चरित्रहीन
चरित्रहीन
बार में नाचते नाचते उसका रोम - रोम दुख रहा था, कुछ ज्यादा तेज़ गति से नाचती रही। वह सब देखते रहे सारे पियक्कड उसे घेर जी भर के नोट लुटा रहे थे, देर रात तक सिलसिला चलता रहा थक के चूर हो चुकी थी लेकिन वह रूक नहीं सकती थी उसे ढेर सारे रूपये चाहिए थे। बार बंद होने का समय आया, इकट्ठे किये नोट चुपके से खोस लिए ब्लाउज में ताकि किसी की नजर न पड़े।
"कहाँ से आ रही है इतनी रात गये क्या टैम हो रहा है।" आज बाबा घर ही थे और जगे हुए, रोज़ तो पी के लुढक जाते हैं,"माँ यह लो ", सारे नोट चुपचाप माँ को पकड़ा दिये और कान में बोली कल राजू की फ़ीस जमा कर देना स्कूल में वर्ना उसका नाम कट जायेगा ...' मैने कहा कहाँ से आयी, आधी रात को गुलछर्रे उड़ा के सब पता है मुझे इसका चरित्र ठीक नहीं ! " बाबा ज़ोर -ज़ोर से चीखने लगे नैना माँ की ओट में छा छिपी।
"यह रोज़ ही कलेश करता है ज़रूर आज किसी ने तेरे बारे में उल्टा सीधा बोला होगा तभी तो पी कर नहीं आया अपनी देशी दारू। " माँ को गुस्सा आया बोली "तुम खुद कोई काम नही करते बेटी जो कमाती है उसी से घर चलता है अपने भाई को भी पढ़ा रही है, जो तुम कमाते हो देशी दारू में उड़ाते हो कभी हमारे बारे में सोचा है,"
" हाँ मुझे पता है तेरी बेटी क्या करती है ।"
माँ का पारा चढ़ चुका था जो भी करती है चरित्रहीन तो नहीं है भले ही बार में नाचती है पर तूने कौन सा उसे पढाया लिखाया , नाचना जानती है सो उसी से कमा रही है इसमें क्या गलत है। "
बाप गुस्से से तिलमिला रहा था, माँ ने उसे हाथ पकड़ घर से निकाल दिया पहले अपना चरित्र सही कर फिर इस देहरी पर कदम रखना। "खबरदार जो मेरी बेटी के चरित्र के बारे में कुछ कहा ..."
घर का दरवाज़ा बंद हो चुका था।