piyush pateriya

Horror

4.4  

piyush pateriya

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चंद्र ग्रहण की रात

चंद्र ग्रहण की रात

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31जनवरी2018 का दिन था आज भारत में पूर्ण चंद्रग्रहण लगने वाला था। दिन भर से सूतक तो लगा हुआ ही था सभी बोल रहे थे कि प्रथा के अनुसार घर से बाहर मत निकलना। वैसे भी इस बार ग्रहण कर्क राशी पर लग रहा था और राशी के नाम से मेरी राशी में वैसे ही नकारात्मक ही लिखा था। दिन भर मैं घर पर ही था। लेपटॉप पर टाईम पास कर रहा था। सुबह के 11 बजे से फिल्म देखते हुए और गेम खेलते हुए दिन कैसे बीत गया पता ही नही चला। यही कुछ शाम के 5 बजे होगें राहुल का फोन आया। राहुल और में पिछले महीने मिले थे हम लोग साथ में शार्ट फिल्म बनाते हैं। उसके इस हुनर को देखकर ही मैंने एक टीम बनाई इसी के जरिए हमारी दोस्ती हुई थी। राहुल ने कहा "हम लोग फोटोशूट करने के लिए धरमटेकडी आए हैं तुम आ रहे हो क्या?"

मैंने कहा "अभी आना है क्या?"

तो उसने कहा "आराम से आ जाना हम लोग शाम तक यहीं है।"

"मैने पूछा शाम तक ?? क्या शूट कर रहे हो।"

राहुल ने कहा "हम लोग मूनशूट करने आए है और ग्रहण का पूरा शूट करेगें रात तक।"

मैने कहा ठीक है "मैं आता हुँ आकर फोन लगाउँगा", कहकर मैंने फोन रख दिया।

लेपटॉप में मूवी देखने में मैं कुछ ज्यादा ही व्यस्त था कुछ देर बाद मेरा मन हुआ कि अब जाऊं लेकिन अब काफी समय बीत गया था रात के साढे आठ बज गए थे। दिन भर से बैठे हुए मेरा सर भी दुखने लगा था। अब ख्याल आया की राहुल से पूछता तो हुँ कहां पर है। फोन लगाया तो राहुल ने कहा "हमलोग यहीं पर हैं अभी तो एक घंटे यही पर रहेंगे आजाओ।" मन तो नहीं था पर राहुल का घर शहर के दूसरे कोने चंदनगांव में था और मेरा दूसरे कोने में। इस वक्त राहुल जिस जगह पर था वह मेरे घर से बहुत ही नज़दीकी पर थी। धरमटेकडी शहर की वह ऊंची जगह में से है जहां से सारा शहर दिखाई देता है। रात होने पर तो नज़रा और भी सुंदर हो जाता है। चारो तरफ चमचमाती लाईटों से जगमगाता शहर मानो आसमान में तारों को उलटे सर जगमगाते देख रहे हों। बहुत ही सुन्दर नजारा होता है। मैं निकल पड़ा जैसे ही धरमटेकडी के गेट पर पहुंचा तो देखा वहां तो ताला लगा हुआ था। एक मन हुआ की गेट कूदकर चला जाऊँ फिर सोचा जब ताला लगा हुआ है तो वो लोग कैसे गए होगें। यह सोचकर मैं रुक गया। मैं मुड़ा ही था की उतने में आवाज आई। एक आदमी गेट के अंदर खड़ा हुआ फोन पर बाते कर रहा था। मैं मुड़ा और उसकी बात खत्म होने का इंतजार करने लगा। बात खत्म होते ही मैने उससे कहा भईया "ये गेट क्यो बंद है ??"

उसने उत्तर दिया- "गेट शाम को ही बंद हो जाता है एसीपी के आदेश हैं सात बजे बंद करने के।"

मेरी नज़र तभी एक बोर्ड पर पड़ी जिसपर यह लिखा हुआ था पर मैंने उसे तवज्जों ना देते हुए कहा।

"भईया मेरे दोस्त ऊपर ही हैं अभी, आज ग्रहण का शूट कर रहे हैं। मुझे आने में जरा देर हो गई चले जाने दो।"

उसने कहा "नही आदेश है।"

तो मैने कहा "मैं गेट कूद कर चले जाऊँ क्या??"

