दादी मां की वसीयत
दादी मां की वसीयत
"मेरी पोतियों को पढ़ाओगे, उनकी मर्जी की नौकरी उन्हें करने दोगे, तब ही मेरी वसीयत का खुलासा करूंगी। नहीं तो सारी जायदाद पोतियों के ही नाम कर जाऊंगी। ये जो तुमने बेटियों को कच्ची उम्र में ब्याहने की ज़िद पकड़ी है, तो देख लो सीधे सीधे सारी जायदाद बेटियों के साथ ही उनके ससुराल चली जाएगी" शांति जी ने अपने बेटों विकास और अनूप को कहा।
दोनों बेटों ने अपने ही घर के अपनी मर्जी अनुसार हिस्से कर लिए थे ।
शांति जी के पति का कम उम्र में ही देहांत हो गया था। वो बैंक में क्लर्क की नौकरी करते थे, ड्यूटी के टाइम ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा, और वो नहीं रहे।
शांति जी के भाई ने कोशिश करके शांति जी के पति की जगह शांति जी को नौकरी दिलवा दी, ताकि उनके बच्चों का पालन पोषण हो सके।
शांति जी ने बड़े ही कष्टों के साथ दोनो बेटों को पाला। शादियां की। अब शांति जी की पोतियां - रजनी और रीमा ; दोनो ने ही अपनी बारहवीं कक्षा पूर्ण कर ली थी।
दोनों पोतियां आगे पढ़ना चाहती थी। परंतु विकास और अनूप उनके लिए किसी बेहतर वर की तलाश में जुटे हुए थे ।
पोतियों ने दादी मां से गुज़ारिश भी की -" दादी हमे पढ़ने दो!! कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाए, हम अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं। तब कर लेंगे शादी। आप समझाओ पापा को।"
दादी मां को उनमें अपने बचपन की छवि दिखती थी। उन्होंने पोतियों से वादा किया -" हां बेटा!!जरुर पढ़ो। मैं तो आगे पढ़ नहीं पाई। जैसे तैसे तेरे दादा की जगह नौकरी मिली तो तुम्हारे पिताजी को मैंने पाला। दोनों बेटों को खूब पढ़ाने की कोशिश की । परंतु घर के हालात को देखकर दोनो ही पढ़ाई छोड़कर अपने कामों पर लग गए। "
दादी ने विकास और अनूप को बुलाया -" देखो!! तुम किस्मत वाले हो जो इतनी होनहार बेटियां पैदा हुई। इन्हें इनकी आगे की पढ़ाई करने दो अब।"
विकास -" मां!! क्या करेंगी आगे पढ़कर? कोई अच्छा सा घर बार देखकर शादी कर देंगे। हमारी भी ज़िम्मेदारी खत्म।"
दादी मां-" तो क्या बेटियों का कोई सपना नहीं!! ये पढ़ लिखकर अपनी पसंद की नौकरी करना चाहती हैं। इन्हें करने दो।"
अनूप -" मां!! आजकल तो लड़के भी पढ़ लिखकर खाली घूम रहे हैं। नौकरी करने वाली लड़की से कोई जल्दी से शादी भी नहीं करता; हमारी बिरादरी में।"
विकास -" हां मां!! भाई ठीक कह रहे हैं। भला औरतों कि कमाई से भी कभी घर चलते हैं?" अब शादी कर देना ही सही है"
दादी जोर से बोहें सिकोड़ते हुए -" तुमने तो मेरी सारी उम्र की तपस्या का एक मिनट में अनादर कर दिया। मैंने नौकरी करके ही तुम्हारे पेट पाले हैं। "
जिस नौकरी की वजह से आज तुम इतनी बड़ी बड़ी बातें करने लायक हुए हो, उसके लिए तुम्हारे ये विचार?? मुझे खुद पर ही धिक्कार महसूस हो रहा है। "
अब तुम दोनों कान खोलकर सुन लो ; मेरी पोतियां जरुर आगे पढ़ेंगी। जो उनका मन होगा वहीं नौकरी भी करेंगी।
ये घर मैंने तुम्हारे लिए दिन रात मेहनत करके खड़ा किया है। इस घर, सम्पत्ति पर मेरा ही हक है। मैं अपनी वसीयत खुद तय कर सकती हूं। मेरी वसीयत की असली हकदार मेरी पोतियां ही हैं।
विकास -" मां!! पोतियां तो ससुराल चली जाएंगी!! फिर??"
दादी मां -" फिर क्या सारी सम्पत्ति भी पोतियों के साथ ही चली जाएगी । पर अगर तुमने इनको अपने सपने पूरे करने दिए । तब मैं सोचूंगी तुम्हारे बारे में।"
दोनों बेटों को मां की बात समझ आ गई। दोनों ने मां से माफी मांगी। पोतियां भी दादी को अपनी ढाल बने देखकर खूब खुश हुई ।
# दोस्तों नई शुरुआत हमारे बड़े ही शुरू करें तो इससे बेहतर कुछ नहीं। बच्चों को असल शिक्षा देने के लिए मां बाप को कभी कभी उल्टे दांव पेच भी चलने पड़ते है।
