देशभक्ति day-27
देशभक्ति day-27
कॉलेज अभी शुरू ही हुए थे। भारत के विभिन्न प्रान्तों से विद्यार्थी इस जाने-माने कॉलेज में पढ़ने आये थे। अपन घर से दूर विद्यार्थी हॉस्टल में रह रहे थे। अपने क्षेत्र और संस्कृति से दूरी , क्षेत्र और संस्कृति के प्रति कई बार एक विशेष लगाव को जन्म देती है। हमारी संस्कृति के साथ दूसरी संस्कृतियाँ भी श्रेष्ठ हैं, इस प्रकार की स्वीकृति की भावना देश ,समाज में समरसता बनाये रखती है और साथ ही संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के मौलिक आधार की सही मायने में रक्षा भी करती है।
हॉस्टल की मेस में बैठे हुए विद्यार्थी अपने क्षेत्र, जाति, धर्म,नस्ल आदि के लोगों की भारत को आज़ादी दिलाने में दिए गए योगदान पर चर्चा कर रहे थे।प्रत्येक विद्यार्थी अपने क्षेत्र विशेष के योगदान और तरीकों को श्रेष्ठ बताने की कोशिश कर रहा था।
"आज़ादी की लड़ाई में सबसे ज्यादा सेनानी मेरे प्रान्त से थे।" भारत के बंगाल प्रान्त से आये किसी विद्यार्थी ने कहा।
"लेकिन अखबार तो सबसे ज्यादा मेरे प्रान्त से निकले थे। अखबारों ने ही आमजन के मध्य राष्ट्रवाद स्वतंत्रता जैसे मुद्दों का प्रचार प्रसार किया। "महाराष्ट्र से आये किसी दूसरे विद्यार्थी ने कहा।
"आज़ादी के सिद्धांत तो मेरे प्रान्त में जन्मे महात्मा गाँधी ने ही दिए थे । "तब ही गुजरात से आया एक विद्यार्थी बोल उठा ।
"स्वतंत्रता के अधिकार की बात तो मेरे प्रान्त के तिलक महोदय ने ही की थी । "महाराष्ट्र से आया विद्यार्थी कब चुप बैठने वाला था ।
उनकी गर्मागर्म बहस हाथापाई तक पहुँचने ही वाली थी। उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी दूसरों के जीवन के अधिकार के लिए बाधा बनने ही वाली थी।
तब ही बहुत देर से उनकी बहस सुन रहे हॉस्टल वार्डन ने राष्ट्रीय गान गाना शुरू कर दिया। सभी विद्यार्थी अपनी बहस छोड़कर राष्ट्रीय गान समवेत स्वर में गाने लगे।
तब हॉस्टल वार्डन ने कहा ,"हम सभी ने राष्ट्रीय गान गाया, किसी ने सुर में, किसी ने बेसुरा, किसी ने धीमी आवाज़ में ,किसी ने तेज़। लेकिन सभी ने देशभक्ति की भावना से बँधकर गाया। उसी प्रकार आज़ादी के दीवानों ने भी देशभक्ति की समान भावना से बँधकर देश को आज़ाद कराया था। सबका उद्देश्य एक ही था, चाहे तरीके अलग़-अलग हों।"
