दिखावा

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राधिका और यशवंत की ज़िन्दगी बड़ी ही अच्छी गुज़र रही थी अभी-अभी राधिका माँ बनी थी...।

सास और राधिका के मम्मी-पापा बड़े ख़ुश थे।


राधिका के मम्मी-पापा बच्चे को देखने आए हुए थे, यशवंत के मम्मी ने सूरज पूजन का कार्यक्रम रखा था। राधिका के मम्मी-पापा बच्चे के लिए और राधिका, यशवंत और अपनी समधन उमा देवी के लिए भी कपड़े और भी चीज़ें लाई थी।


राधिका अभी तो मेटर्निटी लीव पर थी राधिका और यशवंत साफ्टवेयर कम्पनी में सर्विस करते थे, मुंबई जैसे महानगर में रहते थे।


यशवंत की माँ गाँव में रहती थी, ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, मगर बहुत सुलझी हुई थी। उमा देवी राधिका और बच्चे का बहुत अच्छे से केयर कर रही थी। देखते ही देखते राधिका की छुट्टियां भी ख़त्म हो गई।राधिका ने अपनी कम्पनी में ज्वाइन कर लिया।


उमा देवी अपने पोते सोनू की बड़े ही प्यार से परवरिश कर रही थी। उसके खाने, सोने का और हर चीज़ का ख़्याल रखती। अब सोनू बोलने लगा, धीरे-धीरे चलने लगा, जैसे बड़ा होने लगा शरारतें भी बढ़ने लगी। सोनू की दादी ख़ुब लाड प्यार करती।


बच्चा है... जैसे दादी बोलती वही वो भी दोहराता। मगर राधिका थोड़ा हाय सोसाइटी में सोनू को ले जाती फ्रेंड सर्किल में और सोनू दादी की तरह ही लहज़े में बोलता। मुंबई में चलन था कि अपने को माडर्न ज़ाहिर करने के लिए अंग्रेज़ी में ही बातचीत करते थे लोग। बस वही राधिका को अखरता था। कभी वो उमा देवी को भी टोक देती, मम्मी जी उसे ऐसे गाँव वाली बातें मत सीखाओं, सोनू आपकी बताई बातें बाहर बोलता है तो, मेरी सोसाइटी की फ्रेंड मज़ाक बनाती है।


उमा देवी चुप हो जाती मगर उन्हें बुरा लगता। समझने लगी बहु को अब मेरी ज़रुरत नहीं है राधिका ने एक-दो बार यशवंत से भी कहा, मैं अब सोनू को डे केयर में डालना चाहती हूँ। वहाँ रहेगा तो कुछ सीखेगा। यशवंत ने बहुत समझाया माँ जितना अच्छा ख़्याल रखती है, डे केयर में सेफ नहीं रहेगा, मगर राधिका कहाँ मानने वाली थी।


उसने डे केयर में डाल दिया। उमा देवी समझदार थी, वो बेटे से कहने लगी, बेटा अब हम भी गाँव जाना चाहते हैं वहां भी घर सूना पड़ा है तीन साल हो गए हैं।


यशवंत ने बहुत कहा मगर माँ नहीं मानी। आखिर यशवंत रिज़र्वेशन करा कर माँ को गाँव छोड़ आया। अब राधिका को समझ आया माँ थी तो सोनू के खाने से लेकर हर काम सलीक़े से होता रहा।


यशवंत का लंच बक्स ख़ुद को नाश्ते का टाइम तक नहीं मिलता था। बहुत भागदौड़ हो जाती थी। सोनू को डे केयर में बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था रो-रो कर बुरा हाल। डे केयर वाली मोटी रकम लेती थी, ख़ूब मिठी बातें कर के राधिका को समझा देती।


सोनू एक-दो महीने में ही दुबला होने लगा। डाक्टर को दिखाया तो डाक्टर ने कहा, आप दोनों बच्चे को टाइम दें। बस, राधिका वही भागदौड़ में आफिस जाना, भागते दौड़ते घर भी नहीं सभांल पा रही थी, उमा देवी थी तो कभी खाने और घर की साल संभाल की फ्रिक नहीं रहती थी। सुघड़ गृहिणी की तरह सजा रहता था।


अब सोनू को लगातार बुख़ार रहने लगा, यशवंत और राधिका परेशान हो गए। डाक्टर को दिखाया, डाक्टर ने कहा आप दोनों बाहर बैठो मै सोनू से बात करना चाहती हूँ। डाक्टर ने चाकलेट देकर सोनू से दोस्ती की। फिर धीरे-धीरे पूछा। पहले तो बताने को तैयार नहीं हुआ, डाक्टर ने लालच दिया मैं तुम्हारी दादी को बुलवा दूंगी।


फिर तो सोनू ने हर वो बात बताई के डे केयर वाली आंटी मारती है, हम सूसू कर देते हैं। तो हमसे ही साफ कराती हैं। मुझे दादी की बहुत याद आती है।


राधिका और यशवंत को डाक्टर ने कहा, कल में जब काल करुं तो आप लोग आफिस से हाफ डे छुट्टी लेकर घर रहना, मै जब कहूं आप आ जाना। सोनू के डे केयर में यही कहना कि आप शाम को ही आएंगी और फिर बीच में उसे लेने पहुँच जाना आपको सब समझ आ जाएगा सोनू की बीमारी क्या है।


राधिका और यशवंत पशोपेश में घर आ गए, दूसरे दिन वही किया जो डाक्टर ने बताया था। 

दोनों आ गए दोपहर में। राधिका पहुंची सोनू को लेने। क्या देखती है सारे बच्चों को कपड़े उतार कर नीचे ज़मीन पर बिठा रखा है, कई बच्चों को आया मार रही हैं बड़ी बेरहमी से, और बच्चों के डिब्बे सब मिलकर खा रही हैं, बच्चों को भूखा रखती है ख़ूब डरा धमका कर घर में मत बताना। 


राधिका की तो ख़ौफ़ से आंखें फटी रह गई, डे केयर वाली और सारी आया घबरा गई। डे केयर वाली बहुत साॅरी बोलती रही। राधिका अपने बच्चे को लेकर आ गई और डे केयर वाली को कहा, मैं तुम्हारी पुलिस में शिकायत करती हूँ।


घर आते ही डाक्टर का फोन आया, राधिका सोनू से मेरा प्रामिस है उसकी दादी को बुलवा दूंगी। उसी दिन राधिका ने यशवंत से कहा, कल ही हम सोनू की दादी को लेने चलते हैं।


राधिका ने उमा देवी से ख़ूब रो-रो कर माफी मांगी, मां मै फालतू के दिखावे में पड़ गई थी। जो संस्कार आप दे सकती हैं कोई नहीं दे सकता सोनू को।


उमा देवी भी खुशी-खूशी अपने लाडले सोनू के पास आ गई। 


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