दाग
दाग
उस्मान रोते हुए घर वापस आया और अपनी माँ से लिपट गया। वो जमकर होली खेला था, पूरा रंगों से सराबोर था। उस्मान की माँ ने प्यार से उसे गले लगाया और बोली “क्या ज्यादा ही डुबो दिया रंगों में? कोई बात नहीं मेरे बच्चे, नहला दूंगी।
उस्मान अभी 7 वर्ष का ही है, पीछे से उसकी बहने बोली “अम्मी तब तो भाग भाग कर रंग लगाता है, खुद की बारी आये तो रने लगता है”
माँ ने प्यार से उसके गीले बालों को चेहरे से हटाया और बोली “कोई बात नहीं, होली है”
उस्मान ने रुआंसा होकर कहा “मैं अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ पाया”
उस्मान की माँ ने प्यार से कहा “कोई बात नहीं आज त्यौहार था...होली का”
इतने में ही पीछे से उस्मान के पिता और मौलवी साहब आ गए।
मौलवी साहब कुछ खफ़ा लग रहे थे।
मौलवी साहब को देखकर उस्मान माँ के आगोश में छिप गया,
मौलवी साहब ने अन्दर आते ही कहा “बेहद ही बेअदब है तेरा बेटा”
उस्मान की माँ ने पर्दा करते हुए कहा “क्या हुआ मौलवी साहब”
मौलवी साहब बोले “रंगों से दागदार होकर मस्जिद में आया था नमाज़ पढ़ने”
उस्मान की माँ समझ चुकी थी उसके रोने की वजह, उसने उस्मान की तरफ देखते हुए कहा “इसलिए रो रहा था। मौलवी जी ने डांटा”
उस्मान ने सहमती में सर हिलाया।
तभी मौलवी की निगाहें उस्मान की दोनों बहनों पर पड़ी, वो दोनों भी रंगों में सराबोर थी। मौलवी साहब को बेहद नागवार गुजरा ये, बिखर गए एक दम से “क्या है ये सब, काफिरों के चलन अपना रखें हैं। हम रोज़ बा रोज़ समझाते रहते हैं लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता।”
मौलवी साहब ने उस्मान के अब्बू की तरफ देखते हुए कहा “क्या हजरत अब ये सब होगा एक आली मोमिन के घर में? क्या आकिबत की कोई फिक्र नहीं?
उस्मान के पिता कुछ कहते इससे पहले ही उस्मान की माँ बोल पड़ी “मौलवी साहब आकिबत, कयामत, जन्नत की फ़िक्र ने इस दुनिया को बर्बाद कर दिया। गर किसी को डर ना होता दोजख का और फरिश्तों के सवालात का तो आपकी मस्जिदे खाली पड़ी रहतीं”
मौलवी साहब सुनकर अचकचा गए, कुछ ना सुझा तो उस्मान के पिता की तरफ देखा।
उस्मान के पिता ने मौलवी साहब के कंधे पर हाथ रखकर कहा “सही तो है मौलवी साहब कितने हैं जो अल्लाह के कायदे को अपनाते हैं? बस डरतें हैं अल्लाह से इसलिए चले जातें हैं अल्लाह को खुश करने...मस्जिद”
मौलवी साहब लाजवाब थे लेकिन फिर भी बोले “ये क्या कह रहे हो? दिन को रात बता रहे हो, क्या भूल गए कुरान की हदीसों को”
उस्मान की माँ बोल पड़ी “उन हदीसों में ही लिखा है मौलवी साहब, बच्चे अल्लाह के फ़रिश्ते होते हैं,और इन रंगों को दाग मत कहिये, ये तो प्यार और आदमियत के रंग है। इन रंगों को उतारकर दुनिया को बदसूरत मत बनाइये”
फिर उस्मान की माँ ने उस्मान के माथे को चुमते हुए कहा “कोई बात नहीं मेरे बच्चे! अल्लाह नमाज़ पढ़ने या खुत्बा सुनने से ही खुश नहीं होता, वो तो हर कीना भूलकर सबसे गले लगकर होली खेलने और ईद मनाने से भी खुश हो जाता है।”
