Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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दिव्य शक्ति (7) ..

दिव्य शक्ति (7) ..

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अनन्या को मैं, उसके बँगले के गेट पर छोड़ रहा था। तब उसने अंदर चल कर आंटी से मिल के जाने की बात कही थी। आंटी के मान के विचार से मैं, मना नहीं किया था। मुझे आया देख आंटी, बहुत खुश हुईं थीं। उन्होंने लंच के लिए बहुत आग्रह किया था। मैं पहली बार उनके घर आया था, उनके इस आग्रह का मैंने आदर किया। फिर हम तीनों ने, साथ लंच लिया था। 

लंच खत्म किये जाते ही आंटी का कोई कॉल आ गया था। अनन्या और मुझे बातें करने को कहते हुए वे, कॉल सुनने अलग कमरे में चलीं गईं थीं। 

अनन्या मुझे, लॉन में ले आई थी। वहाँ, लॉन चेयर्स पर हम बैठ गए थे। अब, तक अनन्या की बताई गई बातों पर मुझे क्या कहना है मैं, तय कर चुका था अतः यहाँ वार्तालाप, मैंने आरंभ किया। अनन्या से मैंने कहा - अनन्या, जैसा आपने बताया है कि

“दो वर्षों में आपका स्कूल लड़कियों के चाल चलन की दृष्टि से आदर्श सा हो गया है”, 

उससे मुझे, यह लगता है कि आपके साथ में कोई दिव्य शक्ति है। जिसके दिव्य प्रभाव से, आपके आस पास के बुरे लड़के-लड़कियों के आचरण भी अच्छे हो जाते हैं। मैंने, दिव्य शक्तियों के विषय में पढ़ा है कि उसके साथ होने पर, ऐसी शक्ति की चर्चा किसी अन्य से करने एवं अपने स्वार्थ वश किसी से छल करने पर वह, साथ छोड़कर चली जाती है। 

अतः मेरा परामर्श है कि आप, इस बारे में किसी से नहीं कहें। और ना ही स्वार्थ वश कभी किसी से कोई छल करें। आपके साथ दिव्य शक्ति का होना, आपके जीवन में आपसे, समाज भलाई के कार्य करवाएगा। (फिर प्रश्नात्मक स्वर में ) अनन्या, समझ रहीं हैं ना आप, मैं क्या कह रहा हूँ?

यह सब सुनते ही अनन्या चौंक गई थी वह बोली - ओह, मैंने कॉलेज से वापिस आते हुए अपने जिस सपने वाली बात आप से कही थी। उस सपने के अंत में अभी जो आप कह रहे हैं लगभग ऐसे ही शब्द आपने, मुझसे कहे थे। 

कल का मेरा सपना और आज आप का वैसा ही कहना मुझे, साधारण संयोग नहीं लग रहा है। मुझे, निश्चित ही लगता है कि आप के बताये अनुसार, ऐसी कोई दिव्य शक्ति मेरे साथ है। 

फिर अचानक वह अपनी कुर्सी से उठी और मेरे पास आकर मुझसे बोली - आप, मुझसे आँख मिलाइये तो जरा? 

अनन्या के अचानक ऐसा करने से, यह सोचकर मैं, सकपका गया कि अनन्या आखिर चाहती क्या है? फिर यही प्रश्न लिए मेरी आँखें, उसकी आँखों से मिल गई थीं। 

तब अनन्या अत्यंत ही आवेशित स्वर में कह उठी - 

देखिये, देखिये तो, हमारी आँखों से जो इंद्रधनुषी किरणों का आदान प्रदान हो रहा है। उस में, किरणें पहले आपकी आँखों से उत्सर्जित हो रही हैं। जो मेरी आँखों में प्रविष्ट होने के बाद तब, मेरी आँखों से निकल कर आपकी आँखों में पहुँच रही हैं। 

मुझे लगता है जो आप, मुझमें बता रहे हैं वैसी दिव्य शक्ति आप में, मुझसे अधिक प्रखरता में है। 

अनन्या का आईक्यू बहुत अच्छा था वह, तीव्रता से तथ्य जान ले रही थी। मैंने तब कहा - 

अनन्या, मैंने आपको बताया है ना कि शक्ति की चर्चा करने से, उसके साथ छोड़ने का खतरा होता है।

अनन्या ने सिर हिलाया फिर वापस अपनी सीट ग्रहण की। वह मेरी बात में साइलेंट “हाँ”, मेरे बिना कहे समझ गई थी। अब उसने कहा - 

आपने, एक और बात मुझे बताई है कि स्वार्थ में पड़ने से भी यह शक्ति, साथ छोड़ सकती है। इससे मुझे एक बात का डर लग रहा है। 

मैंने पूछा - किस बात का?

अनन्या ने बताया - मैं, उस एक्सीडेंट के बाद, आपके बारे में मम्मी-पापा से सुनने पर, तभी से अपने हृदय में आपके लिए प्यार अनुभव करने लगी हूँ। कहीं ऐसे में यह शक्ति मुझसे, रूठ तो नहीं जायेगी?

