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suneeta gond

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देवदासी-2

देवदासी-2

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 देवदासी‌ 2       ‌                          


लता के कानों में राधा की आवाज गूंजती है, लता ये लता उठो देखो इस लड़की को होश आ गया है, कहा खोयी हो तुम। नत्थू वैध जी के यहां से दवा भी ले आया है, और हम चाय भी बना लाये है लो पी लो। लता अपनी तिपाई से उठकर यशोधरा के बगल में बैठ जाती है उसका शरीर बुखार से तप रहा था। लता ने राधा से कहा ठण्डा पानी और कपड़े की पट्टी लें आओ। ठण्डे पानी में पट्टी भिगोकर इसके माथे पर रखते हैं शायद ताप कम हो जाये। राधा ठण्डे पानी में कपड़ा भिगोकर उसके माथे पर रखने लगती है लता चाय पीते-पीते उसका चेहरा गौर से निहारती हैं, न जाने क्यों लता को यशोधरा के चेहरे में ऐसा क्या दिखता है जो एक बार देखती है तो देखती ही रह जाती है। आधे घण्टे बाद यशोधरा को अच्छी तरह से होश आ जाता है, जैसे ही यशोधरा आंख खोलती है, अपने सामने दो औरतों को खड़ा पाती है। तभी लता राधा से कहती है चाय ले आओ राधा, ठीक से बैठ जाओ यशोधरा देवी तुम्हें दवा खानी है, चाय का प्याला और दवा राधा यशोधरा की तरफ बढ़ाती है, चाय पकड़ते हुए यशोधरा पूछती हैं तुम लोग कौन हो, ये कौन सा गांव हैं। तुम अपने मंदिर से दस कोश की दूरी पर हो, ठाकुर साहब की पुरानी हवेली में हवेली कम कोठा ज्यादा। राधा लता को इशारा करती हैं कुछ मत बताओ माई को आ जाने दो, लता इशारा समझकर चुप कर जाती हैं। यशोधरा ने चाय पी दवा खायी और अपनी आप बीती सोचने लगी, राधा ने कहा सुबह के चार बज रहे है लता तुम जाओ जाकर सो जाओ हम जागते है और यशोधरा तुम भी आराम करो। कहीं न कहीं राधा डरी हुई थी कि माई के आने से पहले ये भाग न जाए। ऐसा हुआ तो माई हंटर से पिटवायेगी। लता अपने कमरे में सोने चली गयी। राधा पुरी मुस्तैदी से चौकीदारी कर रही थी लेकिन यशोधरा के शरीर में इतनी जान कहाँ बची थी कि अपनी जान बचाती, फिर भाग कर जाती कहाँ, यशोधरा को गहरी नींद में देखकर नत्थू को सचेत करते हुए राधा सो जाती है। न जाने कब सुबह हो जाती हैं किसी को पता ही नहीं चलता। सुबह माई हवेली में आती है तो किसी तरह की आहट न पाने पर यशोधरा के भाग जाने का ख्याल मन में आता है वो घबराते हुये यशोधरा की तरफ भागती है यशोधरा को पलंग पर सोता देख मुस्कुरा कर राधा को जगा कर कहती है राधा अपने कमरे में जाकर सो जाओ। हम इसके पास बैठते है। ठाकुर साहब के यहां जश्न में रात भर जागने की वजह से माई ज्यादा देर जाग नहीं पाती, यशोधरा के सिरहाने के पास ही सो जाती है। सुबह दस बजे तक किसी के‌ न उठने के कारण और नत्थू के सोने की वजह से आज बावर्ची भी आराम से काम कर ‌‌रहा था, कहीं किसी की नींद में खलल न पड़ जाए। लड़कियों की नींद में खलल पड़ने से माई बहुत नाराज़ होती थी, ऐसे ही शांति से थोड़ा समय गुजरा ही था तभी एक जोरों की चीख हवेली में गुंजती हैं, सभी चीख की आवाज सुनकर दौड़ते हुए कमरे से बाहर आ जाती हैं नीचे से नत्थू भी जोरों से चिल्लाता है राजू, पंकज, कलुआ, पहलवान देखो ऊपर से कैसी आवाज आ रही हैं सब ऊपर की तरफ भागते हैं अचानक से हाल में आकर ठीठक कर खड़े हो जाते है। यशोधरा आंख बन्द करके लगातार चीखती जा रही थी।

