दिखावा

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सीमा आज बहुत जल्दी में थी, जल्दी से नाश्ता-चाय निपटा तैयार हो पर्स उठाया और बोली, अनुपम आज हम महिलाएं अपनी संस्था की तरफ से हॉस्पिटल जा रही हैं, निर्धन मरीजों की मदद के लिए, दो घंटे में मैं घर वापिस आ जाऊंगी, काम वाली आएगी वह करेगी घर का काम, तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं होगी, तुम थोड़ा देख लेना।


अरे आज रविवार है, छुट्टी के दिन तुम मुझे अकेला छोड़ जा रही हो, अनुपम ने कहा।


क्या करूं जरूरी है, तुम मेरे आते तक घर सम्हालना, कहते हुए सीमा बाहर निकल गई।

 

सामाजिक संस्था से जुड़ी हुई महिलाएं कुछ न कुछ सोशल वर्क करती रहती हैं । हॉस्पिटल में बहुत से मरीज हैं, कुछ बूढ़ी लाचार महिलाएं भी हैं, एक एक के पास जाकर साथ लाये फल, बिस्किट देते हुए सीमा बहुत प्यार से उनके सर पर हाथ फेरते हुए, कैसी है तबियत, दवा समय पर लेना, कमजोर भी हो, ये फल हैं तुम्हारे लिए, इन्हें खाओगी तो तुम्हें ताकत आएगी और जल्दी ठीक भी हो जाओगी। अभी कोई काम मत करना सिर्फ आराम करो, बाेला करती...


साथ आई सीमा की साथी बहनें भी सब के पास जाती हैं और उन्हें साथ लाई सामग्री वितरित करती हैं। कितने खुश हैं सब मरीज कि इन महिलाओं को हमारा कितना ध्यान है। दो घंटे कैसे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता। बाहर आकर सब अपने अपने घर की ओर प्रस्थान करती हैं। घर आकर पता चला आज काम वाली आई ही नहीं, अब घर का सारा काम पड़ा है, पारा सातवें आसमान पर। बहाना होगा काम वाली का जान बूझ कर नहीं आई होगी।


शाम को सीमा की काम वाली बाई आती है। उसे देखकर सीमा का गुस्सा फट पड़ा, तू सबेरे क्यों नहीं आई जानकी, तुझे पता था ना कि आज मुझे बाहर जाना था, कितना जरूरी रहता है समय पर पहुँचना, सब काम तेरे भरोसे छोड़ कर गई और तू गायब, क्या हो गया तुझे।


धीमी सी कमजोर आवाज में जानकी, मैडम जी मुझे बहुत तेज बुखार था रात से, उठने की हिम्मत नहीं थी सुबह, दवाई ला कर दिया मेरा आदमी, उसको खाई, थोड़ा ठीक लगा तब आपको बताने आई हूं।


सीमा तेज स्वर में, तुम लोगों का रोज बहाना रहता है... थोड़ा कुछ हुआ नहीं घर में बैठ गए, काम से बचने का बहाना चाहिए।


नहीं नहीं मैडम जी, बहाना करती तो अभी भी क्यों आती आप विश्वास करो मेरा।


ठीक है जा सारा काम पड़ा है कर...


जानकी, मैडम कल कर दूंगी, आज मैं सिर्फ आपको बताने आई थी, बुखार के कारण कमजोरी बहुत लग रही है।


सीमा, नहीं नहीं कोई बहाना नहीं, काम तो पूरा करना ही पड़ेगा।


जानकी लाचार सी, बेबस मैडम को ताकती है पर सहानुभूति की कोई उम्मीद नहीं।


तभी अनुपम जो सब सुन रहा था अब तक, आकर कहता हैं, जानकी तुम जाओ घर, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं तुम आराम करो घर जा कर, ठीक हो तबियत तब आना।


जानकी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। उसके बाहर जाते ही सीमा आक्रोश से, तुमने उसे वापिस क्यों भेजा।


अनुपम, वह बीमार है सीमा, उसे आराम की जरूरत है। तुम हॉस्पिटल जाकर तो मरीजों को फल-बिस्किट बांटती हो और घर की काम वाली के प्रति इतना कठोर व्यवहार ये कैसा सोशल वर्क है तुम्हारा, ये सेवा कार्य नहीं दिखावेबाज़ी है, जब मन में इंसानियत नहीं तो क्या फायदा ऐसे कार्यो का।


सीमा चुपचाप खड़ी रह अनुपम को निहारती रह जाती है।


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