धरती का कर्ज
धरती का कर्ज
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राधिका का विवाह धूमधाम से निकुंज के साथ संपन्न हुआ अगले दिन जब वह अपने ससुराल पहुंची तो वहां मुंह दिखाई में सभी ने उसको अलग-अलग तरह के पौधे गिफ्ट में दिए जो अगले दिन राधिका की ससुराल के फॉर्म हाउस में जाकर राधिका और निकुंज के हाथ से लगवा दिए गए।
ऐसी अनोखी रस्म देखकर तो राधिका खुशी से फूली नहीं समाई।
सचमुच धरती का कर्ज उतारने के लिए ऐसी अनोखी रस्मों का इंसान को अपने जीवन में शामिल करना बहुत जरूरी है। शायद इन्हीं रस्मों के बहाने हम अपनी धरती मां के प्रति कुछ फर्ज निभा सकें। तभी हमारी धरा सुंदर , हरी भरी एवं पुनर्जीवित हो सकती है।
श्याम वर्ण अंबर मुस्कुरा उठे
पर्वत शान से इतराए
वसुधा नव तरु पल्लव से
नित्य नए श्रृंगार करें
चहक उठे खग कुंजन में
भंवरे गुनगुन का गान करें
कल कल निर्मल जल सरिता का
स्वच्छ हो अविराम बहे
अंधियारी रातों में फिर
जुगनू चमक उठे
मेंढक और झींगुर की
मीठी तानों से रातें सजने लगे।