“दुमका संस्मरण 3” ट्रांसपोर्ट सेवा (1965)
“दुमका संस्मरण 3” ट्रांसपोर्ट सेवा (1965)
दुमका से बसें चलतीं थीं पर उसकी संख्या गिनी -चुनी हुआ करतीं थीं। भागलपुर के लिए “वन्देमातरम बस ” और दूसरा “विजय भारत” बसें चलतीं थीं। रामपुरहाट ,जामताडा,देवघर ,गोड्डा ,साहिबगंज, पाकुड़ और चारों तरफ बसें जातीं थीं पर एक या दो। उन दिनों प्राइवेट बस अड्डा वर्तमान “वीर कूँवर सिंह चौक” या सिंधिया होटल चौक दुमका कहचरी के पास होता था। बीच बाजार गोला मार्केट के बगल में स्वर्गीय रामजीवन हिम्मत सिंघका एक पेट्रोल पम्प हुआ करता था जहाँ से उनकी बस “वन्देमातरम” भागलपुर के लिए चलती थी। और बसें बस अड्डे से चलतीं थीं। किराया भागलपुर का एक रुपया और बच्चों को आठ आने ( 50 पैसे ) देने पड़ते थे। सड़कों की जर्जर हालत होती थीं। भागलपुर पहुँचने में 9 घंटे लगते थे। गाड़ी हरेक यात्री को उठा लेता था। रास्ते में कोई कहीं हाथ दे दिया उसे संवाहक ले लेता था। अधिकतर सड़कें कच्ची होतीं थीं। शहर में चार टमटम (तांगे ) हुआ करते थे। रसूल और हबिया के टमटम में बैठना बड़े गर्व की बात होती थी। रिक्सा कुछ दिनों के बाद तेलिपाड़ा के राजू मण्डल ने चलबाना प्रारंभ किया। कार ,स्कूटर ,बाइक और जीप एक आध नज़र आ जाए तो शान की बात होती थी! साइकिल भी बहुत कम लोगों के पास होती थी। अधिकांश पदाधिकारी पैदल ही अपने दफ्तर जाते थे। ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण का नामोनिशान नहीं था। हमारा दुमका शहर जंगल और पहाड़ों के बीच मंगल मनाया करता था। इसी दौरान ट्रांसपोर्ट सेवा का विस्तार होने लगा और बिहार राज्य परिवहन सेवा दुमका टाउन थाना और प्रधान डाक घर के पास बस अड्डा और डिपो खुल गया। और हम दुमका वासी सीमित संसाधनों के बीच प्राइवेट और सरकारी बस का लुत्फ उठाते रहे।