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Surya Rao Bomidi

Inspirational

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Surya Rao Bomidi

Inspirational

चरित्रहीन

चरित्रहीन

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बात उन दिनों की है जब मैं उच्च शिक्षा के लिए भोपाल गया था और वहीं पर एक कमरा ले कर रहने लगा।


पड़ोस में ही एक सज्जन रहा करते थे श्याम, वो वहीं पर किसी प्राइवेट फर्म में काम करते थे। उन दिनों मैं अपना एम बी ए कर रहा था। श्याम भैया, जी हां मैं उन सज्जन को भैया पुकारता था। श्याम भैया बहुत ही शांत, अंतर्मुखी, मानवतावादी व एक सुलझे हुए इंसान थे।

हम दोनों को जब भी समय मिलता हम साथ में बिताते और अक्सर मूवी वगैरह भी साथ में ही जाया करते।


जब भी मुझे अपने पाठ्यक्रम में कोई कठिनाई हो तो श्याम भैया से मदद लेता। एक दिन वो बहुत परेशान दिखे तो मैंने पूछ लिया क्या बात है भैया आज आप परेशान से दिख रहे हैं तो वो बोले

"यार कल गांव से मेरे पिताजी आ रहे हैं एक रिश्ता ले कर और शादी करने को ले कर मुझ पर दबाव बना रहे हैं"

मैंने कहा - तो क्या हुआ आप तो सैटल्ड हो कर लीजिए शादी किस बात का सोचना।

"नहीं यार मैं ये शादी नहीं कर सकता क्योंकि मैंने किसी और से शादी करने का वादा किया हुआ है"

श्याम भैया बोले।

तो बता दो पिताजी से सही सही - मैंने कहा

नहीं ये ही तो नहीं हो सकता, वो किस जात की है, उसके परिवार वालों के बारे में मै कुछ नहीं जानता और वो कुछ बताना नहीं चाहती । मेरे पिताजी गांव से हैं और पुराने विचारों वाले है वो ये सब नहीं मानेंगे। मैं बड़े उलझन में हूं, अगर शादी के लिए ना करता हूं और ये बताता हूं तो परिवार से बेदखल अगर उनके रिश्ते को मान लेता हूं तो वादा खिलाफी, जो मैं नहीं कर सकता।


श्याम भैया के पिताजी आए दोनों बाप बेटे के बीच गरमा गरम बहस कुछ घंटों तक चलता रहा और कुछ समय पश्चात उनके पिताजी गुस्से से घर से निकल गए।

सोचा जाऊं और श्याम भैया से पूछूं कि क्या हुआ पर हिम्मत नहीं हुआ क्योंकि भैया बहुत गुस्से में लग रहे थे। रात बीती, सुबह का सूरज दस्तक देने लगा जैसे अहसास करा रहा हो कि तुम्हारे जीवन का एक दिन और कम हो गया।


दरवाजे पर दस्तक, देखा तो दरवाजे पर श्याम भैया गुमसुम से खड़े थे। मैंने पूछा क्या हुआ वो बोले

" जिसका डर था वहीं हुआ पिताजी को शादी से इनकार करने पर मुझसे सभी रिश्ते तोड़कर चले गए"


समय गुजरता गया और एक दिन श्याम भैया ने आ कर खबर दिया कि कल का दिन आर्य समाज में शादी हेतु फिक्स हुआ है, कल शादी में चलना है।

बहुत ही सादगी व कुछ खास मेहमानों के साथ आर्य समाज में शादी सम्पन्न हुआ। नई दुल्हन घर आ गई पर दुल्हन के साथ कोई नहीं था। बाद में पता लगा कि वो एक अनाथ है।

सरिता भाभी स्वभाव से बहुत ही सरल व सुलझी हुई लगती थी, बड़ों का सम्मान, छोटों को अपनापन निभाने में माहिर थी।

दिन बीते और यूं ही देखते देखते एक वर्ष गुजर गया। श्याम भैया बड़े खुश थे, वो सरिता भाभी से बहुत प्यार करते थे और उनकी हर ख्वाहिश तुरन्त पूरा करते थे।


सुबह का वक़्त था आज कुछ देर से मेरी आंख खुली क्योंकि रात को देर तक पढ़ता रहा हूं।

श्याम भैया के घर से आज अभी तक चाय नहीं मिली जबकि सुबह सुबह भाभी जगा कर चाय दे जाती थी। सोचा उनकी तबीयत ठीक है कि नहीं एक बार पूंछ लूं। 

उनका दरवाजा खटखटाया तो कोई जवाब नहीं मिला। फिर खटखटाया तब बहुत देर बाद दरवाजा खुला तो सामने श्याम भैया खड़े थे, आंखें लाल सूजी हुई जैसे बहुत रोएं हों। मैं घबराते हुए पूछा, क्या बात है भैया?


वो कुछ नहीं बोले मुझे अंदर आने का इशारा कर अंदर चले गए, उनके पीछे पीछे मैं भी अन्दर पहुंचा तो भैया ने एक पत्र ला कर मुझे दिया।

पर जैसे ही मेरी नजर पड़ी तो मानो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। पत्र भाभी का था जो इस प्रकार था


प्रिय प्राणनाथ,

सादर चरण स्पर्श व प्रणाम


आपके साथ मैंने जिंदगी के वो बेहतरीन पल गुजारे हैं जिसकी शायद मैं हकदार नहीं हूं। आपसे शादी के बाद मैं बहुत से सपनों के साथ इस घर में प्रवेश किया और आपने जो प्यार, अपनापन मुझे दिया वो सब मेरे लिए स्वप्न जैसा है। आपने सिर्फ मेरे लिए घर छोड़ा, परिवार छोड़ा जिसके लिए मैं स्वयं को जिम्मेदार मानती हूं।

इतना सब होने के बाद भी मुझे कभी जिंदगी में सुकून नहीं मिला, मैं एक अपराध बोध के साथ जीती रही हूं। जैसा मैंने आपको बताया कि मैं एक अनाथ हूं ये गलत है। मेरा भी भरा पूरा परिवार था पर कुछ गलत लोगों के संगत में आकर अपना सब कुछ खो बैठी और जब पीछे मुड़कर देखा तो न परिवार था न कोई अपना। और मजबूरी में इसी रास्ते पर बढ़ते गई। 


इस रास्ते में इतना आगे बढ़ चुकी थी कि पीछे वापस आना मुश्किल था। फिर आप से मुलाकात हुई और शायद मैं अपने निजी स्वार्थ में इतनी अंधी हो गई कि पता ही नहीं चला कि कब मैं अपने आप को आप के काबिल समझने लगी।


पर कहते हैं ना आत्मा की आवाज को कोई भी अनसुनी नहीं कर सकता। मैं भी शादी के बाद हमेशा दिल पर एक बोझ ले कर जीती रही । और जाना कि मैं अपने आत्मा के आवाज को अनसुनी करने की स्थिति में नहीं हूं, किसी तरह अपराध बोध से बाहर निकलने

हेतु छटपटाती रही।


मैं आज इन सब से बाहर निकल कर आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूं कि मुझे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाइए मैं आपके काबिल न पहले थी न आज हूं।


आपकी नाकाबिल कुछ पलों की साथी

सरिता 

भूल चूक माफ 



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