Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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दिव्य शक्ति (2) ..

दिव्य शक्ति (2) ..

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परीक्षा देने जाने निकला तो और ऐसे दिनों कि तरह मैं, विषय मनन नहीं कर रहा था। मन में मेरे दो स्वप्नों पर, विचार मंथन चल रहा था। 

एक मेरा दिवा स्वप्न, जिसमें मैं, आगे के जीवन में स्वयं को आईएएस हुआ, देखा करता था। 

दूसरा - रात बल्कि यह कहें कि इस सुबह देखा मेरा स्वप्न, जिसमें मुझे, प्राइवेट डिटेक्टिव होने में, अपने जीवन का लक्ष्य दिखाई दे रहा था। 

जी हाँ, मेरे जीवन का नया लक्ष्य - इन रोज रोज की दुःखद खबरों के कटु क्रम को रोक देने का था। 

हम नित दिन ही कभी, लड़कियों के बलात्कार की, कभी उसके बाद हत्या की एवं कहीं एसिड अटैक की शिकार होने के समाचार सुन-पढ़ रहे थे। यही नहीं कई युवतियाँ, हमारे आस पास ही मौजूद अय्याश लोगों की वासना पूर्ति के लिए सेक्स रैकेट में फँस रही थीं। 

यह सब तब हो रहा था जब हमें यह तथ्य भली-भाँति पता था कि हमारे समाज में, सभी परिवार के सम्मान में सर्वोपरि बात, परिवार की नारी सदस्याओं की अस्मिता एवं चरित्र का बने रहना है। 

इस द्वंद में, आईएएस होने के मेरे दिवास्वप्न पर, अब नारी दशा सुधार के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाला सपना, मुझ पर हावी हो रहा था। 

इन विचारों में खोया मैं, परीक्षा केंद्र तक पहुँच गया था। 

मैंने परीक्षा पेपर बहुत अच्छा हल किया था। इससे मुझे, 95% से ज्यादा अंक की आशा हो गई थी। 

परीक्षा खत्म होने के अगले दिन से ही मैंने, पापा से कार सिखाने की इच्छा बताई थी। मैं, अभी 18 का नहीं हुआ होने से मेरा लर्निंग लाइसेंस नहीं हो सकता था। अतः कम ट्रैफिक वाली जगहों में पापा ने मुझे, कार चालन सिखाना आरंभ कर दिया। 

चौथे दिन रविवार था। पापा बाहर गाँव गए थे। मैंने, मम्मी से जिद की थी फिर, सुबह अकेले ही कार लेकर उस सड़क पर पहुँच गया था, जिस पर प्रमुख रूप से स्कूल/कॉलेज स्थित हैं। 

रविवार होने से वहाँ सड़क पर, यदा कदा ही कोई वाहन या लोग चलते मिल रहे थे। अतः यह मेरे अभ्यास का अच्छा अवसर था। उस समय मैं, कार रोक कर डैशबोर्ड पर विभिन्न स्विच आदि के फँक्शन देख रहा था। 

तब सामने मोड़ पर, एक गाय के अचानक सामने आ जने से, स्कूटी पर आ रही लड़की का, हड़बड़ाहट में स्कूटी पर नियंत्रण नहीं रह गया था। लग रहा था कि उसने, अभ्यास की कमी होने से, ब्रेक की जगह क्लच पर हाथ कस दिया था। इससे स्कूटी के चक्के स्लिप हुए थे। लड़की, सड़क पर गिर गई थी। 

मैंने, यह सब होता देखा था। तब, उसकी सहायता की दृष्टि से मैंने, कार स्टार्ट की एवं गिरी हुई लड़की के साइड में ले जाकर रोकी थी। सड़क पर पास में कोई नहीं था। मैं, कार से उतरा तो देखा कि लड़की के शरीर में, कोई हलचल नहीं है। उसके सिर से खून बह रहा था। घाव उसे, पत्थर पर गिरने से लगा था। लड़की, अचेत हो गई थी। 

