Akanksha Gupta

Horror Romance Thriller

3.4  

Akanksha Gupta

Horror Romance Thriller

चंद्रिका एक पहेली भाग-6

चंद्रिका एक पहेली भाग-6

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पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा- चंद्रिका अपने साथ हुई घटनाओं को सपने मे देखते हुए उस औरत का चेहरा देखती है, जहां उसे अपना चेहरा दिखाई देता है। घबराकर होश में आई चंद्रिका को अपने आठ दिन से बेहोश होने के बारे मे पता चलता है। इस बात से बौखलाई चंद्रिका दीवारों पर हाथ मारकर सच्चाई जानने की कोशिश करती हैं लेकिन शेखर उसे ऐसा करने से रोक देता है। चंद्रिका के सवाल पूछने पर शेखर उसे टाल देता है और उसे बेहोश कर सुला देता है और उससे माफी मांगता है। उधर दर्शना और त्रिपाला स्थिति पर चर्चा करने के बाद किसी से मिलने चले जाते है। अब आगे-

चंद्रिका कमरे मे बेहोश थीं कि तभी उसे पायल की छन-छन सुनाई दी। हालांकि शेखर के दिये गए पानी की वजह से उसकी आंखें खुल ही नही सकती थीं लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। चंद्रिका बिल्कुल ऐसे उठी जैसे वह बस सो रही हो।

उसने आवाज का पीछा करना शुरू किया। जैसे जैसे वो आवाज का पीछा कर रही थी, वैसे वैसे वो कमरे के दरवाजे के पास पहुंच रही थीं। दरवाजे के पास पंहुचते ही उसे आवाज आनी बंद हो गई। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने बाहर की स्थिति को देखने के लिए दरवाजा खोला तो उसे एक अलग ही दुनिया देखने को मिली।

उसने जैसे ही दरवाजे के बाहर निकल कर देखा, उसने खुद को एक हवेली में पाया। हवेली में चारों ओर लोगों की आवाजाही हों रही थी। चंद्रिका यह सब देखकर आश्चर्यचकित रह जाती हैं। अब उसे डर लग रहा था।

उसने देखा कि वहां आ जा रही सभी औरतों ने घूंघट ओढ़ रखा था। उसने जल्दी से अपनी साड़ी का पल्लू लेकर उसका घूंघट ओढ़ लिया और एक तरफ चलने लगी। चलते चलते उसने महसूस किया कि उस हवेली में मौजूद हर इंसान बिना किसी हाव भाव के, बिना किसी आपसी बातचीत के चलते ही जा रहे थे जैसे किसी सम्मोहन में बंधे हुए हो।

ऐसे ही चलते चलते जब वो एक कमरे के आगे पंहुची तो उसे एक आवाज सुनाई दी जो किसी औरत की थी। आवाज सुनकर चंद्रिका ने धीरे से कमरे का दरवाजा खोला और अंदर चली आई। कमरे का दरवाजा किसी भारी धातु का बनाया गया था जिसकी वजह से उसे खोलने में जोर लगाना पड़ता था और आवाज भी होती थीं लेकिन चंद्रिका ने वो दरवाजा बहुत आसानी से बिना किसी आवाज के खोल लिया था।

चंद्रिका के अंदर जाते ही वह औरत जो महादेव की आरती कर रही थीं, रुक गई और कहा- “आओ चंद्रिका तुम्हारा महादेव के मंदिर में स्वागत है।”

उस औरत के मुंह से अपना नाम सुनकर चंद्रिका दंग रह गई। “क्या आप मुझे जानती हैं? कौन है आप?” चंद्रिका ने सवाल किया।

उस औरत ने कोई जवाब नहीं दिया और चंद्रिका की ओर पलट कर खड़ी हो गई। उनके चेहरा भी घूंघट से ढका हुआ था। उनके ऐसा करते ही उस कमरे का रूप बदलने लगा। धीरे धीरे कमरे की जगह रेगिस्तान उभरने लगा।

थोड़ी देर बाद चंद्रिका ने देखा कि वो एक बड़े से रेगिस्तान में खड़ी थी। वहां हवेली और वहां के लोगों का कोई नामोनिशान नही था। वहां बस वही औरत उसके साथ खड़ी थी।

चंद्रिका यह सब देखकर डर गई। ये हवेली रेगिस्तान में कैसे बदल गई? सब लोग कहाँ गायब हो गए? कौन हैं आप और मुझसे क्या चाहती हैं? मैं यहां कैसे आई?” चंद्रिका ने एक ही सांस में पूछ लिया।

