धूप छाव शिक्षाप्रद
धूप छाव शिक्षाप्रद
जीवन भी कितने रंगों से भरा रंगबिरंगा, जिसमें सबसे गहरा रंग है लक्ष्मी का. उसकी कृपा नाराजगी मनुष्य को कितने ही अनुभवों से अवगत कराती है. अपने-पराए का भेद समझाती है.
आज हमारा बेटा उपेंद्र आई.ए.एस. की परीक्षा में मेरिट से उत्तीर्ण हुआ. हमारे लिए इस अकल्पनीय खुशी के पल और अधिक खुशगवार हो गए जब मित्रों, रिश्तेदारों के बधाई संदेश आने लगे.
फोन क्या यदि मैं यह कहूं कि हमारे प्रशस्ति के कसीदे पढ़े जा रहे थे? संस्कारी, कर्मठ माता-पिता जैसे अनेक अलंकरणों से हमें सुशोभित किया जा रहा था. और हम भी फूले नहीं समा रहे थे.
पर अतीत की पल-पल घटित घटनाओं को लेकर, उन सभी के हमारे साथ किए गए व्यवहारो को लेकर आश्चर्य भी था. जिस बच्चे में या उसके परिवार में लक्ष्मी की कमी से कभी किसी को उसका सलीका, मैनर्स नहीं दिखाई देता था. आज उसी के लिए आधा आधा घंटा फोन का बिल बढ़ा रहे थे.
विशेष रूप से कुछ पिताश्री भी. उनकी बड़ी-बड़ी बातें आंखों से उतर कर मन के भीतर चुभन पैदा कर रहीं थी. बात यहां तक होती तो भी शायद जख्म भर जाते पर जब दिली रिश्तों में, उनके व्यवहारों में वक्त के साथ जमीन आसमान का अंतर आता है, तो अंतर्मन चीख उठता है क्या ऐसी होती है लक्ष्मी? अपनों में ही भेदभाव करवाने पर मजबूर कर देती है और हम उसके लालच में आ भी जाते हैं.
