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चली गई

चली गई

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बहुत प्यार था उसे तितलियों से..हथेली पर बड़े प्यार से बैठाये रखती और एकटक निहारा करती..फिर धीरे से उड़ा देती।

आज भी याद है एक बार हाथ से जरा दब कर तितली मर गई तो बहुत रोई, खाना नहीं खाया और उसके बाद तितली पकड़ना छोड़ दिया।

"कुछ काम सीखेगी कि नहीं। ससुराल में नाक कटायेगी हमारी।" दादी की आवाज सुन कर हवा में दोनों चोटियाँ पकड़कर दौड़ गई जूही।

ससुराल में कदम रखे अभी कुछ ज्यादा समय नहीं हुआ था, नाजुक सी जूही धीरे-धीरे अवैतनिक कामगार बन चुकी थी, सास के ताने...पति की अय्याशी में जवानी से कब बुढ़ापे की और अग्रसर हो गई पता ही नहीं चला।

"दादी देखो तितली" अचानक से जैसे जाग उठी...सामने पोती रूहानी तितली पकड़ने का प्रयास कर रही थी..हड़बड़ाकर बोली- "छूना नहीं मुरझा जायेगी..मेरी तरह।".. अस्फुट स्वर बहुत पीड़ादायक था।

"क्या हुआ माँ कुछ परेशान हो क्या.. आप कुछ बड़बड़ा रही थी ?"

नहीं बहू ...बस कुछ यादें थी...आई और चली गई।


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