“पहले शांत हो जाओ चंद्रिका, समय आने पर तुम्हारे सभी सवालों के जवाब तुम्हारे सामने होंगे।” उस औरत ने शांति के साथ कहा।

“मैं बस अपने सवालों के जवाब चाहती हूँ आपसे। मैं बस इतना जानना चाहती हूँ कि यह सब क्या है और क्यो? बस इतना कर दीजिए मेरे लिए। मैं आपकी ताउम्र शुक्रगुजार रहूंगी। बस मुझे सच बता दीजिए।” चंद्रिका ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

तब उस औरत ने चलना शुरू किया। वो चंद्रिका के चारों तरफ गोल गोल चक्कर लगाते हुए कहते जा रही थीं- “सच की तलाश तो तुम्हें खुद ही करनी होगी चंद्रिका, इसमें मैं चाहकर भी तुम्हारी मदद नही कर सकती लेकिन हाँ तुम्हें रास्ता जरूर बता सकती हूँ।” अब वो चंद्रिका के सामने आकर खड़ी हो गई थी।

“कैसा रास्ता?” चंद्रिका की बेचैनी बढ़ गई थी। चंद्रिका के यह सवाल पूछने पर उस औरत ने चंद्रिका का हाथ पकड़ा और रेगिस्तान की रेत पर बिठा दिया। वहां अब हवा चलने लगी थीं।

“तुम्हें मेरे कुछ सवालों का जवाब देना होगा। तुम्हारे जवाब ही तुम्हारे सफर का रास्ता तय करेंगे।” उस औरत ने चंद्रिका से कहा तो चंद्रिका के चेहरे के भाव बदल गए।

“मैं तो खुद ही अपने सवालों के जवाब ढूंढ रही हूँ। भला आपके सवालों के जवाब कैसे दू? लगता हैं कि आप मेरी मदद नही करना चाहती। अगर ऐसा है तो आप बता सकती हैं।” चंद्रिका की आवाज में तंज और गुस्सा झलक रहा था।

“मैने तुमसे पहले ही कहा था चंद्रिका कि मैं चाहकर भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती। तुम्हें अपनी मदद खुद ही करनी होगी। मैं बस तुम्हें रास्ता दिखा सकती हूँ।” उसने चंद्रिका को समझाते हुए कहा।

“अगर आप मेरी मदद करना चाहती तो मुझसे सवाल पूछने की बजाय मेरे सवालों का जवाब देती।” चंद्रिका ने तंज मारते हुए कहा।

“मेरे सवाल ही तुम्हें तुम्हारे सच की ओर ले जा सकते हैं चंद्रिका। मत भूलो कि किसी भी तलाश की शुरुआत एक सवाल से ही होती हैं।” उन्होंने चंद्रिका से कहा तो चंद्रिका सोच में पड़ गई। उसने सोचा कि इसके अलावा और कोई रास्ता भी तो नहीं है उसके पास। उस घर में भी कोई नही हैं जो उसको सच बता दें। और अब अगर वो इस औरत की मदद भी नहीं लेगी तो.....।

ऐसा सोचकर कि उसे इस औरत की मदद लेनी ही होगी, चंद्रिका ने धीमे स्वर में कहा- “ठीक है, मैं आपके सवालों के जवाब देने के लिए तैयार हूँ।”

“मुझे तुमसे यही उम्मीद थीं। मुझे तुमपर पूरा यकीन है कि तुम इस सवाल का जवाब आसानी से दे दोगी।” उस औरत ने कहा और फिर आसमान की ओर देखा। उसने गहरी सांस ली और सवाल किया- “तो हमारा आज का सवाल है कि अगर कोई अपने जीवन की हर एक बात भूल जाएं और जिसकी भावनाएं भी उसे याद नहीं, उसे एक चक्रव्यूह में फंसा दिया गया है। भले ही उसे कुछ याद नहीं है लेकिन उसके मन में चक्रव्यूह तोड़ने की तीव्र इच्छा है तो उसे क्या करना होगा।” उस औरत ने अपना सवाल खत्म किया और चंद्रिका के जवाब का इंतजार करने लगी।

चंद्रिका ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा- “उसे कोशिश करती रहनी होगी और साथ साथ अपनी पहचान भी ढूंढनी होगी ताकि इस चक्रव्यूह से निकलने के बाद वो फिर से इस चक्रव्यूह में ना फंसे।”