कुछ समय बाद यशोधरा आंख ‌खोलती है तो अपने इर्द-गिर्द ढेर सारी औरतें और लड़कियों को खड़ा पाती हैं उसकी सांसे बहुत तेज चल रही थी, तभी लता एक ग्लास दूध और दवा यशोधरा की तरफ बढ़ाती है, यशोधरा लता की तरफ देखते हुए पूछती है ये लक्ष्मी जोगाथी (चालीस से पचास साल उम्र की देवदासी को जोगाथी कहते हैं) यहां क्या करने‌ आयी हैं ये फिर‌ से मुझे सजा धजा कर किसी मंदिर में ले जायेगी, लता यह सुन कर आश्चर्य से माई को देख कर कहती हैं माई तुम देवदासी हो? इतनी देर में यशोधरा लता से लिपट जाती है, ये जोगाथी हमें दूसरे मंदिर में भेज देंगी, मुझे बचा लो। लता ने यशोधरा का हाथ पकड़ कर कहा नहीं बहन ये मेरी माई है मेरी ही नहीं यहां पर रहने वाली सबकी माई है, लो दवा खा लो ये बहुत अच्छी है, कुछ लोग तुम्हें बेहोशी की हालत में फेंक गये थे। यशोधरा पर लता की बात का कोई असर नहीं होता है बस वो डर से एक कोने में दुबकती जा रही थी। तब माई ने दूध का गिलास लता के हाथ से लेकर यशोधरा के पास गयी जैसे ही माई ने गिलास आगे बढ़ाया यशोधरा ने लपक कर गिलास पकड़ लिया और एक सांस में सारा दूध पी गयी। ये देख कर सभी आश्चर्यचकित रह गये। माई अपने कमरे की तरफ जाने लगी अभी थोड़ा बढ़ी ही थी तभी यशोधरा फिर चिल्लाते हुए बोली, लक्ष्मी बता कर जा अब कौन से मंदिर में भेजने वाली है। माई ने पलट कर यशोधरा देखा उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी, माई लौट कर आयी और यशोधरा के बगल में बैठ कर बोली, अब तुम यही रहोगी यशोधरा। मंदिर के पुरोहित और जमींदारों का हुक्म है, अब तुम्हारी छोटी बहन ललिता को देवदासी बनाने की बात चल रही हैं इतना कहना ही था कि यशोधरा माई पर टूट पड़ती हैं। तभी हवेली के रक्षक यशोधरा को माई से अलग करते है, लता को ये सब देखा नहीं जाता वो कहती है यशोधरा छोड़ दो माई को,  देवदासी और कृष्णदासी बनना तो अच्छी बात है, आज जहां तुम बैठी हो क्या ये अच्छी जगह है? माई यशोधरा के आंसू पोंछते हुए कहती है तुम सही कह रही हो तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार हम ही है। ये लता मेरी अपनी बेटी है हमने जो कुछ भी किया अपनी बेटी को बचाने के लिए किया लेकिन कहते है न बुरे कर्मों का बुरा फल। फिर भी ठाकुर की नज़रों से हम अपनी बेटी को बचा नहीं पा रहें सवालियां निगाहों के साथ सभी माई देखने लगती है, फिर एक-एक करके माई को घेर कर बैठ जाती है बावर्ची भी सबको चाय देकर वही जमीन पर बैठ जाता है। माई कहती है मेरा नाम लच्छो बाई नहीं लक्ष्मी है, मेरा परिवार भुखमरी की कगार पर था, पिताजी के बटाही के खेत में दीपावली के दिन अचानक से आग लग गयी, पिताजी और मां तड़पती, रोती बिलखती रही लेकिन खेत तो जल चुका था अब केवल कालिख बची थी। यही कालिख मेरे चेहरे पर मल दी गयी, पिताजी बिस्तर‌ पर गिरे तो दोबारा उठ न पाये। मां ठाकुर की हवेली में गायों को चारा खिलाने का काम करने लगी। इसके बदले में बचा हुआ खाना मिल जाता, मां खुशी खुशी बासी खाना घर पर लाकर हमें और पिताजी को खिलाती। आज मंदिर में जन्माष्टमी की पूजा थी। गांव के नियम के हिसाब से सभी को रात बारह बजे मंदिर में प्रसाद लेने जाना पड़ता था। मां की तो मजबूरी थी, मां ने हमसे कहा लक्ष्मी तू भी चल मंदिर से प्रसाद ले आते है।

