Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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दिव्य शक्ति (5)

दिव्य शक्ति (5)

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प्रश्न उठा था - यदि, नारी के बिगाड़ के लिए पुरुष दोषी है तो पुरुष के बिगाड़ का दोषी कौन है ?

मुझे, मेरे तार्किक दिमाग ने इस प्रश्न का उत्तर दिया - 

“लड़के या पुरुष के चरित्र बिगाड़ की दोषी, हमारी समाज की वह सोच एवं अन्याय की संस्कृति है, जो वर्जित संबंध में पुरुष एवं नारी दोनों की लिप्तता के सच को जानते हुए भी, चरित्रहीन का (कलंक) टैग, सिर्फ नारी पर लगाती है। 

यह पक्षपाती दृष्टि, पुरुष के दोष को हल्का करके देखती है। जिसके कारण मर्यादाहीन ऐसे काम, पुरुष के जीवन में कोई विषम प्रभाव उत्पन्न नहीं करते हैं। ऐसी शह, किसी पुरुष को निर्लज्ज बनाती है। उसके आचरण कर्म और व्यवहार अति स्वच्छंद हो जाते हैं। 

समाज संस्कृति के इन दोहरे मापदंड के कारण, बिगाड़ की पहल पुरुष करता है। वह, अपने बहकावे से नारी को इसमें भागीदार बनाता है। फिर पुरुष से कम दोषी होते हुए भी नारी, पक्षपाती दृष्टि के कारण अभिशप्त सा जीवन जीने के लिए विवश होती है। पुरुष चरित्रहीन होते हुए भी मर्दानगी के दंभ में जीता है।” 

मुझे दिव्य शक्ति का साथ मिला था। मैं, स्वयं से प्रश्न कर रहा था कि क्या मैं ऐसा पक्षपात खत्म कर सकता हूँ ? क्या मैं, समाज से वर्जित संबंध का होना खत्म कर सकता हूँ ?    

मेरे मन में ऐसी कशमकश चलती रही थी। इसके साथ ही, पढ़ने एवं डिटेक्टिव की तरह, व्यस्त रहते हुए मेरे, 2 सेमेस्टर का समय पंख लगा कर उड़ गया था। 

इस समय की उपलब्धि यह रही की दिव्य शक्ति ने मुझे माध्यम बनाकर अद्भुत कार्य कर दिखाया था। हमारे मेडिकल कॉलेज का वातावरण लड़के-लड़कियों के चरित्र निर्माण की दृष्टि से आदर्श हो गया था। 

यहाँ, अब जिन भी जोड़े में प्रेम होता वे एक दूसरे के प्रति निष्ठावान होते। लड़के या लड़की का कई के साथ फ़्लर्ट करना, यहाँ इतिहास की बात हो गई थी। 

मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि सच्चरित्र (भविष्य के) ये डॉ., अपने अपने अस्पताल एवं क्लीनिक में मरीजों की आदर्श सेवा, सुनिश्चित करेंगे। इन डॉ. के अधीनस्थ नर्स या उपचार के लिए आने वाली अकेली भी कोई युवती, अपनी अस्मिता पर कोई खतरा अनुभव ना करेगी। अर्थात इन चिकित्सक से नर्स या रोगी स्त्री, मर्यादा हीनता के खतरे से निश्चिंत रह सकेगी। 

यही नहीं, हमारे कॉलेज से शिक्षा (उपाधि) पूरी करने वाले डॉक्टर, अपनी अपनी सोसाइटी में, अपने स्पाउस के प्रति एकनिष्ठ रहेंगे। वे सोसाइटी में, अन्य लोगों के लिए एक, अनुकरणीय उदाहरण सिद्ध होंगे।

अपने नए दिवास्वप्न में मैं, खुश रहने लगा था। मैं, आशावादी ही नहीं महत्वाकांक्षी भी हो गया था। ऐसी मनःस्थिति के साथ दूसरे सेमेस्टर की समाप्ति पर मैं, अवकाश में घर आया हुआ था। वहीं रहते, मेरे सेमेस्टर का रिजल्ट आया था।

 मैं इस बात से अनभिज्ञ था कि आयुषी एवं अनन्या में बहुत अच्छी मित्रता हो गई है। आज कहीं, आयुषी एवं अनन्या की भेंट हुई थी। आयुषी ने, अनन्या को मेरे रिजल्ट की बात कह दी थी। 

संध्या के समय, मेरे व्हाट्सअप पर आंटी का बधाई संदेश आया। मैंने मैसेज में उनका धन्यवाद किया एवं पूछा - आपको, यह कैसे पता हुआ ?  