“बिल्कुल ठीक कहा तुमने। उसे ऐसा ही करना चाहिए। तुम्हारे इस जवाब में ही सच की ओर तुम्हारा पहला कदम बढ़ेगा। अच्छा अब मुझे जाना होगा।” यह कहकर वह औरत चंद्रिका के साथ खड़ी हुई और उसकी तरफ पीठ करके चलने लगी।

जब वो जा रही थी कि तभी चंद्रिका को कुछ याद आया। उसने कहा- “रूकिये, आपने कहा था कि यह आपका आज का सवाल है। इसका मतलब यह हैं कि आप फिर मुझसे मिलने आएंगी।”

“जरूरत पड़ी तो मुझे आना ही होगा चंद्रिका।”इतना कहकर वो औरत फिर वहां से जाने लगती हैं तो चंद्रिका उससे फिर पूछती है- “अगर आप मुझपर यकीन करती हैं तो फिर आपने अपना चेहरा क्यों छुपा रखा है? आखिर कौन है आप और मेरी मदद क्यो कर रही हैं।”

इससे पहले कि वो औरत कोई जवाब दे पाती, चंद्रिका को लगा कि कोई उसे पीछे की ओर खींच रहा है। चंद्रिका अपनी पूरी ताकत से उसे रोकने की कोशिश करती हैं लेकिन वो पीछे खिंचती चली जाती हैं। घूंघट वाली औरत उसे जाते हुए देखती हैं। वो औरत, वो रेगिस्तान सब कुछ एक रोशनी में सिमटता जा रहा था। जब चंद्रिका उस औरत की आंखों से पूरी तरह गायब हो जाती हैं तो वो औरत कहती हैं- “तुम बिल्कुल वैसी ही हो चंद्रिका।” इतना कहकर वो औरत वहां से गायब हो जाती हैं। यह वही औरत थी जो चंद्रिका के कमरे मे थीं।

डर की वजह से चंद्रिका की आंखे बंद हो गई थी। कुछ देर बाद उसको एक झटका लगा और उसने अपनी आंखे खोली। जब उसकी आंखे खुली तो उसने खुद को अपने बिस्तर पर पाया। उसकी सांसे तेज गति से चल रही थी।

उसने देखा कि शेखर उसके पास ही उसके सिरहाने पर बैठे बैठे सो गया है। सोते हुए शेखर के चेहरे पर एक मासूमियत भरी मुस्कान थी। उसे अपनी आंखें चिपचिपी लग रही थीं और इतने दिनों से वह बिस्तर से उठी तक नही थी इसलिए उसे अपने शरीर मे दर्द महसूस हो रहा था।

वो उठी और बाथरूम की ओर चल दी। उसके जाते ही शेखर ने आंखे खोली और खड़ा हो गया। उसके खड़े होते ही उसी औरत की परछाई उभरती है और शेखर से कहती हैं- “अच्छा हुआ जो तुमने उसे वापस बुला लिया। मेरे लिए अपने आप रोकना मुश्किल हो गया था। एक बार को तो लगा कि उसे सच्चाई बता देनी चाहिए।”

“नही हम उसे सच नहीं बता सकते। यह सफर उसी को पूरा करना होगा। आप चिंता न करें, मैं हमेशा उसके साथ हूँ।” इसी के साथ उस औरत की परछाई वहां से गायब हो जाती हैं।

उधर चंद्रिका स्नानघर में यही सोच रही थीं कि उसने जो सपना देखा, उसका उसकी जिंदगी से क्या रिश्ता हो सकता हैं? क्या वाकई उसने जो जवाब दिया था, उसमें उसकी मुश्किलों का हल हैं?

वह यह सोच ही रही थीं कि उसकी नजर अपने कपड़ों पर गई, जिन पर रेत लगी हुई थी। उसके आश्चर्य की कोई सीमा नही रही। “तो यह सपना नही सच था।” उसके मुंह से निकला।.....

जारी........

प्रिय पाठकों

आज मैं इस धारावाहिक का शीर्षक बदलने जा रही हूँ क्योंकि मुझे वर्तमान शीर्षक कहानी के अनुरूप नहीं लग रहा। चूंकि यह कहानी चंद्रिका के जीवन के बारे मे है तो आज से इसका शीर्षक होगा- “चंद्रिका-एक पहेली।


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