" बुद्धिमान तेनालीराम
" बुद्धिमान तेनालीराम
दोस्तों तेनालीराम का पूरा नाम तेनाली रामा कृष्णा था। लेकिन सभी उन्हें तेनालीराम से ही बुलाते थे । विजयनगर राज्य में राजा कृष्णदेव राय के दरबार में वे कार्यरत थे । उनके बुद्धि कौशल से हर कोई भली भांति परिचित था। इस वजह से कोई भी उनसे उलझता नहीं था। सभी यह बात जानते थे की ज्ञान के संदर्भ में उन्हें कोई नहीं हरा सकता चलिए तो कहानी शुरू करते है ।
एक बार राजा कृष्णदेव राय शिकार करने जंगल में जा रहे थे। तेनालीराम उन्हें समझाते हैं कि निर्दोष और मुक पशु पक्षी को मारना अच्छी बात नहीं है राजन ! लेकिन कृष्णदेव उनकी बात को अनसुना कर देते है और शिकार करने निकल पड़ते है। तेनाली राम मन ही मन में सोचते हैं कि मुझे कुछ ऐसा करना होगा जिससे राजा का शिकार का शौक छूट जाए।
एक दिन वन में विचरण करते समय उन्हें झाड़ियों में पत्ते की आवाज सुनाई देती है। उन्हें लगता है वहां कोई जंगली जानवर है । उस दिन तेनालीराम भी उनके साथ ही होते है। राजा कहते हैं तुम बिल्कुल आवाज मत करना मैं इसे अभी मार देता हूं। वह निशाना साधते है और उस पर तीर छोड़ देते हैं । वह तीर सीधा जाकर उस लकड़बग्घा को लग जाता है जो झाड़ियों में होता है। राजा यह देखकर बहुत खुश हो जाते हैं।
तभी तेनालीराम को युक्ति सूझती है । वह राजा से कहते हैं । आप रथ में बैठे रहिए महाराज। मैं अभी उस शिकार को आपके पास लेकर आता हूं । फिर वह झाड़ियों में जाते हैं और चुपके से अपना एक कड़ा लकड़बग्घा के पैर में डाल देते हैं और थोड़ा सा उसका पैर बाहर निकालकर राजा को कड़ा दिखाते हैं।
वे कहते हैं, महाराज अनर्थ हो गया! यह कोई लकड़बग्घा नहीं था । यह तो एक साधु थे जो रूप बदलकर यहां पर तपस्या कर रहे थे। राजन सुनकर घबरा जाते हैं। वह बोलते है यह बहुत क्रोधित हो चुके हैं और आपको श्राप दे रहे हैं । राजा बोलते अब मैं क्या करूं ? तेनालीराम उन्हें कहते हैं आप तुरंत नगर लौट जाइए मैं थोड़ी देर में आता हूं।
थोड़ी देर बाद तेनालीराम नगर में लौट आते हैं । वे दरबार में आकर राजन से कहते हैं कि ऋषि ने आपको श्राप दिया है अब आप एक कबूतर बन जाएंगे । यह सुनकर राजा कृष्णा राय बहुत परेशान हो जाते हैं। वह कहते हैं तेनालीराम कोई युक्ति लगाओ और हमें इस संकट से बचा लो। तेनालीराम कहते हैं अच्छा मैं अपनी आत्मिक शक्ति से उन ऋषि से बात करता हूं। कदाचित वह आपको क्षमा कर दें ।
फिर वह आंखें बंद करके ऐसे ही जोर से बातें करते हैं । जिससे सबको लगता है कि वह ऋषि से बातें कर रहे हैं। वे फिर थोड़ी देर में आंखें खोलकर कहते हैं, राजन ऋषि ने कहा है कि वह आपको क्षमा कर देंगे! लेकिन आपको अब हमेशा के लिए शिकार करना छोड़ना होगा। राजा कृष्णा देव इतनी बुरी तरह से डर गये होते है, वे तुरंत इस बात के लिये हाँ कर देते है।लेकिन कुछ ही देर में राजा को तेनालीराम की सारी युक्ति समझ में आ जाती है । वे तेनालीराम की इस सूझबूझ और समझदारी पर जोर-जोर से हंसने लग जाते हैं उनके हसने के साथ तेनालीराम भी और सारे दरबारी भी हंसने लग जाते हैं।
राजा को यह बात समझ में आ जाती है कि उनकी शिकार की प्रवृति को छुड़वाने के लिए ही तेनालीराम ने यह सारा किस्सा रचा है । राजा वचन देते हैं कि वे आगे से कभी भी शिकार नहीं करेंगे। राजा तेनालीराम को बहुमूल्य अशरफियां और सोने के सिक्के देखकर घर भेजते हैं।