तब उन्होंने, आयुषी के माध्यम से अनन्या को पता होने की बात लिखी थी। तब मैंने, उन्हें, स्माइली एवं हाथ जोड़ने की इमोजी रिप्लाई किये थे। 

शायद कोई और होता तो अपनी छोटी बहन की चोटी खींचकर, ऐसी बात फैलाने को मना करता मगर मैंने, ऐसा नहीं किया था। ना जाने क्यों, अनन्या को लेकर मुझे, किसी से भी बात करने में संकोच, अनुभव हुआ करता था। 

आज के आंटी के मैसेज ने, पिछली दीपावली पर क्लिक की आयुषी एवं अनन्या की फोटो, मेरे सामने कर दी थी। प्रकट में मुझे, इन्हें देख कर, कोई विशेष अनुभूति नहीं हुई थी। मगर मेरे अंतर्मन ने, इन फोटो की झलक विशेष तरह से ग्रहण की थी। 

उस रात मैं सोया था। रात के अंतिम पहर में, मेरी हल्की नींद वाली अर्धचेतन अवस्था में मेरे, अंतर्मन ने आयुषी-अनन्या की छवि लेकर, एक सपने का आरंभ कर दिया था। मैं सपने में देखने लगा था कि -

15 वर्ष की समवयस्क आयुषी-अनन्या, साथ बैडमिंटन खेल रही हैं। उन्हें यूँ हँसी ख़ुशी खेलते देख, मैं सोच रहा था कि ऐसी ही इनकी हँसी-ख़ुशी पूरे जीवन बने रहे। 

इस विचार के साथ ही मुझे, चिंता ने घेर लिया था। मेरी आँखों के सामने उनका खेल चल रहा था मगर मुझे, वह दिखना बंद हो गया था। मेरे ज्ञान चक्षु कुछ और देखने लगे थे। मुझे दिखाई देने लगा कि दो विभिन्न परिवारों में ये बेटियाँ, अब 15 वर्ष की इसलिए हो सकी हैं क्यों कि -

इन्हें, इनके माता पिता ने गर्भ में रहने के समय, भ्रूण लिंग परीक्षण करवा कर गिरवा नहीं दिया था। 

ये अपने अपने परिवार में अकेली बेटियां थीं। इन्होंने, उस परिवार में जन्म नहीं लिया था जिसमें दुर्भाग्य से, एक के बाद एक चार-पाँच बेटी जन्म जाती हैं। तब समाज में मिलते तानों से बेटियों की माँ, इतनी व्यथित एवं अवसादग्रस्त हो जाती है कि किसी रात पहले, अपनी सभी बेटियों को गुपचुप रूप से कुएं में फेंकती है। पीछे फिर स्वयं कुएं में छलांग लगा कर सबकी इहलीला समाप्त कर देती है। 

या, ये बेटियाँ ऐसे पिता की संतान नहीं जो दारू के नशे में, अपनी बेटियों की गर्दन मरोड़ कर हत्या कर, खुद जेल चला जाता है। 

ये वे दुर्भाग्यशाली लड़कियाँ भी नहीं हैं, जो अबोध उम्र में ही किन्हीं कामांध पुरुष द्वारा उठाकर ले जाई जाती हैं। फिर जिन पर वह वहशी, अपनी वासना का घिनौना खेल खेलता है। अंत में उनकी हत्या कर देता है। 

इनके मुखड़ों की सुंदरता अभी इसलिए बनी हुई है कि ये, अपने संतान दायित्व अनुभव करने वाले पालकों के द्वारा, सुरक्षित साधनों से स्कूल, बाजार इत्यादि जगह भेजी जाती हैं। जिससे कोई सिरफिरा लड़का इनके पीछे नहीं पड़ पाता है। ऐसे में ये, किसी लड़के के द्वारा एकतरफा सपनों की रानी नहीं बना ली जाती हैं। फिर यथार्थ में, रानी ना बना सकने की चिढ में वे लड़के, इन पर एसिड अटैक करके इनका चेहरा बिगाड़ नहीं देते हैं। 

भाग्यवश ये ऐसी किशोरियां भी हैं। जो अपने कथित बॉयफ्रेंड के साथ होटल-बार-पब की पार्टियों में नहीं जाती हैं। इस कारण से किसी को, इन्हें ड्रग्स एवं ड्रिंक्स के नशे में धुत्त कर इनसे छलपूर्वक, इनके कौमार्य भंग करने का मौका नहीं मिलता है।

 आशा करना चाहिए कि ये, वैसी दुर्भाग्यशाली लड़की भी नहीं बनेगी जो ग्लैमर की दुनिया में अपना भविष्य तलाशने जाती हैं। फिर किसी कास्टिंग काउच की हवस का शिकार हो जाती हैं। जिनमें से कुछ दुर्भाग्यशाली, किसी दिन अपने फ्लैट या किसी होटल की दसवीं, बीसवीं मंजिल से गिरकर सड़क पर खून से लथपथ मृत मिलती हैं। 