तो उसने कहा "नहीं कैमरे लगे हुए हैं और आदेश भी है मैं गेट नहीं खोल सकता। या फिर आप साहब से बात कर लो वो कहे तो मैं जाने दूँगा।"

इतना ही कहना हुआ था की उसने किसी को फोन लगाया और बात करके मेरे विषय में इस बात की चर्चा करने लगा। बात से तो लग रहा था की वो एसपी से ही बात कर रहा था। बात खत्म होने के बात उसने कहा नही जाने दे सकता साहब ने मना कर दिया है। मैने कहा तुम मेरी बात कराओ मैं बात करता हुँ।

किसी के आने की आवाज आ रही थी उसने कहा तुम्हारे दोस्त आने लगे।

कुछ तीन लोग आ रहे थे लेकिन इनमें से मेरा कोई भी दोस्त नहीं था पर ये बात वह कैसे मानता। मैने कहा "ये मेरे दोस्त नहीं है वो रात तक शूट करेगे अभी नहीं आने वाले मुझे भी जाने दो।"

यह कहते ही वह मुझसे इस बात का प्रमाण मागने लगा। अब वो तीनों लड़के गेट के पास आ गए थे और गेट खोलने के लिए उस आदमी से कहने लगे उसने उन तीनों को फटकारते हुए कहा गेट बंद होने का समय हो गया तुम लोग ऊपर क्या कर रहे थे अब तक। तो उनमें से एक ने जवाब दिया की ऊपर "कुछ लड़के फोटोशूट कर रहे हैं वही देख रहे थे।"

अब मुझे साबित करने के लिए कुछ कहने की जरूरत नहीं थी।

उनलोगों को बाहर जाने के लिए उसे गेट खोलना ही पड़ा। जिसके बाद उसने मुझे कहा तुम भी जाओ और उन लोगों को जल्दी लेकर आना। यह सुनते ही मैं जल्दी से निकल पड़ा।

शुरुआत में कुछ दो सौ सीढी करीब चढ़ना पड़ता है। हर बार तो यह इतना ज्यादा नहीं लगती थी जितनी आज लग रही थी। चारो तरफ सन्नाटा सा फैला हुआ था। झिगुर और रात में चिल्लाने वाले कीड़ो की आवाज लगातार आ रही थी। सीढी चढ़ने के ठीक बाद ऊपर एक मजार बनी हुई है। मजार के पास में ही एक घर बना हुआ है। इस घर में बरसो से एक बाबा रहा करते हैं। ये टेकडी की देखरेख करते हैं। सिढी चढकर पीछे देखो तो ठीक सामने से आधा शहर नज़र आने लगता है। मैं कई बार यहां आया हुं पर रात में नहीं। ज्यादातर लोग यहां की मनगढ़न कहानियों के कारण इतनी रात तक तो यहां से चले जाते हैं। आठ बजकर कुछ मिनट हो चुके थे मैं जैसे ही ऊपर पहुंचा ऊपर बनी पानी की टंकी के पास बैठे कुत्तों ने भैकना शुरु कर दिया आचनाक हुई इस हरकत ने मुझे डरा दिया।

