धन्यवाद शांत
धन्यवाद शांत
प्रतिदिन की तरह आज भी शांत, अपने विचारों की अशांति को लिये तूफान से बहती चलें आ रहा था। उसे तो लग रहा था यहां अगर कोई कुछ हैं तो वो हम खुद हैं।
और ये वहम उनको कभी अपने अंदर झांकने ही नहीं देता था।।
जब वो इतनी शान से तूफानों के तरह आया तो उसने देखा और दंग सा रह गया मानो अचानक से अंधेरे में अचानक से कोई दीप जल उठा हो और वो चोरी नहीं कर पाया हो।
आज प्रभु तक पहुंचना ही नहीं सिर्फ, उनसे नज़रें मिलाने की खुद औकात नहीं रह पाया था शांत का।
अब तो जाकर उनका तूफान शांत हो गया था लेकिन उनके कलेजे के अंदर आग जल उठे थे जिससे वो खुद झुलस भी रहे थे ।
इतना झुलस चुके थे वो खुद की लगायी आग में जिससे उन्हें अपना करतूत याद आ ही आखिरकार और वो दिन तो ज्यादा याद आ रहा था शांत को, जिस दिन उसने प्रभु को हद पार जलील किया था ।
शायद उस दिन चुप सा दम साध लिया और मन से प्रण ले लिया। और असंभव जैसी स्थिति में संभव कर दिया।
जिसने जिसने उसे नीचा दिखाया था उसे ही अपना मार्गदर्शक मान कर उन्हें धन्यवाद दिया।
परिस्थितियां ही सफलता का प्रतिफल है।
