देवदासी भाग-3
देवदासी भाग-3
सुबह होते ही मेरी शादी की तैयारियां शुरू हो गयी। आज मेरे पास सुबह सुबह एक ग्लास दूध और कुछ फल लेकर एक शारदा नाम की महिला आयी, उन्होने मुझसे कहा ये खा कर मंदिर के प्रांगण में आ जाना। उनके जाते ही मैंने जल्दी- जल्दी खाना शुरू कर दिया शायद इसलिये क्योंकि दूध और फल मेरे लिए सपना था। मेरे कान में ढोल नगाड़े बजने की आवाजें गूंज रही थी, खाने के बाद जब मैं मंदिर के प्रांगण में पंहुची तो ढोंल नगाड़ो की आवाज और तेज सुनाई देने लगी, मंदिर से लगातार घण्टे और शंख की आवाज आ रही थी, मंदिर के सभी पुजारी और कर्मचारी पलहारी महाराज की जय जयकार के नारे लगा रहे थे, मंदिर के मुख्य द्वार से लेकर कमरे तक फूल ही फूल सजे थे, तभी मुख्य द्वार पर फूलों से सजी हुई पालकी आयी, गोराे रंग, मोटा शरीर, सिर पर चुटिया, माथे पर चन्दन, सफेद धोती, हाथ में तुलसी की माला और खड़ाऊ पहने एक महात्मा जी पालकी से नीचे उतरे। मंदिर में काम करने वाली महिलायें दो कतारों में खड़ी उन पर फूल बरसा रही थी। फूलों पर पैर रखते हुये महाराज नीचे उतरे, तुलसी की माला से जाप करते और मंत्र पढ़ते हुये तहखाने यानि की गर्भ गृह की तरफ चले गये, उनके हाव भाव से ही लग रहा था कि वो कोई पहुचे हुए स्वामी है। मंदिर के मुख्य द्वार पर पलहारी महाराज की एक झलक पाने के लिए गांव के लोग आपस में धक्कम धुक्की कर रहे थे। तभी मंदिर के मुख्य पुजारी ने मंदिर के चबूतरे पर खड़े होकर दोनों हाथ हिलाते हुए सबको शांत कराया और कहा आप लोग परेशान न हों महाराज आप लोगों का कष्ट दूर करने के लिए ही कोसो दूर का सफर तय करके आये है आप लोगों से विनम्र निवेदन है कि सभी लोग अपने-अपने घर जाये। महाराज आराम कर रहे है सुबह मंदिर की आरती के बाद दर्शन देंगे। यह सुनकर सभी गांववासी अपने-अपने काम पर चले गये। मैं अपने कमरे में वापस लौट आयी, और पड़ी हुयी खटिया पर लेट गयी।
मंदिर की भव्यता का दृश्य और स्वामी जी के इस तरह स्वागत का दृश्य मेरी आंखों के चारों तरफ बराबर नाच रहा था। एक लड़की ने आकर मुझे झकझोरा मेरी तन्द्रा टूटी। मैने उसे देखा तो वो मुस्कुरा रही थी, मुझसे रहा नही गया मैंने पूछा तुम मुस्कुरा क्यों रही हो, वो जोर-जोर से हंसने लगी, हंसी रोक कर बोली तुम्हारे देव आये है तुम दासी बनने वाली हो, यानि की देवदासी। तुमसे पहले हम देवदासी थे, मेरा नाम श्यामा देवी हैं, उस समय मुझे ऐसा लगा कि मंदिर एक, ईश्वर एक तो एक ही ईश्वर से कितने लोग शादी करेंगे। तभी एक उम्रदराज महिला कमरें में प्रवेश करती है उनके पीछे-पीछे दस पुरानी देवदासियां थाल लेकर आ रही थी, वो रखने का इशारा करती है। उनके बीच से एक महिला मेरे पास आकर कहती है ये जागणी हैं यहां की ज्येष्ठ देवदासी मीरा देवी, इनके चरण स्पर्श करों, आज से तुम इनकी देखरेख में रहोगी। इनकी देखरेख में रहना बहुत ही सौभाग्य की बात मानी जाती हैं। लक्ष्मी उनके पैर छूती है, मीरा देवी आशीर्वाद देते हुये कहती है, उम्मीद है एक दिन तुम मेरी जगह लोगी। यह सुन कर मां के फैसले पर गर्व होने लगा। मीरा देवी मुंह से कुछ नही कहती लेकिन मंदिर की सारी महिलाएं चाहे पुजारन हो या देवदासी बिना बोले ही उनके मन की बात समझ जाती थी। उनमें से एक महिला मेरा हाथ पकड़कर कमरे सेे बाहर मंदिर के बाहर परिसर में ले आयी, फिर पत्थर पर बने चबूतरे पर बिठा दिया, दूसरी महिला थाल में से हल्दी का लेप ले आयी। सभी खड़ी होकर मीरा देवी के आदेश का इंतजार कर रही थी और मीरा देवी शुभ मुहूर्त का, थोडी देर बाद मंदिर में नगाड़ो की आवाज फिर से आने लगी, शायद ये शुभ मुहूर्त का आगाज था। मीरा देवी ने कुछ इशारा किया, कुछ महिलाओं ने हल्दी का लेप लेकर मेरे सिर के बाल से लेकर पैरों के नाखून तक लगाना शुरू किया। नृत्य करने वाली महिलाएं मुझे अच्छी लग रही थी, शायद वो पहले वाली देवदासियां थी।