मैंने, कार में देखा तो उसमें, मम्मी का एक स्कार्फ मुझे मिला। मैंने शीघ्रता से यह स्कार्फ, लड़की के घाव पर कस कर बाँध दिया। फिर लड़की की स्कूटी किनारे खड़ी कर लॉक की थी। मैंने, लड़की को उठा कर, कार की पिछली सीट पर लिटा दिया। सड़क पर पड़ा उसका मोबाइल फ़ोन भी भी उठा लिया एवं फिर कार, इंटरनेशनल हॉस्पिटल की दिशा में दौड़ा दी थी। 

मैंने, हॉस्पिटल की कार पार्किंग में कार खड़ी की थी। फिर, दौड़ कर वहाँ स्टाफ को इमरजेंसी बताई थी। स्ट्रेचर पर लड़की को, आपात चिकित्सा कक्ष में ले जाया गया था। वहाँ उपलब्ध डॉक्टर के चेहरे पर, लड़की की हालत देखते ही, अत्यंत चिंता के भाव दिखे थे। उन्होंने लड़की की जाँच आरंभ कर दी थी। उनके कहने पर मैंने, ओपीडी काउंटर की औपचारिकतायें पूर्ण की थी। 


तब, लड़की के मोबाइल पर रिंग आई थी। मेरे द्वारा, रिसीव करते ही, दूसरी तरफ से आवाज आई - अनन्या, कहाँ हो तुम, कितनी देर हो गई। आ जाओ अब। स्कूटी अब, कल चला लेना। 

मैंने, इतने से ही पूरी बात समझ ली थी। मैंने रिप्लाई में कहा - आन्टी, अनन्या स्कूटी से गिर गई है। उसे, मैं इंटरनेशनल हॉस्पिटल ले आया हूँ। आप जितनी जल्दी हो यहाँ आ जाइये। वैसे आप चिंता नहीं कीजिये, मैंने हॉस्पिटल का आरंभिक शुल्क भुगतान कर दिया है और अनन्या का उपचार आरंभ हो चुका है। 

तब आंटी ने अत्यंत चिंता में कहा - बेटे, इंटरनेशनल हॉस्पिटल में ही अनन्या के पापा, डॉ देसाई हैं। तुम उनसे मिलो। यह सब उन्हें बताओ। कुछ देर में, मैं भी वहाँ आ रही हूँ। 

फिर उन्होंने फोन काट दिया। मैंने पूछताछ की तो पता चला कि डॉ देसाई न्यूरो सर्जन हैं। वे, इस समय एक इमरजेंसी पैशेंट की जाँच में व्यस्त हैं। 

मैं, ओपीडी में वापिस आया वहाँ पता चला कि अनन्या अभी, डॉ देसाई की जाँच में है। 

इससे मुझे संतोष हुआ कि अनन्या अब, एक कुशल डॉ की जांच के साथ ही, अपने पापा के भी पास है। अब हॉस्पिटल शुल्क एवं दवाओं की चिंता से मैंने, स्वयं को मुक्त पाया था। 

मैं, प्रतीक्षा कक्ष में बैठकर, डॉ देसाई के फ्री होने की प्रतीक्षा करने लगा। तब अचंभित हुआ मैं, स्वयं से प्रश्न कर रहा था कि मुझे, कार चलानी तो ठीक तरह आती नहीं थी। यह कैसे मुझसे हो गया कि मैं, शहर के ट्रैफिक में 8 किमी बिना बाधा यूँ, कार चला लाया? 

उस रात्रि के स्वप्न और आज ऐसे कार चला लेने से मुझे लगा कि कभी कभी, मेरे साथ कोई दिव्य शक्ति हो जाती है। जिससे, चमत्कारी तरह की ये कुछ बातें, मेरे साथ हो रही हैं। 

मैं विचारों में खोया बैठा था कि लगभग 15 मिनट बाद मुझे, ढूँढ़ते एक अस्पताल कर्मी आया, उसने कहा आप आइये, डॉ देसाई ने, आपको बुलाया है। 

मैं, डॉ देसाई के कक्ष में पहुँचा तो उन्होंने अपनी कुर्सी से उठकर, स्नेह से मुझे गले लगाते हुए कहा - 

