डर
डर
आज मन बहुत उदास, दुखी और परेशान भी है क्योंकि मुझे मायके जाना है। अरे पर परेशानी का कारण मायके जाना नहींं बल्कि मेरे इन का व्यवहार है सुबह से ही ये बिल्कुल नॉर्मल हैं, किसी भी बात पर झिक झिक नहीं न चिढ़ना न गुस्सा करना और यही सब मुझे आज खाये जा रहा है, बीस बरस होने को आए साथ रहते हुए ऐसा पहली बार हो रहा है, जब भी मुझे जाना होता है ये सुबह से ही चिड़चिड़े मूड में रहते है, हर बात पर किट- किट सीधे मुह बात भी नहीं करते भले चार दिन को ही जाऊँ तब भी।
शुरुआती दिनों में मैं बहुत दुखी हो जाती थी ये ही सोचती कैसा इंसान मिला है मुझे, जो जाने से पहले चिक चिक करता है ये नहीं की दो बोल प्यार के बोले; फिर बहुत ही जल्द मैं ये समझ गई थी कि इनका यह व्यवहार अंदर उपजी भावुकता का परिणाम है, फिर वो सब मुझे अच्छा लगने लगा बहुत अच्छा, इनका गुस्सा कानों में रास से घोल देता मैं अंदर ही अंदर खुश होती रहती, पर आज क्या हुआ है।
कितने ही सवाल मन को डरा रहे हैं, इनको अब पहले जैसा प्रेम नहीं रहा मुझ से? क्या ये बदल गए हैं ? मैं अब अच्छी नहीं लगती ? क्या मेरे जाने से ये खुश है ? हे भगवान दिमाग काम नहींं कर रहा क्या सोचूँ, मन तो हो रहा है आज का जाना ही कैंसल कर दूं, हमेशा से कहा करती थी मम्मी से कि बच्चे का स्कूल है पढ़ाई है तभी छुट्टियों के हिसाब से उनके पास आती हूँ।
जब बेटा बड़ा हो के बाहर पढ़ने जाएगा तब जब भी उनको मेरी याद आएगी या जरूरत होगी मैं आ जाय करूँगी, अब कुछ दिनों से वो थोड़ा बीमार है तब मुझे जाना ही है।
इनके इस व्यवहार ने मुझे सोच में डाल दिया है, सच्ची अब तो गुस्सा भी आने लगा है निकलने का टाइम हो रहा है और जनाब गायब हैं फ़ोन भी नहीं उठा रहे हैं मैं अनमने मन से तैयारी करने लगी, समान ला के बाहर के कमरे में रख दिया और हाथ मुँह धो तैयार होने लगीकाजल लगा ही रही थी कि दरवाजे की घण्टी बाजी, एक आँख में काजल लगा था वैसे ही दरवाजे की तरफ भागी सोचा गुस्से में मुँह और लाल कर के उलाहना दूंगी ट्रेन निकल जाने के बाद आते आप, दरवाजा खोलते ही आश्चर्य का ठिकाना नहींं रहा सामने मम्मी, भाई और मेरे ये खड़े थे भाई बोले जा रहा था दीदी जीजा जी ने का पर मैंने कुछ नहींं सुना, मैं मम्मी को गले लगाए थी और नजरे इन पे टिकीं थीं। ये मुस्कुराते हुए विजयी भाव से दूसरी तरफ देख रहे थे कहीं से गाने की आवाज आ रही थी- तू प्यार का सागर है।