मुझे अपनी किस्मत पर नाज़ हो रहा था, अपने घर में कभी कभी भूखे पेट सोना पढता था हमारे पेट में अन्न का दाना ठाकुरों के जूठन का मोहताज था, और आज ऐसी चीजें खाने और पहनने को है, जिसका मैनें कभी सपना भी नही देखा था आज मेरी सेवा में इतनी सारी औरतें लगी है। तभी दूध से भरी हुई बाल्टी से मुझे नहलाया गया, नहलाते समय महिलाएं मंत्र का उच्चारण कर रही थी और फिर पानी से नहलाया। मुझे नहलाने के बाद श्रृंगार का समय आ गया। इधर नहलाने की रस्म खत्म हुयी, उधर मंदिर में शंख और घण्टे की आवाज भी बन्द हो गयी। मीरा बाई ने कहा अब हम जा रहे भगवान की सेवा का समय हो गया तुम लोग लक्ष्मी को तैयार करना शुरू करों, ये कहते हुए मीरा बाई उठकर चली गयी। इधर गांव में ठाकुर साहब के नौकरो ने डुग्गी बजाकर घोषणा किया कि आज गांव के मंदिर में लक्ष्मी को देवदासी बनाने की प्रक्रिया शुरू होगी फिर ईश्वर के साथ व्याह हो जायेगा, आप सभी लोग मंदिर के प्रांगण में शाम को एकत्रित हो जाये। इधर पुरानी देवदासीयों ने मुझे चटख पीले रंग का घाघरा चोली पहनाकर फूलो और सोने के गहनों से सजा दिया। पैरों में आलता, हाथों में पीली चूड़ियां, माथे पर बड़ी सी लाल बिन्दी और सिर पर लाल रंग की चमकीले गोटे वाली ओढ़नी। मेरे चारों तरफ पुरानी देवदासियां एक बार फिर से नृत्य करने लगी। शाम का समय था आरती शूरू हो गयी, आरती में पलहारी महाराज, गांव के सारे ठाकुर और ऐसे लोग जिसे मैंने गांव
में पहले कभी नही देखा था,
मेरे व्याह में शामिल थे एक पल मुझे ऐसा लगा कि क्या मेरी मां मेरी शादी करती तो इतने लोग मेरी शादी में शामिल होने के लिए आते। तभी श्यामा फिर से मेरे पास आयी अबकि मुस्करा नही रही थी कुछ ज्यादा ही गंभीर थी, हाथ में चांदी की थाल में जयमाल ली हुयी थी, मुझसे रहा नही गया मैंने पूछा क्या बात है तुम इतनी उदास क्यों हो, उसने कहा उदास नही दुखी हूं, हम लोग चाह कर भी तुम जैसी लड़कियों को इस काल से बचा नही पाते। कल तुम्हारा भी पागलों जैसा हाल होगा, कभी रोने की इच्छा होगी तो कभी हंसने की। इतनी देर में मीरा देवी को आता देख थाल रखकर श्यामा वापस चली जाती हैं।श्यामा की कही बातें न तो मुझे कुछ समझ आ रहा थी और न ही मैं कुछ समझना चाहती थी। मेरे अन्दर केवल कीमती गहने, अच्छे कपड़े और स्वादिष्ट खाने का मोह जाग चुका था। मीरा देवी मेरे नजदीक आकर मुझे एक टक निहारे जा रही थी, शायद वो भी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कहा नही, बस निहारती रही। सबकी आंखें में मुझे लेकर एक जैसा ही प्रतिबिम्ब उभरता था। उन्होंने मुझे चलने का इशारा किया, मैं उनके पीछे चल दी, मंदिर के प्रांगण में आते ही मेरे पैर ठीठक गये,
बीचों बीच काफी ऊंचाई पर कृष्ण जी की मूर्ति रखी थी, मूर्ति के इर्द-गिर्द पलहारी महाराज, गांव के ठाकुर, पुजारी और न जाने कितने अनजान चेहरे बैठे थे। तभी कही से शारदा निकलकर आयी और मेरा हाथ पकड़कर मुझे व्याह की वेदी पर बिठा दिया। समस्त रस्मों रिवाजों और मंत्रोंच्चारण के साथ विवाह विधि शुरु हो गयी, आगे की विधि के लिए पलहारी महाराज को बुलाया गया, पलहारी महाराज की गोद में कृष्ण जी की मूर्ति थी उन्होंने मेरे हाथ से कृष्ण जी के साथ जयमाल करवाया, और सात फेरे। चारो तरफ अगरबत्ती की खुशबू और धूपबत्ती का धुआं, समस्त