आशा करना चाहिए कि इनका विवाह किसी दहेज लोलुप परिवार में नहीं होगा जिसमें बहुएं ससुराल द्वारा वांछित दहेज के साथ नहीं आने के कारण मार डाली जाती हैं। 

आशा करना चाहिए कि इनके विवाह ऐसे किसी अय्याश पुरुष से नहीं होंगे जो किसी दिन अन्य नवयौवनाओं से विवाह की चाह में हत्या कर के पत्नी को राह से हटा देते हैं।         

सपने के बीच यह सब देखते हुए मुझे बेचैनी अनुभव हुई थी। मैंने करवट बदली थी। सपना जारी था। 

मैं प्रतिज्ञा कर रहा था कि मै इन आशंकाओं पर ही नहीं अपितु अन्य संभावनाओं पर भी जिनमें, किसी लड़की/युवती/महिला की अस्मिता या प्राणों पर संकट होता है, को ध्यान में रख समाज रीति नीति बदलने पर काम करूँगा। 

हमारे देश में 1000 पुरुष पर नारी संख्या 890 रह गई है। नारी के जीवन पर खतरों का एक कारण, पुरुषों की तुलना में नारी संख्या का इतना कम हो जाना है। यह, पुरुष द्वारा नित किये जा रहे दुराचार का बड़ा कारण भी है। 

मैं, ये सभी समाज आशंका खत्म करने के लिए नारी-पुरुष के लिए एक मापदंड के लिए कार्य करूंगा। शायद दिव्य शक्ति इन कार्य को मेरे हाथों संपन्न कराने के लिए मेरे साथ है। 

फिर मम्मी द्वारा, मुझे जगाने के लिए दी गई आवाज ने मेरी निद्रा और मेरा स्वप्न भंग किया था। 

बाद में उस दिन दोपहर, मैं सोच रहा था कि सपने के माध्यम से कदाचित मेरे जीवन का एजेंडा तय करने के लिए दिव्य शक्ति ने नारी पर विद्यमान समाज आशंकाओं के दर्शन मुझे कराये हैं। 

फिर यह सोचकर मेरे तन में एक झुरझुरी दौड़ी कि अभी तो मेरा काम सिर्फ अपने कॉलेज तक सीमित रहा है। इतने विशाल देश में, मैं अकेला कैसे समाज सुधार सुनिश्चित कर पाउँगा। 

फिर मुझे लगा कि जैसे दिव्य शक्ति, मुझसे कह रही है - क्यों निरर्थक परेशान हो रहे हो। मैं हूँ ना तुम्हारे साथ! मेरे होने से, समय के साथ तुम क्रमशः अपनी क्षमताओं में गुणात्मक प्रखरता देखोगे। 

मुझे यह दिव्य शक्ति ही बता रही थी या नहीं ? इसका उत्तर तो भविष्य के गर्भ में था। मगर यह विचार मुझमें आशा का संचार कर गया था। 

उस दिन दोपहर एक सरप्राइज हुआ था। आंटी और अनन्या हमारे घर आई थीं। आंटी, मम्मी को बता रही थीं - 

अनन्या भी, अपने पापा की तरह डॉ. बनने के लिए ग्यारहवीं की पढ़ाई के साथ ही, मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही है। 

मम्मी ने आयुषी को भेज कर तब, मुझे बुलाया था। फिर मेरी तरफ इशारा करते हुए, अनन्या से कहा - 

अनन्या, इस संबंध में कोई मार्गदर्शन चाहिए तो इस से, ले सकती हो। पिछले वर्ष, इस ने यह परीक्षा पास की थी। 

अनन्या ने इस बात पर मुझे देखा था। पहली बार अनन्या एवं मेरी आँखें मिली थीं। 

तब मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ था कि मेरी आँखों से इंद्रधनुषी किरण उत्सर्जित होकर, अनन्या की आँखों में प्रविष्ट हुई है। इससे अधिक विस्मयकारी मेरा यह देखना था कि अनन्या की आँखों से भी वापिस ये किरणें निकली थीं जो मेरी आँखों में प्रविष्ट हो गई थीं। ऐसा दो तरफा किरणों का आना जाना मैंने पहली बार देखा था। 

अपने शर्मीलेपन के कारण, मैं अनन्या से पूछ नहीं सका था कि उसने, इन किरणों का आना जाना देखा है या नहीं ?

दिव्य शक्ति क्या संकेत कर रही है, यह मैं समझ नहीं पाया था। मैं  

इन विचारों में खोया था तभी मैंने, अनन्या को हाथ जोड़ते देखा, फिर उसे कहते सुना -

जी, इनका मार्गदर्शन मुझे चाहिए होगा ….        

(क्रमशः)


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