डी एन ए -८८

डी एन ए -८८

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१४ फ़रवरी २०१९ की शाम को जब मैं सो कर उठा तो जैसे की मेरी रोज़ की आदत है मैंने उठते ही टीवी आन कर दिया। इलेक्शन सर पे होने के कारण सारे न्यूज़ चैनल्स पे वही डिबेट्स बार बार प्रसारित होते थे इसलिए मैं एनिमल प्लेनेट देखने लगा। तभी मेरे पापा जिनकी उम्र ८४ वर्ष की है ने कमरे में प्रवेश किया। उनकी पॉलिटिक्स में काफी रूचि है और कई बार तो वो घंटों पोलिटिकल डिबेट देखते रहते हैं। उन्होंने आते ही न्यूज़ चैनल लगा दिया। 

ब्रेकिंग न्यूज़ देखते ही खून खोलने लगा, हमारे करीब २५-३० जवान एक झटके में ही मारे गए थे।  एक सुसाइड बॉम्बर ने एक विस्फोटकों से भरी कार से जवानों की गाड़ियों को उड़ा दिया था। ये सब कश्मीर में पुलवामा डिस्ट्रिक्ट में हुआ था।  इस खबर को सुन कर मन दुःख से भर गया पर साथ में उन लोगों के प्रति बहुत गुस्सा भी था जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया था।  रात होने तक इस खबर को ही बार बार देखते रहे। मन बहुत अशांत था और नींद भी नहीं आ रही थी। 

अगली सुबह उठ कर जब टीवी लगाया तो शहीदों की संख्या और बढ़ गयी थी और ४० के करीब पहुँच गयी थी। पूरे देश में दुःख और गुस्से की लहर थी, जगह जगह जवानों की आत्मा की शांति के लिए कैंडल मार्च निकाले जा रहे थे। कई जगह उन लोगों के विरुद्ध प्रोटेस्ट हो रहे थे जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया था। सभी लोग ये चाह रहे थे की उन टेर्रोरिस्ट्स और उनको पालने वालों के खिलाफ जल्द से जल्द कोई एक्शन लिया जाये सुबह जब टीवी ओन करते थे तो लगता था के शायद आज उन लोगों को सजा मिलेगी। दिन बीतते जा रहे थे और धैर्य भी जवाब देने लगा था। 

फिर २६ फ़रवरी की सुबह जब टीवी खोला तो मन को कुछ सुकून मिला, हमारी एयर फाॅर्स ने बालाकोट में टेर्रोरिस्ट्स के अड्डों को बम से तबाह कर दिया था और उनके कई टेररिस्ट मारे गए थे। उन लोगों को शायद ये सबक अब मिल गया था के भारत से अगर वो पंगा लेते हैं तो दुनिया की किसी कोने में वो छुप नहीं सकते और उन्हें ढूंढ ढूंढ कर मारा जायेगा। 

टीवी और व्हाट्स उप पे भी जो अक्सर एक दूसरे से लड़ाई होती थी वो करीब करीब ख़तम हो गयी। ऐसा लग रहा था के पूरा देश शायद एक हो गया है। 

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद लगा कि अब हमारा बदला तो पूरा हो गया है अब शहीदों के परिवार के लिए कुछ करना चाहिए। 

मैंने अपना ऍम बी बी एस आगरा से किया है और १९८८ में एडमिशन के कारन हमने ८८ बैच के नाम से व्हाट्सउप ग्रुप बनाया हुआ था। इस ग्रुप में भी पुलवामा और एयर स्ट्राइक की ही चर्चा होती थी, हमारे बैच के एक लड़के ने ऍम बी बी एस के बाद मिलिट्री ज्वाइन कर ली थी और वो मेजर रैंक पे रिटायर हुआ था।  हम उसे मेजर नाम से ही बुलाते थे।  

एक दिन मेजर ने एक पोस्ट व्हाट्सउप पे डाली के क्यों न हम सब मिल कर पैसा इक्कठा करें और शहिदों के परिवार की मदद करें। हालाँकि सरकार के तरफ से भी उन परिवारों को काफी माली मदद का एलान हो गया था पर हम लोग अपनी तरफ से कुछ करना चाहते थे। मैसेज आने के चंद घंटे बाद ही करीब ३५-४० लोगों ने पैसे देने के लिए हामी भर दी। अगले २-३ दिनों में करीब करीब सभी लोग तैयार हो गए।  हफ्ते भर में २-३ लाख रूपए इक्कठा हो गया।  आगरा के जो हमारे बैच के लोकल डॉक्टर थे वो आगरा के एक शहीद के परिवार को कुछ मदद भी दे आये। अगले दो तीन हफ्ते में ४-५ परिवारों को और मदद दे दी गयी। 

तभी हम लोगों ने एक ट्रस्ट बना लिया जिसका नाम रखा ''डॉक्टर्स फॉर नेशन एंड आर्म्ड फोर्सेज -८८।  शार्ट में हम इसे डी एन ए -८८ कहने लगे, हमने अपने व्हाट्सउप ग्रुप का नाम भी डी एन ए -८८ रख दिया।  इस तरह के न जाने कितने बड़े छोटे ट्रस्ट देश भर में उन परिवारों की मदद के लिए काम कर रहे हैं।  एक बहुत ही छोटी सी मदद कर के दिल को ये तसल्ली होती है के जिन जवानों ने हमारी हिफाज़त के लिए अपनी जान दी, हमें भी उनके परिवारों के लिए कुछ करने का मौका मिला। 

मैं जब भी डी एन ए -८८ का लोगो अपने व्हाट्सआप पे देखता हूँ तो सेना के जवानों पे बहुत नाज़ होता है जो जीते जी हमारी हिफाज़त में लगे रहते हैं और मरने पर हम सब को देश के लिए एकजुट कर जाते हैं।  


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