वातावरण खुशबूमय हो गया था। फिर श्यामा ने मेरी लाल ओढ़नी हटायी मेरी आंखें अपने आप बन्द हो गयी, मेरे ऊपर फूलों की बारिश हो रही थी, थोड़ी देर बाद आंख खुली तो मेरे मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र था। मेरा नाम बदलकर लक्ष्मी से मेनका देवी रख दिया गया, इसलिए कि अगर कभी मेरी मां मुझे ढूंढ़ते हुए आये तो मेरा परिचय ही न बचे। पुरोहित जी इस मंदिर के खास पुजारी है और जागणी मीरा देवी जो इस मंदिर की खास पुजारिन है उन दोनों ने मुझे शपथग्रहण कराया कि मैं मंदिर और श्री कृष्ण की आजीवन तन मन से सेवा करूंगी और मेनका देवदासी के नाम से जानी जायेगी। मांग में सिंदूर और मंगलसूत्र गले में पड़ते ही मेरे अन्दर एक अजीब सा परिवर्तन आ गया मैं वास्तविक रूप से अपने आप को श्री कृष्ण की पत्नी समझने लगी और श्री कृष्ण को अपना पति परमेश्वर मान चुकी थी। श्यामा मुझे एक कमरे में ले गयी, पूरा कमरा गुलाब के फूलों से सजा था, कमरे में गुलाब और चन्दन की खुशबू आ रही थी, एक बहुत ही बड़ा और खूबसूरत पलंग। श्यामा ने उस पलंग पर बिठाते हुए कहा अब तुम यही रहोगी यह कहते हुए उसने मेरे सामने ढेर सारा प्रसाद रख दिया, मैने उसे जाता हुआ देख कर कहा तुम कहां जा रही हो, श्यामा ने पलट कर जबाज दिया तुम्हारे लिए खाना लेने।
श्यामा के जाने के बाद जैसे ही थोड़ा सा प्रसाद खाया तो इसका स्वाद कसैला लगा, मेनका सोचने लगी जन्माष्टमी का प्रसाद तो बहुत मीठा था लेकिन ये इतना कसैला क्यों लग रहा, तभी श्यामा खाना लेकर आ गयी। मेनका ने श्यामा से कहा, श्यामा मुझे प्रसाद बहुत पसन्द है लेकिन ये इतना कसैला क्यों है, श्यामा ने आश्चर्य से कहा प्रसाद कसैला कैसे हो सकता है लाओं हम खाकर देखे फिर बताते है जैसे ही श्यामा ने थोड़ा सा प्रसाद मुंह में रखा वाकई उसका स्वाद कसैला था। श्यामा को याद आ गया कि जिस दिन वो देवदासी बनी थी उस दिन भी प्रसाद का स्वाद ऐसा ही था। श्यामा तुरन्त बोली छोड़ो हटाओ प्रसाद को मत खाओ। तुम खाना खाओ, जैसे ही श्यामा ने खाने का थाल मेरे सामने किया इतना सारा स्वादिष्ट भोजन देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया, मैने पूछा श्यामा तुम नही खाओगी। श्यामा ने कहा नही तुम खाओ, मैने श्यामा के हां या ना का इंतजार भी नही किया बस खाने में जुट गयी। श्यामा मेरी नादानी पर मुस्कुरा रही थी, खाने के बीच में मैने श्यामा से पूछा तुम्हारे मां बाबा कहां रहते है, चिरी गांव में अच्छा तुम्हें भी लेने के लिए जागणी गयी थी, क्या तुम भी ईश्वर की बेटी हो। नही हमें जागणी लेने नही गयी थी, मेरी आई ने मन्नत मांगी थी, आई को बच्चे नही होते थे उन्होंने ईश्वर से मन्नत मांगी कि उनका बांझपन दूर हो जायेगा तो अपनी खुशी से अपनी होने वाली बेटी अवलाद को ईश्वर की बेटी मानकर दान कर देंगे। बाबा ने भी इसका विरोध नही किया, वो भी हमें दान करने को राजी हो गये इतना कहते हुए श्यामा की आंखों से आंसू टप-टप कर जमीन पर गिरने लगे, और सिसकने की आवाज आने लगी, तभी श्यामा को रोता देख मेनका का खाने से मोह भंग हो गया। श्यामा के आंसू पोंछते हुए बोली तुम्हे अपनी आई की याद आ रही है, नही हम अपनी आई से नफरत करते हैं, अपने माथे से बांझ का कलंक मिटाने के लिए हमें नरक में ढ़केल दिया। ऐसा न कहो श्यामा इतना अच्छा खाने पहनने को तो हमारे घर में भी नही मिलता और फिर इतना सम्मान। श्यामा ने अपने दोनों हाथों से अपने आंसुओं से लथपथ चेहरे को पोछते हुए कहा तुम अभी बच्ची हो मेनका वक्त का इंतजार करो।
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