धन्य है नारी शक्ति
धन्य है नारी शक्ति
"कितनी उदास सुबह है ये और मन एकदम खाली कितना क्रूर हो जाता ना कभी कभी ईश्वर भी कितना अजीब लगता है जब कोई अपना करीबी जाता है !" वंदिता अपने पति मानव से बोली।
" सच कहा तुमने अब क्या ये उम्र थी प्रताप के जाने की इतने छोटे बच्चे कैसे संभालेगी अनन्या सब!" मानव बोला।
" सही कहा आपने अनन्या तो प्रताप के बिना कहीं आती जाती भी नहीं थी अब कैसे करेगी सब मायके ससुराल से तो नाता शादी करके ही टूट गया था अब जिसके लिए सबसे नाता तोड़ा वो भी साथ छोड़ गया!" वंदिता दुखी हो बोली।
प्रताप और अनन्या वंदिता और मानव से दो घर छोड़ कर रहते हैं अभी अभी वंदिता और मानव को पता लगा कि प्रताप सब्जी लाते हुए ट्रक के नीचे आ गया । दोनों परिवारों में घनिष्ठ मित्रता थी तो ये खबर वंदिता और मानव के लिए बहुत दुखदाई थी उसपर दोनों कोरोना पॉजिटिव तो दुख की इस घड़ी में अनन्या को सांत्वना देने भी नहीं जा सकते थे।
" वंदिता तुम ऐसा करो अनन्या से फोन पर बात कर लो तब तक मैं देखता हूं मैं क्या कर सकता!" मानव ने कहा।
" हां सही कहा आपने पता नहीं अनन्या कैसे सब संभाल रही होगी बच्चे भी छोटे हैं हम लोग पॉजिटिव नहीं होते तो बच्चों को यहां बुला लेते पर अभी तो हमारे ही बच्चे नानी के घर है सुरक्षा के लिए!" वंदिता बोली।
मानव ने अपने दो तीन दोस्तों को फोन करके प्रताप के बारे में बताया और उन्हें कहा कि प्रताप के घर जा सब व्यवस्था देखे पैसे की चिंता ना करें।
" हेल्लो अनन्या कैसी हो?" वंदिता ने दोपहर में अनन्या को फोन मिलाया।
" वंदिता सब ख़तम हो गया चले गए प्रताप मुझे छोड़ इतनी बड़ी जिम्मेदारी मुझपर डाल!" अनन्या रोते हुए बोली।
" अनन्या हौसला रखो जाने वाला नहीं आता पर जो हैं उनके लिए खुद को संभालना होता है । अभी मैं भी मजबूर हूं वहां नहीं आ सकती और बाहर से भी ऐसे में लोग नहीं आएंगे तो तुम्हे खुद को खुद संभालना होगा वैसे कोई जरूरत हो बोलो जितना हो सके यहां से मदद करेंगे हम!" वंदिता बोली।
" नहीं वंदिता तुम लोगों ने तो दूर होकर भी बहुत मदद की है मानव के दोस्तों ने ही सब संभाला है!" अनन्या बोली।
अपना ध्यान रखने की हिदायत दे वंदिता ने फोन काट दिया।
वंदिता रोज फोन पर ही अनन्या से हालचाल पूछ लेती थी प्रताप के सभी काम भी निपटा दिए गए जल्दी ही क्योंकि वैसे भी किसी को आना जाना था नहीं इस लॉकडाउन में।
इधर वंदिता और मानव भी ठीक हो गए। उन दोनों ने आज दिन में अनन्या से मिलने जाने की सोची ।आज प्रताप को गए सात दिन हो गए ।मानव घर का कुछ सामान लेने सुबह बाहर निकला तो क्या देखता है अनन्या प्रताप की छोटी सी राशन की दुकान खोल बैठी है दोनों बच्चों को ले।
" अरे अनन्या तुम ये दुकान खोल बैठी हो वो भी इतनी जल्दी?" मानव हैरानी से बोला।
" क्या करूं तो जाने वाला चला गया पर घर को बच्चों को तो मुझे ही देखना है ना आप तो जानते प्रताप की इतनी कमाई तो थी नहीं के कुछ सेविंग होती अब घर चलाने को मुझे ही ये दुकान चलानी होगी!" अनन्या बोली।
" पर कोई जरूरत थी तो मुझे बोलती वंदिता को बोलती हम कोई पराए थोड़ी हैं!" मानव बोला।
" कब तक करते आप भी प्रताप चला गया पर मैं केवल प्रताप की पत्नी नहीं उसके बच्चों की मां भी हूं उनको पालना मेरी जिम्मेदारी है जाने वाला चला गया अब जो हैं उन्हें देखना है मुझे !" अनन्या खाली आंखो से पर आत्मविश्वास के साथ बोली।
" हम पराए नहीं अनन्या मेरी बहन जैसी हो तुम तो हक से बोल सकती हो कुछ भी !" मानव किसी तरह बोला।
" बहन बोला है भैया तो इस बहन का आत्मविश्वास और स्वाभिमान मत डिगाओ मैं अब एक मां हूं बस और मुझे अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देना है उसके लिए मुझे खुद काम करना ही पड़ेगा ज्यादा पढ़ी हूं नहीं फिर कुछ रुपए की नौकरी के लिए हाथ फैलाने से अच्छा ये दुकान ही क्यों ना चलाऊं!" अनन्या बोली।
" बहुत सही निर्णय है तुम्हारा बहन धन्य हो तुम ईश्वर इतनी शक्ति एक औरत एक मां को ही से सकता है मैं तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचाऊंगा पर कभी भी इस भाई की जरूरत हो बेहिचक कहना !" मानव अनन्या से बोला और सामान ले चला आया पर मन ही मन वो नतमस्तक था एक मां के सामने जो अपना गम भुला अपने बच्चों का सोच रही थी।
दोस्तों ये सच है जाने वाले लौट कर नहीं आते बस उनकी यादें रहती हैं ये हमारे हाथ में है कि हम उन यादों को सीने से लगा रोते रहें या हकीक़त को पहचान आगे बढ़े। एक औरत एक मां सच में ऐसी परिस्थितियों में भी अपने बच्चों की सोचती है ये सच है।
