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शीला गहलावत सीरत

Classics

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शीला गहलावत सीरत

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चलती रहती हूँ रूकना मुझे पंसद

चलती रहती हूँ रूकना मुझे पंसद

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मैं नदी हूँ ! अनेकों मेरे रूप और नाम है। नदी प्रकृति के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है ! इसकी गति पर इसके नाम है।नहर,सरिता, तटिनी,प्रवाहिनी आदि अनेको नाम से मुझे पुकारा जाता है। जैसे-जैसे आगे सरकती हूँ वैसे ही मेरे नाम भी बदल जाते हैं। कभी छोटी नदी यानी रजवाहैया बन जाती हूँ तो कभी मैं छोटी जोहडी का रूप धारण कर लेती हूँ ! 

मैं एक नदी हूँ और मेरा जन्म पर्वतमाओ की गोदी से हुआ है। मैं बचपन से ही बहुत चंचल थी। बस मुझे आगे बढ़ना ही सीखा है। रूकना मुझे पंसद नहीं  ! बस आगे बढ़ते जाना है। बस चलना है मैं निरंतर चलती ही रहती हूँ ! 

मैं कर्म में विश्वास रखती हूं फल की इच्छा नहीं करती ! मैं अपने आप में खुश रहती हूँ। मैं हर जीव के काम आती हूँ। लोग मेरी पूजा करते हैं। माँ मुझे कहते हैं ! सम्मान से मुझे पुकारते हैं। अनेकों मेरे नाम हैं ! जैसे:- गंगा, जमुना, सरस्वती, यमुना, बह्रापुत्र, त्रिवेणी ये सब मेरे नाम, हिन्दू धर्म में पूजी जाती हूँ। 

पर्वतमालाएं ही मेरा घर था लेकिन मैं सदा वहाँ रह नहीं सकती थी। जिस तरह लड़की अपने मायके यानि अपने माँ- बाप के घर ! उसी तरह मुझे भी माँ- बाप का घर छोडना पड़ा ! 

छोड़ने के बाद मैं आगे बढ़ती गई। मैं पत्थरों को तोड़ती धकेलती हुई आगे बढ़ती चली गई। मुझसे आकर्षित होकर पेड़ पौधों पत्ते भी मेरे सौंदर्य का बखान करते रहते थे ! 

जहाँ-जहाँ से होकर गुजरती गई वहां पर तट बना दिये गये ! तटों के आस-पास जो मैदानी इलाके थे वहाँ पर छोटी-छोटी बस्तियां स्थापित होती चली गई। इसी तरह मैं भी आगे बढ़ती रही। 


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