तेरे बाबा को प्रसाद खिलाकर दवाई खिला देंगे सुबह से भूखे हैं। मां ने मेरा हाथ पकड़ा और मंदिर की तरफ चल दी, हम मां बेटी प्रसाद के लिए लाइन में खड़े हो गये थोड़ी देर बाद हमारा भी नम्बर आ गया। पुरोहित जी ने मां को प्रसाद दिया, मां ने कहा पुरोहित जी थोड़ा और मिल जाता तो, कहकर मां डर से चुप हो गयी, मां मेरा हाथ पकड़कर आगे बढ़ी तभी पुरोहित जी ने आवाज लगाया, सुन तो बिंदिया और प्रसाद लेती जा तेरी बेटी का क्या नाम है। मां ने प्रसाद के लिए हाथ बढ़ाया पुरोहित जी ने ढेर सारा प्रसाद मां के आंचल में डाल दिया, आंचल में गाठ लगाती हुई मां बोली पुरोहित जी लक्ष्मी नाम है इसका। मां और मैं खुशी-खुशी घर को चल दिये। आज बहुत खुशी का दिन था, कई दिनों बाद पेट भरा था। पिताजी को दवाई भी खिला दी गयी। हम तीनों सो गये पेट भरने के बाद नींद भी अच्छी आयी। सुबह आने वाले तूफान का अंदाजा नहीं था। सुबह मंदिर के पण्डे यानी की पुजारी पालकी तैयार करने में लग गये। पण्डे ये समझ चुके थे कि जब पालकी गांव के अन्दर घूमती है तो मंदिर में नयी देवदासी आती है। पुरोहित जी की पालकी को चार पण्डों ने अपने कन्धों पर उठा रखा था। गांव की जिन गलियों से पालकी गुजरती गांव के बूढे, बच्चे, जवान सब पालकी के पीछे-पीछे हो लेते। दोपहर तक पुरोहित जी अपनी मंदिर की पूरी सेना के साथ हम लोगों के घर के सामने थे। मैं हाते में खेल रही थी, हमें लगा पुरोहित जी रात का बचा हुआ प्रसाद देने आये हैं। लेकिन मां उनके आने का मतलब समझ गयी थी, मां ने पिताजी से कहा पुरोहित जी आये हैं शायद पिताजी भी समझ चुके थे। मां एक बड़े से थाल में पानी ले आयी और पुरोहित जी के पांव पखारने लगी पुरोहित जी ने मां के सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया फिर बोले तुम्हारी बेटी को देवदासी बनना होगा, कल मैंने उसके बाये हाथ पर तिल का निशान देखा था, वो ईश्वर की बेटी है उसे ईश्वर की सेवा करनी होंगी। तुमने तिल के निशान पर ध्यान नहीं दिया तभी तो तुम्हारे घर में प्रलय आया हुआ है, ईश्वर तुम लोगों से नाराज़ है हम लोग उनका संदेशा लेकर तुम्हारे पास आये है, लक्ष्मी के इस घर से जाने के बाद तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। हम इसी नवरात्र की रात तुम्हारी बेटी को ले जायेंगे, मां हाथ जोड़ कर खड़ी रही पुरोहित जी को जो कहना था कह कर चले गये। किसी के विरोध करने का‌ प्रश्न ही नहीं उठता।               ‌‌   

"पहले देवदासी बनना सौभाग्य की बात होती थी, लेकिन इस पुरुष प्रधान ‌‌समाज में अगर कोई प्रथा औरतों के सौभाग्य से जुड़ी होती हैं तो कुछ परसमतापी लोग औरतों के सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल देते हैं।" पुरोहित जी के जाने के बाद मैं दौड़ते हुए घर के अन्दर आयी और सारे बर्तनों को पलटने लगी कहीं कुछ भी नहीं मिला तो दौड़ती हुई मां के पास गयी। मुझे हांफते हुए देखकर मां बोली क्या हुआ लक्ष्मी, मैंने मुंह बनाते हुए कहा मां पुरोहित जी ने जो प्रसाद दिया है वो कहां हैं, मां बोली पुरोहित जी प्रसाद देने नहीं आये थे वो तुमको लेने आये थे, लक्ष्मी बहुत मासूमियत से बोली वो क्यों? क्योंकि तुम्हें प्रसाद बहुत पसन्द है न, पुरोहित जी तुम्हें लेने नवरात्रि के दिन आएंगे, फिर खाती रहना प्रसाद। यह सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मां ठाकुर साहब के यहां काम करने चली गयी और मैं अपने सपनों में खो गई। मुझे सपनों में अच्छे-अच्छे साड़ियां और गहने दिखाई दे रहे थे। आज ठाकुर साहब ने मां को काम पर आने के लिए मना कर दिया ठाकुर साहब ने कहा तुम जाओ खाना और पैसे तुम्हारे घर मंदिर से पहुंच जाया करेंगे तुम्हें किसी चीज की तकलीफ नहीं होगी तुम्हारी बेटी ईश्वर की बेटी है। अब वह देवदासी बनने जा रही है। तुम मेरे घर में काम करके मुझे पाप का भागी मत बनाओ। मां चुपचाप अपने घर आ गयी। मैं देवदासी बनूंगी ये सोच कर मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश थी। मां इसलिए खुश थी कि घर की गरीबी दूर हो जाएगी और घर में बेटा आयेगा। नवरात्रि का दिन भी नजदीक आ गया। आज फिर से पुरोहित जी की पालकी मेरे घर की तरफ आ रही थी, लेकिन आज इस पालकी में पुरोहित जी की जगह जोगाथी थी। जोगाथी नीचे उतरी और उन्होंने मां से कहा हम देवदासी को लेने आये हैं, कल इसका ब्याह ईश्वर के साथ है। जोगाथी मिठाइयां और ढेर सारे रुपयों से सजा हुआ थाल मां के हाथ में पकड़ा दिया और मेरा हाथ पकड़ कर पालकी में बिठाकर मंदिर की तरफ चल पड़ी। मां थाल को देख रही थी, एक नजर मेरी तरफ उठा कर भी नहीं देखा। गांव वाले जमीन पर लोट लोट कर जोगाथी को प्रणाम कर रहे थे। मेरा मंदिर में स्वागत ऐसे किया गया जैसे किसी महारानी की शाही सवारी आ रही हो। मुझे एक कमरे में ले गए और बोले तुम आज आराम करो कल तुम्हारा ब्याह है।       

देवदासी का अगला भाग *******



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