Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Drama

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Drama

सुरक्षा में चूक (संस्मरण-फौजी दर्पण)

सुरक्षा में चूक (संस्मरण-फौजी दर्पण)

5 mins
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ऑपरेशन थिएटर के बरान्डे हम चार ट्रैनइज बातें कर रहे थे ! रबिवार को ड्यूटी जो लगी थी ! सर्जन ,अनास्थिसिऑलोजिस्ट ,ओ 0 टी0 मेट्रॉन,सूबेदार, परमानेंट स्टाफ , ट्रैनइज और सफाई कर्मचारी आकर ऑपरेशन थिएटर को पूर्णतः तैयार कर के 11 बजे तक चले गए ! एक पर्मानेट स्टाफ और तीन ट्रैनइज की 24 घंटे की ड्यूटी लगी थी ! हालांकि रबिवार की ड्यूटी थोड़ी खलती थी ! पर कुछ ही क्षणों में जम के वर्षा होने लगी ! मेरे साथ बिहारी लाल डोगरा और चंद्रशेखर कुरूप थे ! बिहारी लाल डोगरा ने कहा ,-

“ अच्छा हुआ वर्षा होने लगी ! आज तो कहीं घूम ही नहीं सकते थे !”

अम्बाला केंट फौजी छावनी से भरा था ! सैनिक अस्पताल ,अम्बाला ठीक बीचों बीच माल रोड के किनारे ही था ! केंट का बाजार , सदर बाजार और दो सिनेमा हॉल इसके सिवा और कुछ नहीं ! हमलोगों का पर्सनेल लाइन अम्बाला केंट रेल्वे स्टेशन के बगल में था ! अस्पताल और सिंगल पर्सनेल लाइन की दूरी 2 किलोमीटर थी ! हमलोगों ने ज्वाला साइकिल स्टोर से 15 रुपये महीने के लिए साइकिल ले रखी थी ! अस्पताल आना -जाना इसी से होता था ! 1976 में बिरले ही किसी के पास स्कूटर होता था !

हमलोग ड्यूटी रूम में बैठे बातें कर ही रहे थे कि कॉल बेल बजा ! सफाई वला रमेश बाहर से आकर मुझे कहा ,-

“ झा साहिब ! आपका गेस्ट आपके गाँव से आया है !”

कहाँ दुमका कहाँ अम्बाला ? कहाँ मधुबनी कहाँ अम्बाला ? दुमका में मेरा घर है और मौलिक घर गनौली ,ससुराल शिबीपट्टी और मातृक पिलखवाड़ ! भला इतने दूर से कौन आया ? अपने में गुन- धुन करते निकला ! मैं तो O T परिधान में था ! हरा पायजामा ,हरा गोल गले वाला हाफ कुर्ता , O T चप्पल और हरा कैप और मास्क ! मैंने अपना मास्क मुँह से हटाया और उनसे मिलते ही नमस्कार किया ! वे पूर्णतः वर्षा से भींग गए थे ! उन्हें वैटिंग रूम में बिठाया और पूछा , -

“ किससे आपको मिलना है ?”

उन्होंने उत्तर दिया “ झा जी से मिलना है!”

“यहाँ झा तो मैं ही हूँ,कौन झा से मिलना है”-मैंने पूछा !

“ बात यह है कि मेरा नाम “”गुनानन्द झा”” है ! मैं ग्राम तरौनी ,जिला मधुबनी ,बिहार का रहने वाला हूँ ! मैं पंजाब के फिरोजपुर में एक प्राइवेट कम्पनी में कम करता हूँ ! सहारनपुर में मेरा सामान चोरी हो गया ! यहाँ उतर कर मैंने झा जी का पता लगाया !”

दरअसल वो मैथिली में बोल रहे थे और मैं भी अपनी मातृभाषा में बातें कर रहा था ! उनकी हरेक बातें मेरे हृदय को छू रहीं थीं ! मनुष्य मनुष्य के काम ना आ सके तो फिर क्या काम की जिंदगी ?

मेरे साथ के साथी ड्यूटी वाले ने कहा ,-

“दोपहर के खाने का समय हो गया है !इन्हें पर्सनेल लाइन ले जाओ और अपने लंगर में खाना खिलाओ !”

गुनानन्द जी को अपनी साइकिल पर बिठा अपने लाइन ले गया ! इनके पास कोई अपना सामान नहीं था ! मैंने अपने सिवल कपड़े दिया ! लोगों से परिचय कराया ! लोगों को यदि मैं बताता कि इनको मैं नहीं जानता हूँ ! तो इन्हें मिलिटरी परिवेश में नहीं रख सकते थे ! इसलिए लोगों को कहना पड़ा “मेरे “ग्राहीन” हैं ! लोग तो यहाँ तक सोचने लगे और कहने लगे “ ये तो मेरे भाई के तरह लगते हैं !”

