Sumit Mandhana

Comedy Action Crime

4.5  

Sumit Mandhana

Comedy Action Crime

डाकू गब्बर सिंह और सी आई डी टीम

डाकू गब्बर सिंह और सी आई डी टीम

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दोस्तों हमारा आज का विषय भी काफी मजेदार है। शोले तो आप लोगों ने बहुत बार देखी होगी, जिसमें ठाकुर साहब डाकू गब्बर सिंह को पकड़ने के लिए जय और वीरू को रामगढ़ बुलाते हैं। वे लोग उसमें काफी हद तक कामयाब भी हो जाते हैं। लेकिन आज ठाकुर साहब ने बुलाया है सीआईडी टीम को गब्बर सिंह को पकड़ने के लिए ! तो देखते हैं उन्हें कामयाबी मिलती है या नहीं। चलिए तो कहानी शुरू करते हैं।

 ठाकुर साहब जय वीरू को ढूंढते हुए सेंट्रल जेल पहुंच जाते हैं। वे कहते हैं कि तुम्हें मेरे लिए एक काम करना होगा। जय वीरू पूछते हैं काम क्या है? तो ठाकुर साहब कहते हैं बहादुर हो तो इसकी फिक्र क्यों करते हो! पैसे जो तुम चाहो काम जो मैं चाहूं। 

फिर ठाकुर साहब कहते हैं तुम्हें डाकू गब्बर सिंह को मेरे लिए जिंदा पकड़ना है। डाकू गब्बर सिंह का नाम सुनते ही जय और वीरू को 440 वोल्ट का झटका लगता है। 

वे कहते हैं ठाकुर साहब हमें अपनी जान प्यारी है। हम अभी अभी जेल से बाहर निकले हैं। लेकिन हम इतनी जल्दी भगवान के पास नहीं जाना चाहते और इतना कहकर दोनों वहां से चले जाते हैं। ठाकुर साहब निराश होकर गांव लौट आते हैं। 

रास्ते में ठाकुर साहब सीआईडी का पोस्टर देखते हैं।उनके दिमाग में एक सनसनीखेज़ आइडिया आता है। वे सीआईडी टीम के सीनियर ऑफिसर एसीपी प्रद्युमन से मिलते हैं।वे उनसे कहते हैं कि आपको डाकू गब्बर सिंह को जिंदा पकड़ना है मेरे लिए। इस काम का के लिए मैं आप लोगों को मुंह मांगी रकम देने को तैयार हूं। 

 एसीपी प्रद्युमन अपने केबिन में दया और अभिजीत को बुलाकर कहते हैं कि यह ठाकुर एक रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर है। इसके पास इतना पैसा कहां से आया दया " कुछ तो गड़बड़ है"। आखिर यह इतना पैसे वाला कैसे हो गया जरा पता लगाओ ,अपने खबरी को बुलाओ। अभिजीत कहता है सर यह सिर्फ रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर ही नहीं उस गांव का ठाकुर है। इसके पास पुरखों की जमीन जायदाद है। 

फिर तीनों केबिन से बाहर आते हैं एसीपी प्रद्युमन ठाकुर साहब से कहते हैं -आप सीआईडी को खरीदना चाहते हैं ? सीआईडी बिकाऊ नहीं है ठाकुर साहब! आप अपना पैसा अपने पास रखिए। लेकिन फिर ठाकुर साहब अपनी दुख भरी दास्तां सीआईडी टीम को सुनाते हैं। सुनकर एसीपी फैसला करते हैं कि हम गब्बर सिंह को जरूर पकड़ेंगे।

 ठाकुर साहब गांव लौट आते हैं। कुछ दिनों के बाद सीआईडी की टीम रामगढ़ आती है। वे लोग जब रेलवे स्टेशन से बाहर आते हैं तो उन्हें बसंती तांगेवाली मिलती है। वो कहती है कि साहब यह गांव खेड़ा है। यहां आपको मोटर गाड़ी नहीं मिलेगी कि बैठे और झट से चले गए। यहां तो बसंती का तांगा ही चलता है। आप बताइए आपको कहां जाना है क्योंकि जब तक आप ये नहो बताएंगे तब तक तांगा रुकेगा नहीं। दया बोलता है कि हमें ठाकुर साहब की हवेली जाना है।

