Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational Others

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

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“दिव्य दर्शन देवभूमि का” ( यात्रा -संस्मरण )

“दिव्य दर्शन देवभूमि का” ( यात्रा -संस्मरण )

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01, मई 2011 सुबह -सुबह मेरा मोबाईल बजने लगा। मैंने उठाया तो मेरी पुत्री आभा ने दूसरे तरफ से कहा, --

" बाबू जी, हमलोगों का प्लान बन गया हैं। हमलोग अपनी गाड़ी से सुबह 05 बजे दिनांक 28 मई 2011 को रोहिणी, नयी दिल्ली से चारों धाम के यात्रा पर चलेंगे। हम चार और आप दोनों भी हमारे साथ चलेंगे। दिल्ली का आप लोग दुमका से आरक्षण करवा लें अन्यथा कोई दिक्कत हो तो यही से हम करवा देंगे।"

इस सुनहरे अवसर को भला कौन छोड़ता है ? मैंने अपनी सहमति देते हुए कहा, ----

" नहीं ....नहीं यहाँ से दिल्ली के लिए आराम से आरक्षण हो जाएगा।"

दिल्ली से हरिद्वार


24 मई 2011 को हम दोनों नयी दिल्ली पहुँच गए। तैयारियाँ होने लगी। 28 मई 2011 को हमलोगों को चलना था। पहाड़ी क्षेत्र और ऊँचाई पर जाना था। गर्म कपड़े और आवश्यक वस्तुओं का इंतजाम कर लिया। ठीक 5 बजे ड्राइवर सरदार हरपाल सिंह INOVA CAR में बिठाकर हरिद्वार रवाना हो गया। सबसे बड़े मेरे समधी श्री कृष्ण कान्त झा थे। वे आगे बैठ गए। हम दोनों सेकेंड सीट पर साथ में मेरा दोहित्र स्रोत झा, जो 7 वर्ष का था, वह भी मेरे साथ बैठ गया। रीयर सीट पर मेरे जमाई श्री राहुल झा और मेरी पुत्री आभा बैठ गयी।

हरिद्वार से बरकोट


28 मई 2011 को हमलोग हरिद्वार पहुँच गए। गंगा स्नान हर की पौड़ी में किया। 230 किलोमीटर के सफर के बाद HOTEL PARKVIEW में एक रात रुके। संध्या समय हर की पौड़ी में गंगा आरती देखने का अवसर मिला। 29 मई प्रातः 6 बजे हरपाल ने अपनी कार में हमलोगों को ले चला बरकोट की तरफ। बरकोट 220 किलोमीटर था। देहरादून, मसूरी और केंपटी फाल के दर्शन के बाद बरकोट के HOTEL CHAUHAN ANNEXE में रुका।

बरकोट से यमुनोत्री और वापस


30 मई 2011 सुबह सारी तैयारी करके पहला तीर्थ प्रारंभ हो गया। वैसे यमुनोत्री का सफर 36 किलोमीटर का था और पहाड़ी ट्रेक आना जाना मिलाकर 12 किलोमीटर। अद्भुत और रोमांचक पर्वतीय सफर था। लग रहा था स्वर्ग का दर्शन हो गया। हरपाल टेप रीकॉर्डर से गुरुवाणी सुनता चला जा रहा था। जानकीचट्टी हम सब उतर गए। मैंने तो अपने लिए खच्चर लिया और कृष्णकान्त बाबू ने भी खच्चर लिया। और सारे लोग पैदल ही पहुंचे। पूजा अर्चना और गर्म कुंड में स्नान करके वापस बरकोट आ गए।

बरकोट से हरसिल


31 मई 2011 को हम अद्भुत प्रकृति छटा का सुंदर घर हरसिल जो उत्तराखंड के भगरथी गंगा के 2620 मीटर समुद्रतल के सतह से ऊपर बसा हुआ था। हरसिल के सौदर्य का आनंद लिया और वहाँ के सुंदर SHIVALIK HOTEL में एक रात गुजारी !

