Richa Baijal

Comedy

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डिअर डायरी :डे 25 :शरारत

डिअर डायरी :डे 25 :शरारत

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डिअर डायरी :डे 25 :शरारत:18.04.2020 


डिअर डायरी ,

आज 324 नए कोरोना के केसेस आये हैं, लगभग 15000 केसेस हैं हमारे पास। सुबह उठते ही और इस डायरी एंट्री को लिखने से पहले कोरोना के केसेस ही देखती हूँ मैं। जिस तरह से हम आगे जा रहे हैं, उससे लगता है कि सेनिटाइज़र तो ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बनने वाला है। मतलब आप को कभी भी एक तरह का खांसी ज़ुकाम हो जायेगा और वो कोरोना होगा। हम इसे मलेरिया समझने लगेंगे कुछ दिनों के बाद जब इसकी वैक्सीन मिल जाएगी। इस सब का सार तो यही है कि "हाइजीन" रखें।

इस सब से हटकर कुछ बात करते हैं। कल मैं अपने एक दोस्त से बात कर रही थी, तब उसने कहा कि वो दो बार पुलिस की लाठी खाते -खाते बचा है। उसने कहा कि एक बार तो पुलिस उसकी बाइक के पीछे लग गयी थी। सुनकर मन में 'शरारत ' वाली स्माइल आ गयी। क्यों ? क्यूंकि मुझे तो ऐसे पुलिस ने रोका ही नहीं है।..रोका तो है एक बार, लेकिन पीटा नहीं है या यूँ समझ लो कि मैंने किसी को पिटते हुए नहीं देखा है। कहने का मतलब है कि मैं अपने नाती -पोतों से ये 'अमेजिंग ' एक्सपीरियंस तो बता ही नहीं पाऊँगी।

और दिल ने कहा कि आज पुलिस से मिलने चलते हैं। वो जैसे एक बार एक शख्स ने कहा था कि लॉक डाउन क्या होता है, देखने आया हूँ। हाहा ! लेकिन सच, बस सोचो जब बच्चों को क्लास में कोरोना के वीरों के बारे में पढ़ाया जायेगा। हम हिस्ट्री का पार्ट बन रहे हैं और 'बहुत मज़ा आ रहा है। सच में।

तो मेरा दिल किया कि मैं भी पुलिस के पास जाकर बैठ जाऊँ और "लाइव लॉक आउट " देखूं। सिर्फ इसलिए कि मेरे पास एक कहानी हो अपने बच्चों को सुनाने के लिए।

जब राशन लाना एक मुसीबत हो गयी थी, चौराहे सुनसान होते थे और सड़क पर बस इक्का -दुक्का वाहन चलते थे। हमारे प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन की हर अवधि 14 दिन में बढ़ाई थी और कहा था। "मेरे प्यारे देशवासियों !" उनके सम्बोधन का ये सिलसिला : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में सबसे ज़्यादा जनता से मुखातिब हुए। और उनका 'मन की बात ' वाला वो कार्यक्रम जाने कितने किसानों के दिल का सुकून बना। ये सारी यादें और शरारतें उम्र के उस पड़ाव (बुढ़ापे में ) में भी हमारे चेहरे पर ख़ुशी की लकीर बनाती होंगी, एक तस्वीर कि हम उस सदी के 'दृष्टा ' थे।

मज़ा आ रहा है न...ऐसे क्या कभी मेरे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने कभी सोचा होगा कि देश एक दिन उनके बारे में पढ़ेगा ? और कितना गर्व होता होगा उस माँ को जिसके सपूत को सारा देश नमन करता होगा। 

मैं गयी तो नहीं हूँ अब तक पुलिस वालों के पास ये जानने कि वो लॉक डाउन में कैसे जनता को सँभालते हैं ,समझाते हैं, लेकिन मन तो बिलकुल है।।.वहीँ पर एक टेबल -कुर्सी लगाने का।



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