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suneeta gond

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देवदासी भाग-१

देवदासी भाग-१

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आज यशोधरा बेहोशी की हालत में लच्छो बाई के कोठे पर बद् से बत्तर हालत में पड़ी थी, कपड़े भी अस्त व्यस्त थे, उसके शरीर पर चोट के निशान थे, ऐसा लगता था कई दिनों से उसे खाना नही दिया गया। शरीर पीला पड़ रहा था, लता उसे आश्चर्य भरी‌ निग़ाहों से गौर से देख रही थी, मन ही मन सोच रही थी इसे यहां कौन ले आया, तभी लता के कानो में लच्छो बाई की आवाज पड़ी, "लता ये लता कहां मर गयी देख उस लड़की को होश आया कि नही", इतना कहते कहते लच्छो बाई लता के पास आ गयी लता ने हकबकाते हुए कहा "हां माई देखते है, होश आया कि नही।" लच्छो बाई ने उसे हिलाया डुलाया फिर बोली "इसका ठीक से ध्यान रख जरूरत पड़ने पर वैध जी के यहां से दवा मंगवा लेना। आज रात ठाकुर की हवेली में जश्न हैं हम विमला, रोली, रूपा और कमला को साथ ले जा ‌रहे, राधा तुम लोगों के पास रहेगी, ध्यान रखना है कही भाग न जाये न जाने इस मासूम की किस्मत में क्या लिखा है" ऐसा बड़बड़ाते हुए लच्छो बाई अपनी टीम के साथ हवेली की तरफ चल पड़ी।

लच्छो बाई के जाने के बाद लता ने पानी गर्म कर राधा को आवाज लगाकर कहा "इसके पूरे शरीर को पानी से पोछ कर कपड़े बदल दो, मैं नहा कर आती हूं।" राधा ने यशोधरा के कपड़े बदल कर लता के पलंग पर लिटा दिया। तब तक लता नहा कर आ गयी। राधा ने लता से कहा दीदी अगर एक घण्टे में इस लड़की को होश नहीं आया तो वैध जी के यहां दवा लाने के लिए नत्थू को भेजना पड़ेगा, हम जा रहे चाय बनाने जरूरत पड़े तो बुला लेना कहते हुए राधा अपने कमरे में चली गयी।

पूरा कोठा सुनसान पड़ा था, सभी माई के साथ हवेली गये थे। लता एक कोने में तिपाई खींच कर बैठ गयी, नींद उसकी आंखों से कोसो दूर थीं उसे अभी तक समझ नहीं आ रहा था कि यशोधरा देवी कोठे तक कैसे आ गयी। एक पहर बीत गया जब यशोधरा को होश नही आया तो लता ने नत्थू को आवाज लगाकर कहा "नत्थू जाओ वैध जी को पूरी बात बताकर यशोधरा देवी के लिए दवा ले आओ", ठीक है दीदी कहकर नत्थू चला गया।

लता उसके होश में आने का इंतजार करने लगी, लता को आज भी याद हैं जब सोनपुर गांव में ठाकुर रणवीर सिंह की शादी में बड़े ठाकुर की तरफ से नाचने का नेवता और बीस हजार नगद आया था तो माई अपने साथ लता को भी ले गयी थी, माई ने पहली बार लता को किसी के सामने सजा धजा कर पेश किया था। लता नृत्य में निपुण थी, नाचती तो ऐसा लगता धरती पर कोई अप्सरा उतर आयी हो। लता के मुजरे से खुश होकर ठाकुर साहब ने गांव के बाहर खाली पड़ी खाली हवेली लता को नजर किया था और ठाकुर साहब ने माई को हुक्म दिया था कि अब लता केवल मेरी हवेली में मुजरा करेगी। उस समय किसी वैश्या के लिए ये सम्मान की बात हुआ करती थी। एक साल बाद सोनपुर में मेला लगा जो बहत प्रसिद्ध था। दूर-दूर से लोग सोनपुर का मेला देखने आते। मेला की प्रसिद्धि की वजह वहां का विशालकाय मंदिर जिसका गुम्बद और प्रत्येक दरवाजे सोने के बने थे। वहां पर दस बारह देवदासियां भी थी, रोज का पता नहीं लेकिन जब हम लोग मेला देखने जाते तो एक खुबसूरत सी लड़की मात्र सत्रह साल की रानियों जैसे कपड़े पहने, ढेर सारे गहनों से लदी, सुन्दर नही अति सुन्दर, बड़ी-बड़ी गहरी झील जैसी आंखें, लम्बे-लम्बे बालों वाली चुपचाप अपनी धुन में खोयी नृत्य करती। लोगों की भीड़ उसे देखने के लिए इकटट्ठी रहती। लता भी भीड़ को चीरते हुए उसे देखने पहुच गयी, सभी लोग उस नृत्य करती हुई देवी को प्रणाम कर रहे थे, लता ने भी उस देवी को प्रणाम किया और भीड़ में खड़े एक व्यक्ति से पूछा ये कौन सी देवी है उसने धीरे से कहा "यशोधरा देवी हैं।" तभी अचानक से मेरे हाथ पर एक भारी हाथ पड़ा पलट कर देखा तो माई का हाथ था, वो मुझे खिंचते हुये भीड़ से बाहर लायी फिर हवेली की तरफ दौड़ाते हुए ले जा रही थी, हवेली पहुच कर माई ने जोर से धक्का देकर पलंग पर ढकेल दिया। माई की सासे फूल रही थी, माई दहाड़ते हुए बोली "पागल हो क्या ठाकुर साहब देख लेते तो मरवा देते, वैश्याऔं का मंदिर जाना मना है, दान में मिली हवेली भी छिन जायेगी, क्यों नही समझती तुम।" लता कुछ न बोली गरदन झुकाए सब सुन रही थी माई ने उस पर कड़ा पहरा बिठा दिया। माई दिल की बुरी नही थी आज न जाने अचानक से उसे क्या हो गया। तब से लता हर रोज एक ही ख्वाब देखती कि काश मैं देवदासी होती, कम से कम लोग हमें देखने के लिए भीड़ लगाकर खड़े होते। मेरे कोठे पर लोग छुप कर आते हैं, हम लोगों का नाम शर्मिन्दगी से लिया जाता है कितनी खुशकिस्मत है यशोधरा देवी। ।  



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