मेरी सांसे तेज तेज चलने लगी थी। मैं किसी भी तरह से सीधे हाथ की तरफ बने रास्ते से आगे बढ़ने लगा। कुछ दूरी पर चलने के बाद मैनें दोस्तों की स्तिथि पूठने के लिए फोन लगाया फोन पर बात हो ही रही थी कि अचानक फोन बंद हो गया। अब तो सांसे औऱ भी तेज हो उठी थी। मैं हाफ्ता हुआ तेज-तेज चला जा रहा था। एक मन हो रहा था वापस चला जाऊँ पर ख्याल आया की वापस जाना वो भी अकेले वो तो और भी ज्यादा डरावना लग रहा था। मैं आगे बढ़ता गया आगे बढ़ते-बढ़ते मैं बार बार फोन की बटन को दबाता रहता ताकि फोन चालू हो जाए तो फोन पर बात करता रहुँ। जिससे डर थोड़ा कम हो, लेकिन नहीं। आगे बढ़ते हुए एक बार फोन में मानो वापस जान आ गई हो फोन चालू हो गया। मैने तुरंत ही राहुल को फोन किया अब वो दोनों मुझसे ज्यादा दूरी पर नहीं थे। मैं और तेज चलने लगा। अब मैं रात के करीब साढ़े नौ बजे पूरी धरमटेकरी पर अकेला वो भी टेकरी के अंतिम छोर पर जहां मुझे कोई सुन भी नहीं पाता पहुँच चुका था। सामने एक पुराना सा पेड़ लगा था। जिसपर रात के समय एक काला सा झंडा दिखाई दे रहा था। राहुल ने कहा था उस पेड़ के पास पहुँचते ही आवाज लगा देना हम लोग वही पर है। पहुंच तो मैं गया था पर आवाज लगाने की हिम्मत नहीं थी उस समय। एक भयावह सी दिखने वाली जगह जहां शायद इस समय मेरे अलावा और कोई हो ही ना और मैं दोस्तों के यहां आने के वहम में ही यहां तक आ पहुंचा हुँ हो सकता है। ठंड का मौसम तो था ही खैर मैने भी गर्म कपडे पहने थे लेकिन अचानक ठंड और ज्यादा बढ़ गई हो ऐसा लगने लगा था। मैने बिना देरी किए राहुल को फोन किया राहुल ने फोन उठाया – "हां भाई कहां हो।" मैने कहा "जहां तुमने कहा था अखिरी में जिस पेड़ पर झंड़ा लगा है उसके पास ही हो तुम दोनों, बस वहीं आ गया हुँ।"