यह सुनकर मैं, हतप्रभ हुआ कि किस सहजता से अनन्या ने अपना, मुझसे प्यार होना बता दिया है। मैंने उससे कहा - 

अनन्या प्यार का होना तो अत्यंत निर्मल भाव है। देखो ना, ईश्वर तो सभी प्राणियों के लिए प्यार रखते हैं। प्यार होने से आप के साथ रहने वाली शक्ति, आपसे रूठेगी नहीं। जब तक कि इसमें, कोई छल या आपकी, अपनी अपेक्षा नहीं जुड़ जायेगी। 

अनन्या कम बताओ ज्यादा समझ लेने वाली लड़की थी। मेरे उत्तर से उसने समझ लिया कि उसका प्यार एकतरफा नहीं है। उसने प्रत्युत्तर में कहा - 

मैं, समझ गई आप मुझे, अपने इस प्यार को, ऐसे ही रखने की कह रहे हैं जैसे, आप मुझसे निरपेक्ष रुप से प्यार करते हैं। 

अब मेरा उससे ना या हाँ कहना औचित्यहीन था। मैंने, एक मधुर मुस्कान के साथ विदा ली थी। अनन्या भी ऐसे ही मुस्कुराई थी। अब उसके मुख पर उसके आत्मविश्वास में वृद्धि साफ़ परिलक्षित थी। 

फिर कॉलेज का नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हुआ था। अनन्या गर्ल्स हॉस्टल में आ गई थी। वह कभी कभी मुझ से, कॉलेज कैंपस में कहीं कहीं मिलने आया करती थी। कॉलेज में मेरे साथ दिव्य शक्ति होने से, पहले ही छात्रों में आदर्श चरित्र का वातावरण बना हुआ था। अनन्या के भी आ जाने से, नए आये विद्यार्थियों में द्विगुणा तेजी से, यह अच्छाई आने लगी थी। 

अतः मुझे, हम दोनों के साथ होने पर, दिव्य शक्ति का हममें, पहले से अधिक शक्तिशाली रूप में होना, प्रतीत हो रहा था। 

ऐसे में नवरात्रि पर्व आ गए। पढ़ाई एवं क्लासेज के साथ साथ मैंने, डिटेक्टिव तौर पर शहर घूमा था। मुझे सूचनायें मिली थीं कि बहुत से ऐसे लोग, जिनकी श्रद्धा धर्म तथा देवी माँ में कम (या नहीं) है, वे भी माता रानी की भक्ति में आयोजित गरबा कार्यक्रम में, फ्लिर्टिंग के लक्ष्य से भाग लेने वाले हैं। 

तब मैंने, दिव्य शक्ति के अधिक शक्तिशाली रूप के, अपने विचार की पुष्टि के लिए, एक योजना तय की। नवरात्रि की पूर्व संध्या पर, अनन्या, मुझसे मिली तो मैंने, उससे रोज रात्रि आयोजित होने वाले गरबा में साथ हिस्सा लेने का प्रस्ताव किया। अनन्या ने निःसंकोच उसे मान लिया। 

उसी रात्रि हमने, गरबा परिधान के कुछ जोड़े खरीदे। अगली रात्रि हम, डांडिया लेकर हजार से अधिक जोड़ों के बीच गरबा डांडिया कर रहे थे। नृत्य करते हुए, हम देख रहे थे कि हमारी आँखें, जब जब मिलती तब तब इंद्रधनुषी किरणें हम दोनों की आँखों से निकल कर स्क्वायर (वर्गाकार क्षेत्र में) होकर, पूरे स्थल में प्रसारित हो रही थी। 

यह देखना मेरे लिए सुखद आश्चर्य का विषय था। इसके पूर्व जब मैं, अकेला था और किसी की बुरी दृष्टि वाले की आंखों में देखा करता तब ये किरणें पंक्तियों में (लीनियर) उसकी आँखों में प्रविष्ट होती थीं। अर्थात तब का नेत्र उपचार, वन टू वन होता था। 

मगर अनन्या एवं मेरी दृष्टि के मिलने से अब किरणें, स्क्वायर हो रही थीं। जो वहाँ वर्गाकार क्षेत्र में फ़ैल कर एक साथ अनेकों की आँखों में प्रविष्ट होकर उनकी अनैतिक तथा अति कामुक वासना के जाले को साफ़ कर रहीं थीं। वहाँ बार बार चमक जाती इंद्रधनुषी किरणें, हमें पता थी कि हमसे उत्सर्जित हैं। जबकि लोगों को ऐसा, डेकोरेटिव लाइटिंग के कारण होता लग रहा था। 

ऐसे इन इंद्रधनुषी किरणों ने अपना काम कर दिखाया था। तुरंत ही जोड़ों के आचरण में निर्मलता देखने मिलने लगी थी। बहुत से लड़के जो बिना श्रद्धा लड़कियों से फ़्लर्ट करने वहाँ आये थे। इन इंद्रधनुषी किरणों के प्रभाव से सुधर कर गरबा छोड़, चले जा रहे थे। ऐसा नौ दिनों, हमने किया था। हमें इसका व्यापक अच्छा प्रभाव देखने मिला था। 

