Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract Tragedy

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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract Tragedy

चुभन

चुभन

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गुलाब का काँटा उंगली में चुभ गया था लेकिन उसे कुछ एहसास ही नहीं हुआ था। उसके दिल में तो समाज की बातों के काँटे चुभन दे रही थी।

उसका रात में बाहर निकलना ही क्यों गलत हो गया? उनका क्यों नहीं जिनके मन में वासना का राक्षस जन्म ले रहा था।

आज उससे उसका सब कुछ छीन लिया है। इसी समाज के डर से उसकी पहचान बदल दी गई हैं जबकि गलत करने वाले तो खुलेआम घूम रहे हैं बिना किसी शर्मिंदगी के उसके दिल की चुभन बनके।


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