 बसंती उन्हें ठाकुर साहब की हवेली के बाहर छोड़ देती है और अपना पैसा लेकर वहां से चली जाती है। वे लोग ठाकुर साहब की हवेली में जाते हैं। हवेली का नौकर रामलाल उनका बहुत आदर सत्कार करता है।अच्छे से खाना पीना होने के बाद वे लोग सो जाते हैं और सुबह उठकर फैसला करते हैं कि हम आज ही गब्बर सिंह के अड्डे पर धावा बोल देंगे। 

अभिजीत ठाकुर साहब से एक जीप मांगता है। अभिजीत , दया , एसीपी प्रद्युमन और उनके तीन चार साथी लोग सभी जीप में बैठकर उनके अड्डे पर चले जाते हैं। उन्हें पता होता है कि सांभा उन्हें पहाड़ पर से देख लेगा। इसलिए बंदूक में साइलेंसर लगाकर सबसे पहले सांभा को गोली मार देते हैं। सांभा की लाश पहाड़ के दूसरी ओर गिर जाती है। इससे गब्बर सिंह और उसके साथियों को इस बात की कानों कान खबर नहीं चलती। 

डाकू गब्बर सिंह के अड्डे पर पहुंचने पर एसीपी प्रद्युमन हमेशा की तरह दया को कहते हैं , दया दरवाजा तोड़ दो ! दया कहता है सर यहां पर तो कोई दरवाजा ही नहीं है, मैं कैसे तोड़ू ? फिर पूरी टीम अलग-अलग जगह को टारगेट करती है और एक-एक करके सभी डाकुओं को मार देती है। 

दया कैसे भी करके नजरें बचाकर गब्बर सिंह के पास पहुंच जाता है और अपने हाथों में उसकी गर्दन को दबोच लेता है। गब्बर सिंह तिलमिला उठता है और कहता है छोड़ दे , छोड़ दे मुझे। दया कहता है यह हाथ नहीं फांसी का फंदा है। वाकई में दया का हाथ इतना भारी होता कि गब्बर सिंह चाह कर भी उसमें से छूट नहीं पाता है। 

फिर वह गब्बर सिंह को खींच के थप्पड़ मारता है गब्बर सिंह नीचे गिर जाता है। तीन चार चाटे मारकर वो गब्बर सिंह को हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार कर लेता हैं। 

इतने में ही कालिया दया के ऊपर कुदता है। इससे दया की पिस्तौल गिर जाती है। गब्बर सिंह मौके का फायदा उठाकर दया को लात मार के नीचे गिरा देता है और हथकड़ी बंधे हुए हाथ से ही पिस्तौल उठाकर फायर करता है। 

लेकिन तभी अभिजीत बीच में आ जाता है और उसे गोली लग जाती है। दया कहता है तुमने यह क्या किया मेरे लिए अपनी जान दे दी। अभिजीत कहता है एक गोली से मेरी जान नही जाएगी दोस्त। दया गब्बर सिंह को पैर में गोली मारकर घायल कर देता है। फिर वह लोग उसे पकड़कर ठाकुर साहब के हवाले कर देते हैं। 

गब्बर कहता है ठाकुर तू मुझे क्या मारेगा तेरे तो दोनों हाथ काट कर फेंक चुका हूं। ठाकुर कहते हैं तुझे तो मैं अपने पैरों से कुचल दूंगा। उन्होंने अपने जूतों में खिली लगाई हुई थी। उसी से मार मार के वह गब्बर सिंह को घायल कर देते हैं और पहाड़ी से नीचे फेंक देते हैं। 

गब्बर सिंह मर जाता है और गांव वाले हमेशा हमेशा के लिए गब्बर सिंह के चुंगल से आजाद हो जाते हैं। सीआईडी की टीम फिर से मुंबई लौट आती है। कुछ दिनों में अभिजीत भी पूरी तरह से ठीक हो जाता है।


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