हरसिल से गंगोत्री और वापस उत्तरकाशी


01 जून 2011 को सुबह हमलोग हरसिल से चल पड़े गंगोत्री की ओर। यह मात्र 72 किलोमीटर था। गंगोत्री मंदिर जो भागीरथी गंगा के किनारे था पूजा अर्चना की और वापस उत्तरकाशी लंबे सफर के बाद HOTEL SHIVLINGA में रात गुजारी।

उत्तरकाशी से गुप्तकाशी


02 जून 2011 को हम गुप्तकाशी की ओर निकल पड़े। यह सफर 220 किलोमीटर का था पर यहाँ का प्राकृतिक दृश्य का सौन्दर्य देख कर थकान मानो उड़न छू हो गए। रास्ते भर हमलोगों ने खूब मनोरंजन किया। पर धारसू के रास्ते में भूस्खलन हो गया था। हमारी कार कुछ घंटे तक वाधित रही। कुछ देर के बाद सब ठीक हो गया और देखते -देखते हमलोग गुप्तकाशी पहुँच गए। यहाँ होटल नहीं स्नो टेंट लगा कर अद्भुत होटल बनाया गया था जिसे VIP NIRWANA CAMP नाम से जाना जाता था। हमलोगों ने तीन टेंट ले रखा था।

गुप्तकाशी से केदार नाथ


03 जून 2011 को सुबह CAMP को अलविदा कहकर निकल पड़े। वैसे गुप्तकाशी से केदारनाथ का गौरी कुंड 30 किलोमीटर है। फिर गौरीकुंड से पैदल खड़ी चढ़ाई 14 किलोमीटर चलना पड़ता हैं। केदारनाथ 3584 मीटर समुद्रतल से ऊपर है! यहाँ पर ऑक्सीजन की कमी है। राहुल जी और मेरी पुत्री पैदल केदारनाथ पहुंची ! आशा डोली पे सवार हो के गयी। हम तीन हेलिकोपटर से केदार नाथ पहुँचे। पूजा अर्चना हमलोगों ने की। रात HOTEL GAYATRI BHAVAN में रुकने का इंतजाम था। केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।

केदारनाथ से रुद्रप्रयाग


04 जून 2011 को जिस तरह केदार नाथ पहुँचे थे उसी तरह वापस नीचे आए और फिर गुप्तकाशी होते हुए हमलोग रुद्रप्रयाग की ओर चल पड़े। मंदाकिनी और अलकनंदा नदी के किनारे रुद्रप्रयाग बसा हुआ है। वहाँ का MONAL RESORT में रहना मन भा गया।

रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ


05 जून 2011 को हमलोग 165 किलोमीटर सफर तय करके बद्रीनाथ पहुँचे। यह 3133 मीटर समुद्रतल से ऊपर है और नर- नारायण पर्वतों की शृंखलाएं बद्रीनाथ धाम के प्रहरी बने हुए हैं। हमलोग HOTEL NARAYAN PALACE में ठहरे। पूजा अर्चना हमलोगों ने किया। दूसरे दिन सुबह -सुबह हमलोग MANA VILLAGE होकर गुजरे।


बद्रीनाथ से जोशीमठ /पिपलकोटी


06 जून 2011 सुबह हमारी सवारी चल पड़ी जोशीमठ। अद्भुत नजारा, पहाड़ों से घिरा हुया और महापुरुषों का मठ चारों तरफ फैला हुआ था। जगह -जगह आर्मी कैम्प, शहर, बाजार लगे थे। ठीक 85 किलोमीटर पर पिपलकोटी में HOTEL LE MEADOWS में रुकना था। जोशीमठ से सारी सुविधा उपलब्ध थी। हरेक स्थान के लिए बस सर्विस का बंदोबस्त था।

पिपलकोटी से ऋषिकेश


07 जून 2011 का दिन ऋषिकेश लौटने का था। यह यात्रा 8 घंटे का था। ड्राइवर हरपाल सिंह एक कुशल वाहान चालक सिद्ध हुआ। उसने श्रीनगर और देवप्रयाग के बीच में हमलोगों को गुरुद्वारा ले गया। वहाँ गुरुग्रंथ साहिब का दर्शन किया और लंगर का प्रसाद ग्रहण किया। ऋषिकेश में भी 5 स्टार HOTEL NARAYANA का इंतजाम था। श्रोत और राहुलजी तो स्विमिंग पूल का भरपूर आनंद लिया। और दूसरे दिन चारों धाम का यात्रा समाप्त करके दिल्ली के तरफ रवाना हुए।

ऋषिकेश -हरिद्वार से दिल्ली


08 जून 2011 के सुबह हमलोग हरिद्वार होते हुए दिल्ली के तरफ चल पड़े। यह दूरी 250 किलोमीटर थी। समय 7-8 घंटे लग जाएंगे। हम सब हँसते -गाते अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे। शाम हो चली थी। दिल्ली की चहलकदमी और रोशनी की जगमगाहट ने एक विजय पर्व का एहसास दिलाया। इस तरह चार धामों की दिव्य झलक देखने को मिलीं जो आजन्म स्मृति में घूमता रहेगा। दिव्य देवभूमि को सदैव नमन।!



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