अनन्या को, अगर तुरंत ही अस्पताल नहीं लाया जाता तो उसके जीवन पर खतरा हो जाता। मैं, अनन्या का, डॉ. ही नहीं अपितु उसका पापा भी हूँ। मुझे समझ नहीं आ रहा कि कैसे मैं, तुम्हारा आभार व्यक्त करूं। तुम्हारे द्वारा, अनन्या को, समय पर यहाँ लाया जाना, हम सभी पर तुम्हारा महान उपकार है। 

इस पर मैं, कुछ कह पाता उसके पहले, लगभग 40 वय की एक महिला, बदहवास सी कमरे में आईं। डॉ. के व्यवहार से, मैं समझ गया कि ये, अनन्या की मम्मी हैं। डॉ. ने उन्हें बताया -

यही हैं, जो अनन्या को शीघ्रता से अस्पताल लाये हैं। जिससे, अनन्या के जीवन पर बन गए खतरे को समय रहते दूर किया जा सका है। 

आंटी ने, डॉ से पूछा - क्या, अनन्या से मैं अभी मिल सकती हूँ?

डॉ ने कहा - 10 मिनट रुकिए, तब तक उसकी चेतना वापिस लौट आने की संभावना है। 

अनन्या की मम्मी ने तब मुझसे पूछा - कैसे हुआ यह सब?

प्रत्युत्तर में, मैंने उन्हें पूरी दुर्घटना बताई। तत्पश्चात डॉ ने, मुझसे ओपीडी में भुगतान किये शुल्क के बारे में पूछा। मेरे बताने पर उन्होंने गूगल पे के द्वारा, यह राशि मुझे ट्रांसफर की। फिर उन्होंने, मुझे अपना कार्ड दिया और कहा - 

बेटे, किसी भी प्रकार की जरूरत पर आप, मुझे याद करना। आपकी किसी भी प्रकार से सहायता कर सकने में, हमें अत्यंत प्रसन्नता होगी। 

मैंने, तब अनन्या का सेल फोन एवं स्कूटी की चाबी उन्हें लौटाई। फिर कहा - 

सर, मुझे तो अभी ही, आपकी सहायता की जरूरत है। मैं, अभी कार चलाना सीख ही रहा हूँ। मुझे पता नहीं कि कैसे मैं, अनन्या की चिंताजनक हालत को देखकर, शहर के ट्रैफिक में, 8 किमी कार चलाकर ले आया। मगर मुझे पता है कि अब मैं, वापिस ऐसे कार नहीं चला सकूँगा। 

तब डॉ ने मुझे ऊपर से नीचे तक आश्चर्य से देखा फिर मुस्कुराते हुए, आंटी को भी देखा फिर मुझसे कहा - 

ओह यह बात है, तुम भी मेरी बेटी की तरह अपनी जिद से गाड़ी लिए घूम रहे लगते हो। (फिर समझाने के स्वर में कहा) - देखो बेटे, तुमने देख लिया है कि 14 साल की अनन्या का कैसा हाल हुआ है। मेरी मानो, जब तक तुम्हें ड्राइविंग नहीं आती और तुम्हारे पास लाइसेंस नहीं हो जाता यूँ, अकेले कार ना चलाया करना। 

फिर उन्होंने अस्पताल स्टाफ में से, एक व्यक्ति को निर्देश देकर मेरे साथ किया। इनका काम मुझे, मेरी कार सहित घर छोड़ने एवं वहाँ से लौटते हुए अनन्या की स्कूटी, उनके घर तक पहुँचाने का था। 

अंत में मैंने, आंटी एवं डॉ. का अभिवादन किया था। मेरे लौटने से पहले आंटी ने कहा - 

बेटे, तुम्हारा फोन नं., गूगल पे करते हुए इनके पास आ ही गया है। हम अनन्या के स्वस्थ होने पर, आपके मम्मी-पापा से भेंट करने आयेंगे। 

डॉ ने इस पर कहा - वैसे सब ठीक है लेकिन सिर की चोट होने से, अनन्या को अगले 3 दिन, अस्पताल में ही, ऑब्जरवेशन में रहना होगा। 

तब मैं वापिस लौटा था। कार में बैठकर यह सोच रहा था कि निश्चित ही यह दिव्य शक्ति थी, जिसके होने से, मैं 14 वर्ष की इस अनन्य सुंदरी, अनन्या का संकट मोचक हो सका था …     


(क्रमशः)



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