मैं उन्हें लंगर में खाना खिलाया ! वापस अपने लाइन में सबके साथ उन्हें रखा !

हालांकि गुनानन्द जी काफी मिलनसार थे ! लोग सब उनको पसंद करने लगे ! पर मैं सोच रहा था कल सोमवार को मैं ड्यूटी चला जाऊँगा और फिर इनको कैसे यहाँ रख सकता हूँ ! एक दिन की बात होती तो चल सकती है ! दूसरे दिन तो प्रशासन को बताना पड़ेगा ! मैंने उनसे स्पष्ट पूछ लिया ,-

“ देखिए , आपको पर्सनेल लाइन में मैं एक दिन के अलावे दूसरे दिन नहीं रख सकता ! यह मिलिटरी यूनिट है ! लोग समझ रहे हैं कि आप मेरे भाई हैं ! अन्यथा अनजान व्यक्ति यहाँ नहीं रहने दिया जाता है !”

“ मेरे पास एक रुपया भी नहीं है ! सब चीज चोरी हो गयी ! आप यदि 500 रुपये मुझे कर्ज दे दें तो मैं फिरोजपुर पहुँचकर मनीऑर्डर आपको कर दूँगा !”

उनके स्वर में अनुनय और विनय दोनों का समावेश था ! पर उस समय का 500 रुपये पाँच हजार रुपये के बराबर माना जा था ! मैंने गुनानन्द जी को कहा ,-

“ इतने रुपये तो मैं आपको दे नहीं सकूँगा ! मेरे पास सिर्फ 75 रुपये हैं !”

सोमवार को भोजन करबा कर शाम को उनको बिदा किया !

जाते वक्त मेरा पता उन्होंने लिया और वादा किया कि मनीऑर्डर कर देंगे !

अगस्त 1976 छह महीने के बाद मेरी पोस्टिंग 26 फील्ड अस्पताल बबीना,झाँसी आ गयी ! रोड के इस तरफ मेडिकल यूनिट और रोड के उस तरफ सिग्नल यूनिट था ! सिग्नल के ताराकांत ठाकुर के साथ ही शाम का खाना खाते थे ! बबीना बाजार से मछली लाकर स्वयं बनाते थे ! शाम में अपने- अपने लंगरों से खाना लेते थे और कुछ स्पेशल बनाकर उनके ही लाइन में मिलकर खाते थे ! इसतरह ताराकांत बाबू से मेरी दोस्ती अच्छी हो गयी थी !

ठीक दो साल बाद 1978 में नवंबर की बात है ! शाम में बबीना बाजार चला गया ! मन किया आधा किलो मछली मैंने खरीदी ! और सीधे सिग्नल के पर्सनेल लाइन में ताराकांत ठाकुर जी की चारपाई के करीब पहुँचा तो मैं अबाक रह गया ! देखता हूँ वही गुनानन्द झा ताराकांत ठाकुर जी के चारपाई पर बैठे हैं ! मेरे तो होश उड़ गए ! गुनानन्द झा जी ने नमस्कार कहा ! मैंने भी उत्तर में अभिवादन किया !

अम्बाला वाली कहानी तो पहले ही ताराकांत ठाकुर जी को सुनाया था ! पर यह वही व्यक्ति है यह ताराकांत ठाकुर जी को भला कैसे पता होता ?

मछली बनने लगी ! गुनानन्द झा कुछ क्षणों के लिए बाथरूम गए !

मैंने ताराकांत ठाकुर से पूछा , -

“ क्या ये आपके परिचित हैं !”

“जी नहीं!....ये मैथिल हैं ,किसी मैथिल को ढूंढ रहे थे ! अब रात हो गयी ! कहाँ जाएंगे ? इसलिए मैंने उन्हें रोक लिया !”

बस मैंने अम्बाला की कहानी को दुहरा दिया ! ताराकांत ठाकुर सुरक्षा के मामले में बहुत ही संजीदा थे !

इतने ही देर में गुनानन्द झा बाथ रूम से आ गए ! पहले भोजन कराया और फिर ताराकांत ठाकुर ने कहा ,-

“ आपका रुकना यहाँ उचित नहीं है ! आपने तो अपने समाज को कलंकित कर रखा है !”

गुनानन्द झा जी चले गये और निजी सुरक्षा का पाठ हमलोगों को पढ़ा गए !


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