Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

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दुमका संस्मरण-4( पेय जल संकट) 1954

दुमका संस्मरण-4( पेय जल संकट) 1954

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पहाड़ियों और जंगल से घिरा दुमका शायद ही कभी वर्षा की बूंदों से तरसता था ! समय पर मॉनसून आ ही जाता था ! गर्मियों के तापमान को यहाँ के जंगल, पेड़ -पौधे अपनी नरम -नरम कोमल हरी पत्तियों से दूर भगा देती थी ! मौसम का अंदाज़ ही बिल्कुल अनुकूल था ! पर हमारे बीच पेय- जल संकट की समस्या राक्षस बन कर सामने आ गई थी ! पेय- जल का स्रोत एक मात्र उस समय कुआँ ही था ! कहीं – कहीं तालाब और छोटे – छोटे जल स्रोतों का भी उपयोग लोग कर लिया करते थे ! कुआँ गहरा खोदा जाता था ! जल का स्रोत 30 -40 हाथ जमीन के अंदर मिलता था !मुहल्ले में तीन चार ही कुएं होते थे ! एक सार्वजनिक कुआँ होता था जहाँ लोग पुरुष वर्ग अपनी- अपनी बाल्टी ,रस्सी और लोटा लेकर जाते थे और स्नान करते थे !

कुआँ के चारों तरफ जगत बने होते थे और नहीं तो पत्थर के बड़े टुकड़े रखे जाते थे ! उसे पर हमलोग अपने- अपने कपड़े धोते थे ! शादी- विवाह के दिनों में सारे कुटुम्बों को वहाँ ही जाकर स्नान करना पड़ता था ! महिलाओं के लिए एक -एक बाल्टी पानी घर पर ही लाए जाते थे ! हरेक कुआँ में सुबह से भीड़ लगने लगती थी ! कोई मिट्टी का घड़ा ,टीन का भारिया कंधों पर लेकर और बड़ी -बड़ी बाल्टी लेकर पहुँच जाते थे !एक बात तो थी ,पेय जल की समस्याओं ने सारे मुहल्ले को एक सूत्र में बाँध रखा था ! आपसी प्रेम छलकते थे ! झगड़ा का गुंजाइश कहीं नहीं होता था ! क्योंकि उनके कुएं से पानी जो लेना पड़ता था ! गर्मी के दिनों में कुएं का पानी सूख जाता था ! रस्सी फिर बड़ी लेनी पड़ती थी और मेहनत भी दुगुनी करनी पड़ती थी ! पर एक बात थी रात के वक्त जल का स्तर थोड़ा बढ़ जाता था ! प्रकृति हमारा साथ देती थी !हमारे शहर में कुल 11 तालाब (पोखरा) हुआ करते थे !

धार्मिक अनुष्ठानों के अलाबे ये शहर की जान थे ! 60 के दशक मंथर गति परियोजना के तहद हिजला पहाड़ पर बहुत बाद में टँकी बनबायी गयी ! बोरिंग मयूराक्षी नदी के बगल में करबा कर शहर में पानी पहुँचाने का काम किया गया ! दुमका की जमीन पर्वतीय होने के कारण कहीं ऊपर तो कहीं नीचे है ! पानी हरेक जगह पहुँचना असंभव था ! साथ -साथ विजली आपूर्ती के अभाव में यह परियोजना असफल सिद्ध साबित हो गई ! लोग लम्बी -लम्बी कतारे लगते थे पर किसी का लोटा तक नहीं भरता था ! पहले हम ,पहले हम की प्रतिद्वंदिता ने आपसी सौहार्दता को जन्म देने लगा ! पर यह बात कुएं के संदर्भ में नहीं थी !उन दिनों दुकान ,होटल और सार्वजनिक कार्यों का हाल संदेहासप्रद था ! पर हम नज़रअंदाज कर देते थे और संभवतः जागरूक भी हम उतने नहीं थे ! हमारी हालत ही कुछ इस तरह थी !देखते -देखते समय बीतने लगा ! परिवर्तन ने करबट ली और फिर 70 के दशक में हरेक वार्ड ,हरेक मुहल्ले में एक -एक हेंड पम्प का प्रावधान किया गया ! बोरिंग की गई ! पथरीली जमीन में यह भी कारगर सिद्ध नहीं हुई ! हमारे भाग्य का सितारा तब चमका जब 1913 में पेय जल घर -घर पहुँचाया गया !


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