊंगा

यह सब संभव हो सके इस हेतु मैं, शिक्षा उपरांत प्राइवेट डिटेक्टिव के रूप में कार्य करूँगा। ऐसा डिटेक्टिव होकर मैं, जीविकोपार्जन के लिए किसी व्यक्ति को सर्विस नहीं दूँगा। मैं, स्वप्रेरणा से यह कार्य उन प्रकरण की खोज खबर के लिए करूँगा, जिनमें कोई दुष्ट व्यक्ति नारी शोषण का अपराध करना चाहता या करता है। 

मैं, नारी अस्मिता पर संकट के लिए, दोषी व्यक्ति से धन वसूली किया करुंगा। यद्यपि चालू शब्दों में इसे ब्लैक मेलिंग करना कहा जाता है मगर मेरे उद्देश्य की पवित्रता की दृष्टि से, यह भयादोहन से अर्जित धन ना होकर मेरा पारिश्रमिक हुआ करेगा” 

यह सपना चल ही रहा था तभी मैंने सुना, मेरी मम्मी कह रहीं हैं - उठो बेटा छह बज गये हैं। नौ बजे से, आज तुम्हारी परीक्षा का अंतिम पेपर है। 

मम्मी की आवाज से, मेरी नींद खुल गई थी। जिसे देखना, मैं पसंद कर रहा था और शायद जो आगे भी जारी रहता, हो रही इस नई सुबह का यह मेरा, स्वप्न भंग हो गया था। 

किसी को मैंने इस सपने के बारे में, कुछ नहीं कहा। इस प्रातःकाल, पेपर देने के लिए जाने की तैयारी के बीच मै, सोच रहा था कि मुझे, यह स्वप्न यूँ ही नहीं आया है। अपितु इसे दिखाने के पीछे निश्चित ही कोई दिव्य शक्ति है …. 

(क्रमशः)


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