दादी का चश्मा
दादी का चश्मा
"रिया, चलो बेटा जल्दी से अपना होमवर्क पूरा कर लो। शाम को बाज़ार जाना है, होली की खरीदारी करने चलेंगे। " सीमा ने अपनी आठ वर्षीय बेटी से कहा
"वाह! मम्मी, इस बार मैं पक्का परी वाली ड्रेस लूंगी। पिछली बार की तरह नहीं कि जींस टॉप ले लो, परीवाली ड्रेस तो कभी कभी पहन सकती हो, कहकर आपने मुझे नहीं दिलवाई थी।" रिया बोली
"हां मेरी लाडो, जो बोलोगी वो ही ड्रेस दिलवाऊंगी। पहले स्कूल का काम पूरा कर लो।" सीमा ने लाड़ लड़ाते हुए कहा
शाम को सुधीर के आने से पहले सीमा और रिया शाॅपिंग जाने के लिए तैयार थीं।
"मम्मी को भी ले चलें क्या? साड़ी पसंद से ले लेंगी।" सुधीर ने सीमा से पूछा
"अरे, अब उनकी पसंद क्या और नापसंद क्या? पापाजी के जाने के बाद से जीने की इच्छा शेष ही नहीं रही। जो ले आएंगे पहन लेंगी। वैसे भी इतनी सारी साड़ियां हैं उनके पास। कोई सी भी पहन लेंगी। फालतू पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है।" सीमा ने सीधे सपाट लहज़े में सुधीर को बोल कर चुप करा दिया।
सुधीर अपना सा मुंह लेकर रूम से बाहर निकल गया।
थोड़ी देर में रिया, सीमा और सुधीर मार्केट के लिए निकल गए।
जाते जाते सीमा अपनी सास माधुरी जी को बोल गई कि अपने लिए खिचड़ी बना कर खा लें। वे तीनों बाहर से खाना खाकर आएंगे।
जाने से पहले माधुरी जी को सीमा ने बताया कि वे लोग अपने लिए कपड़े लेने जा रहे हैं। माधुरी जी के कुछ कहने से पहले उनको यह भी सीमा ने बता दिया कि उनके पास तो काफ़ी साड़ियां हैं तो उनको कोई आवश्यकता नहीं है।
सुधीर अपनी मम्मी से नज़रें चुराता हुआ चला गया।
रिया के हाथ में एक पेपर था जिसपर सीमा की नज़र कार में बैठने के बाद पड़ी। रिया ने अपना क्यूट सा फ्रोज़न पर्स ले रखा था जिसमें उसने वह पेपर रख दिया।
रिया मार्केट में आकर खुश हो गई। एक नये बड़े से माॅल के पास सीमा ने कार रुकवाई। सुधीर ने कहा भी कि यहां सामान सामान्य से महंगा हो सकता है। सीमा ने सुधीर की बात को अनसुना करते हुए उसे गाड़ी पार्क करने के लिए कहा।
सीमा और रिया माॅल के एंट्रेंस से अंदर घुसे। होली के त्योहार की वजह से खूबसूरत सजावट की गई है। हर शोरूम में मन लुभावने ऑफर चल रहें हैं। रिसेप्शन पर रिया ने कुछ पूछा।
सुधीर के कार पार्क कर आते ही रिया ने कहा," पापा, सेकंड फ्लोर पर चलना है।"
सीमा और सुधीर यह सोचकर कि शायद रिया ने रिसेप्शन पर अपनी ड्रेस या टाॅय शाॅप के बारे में पूछा है, सोचकर सेकंड फ्लोर पर आ गए।
रिया उनको एक चश्मे के शोरूम पर लाई। सीमा ने कहा भी कि यहां से क्या लेना। पर उसने एक न सुनी, हाथ पकड़कर अंदर ले जाकर काउंटर पर उसने हाथ का पर्चा और दादी का चश्मा रखा।
काउंटर पर बैठे व्यक्ति से रिया बोली," अंकल, मेरी दादी का आंखों का पर्चा है। आप इसी चश्मे में नया नम्बर के लेंस डाल दें।
सुधीर और सीमा ने एक-दूसरे को देखा। सुधीर ने आंखों में ही बता दिया कि इसके बारे में उसे पता नहीं है।
सीमा बोली," पहले कपड़े लेने चलते हैं, फिर लेंस डलवा लेंगे।"
रिया ने कहा," मम्मी, दादी को बहुत तकलीफ़ होती है। वो बहुत दिनों से अखबार नहीं पढ़ पाईं हैं। दादी के लिए आप कपड़े नहीं ले रही हो। यह तो बहुत जरूरी है, आपका ज्यादा खर्चा भी नहीं होगा।"
सीमा को शाॅप कीपर के साथ साथ मौजूद अन्य लोग भी देखने लगे। सीमा एकदम से झेंप गई। अपनी झेंप मिटाने के लिए बोली," बच्चे भी क्या क्या बोलते हैं।"
उन लोगों ने फिर मम्मी जी के चश्मे को लेंस बनने के लिए दिया। सीमा को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
सुधीर मन ही मन कहीं पर प्रसन्न था कि रिया ने अपनी दादी के लिए आवाज़ उठाई।
रिया की इस पहल से सुधीर को भी अपने अंदर झांकने का अवसर मिला कि हर बार यह सोचकर चुप रह जाना कि यदि सीमा से मम्मी के लिए कुछ बोला तो घर का माहौल बिगड़ जाएगा। इसको मसले से नज़रें फेर लेना कहते हैं। आगे से उसने भी ठान लिया कि सीमा की हर गलत बात को हां नहीं करना है, आखिर माँ के प्रति भी कुछ कर्तव्य है।
सीमा को भी समझ आ गया कि बच्चे सब कुछ ध्यान से देखते हैं। बच्चों को ग़लत सही का भेद समझ में आता है। अब सम्भलना ही सीमा के लिए ठीक होगा वरना बच्चों की नज़रों से कुछ छुपा नहीं सकती।
दोस्तों, हम त्योहार पर अपने लिए और अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ करते हैं परन्तु अक्सर माता-पिता पर खर्च करने के नाम पर महंगाई समेत पच्चीसों बहाने तैयार रहते हैं। खास तौर पर इस कहानी में ससुर की मृत्यु के बाद सास के प्रति बहू का व्यवहार निंदनीय है लेकिन यथार्थ से परे नहीं है। बहुत जगह सास दयनीय स्थिति में रखी जाती हैं। यह सब बदलने की जरूरत है।
बच्चे सब कुछ देखते हैं, वे गलत बात का विरोध करते हैं। बच्चों को आप बहला नहीं सकते हैं। बच्चे मन के सच्चे होते हैं।
आपको कैसी लगी मेरी यह कहानी? आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
धन्यवाद।
