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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Children

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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Children

डर के साये में एक माँ Prompt 17

डर के साये में एक माँ Prompt 17

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"सलोनी के पति की कोविड से डेथ हो गयी।"मम्मी ने नेहा को फ़ोन पर बताया। 

सलोनी नेहा के साथ स्कूल में पढ़ती थी। सलोनी नेहा की बहुत अच्छी दोस्त तो नहीं थी लेकिन अभी भी वह उसके मायके वाले शहर में रह रही थी। उसकी मम्मी नेहा के मायके के पड़ोस में ही रहती थी इसीलिए उसकी ख़बर मिलती रहती थी। 

मम्मी से बात करने के बाद नेहा का मन बहुत दुःखी हो गया था। आजकल रोज़ ही उसे किसी जानने वाले के निधन की दुखद खबर सुनने को मिल रही थी। नेहा बहुत हिम्मती थी लेकिन इस बुरे दौर में वह भी कई बार दुःखी और हताश हो जाती थी। नेहा खुद के लिए नहीं अपनी बेटी के लिए डरती थी। नेहा की बेटी मिष्ठी अभी 1साल की ही थी। इस बार कोरोना छोटे बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रहा था ;ऐसी खबरें नेहा सुन रही थी। 

नेहा को बेटी मिष्ठी का वेक्सिनेशन भी करवाना था। इस पर ऐसी -ऐसी खबरें। नेहा का दिल बैठा ही जा रहा था।

नेहा वेक्सिनेशन के लिए अस्पताल जाना नहीं चाह रही थी। लेकिन डॉक्टर ने समझाते हुए कहा कि "यह वैक्सीन बच्चे के लिए बहुत आवश्यक है। आपको अपनी बेटी को यह वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए।"

अभी संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान वैक्सीन का महत्व स्पष्ट हो गया था। नेहा और सार्थक भी अपना स्लॉट बुक करवाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

तब नेहा अपने पति सार्थक के साथ बेटी मिष्ठी को लेकर हॉस्पिटल गयी ।नेहा और सार्थक ने तय किया कि एक जना मिष्ठी के साथ कार में बैठा रहे और दूसरा डॉक्टर के पास जाकर उनसे अनुरोध करे कि "वह कार तक चल चलें और वहीं कार में बेटी को हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन लगा दें।"

सार्थक डॉक्टर के पास जाने ही वाले थे। तब यकायक उन्होंने एक सुझाव दिया "नेहा तुमको डॉक्टर के पास जाना चाहिए। तुम एक माँ हो और तुम्हारे शब्द ज़्यादा असरकारी होंगे।"

नेहा N 95 मास्क पहनकर हॉस्पिटल एंट्री पॉइंट पर पहुँची वहाँ हर आगंतुक की स्कैनिंग की जा रही थी। सोशल डिस्टैन्सिंग बनाये रखने के लिए सर्कल्स बने हुए थे। लेकिन जैसा कि हम भारतियों की नियम तोड़ने की जन्मजात प्रवृत्ति है लोग उन सर्कल्स पर खड़े न होकर अपनी मनमर्ज़ी डिस्टैन्सिंग को ठेंगा दिखाते हुए खड़े थे। अभी दूसरी लहर में भी लोग कहाँ कोविड गाइडलाइन्स का पालन मुश्तैदी से कर रहे हैं। सही कहा है कि"जिस किसी ने कोविड से किसी अपने को खोया है उसी के लिए यह महामारी है। दूसरों के लिए तो नौटंकी है।"हम दूसरों की गल्तियों से क्यों नहीं सीखते। हमेशा अपने साथ गलत होने का इंतज़ार क्यों करते हैं। नेहा दूर खड़ी होकर लोगों की भीड़ छँटने का इंतज़ार कर रही थी। नेहा एक माँ थी शायद इसीलिए इतनी सतर्क थी नहीं तो वह भी और लोगों की तरह गैरजिम्मेदाराना व्यवहार करती। 

तब ही एक गार्ड नेहा के पास आया और उसने नेहा को आगे बढ़ने के लिए कहा।नेहा ने एक ही सांस में उससे कह डाला कि "मेरी बेटी बहुत छोटी है।दूरी बनाते हुए खड़ा रहना ही मेरे लिए बेहतर है। मुझे बेटी के वेक्सिनेशन के लिए यहाँ आना पड़ा अन्यथा मैं कहीं भी बाहर आना -जाना टाल ही रही हूँ।" 

गार्ड ने नेहा की परेशानी समझी और उसने स्क्रीनिंग जल्दी से ख़त्म करने में नेहा की मदद की। नेहा फटाफट से हॉस्पिटल में रिसेप्शन की तरफ भागी और उसने रिसेप्शनिस्ट से अपनी चिंता साझा की। रिसेप्शनिस्ट ने नेहा को जल्दी से अपॉइंटमेंट दे दिया था। 

नेहा डॉक्टर चैम्बर के बाहर खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगी। नेहा ने डॉक्टर के साथ अपनी परेशानी साझा की।जिन शब्दों ने हॉस्पिटल के एंट्री पॉइंट और रिसेप्शन पर मदद की थी अब उन शब्दों ने शायद अपना जादू खो दिया था। उन्होंने डॉक्टर को प्रभावित नहीं किया डॉक्टर ने कहा "मैं आपके साथ आपकी कार तक आपकी बेटी को वैक्सीन लगाने नहीं आ सकता। मैं वैक्सीन का नाम आपको लिखकर दे देता हूँजितनी जल्दी हो सके फार्मेसी से आप वैक्सीन ले आएं। आप बस अपनी बेटी को यहां लाएं और उसे अस्पताल की कोई भी चीज न छूने दें। जैसे ही आप यहां लौटेंगी मैं 2 मिनट के अंदर आपकी बेटी को वैक्सीन लगा दूँगा और फिर आप चले जाना।"

नेहा ने वैक्सीन के साथ दस्ताने भी खरीदे और डॉक्टर को दिए। डॉक्टर ने नेहा से पूछा "क्या फार्मेसी के लोग कोरोना के कारण सुरक्षा उपाय के रूप में दस्ताने भी दे रहे हैं।" 

नेहा ने जवाब दिया "नहीं डॉक्टर नहीं।लेकिन एक माँ अपनी बेटी को सुरक्षित रखने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।" 

नेहा की कोशिश जारी थी कि शायद उसके शब्द फिर से चमत्कार कर सकें। लेकिन डॉक्टर ने बदले में केवल एक मुस्कान दी। 

फिर नेहा पार्किंग की ओर दौड़ पड़ी। वह अपनी बेटी और पति को स्क्रीनिंग के लिए लेकर गयी। बेटी की स्क्रीनिंग की जरूरत नहीं पड़ी। सार्थक ने नेहा के लिए दरवाजा खोल दिया था क्योंकि नेहा ने मिष्ठी के चारों ओर अपने हाथों से पकड़ लिया था ताकि वह अस्पताल की कोई भी चीज़ छू न सके। 

नेहा और सार्थक डॉक्टर के पास पहुँच गए थे। डॉक्टर बिल्कुल तैयार थे डॉक्टर ने जल्दी से मिष्ठी को वैक्सीन लगा दी। वह कुछ सेकंड के लिए रोई।नेहा और सार्थक मिष्ठी को लेकर फटाफट अपनी कार तक आये। 

नेहा अगले १४ दिनों के लिए डर के साये में जियी। १४ दिन जब निकल गए तब नेहा की जान में जान आयी थी।


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