राहुल ने कहां हां "हम लोग वहीं हैं तुम उस पेड़ के पास से थोडा नीचे उतर आओ।" अब फोन कट गया था मैं पेड़ के पास पहुंचा तो देखा सीधी ढलान थी आवाज आई हम यहीं है। मैं और आगे बढ़ा अचानक पीछे किसी के खड़े रहने का एहसास हुआ। मैं घबराकर तेजी से पल्टा एक काले रंग के कपडों में सफेद बिखरे बालों वाला, कूबड़ निकला हुए, आंखें नीली आग की जलती लौ जैसी, गले में लाल काले रंग की माला जिसमें इंसानी खोपडी बनी थी, हाथ में लकडी मेरी सांस थमी की थमी रह गई। आंखे मानों थी ही नहीं एक दम से सब कुछ काला सा दिखने लगा हो। उस अजीब से प्रेत ने मुझे पल्टते ही उस पहाड़ से धकेल दिया। मैं पत्थरो से टकराता नीचे गिर रहा था जगह-जगह पर चोट लग चुकी थी नीचे पहुँचते हुए तो लगभग जिंदा बचता हीं नहीं, पर जैसे ही नीचे गिरा और लुडकना बंद हुआ कुछ लोग दौड़ते हुए मुझे उठाने आ गए। दो तीन लोग मेरे कपड़े साफ करने लगे एक मोटी सी आंटी मानो जानी पहचानी सी लग रही थी पूछने लगी "बेटा कहीं लगी तो नहीं।" मैने जैसे ही सर पर हाथ रखा तो पत्थरों से टकराकर जो मेरे सर पर चोट लगी थी तेजी से खून बह रहा था सब कुछ ऐसे गायब हो गया था मानो हजार फिट की ऊँचाई से मुझे लिफट से उतारा गया हो। मैं घबराकर ऊपर की ओर जहां से उस प्रेत ने मुझे धक्का दिया था वहां देखते हुए बोला "उसने मुझे धक्का दिया है ठीक उसी जगह वो प्रेत अब भी वही खड़ा था।" मेरी सासें फिर रुक सी गई मैं जोरो से हाफने लगा और आस-पास खड़े लोगों से कहने लगा "वो देखो वहां भूत है वहां भूत है।" सभी मेरी तरफ देखकर हंसने लगे। मैं उन लोगों की तरफ बहुत गंभीर रूप से देखने लगा। इसी बीच मेरी नज़र उस जानी पहचानी आंटी की तरफ पड़ती है उनके पैरों के पास हूबहू मेरी शक्ल का लहूलुहान “अरे हूबहू मेरी शक्ल का नहीं मैं ही तो पड़ा हुआ था” वो आंटी का हँसता हुआ चेहरा और डरावना लगने लगा था उनके दांत अचानक बढ़ने लगे थे अरे ये तो वही पड़ोस वाली आंटी थी जो पिछले साथ खत्म हो गई थी और ये दोनो जो मेरे पास खड़े होकर मुझे उठाने आए थे ये भी तो कुछ साल पहले मर चुके थे। मैं बहुत ज्यादा डरा हुआ महसूस कर रहा था मेरे हाथ पैर कांपने लगें थे। आंखों में आंसू आने लगे थे मेरे इर्दगिर्द खड़े वह तीनों लोग मुझे रोता देख और जोर-जोर से हंसने लगे थे। अब मैं रोते हुए अपने चेहरे पर हांथ रखकर वहीं बैठ गया उतने में एक आवाज आई हम लोग इस तरफ है मैंने आंखे खोला तो मैं उस पेड़ के पास खड़ा हुआ था जहां पर राहुल ने मुझे बुलाया था और जहां से मैं नीचे उतर रहा था। मेरे सामने सीधी ढलान थी उसी ढलान से लगी एक समतल जगह थी जहां एक लंबे से ट्रईपोड पर एक कैमरा लगा हुआ था। उस कैमरे के पास अंधेरे में दो काले से लोग खड़े दिखाई दे रहे थे। जिसमे से एक मुझे हाथ दिखाकर बुला रहा था। वह राहुल सा दिखाई दे रहा था। उसने अब अपने फोन की टार्च चालू किया और कहा वहां से देखकर आना, आते समय मैं फिसल गया था वहां। अब उसने मुझे टार्च से उजालाकर रास्ता दिखाया। आखिरकार मैं उस जगह पर पहुंच गया था जहां पर वो दोनो ग्रहण के चांद की शूटिंग कर रहे थे। प्रदीप कैमरे का एक क्लिक करके आने के बाद – "राहुल अब 7-8 मिनट बाद तुम जाकर एक क्लिक और ले लेना।" फिर वह आकर मुझसे और भाई कोई दिक्कत तो नहीं हुआ आने में। मैने कहा "नहीं यार एक गजब ही अनुभव रहा।" एक गजब की हौरर् स्टोरी चल रही थी माइंड में। बैग के पास पानी के पाउच रखे थे मानो मेरा ही इंतजार कर रहे थे। मुझे एक पल के लिए ये झूठ लगा रहा था। प्रदीप ने एक पानी का पाउच उठाकर मुझे दिया। अब पानी पीकर जान में जान आई। अब कुछ देर तक हम शूटींग करते रहे। टेकडी से पूरा शहर लगभग साफ नज़र आता है रात के समय तो मानों कोई अदभुत नज़रा ही आंखों के सामने आ पड़ता है। चारों ओर चमचमाती लाईटे कुछ सफेद तो कुछ पीली मानों धरती पर पूरा तरामडंल दिख रहा हो। अब जैसे ही ग्रहण हटा हम भी कैमरा पैक कर वहां से घर की औऱ चल पड़े और इस तरह की रहा जनवरी 2018 की वह पूर्णचंद्रग्रहण वाली रात की कहानी जो की शायद ही कभी भुलाई जाएगी।।


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