“दुमका दर्शन” (60 के दशक का रामनवमी) संस्मरण
“दुमका दर्शन” (60 के दशक का रामनवमी) संस्मरण
सभी लोगों का जमाबड़ा 8 बजे रात से होने लगता था ! बच्चे ,युवक और बड़े अपनी -अपनी जोड़ी को चुनते थे और रामनवमी अखाड़े में अभ्यास करते थे ! कोई लाठी से युद्ध का अभ्यास करता था ,कोई तलवार चलाता था ,कोई भाला से युद्ध करता था और कुछ मल्य युद्ध का भी परिचालन करता था ! यह अखाड़ा कोई खेत -खलिहानों में ना होकर शिव पहाड़ चौक दुमका पाकुड़ रोड पर होता था ! उस समय गाड़ी ,बस ,कार ,स्कूटर ,मोटरबाइक इत्यादि का दूर- दूर तक नामो- निशान नहीं था ! बिरले कभी कहीं से कोई गाड़ी आ भी गयी तो उसे रास्ता दे दिया जाता था ! और महीने भर रामनवमी अखाड़े का अभ्यास होता था ! सब अपने अपने अभ्यास को बड़े बुजुर्ग के सामने प्रस्तुत करते थे और उसकी मंजूरी के बाद उसी कार्यक्रम को जमकर खिलाड़ी अभ्यास करते थे !
वैसे और भी मुहल्ले में अखाड़ा होता था ! उनकी भी तैयारी खूब जमकर होती थी ! पर हमारे मुहल्ले की बात ही अनोखी थी ! हरेक रामनवमी के शुभअवसर पर शिव पहाड़ हमेशा प्रथम पुरस्कार लेता था ! यह पुरस्कार टीन बाजार चौक दुमका के दो माले पर बैठे दुमका उपायुक्त और उनकी प्रशासकीय टीम हरेक मुहल्ले के प्रदर्शन पर अपना निर्णय देते थे ! बीच बाजार से “ भोजपुरी अखाड़ा “ अपने दम -खम से प्रदर्शन करता था ! मरबाड़ी अखाड़ा , डँगालपाडा ,कुम्हारपाडा ,ठाकुरबाड़ी ,सोनवाडँगाल, रसिकपुर और बंदरजोरी के खिलाड़ी अलग अलग जुलूस निकालते हुए दुमका मैन मार्केट में पहुँचते थे !
उनदिनों दुमका जिला और संथाल परगना कमिश्नरी का मुख्यालय था ! पर एक अनूठी बात यहाँ थी ! यहाँ के लोगों में कोई भेद- भाव नहीं था ! कोई भी पूजा या उत्सव हो, सब बड़ चढ़ के भाग लेते थे ! मुहर्रम में भी अखाड़े का संचालन होता था ! मुसलमान भाई रामनवमी अखाड़े के हुनर को सीखते थे और हिन्दू भाई भी बड़े शौक से अनुकरण करते थे ! दुमका सामाजिक सौहार्दता का जीता जागता उदाहरण था ! ईद में हम उनके घर जाते थे और होली ,दीपावली और दशहरा में उनसे गले भी मिलते थे ! छोटा शहर था पर हृदय विशाल था !
हमलोगों रामनवमी के दिन 1 बजे दिन में सारे अस्त्र -शस्त्र लेकर शिव पहाड़ मंदिर पर पहुँच जाते थे ! मंदिर में सारे अस्त्रों की पूजा होती थी ! सारे लोग रंगीन लाल हाफ पेंट ,सफेद टी शर्ट ,सफेद कपड़े के जूते और गले में हरा रुमाल लटकाते थे ! भगवान राम ,सीता ,लक्ष्मण और मुख्य तौर पर राम भक्त हनुमान की पूजा होती थी ! प्रसाद वितरण होता था ! खिलाडियों के उत्साहवर्धन के लिए तीन चार ढोल बजाने वाला होता था ! ढोल का बजना प्रारंभ हुआ और अपनी -अपनी जोड़ी मंदिर के प्रांगण में ही अपना जलवा दिखाने लगते थे ! दुमका की जमीन पथरीली है और उस जमीन पर गुलाटी मारना खतरे से खाली नहीं था ! जोश और जज्बा के आगे भला इसको कौन ध्यान देता था ? पहाड़ से उतरकर मेरे घर के बगल से होकर अखाड़ा गुजरता था !
मैन रोड से दुमका टीन बाजार 1 किलोमीटर है ! हरेक 20 -20 कदम पर पक्की सड़क पर अखाड़े का प्रदर्शन होता था ! लोग घरों से बाहर आके अपने- अपने बच्चों का प्रदर्शन देखते थे ! उस समय जो मार -धाड़ फिल्म बनती थी खिलाड़ी उसी का अनुकरण करते थे ! पर यहाँ बातें कुछ और थी ! यहाँ तो हमें पक्की सड़क पर प्रदर्शन करना था ! टीन बाजार पहुँचते -पहुँचते शाम हो जाती थी ! इस प्रदर्शन के बीच कोई अन्य धर्म के लोगों को भी अनुमति होती थी ! कोई रोक- टोक नहीं होता था ! असली प्रदर्शन और प्रातयोगिता तो टीन बाजार चौक पर होता था जहाँ जिला उपायुक्त से पारितोषिक मिलना रहता था ! हमारे दुरंधर खिलाडियों में गौरी बर्मा ,रामचंदर बर्मा ,हीरा कापरी ,राम दयाल ,दिन दयाल इत्यादि हुआ करते थे ! इनके खेलों का प्रदर्शन अनोखा होता था ! इस तरह शिव पहाड़ टीम की जीत हमेशा होती थी !
हमारा दुमका पहाड़ों और जंगलों से तो आज भी घिरा हुआ है ! आधुनिकता और विकास के पायदानों को पकड़े हम आवाध गति से बड़ रहे हैं पर सामाजिक समरसता को हम खोते जा रहे हैं