शहर के बहुत से बुरे लड़कों के संस्कार ठीक हो गए थे। शहर में अचानक ही लड़कियों, युवतियों आदि को लेकर अपराध में कमी आने लग गई थी। समाचारों में इसे, इस नवरात्रि का अच्छा परिणाम निरूपित किया गया था। अनन्या और मैं, अपनी इस सफलता को समझ रहे थे। मगर हमने आपस की बातों में भी, यह चर्चा नहीं की थी। 

अब मुझे सुनिश्चित हो गया कि दिव्य-शक्ति, अनन्या और मुझे साथ रख हमारे माध्यम से, राष्ट्रीय स्तर पर, बड़े समाज की रीति नीति सुधार देगी। इस सफलता से हम दोनों अभिभूत थे। 

मेरा यह मानना था कि हमारे समाज का बड़ा वर्ग, सिने सेलिब्रिटी को फॉलो करता है। 

और, 

यदि इन सेलिब्रिटी की आँखों से अनैतिक वासना का ज्वाला साफ़ किया जाये तो समाज में सुखद अच्छे परिणाम शीघ्रता से देखने मिल सकते हैं।  

इस तथ्य के ध्यान आने पर, मेरे जननक्षम दिमाग में एक योजना आई कि वार्षिक सिने पुरस्कार समारोह में जिसमें, अनेक सेलिब्रिटी एक साथ उपस्थित होते हैं उसमें, किसी तरह अनन्या एवं मैं साथ जायें। फिर गरबा में हमसे उत्सर्जित तरह की रेनबो स्क्वायर रेज़ से, एक साथ अनेकों की नेत्र दृष्टि का उपचार करें। 

मगर 

मेरी समस्या यह थी कि उस समारोह में हमें, प्रवेश कैसे मिले। तब, अपनी योजना एवं समस्या मैंने, अनन्या को बताई। 

इस पर अनन्या ने कहा - मेरे पापा (डॉ. देसाई) के एक मित्र, बड़े फिल्म निर्माता हैं। उनसे, कार्यक्रम के दो फ्री पास की कोशिश की जा सकती है। 

मैंने कहा - अनन्या, इस कार्यक्रम को लेकर अपना क्रेज़ दिखाते हुए, पापा से दो फ्री पास के लिए कहो। 

फिर अनन्या ने ऐसा ही किया। भाग्य हमारे साथ था। वार्षिक सिने पुरस्कार वाले दिन के पहले हमें दो पास आ गए थे। कार्यक्रम में हम दोनों, पूरे समय उपस्थित रहे थे। वहाँ साथ बैठे हमने, अपनी आँखे अनेकों बार, चार की थी। जिस से अनेकों बार पूरे स्थल में इंद्रधनुषी किरणें फैली थीं। इस समारोह के कवरेज के लिए अनेकों न्यूज़ मीडिया के लोग भी थे। सभी रेनबो रेज़ में एक्सपोज़ हुए थे। 

फिर हम वापिस आ गये थे। कार्यक्रम की रिपोर्टिंग इस बार गरिमा पूर्ण ढंग से हुई। सिने लोगों की चर्चायें, उनके लिव इन रिलेशन या एकाधिक प्रेम प्रसंगों के चटकारे लेकर और उन्हें महिमामंडित किये जाने वाले फूहड़ अंदाज में होनी बंद हुईं। 

वहाँ के लोगों में जो लिव इन रिलेशन में रह रहे थे, उन्होंने विवाह कर लिए। वहाँ विवाहेत्तर संबंधों के सिलसिलों पर विराम लगने लगा। वहाँ बहुत से कास्टिंग काउच एक्सपोज़ हुए। कुछ पर केस चले, उन्हें सजा भी मिली। 

सब में बड़ी उपलब्धि तब मूवीज की थीम सामाजिक प्रेरणा को देने वाली हो गई। 

मूवीज में से हत्या, बलात्कार, उन्मुक्त प्रणय दृश्य, फूहड़ डायलॉग्स-गाने तथा गालियों के दृश्य को विराम लग गया। संक्षेप में कहें तो मूवीज ऐसी बनने लगीं जिनसे संस्कृति, शालीन-शिष्टाचार, अनुशासन तथा गरिमा युक्त सौहार्द व्यवहार की प्रेरणा का प्रसारण होता था। 

दर्शक अब, मूवी देखते तो उन्हें, उसमें से अपराध करने के नए नए ढंग नहीं सूझा करते बल्कि आदर्श में जीने के विचार मिलते थे। 

यह सुधार अचानक उस रात के इवेंट से कैसे ट्रिगर हो सका, यह कोई नहीं जानता था। सिर्फ अनन्या और मैं, इसे जान रहे थे और अत्यंत प्रसन्न हो रहे थे ..     

(क्रमशः)



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