छिपी प्रतिभा
छिपी प्रतिभा
रजनीश ने स्कूल से वापस आते ही आकाश से उसके रिजल्ट के बारे में पूछा। आकाश ने अपना सिर नीचे झुका कर रिपोर्ट कार्ड उनके हाथ में थमा दिया। रिपोर्ट कार्ड पर नजर पड़ते हैं रजनीश अपना आपा खो बैठे-" इस बार फिर थर्ड डिवीजन में पास हुए, जरा देखो अपने भैया को हर वर्ष कितना अच्छा रिजल्ट लाता है और एक तुम हो हमेशा की तरह इस बार भी वही फिसड्डी रिजल्ट।" आकाश सिर झुकाये उनकी बातों को सुन रहा है क्योंकि इसके अलावा उसके पास कोई चारा भी तो न था। कितनी मेहनत करता है वह फिर भी उसके रिजल्ट में कोई बदलाव न था। "मैं कभी भैया की तरह नहीं बन पाऊंगा" बार-बार यह विचार उसके मन में आता और वह आत्मग्लानि से भर जाता। मां दूर खड़ी उसे देखते हुए बोली- "अरे कोई बात नहीं, सब बच्चे एक जैसे थोड़े ही होते हैं। मेरा आकाश तो सबसे अलग है देखिएगा, एक दिन यह हमारा नाम रोशन करेगा।" मां की बात पर कड़वा सा मुँह बनाकर रजनीश वहां से बाहर बरामदे में चले गए।
एक दिन आकाश अपनी ही धुन में बाजार की तरफ जा रहा था कि दूर से उसे आकाश- आकाश की आवाज सुनाई पड़ी। उसने पलट कर देखा तो दूर मनोहर सर दिख गए। वह भागते हुए उनके पास गया और पैर छू लिया। मनोहर सर ही तो उसके पसंदीदा टीचर थे,आज इतने दिनों बाद उन्हें देखकर उसे बड़ा अच्छा लगा। उम्र से कहीं ज्यादा बूढ़े और थके थके से दिख रहे थे। आकाश पूछ बैठा-" सर आपकी तबीयत तो ठीक है ना।" आप अभी भी नौकरी करते हैं क्या? आपने इतने सालों बाद मुझे पहचान लिया। सर ने कहा- मेरी तबीयत तो ठीक है बस बुढ़ापे और डायबिटीज की वजह से थोड़ा थक जाता हूं। तुम बताओ क्या कर रहे हो आजकल? मैं अभी कॉलेज में फाइनल ईयर में हूं। बात करते समय आकाश ने सर के हाथ से सब्जियों वाली थैली ले ली और साथ चलने लगा। उन्होंने कहा -पास मेरा घर है, चलो बैठ कर बातें करते हैं। आकाश के मन में भी बहुत सारे प्रश्न थे जो वो उनसे पूछना चाहता था इसलिए उनके साथ चल पड़ा। उनके घर पहुंच कर उसने देखा कि घर में सर अकेले ही रहते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी का देहांत दो साल पहले हो चुका है, एक बेटा है जो शादी के बाद परदेस चला गया है। बेटी अपने ससुराल में पति और बच्चों के साथ बहुत खुश है। उन्होंने आकाश को इशारे से बैठने को कहा, किचन में जाकर उसके लिए पानी ले आए। पानी पीते पीते आकाश ने पूछा- सर आपको याद है मुझे स्कूल में अच्छे मार्क्स न आने पर सब मुझे बहुत डांटते थे। मैं अपने भैया की तरह बनना चाहता था पर बहुत कोशिश करने के बाद भी मेरे अच्छे मार्क्स नहीं आते थे इसकी वजह से मैं ही हीन भावना से ग्रसित हो गया हूँ। सर ने पूछा-" तुम्हारे भैया क्या करते हैं ?" आकाश ने बताया- भैया डॉक्टर है और भाभी भी डॉक्टर है। बस मैं ही कुछ कर न पाया। सर ने समझाया -देखो आकाश स्कूल कॉलेज के ये मार्क्स हमारे जीवन में अहमियत तो रखते हैं पर इतनी नहीं कि हम उसे देख यह सोच बैठे कि हम जीवन में कुछ कर नहीं सकते। हर व्यक्ति की अपनी अपनी क्षमता होती है। हर आदमी की अलग पहचान भी होती है। तुम्हारे अंदर भी कुछ ऐसी प्रतिभा है जिससे तुम अनजान हो, जरूरत है उस छिपी प्रतिभा को पहचानने की। बीच में टोकते हुए आकाश ने कहा,-"सर मेरे अंदर तो कोई प्रतिभा नहीं है।" सर मुस्कुरा कर बोले -यह बिल्कुल गलत सोच है, तुम शायद अपनी प्रतिभा से अनजान हो। इन प्रतिभाओं को सबके सामने लाने में शिक्षक, माता-पिता या दोस्त मदद करते हैं पर कभी ऐसा भी होता है कि हमें खुद ही इसका एहसास होता है। आकाश उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था। बातों बातों में काफी वक्त निकल गया। समय का ख्याल आते हैं फिर आऊंगा सर, बोलते हुए आकाश वहाँ से निकल पड़ा। रास्ते भर सर की कही बातें उसके दिमाग में घूमती रही। वो समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसके अंदर कौन सी प्रतिभा है, उसे तो कभी इसका एहसास हुआ ही नहीं। एक दिन क्लास में बैठे-बैठे अनायास ही कॉपी पर पेन से वो कुछ बनाता रहा। बाद में उसने देखा तो चित्र जाना पहचाना सा लगा- अरे यह तो कॉलेज के बिल्डिंग का ही चित्र है। तो क्या इसी प्रतिभा के बारे में सर बातें कर रहे थे। घर पहुंच कर उसने नेट पर पेंटिंग सिखाने वाली संस्था को ढूंढना शुरू किया। संयोग से उसके कॉलेज के पास ही एक पेंटिंग क्लास का पता चल गया फिर क्या था, उसको लगा कि उसे मंजिल मिल गई। दूसरे दिन ही उसने वहां जाकर एडमिशन ले लिया और अपने सपनों में नया रंग भरना शुरू कर दिया। कुछ दिनों के प्रयास के बाद ही अपनी कल्पनाओं को कैनवस पर उतारने में वो माहिर होने लगा। आज आर्ट गैलरी में उसके पेंटिंग्स की एग्जीबिशन लगी है। वह मां पापा को सरप्राइस देना चाहता था। उसने जब पापा से वहाँ चलने की बात कही तो उन्हें लगा कि किसी और की पेंटिंग्स देखने जाना है। जब आकाश अपने माता पिता के साथ एग्जीबिशन हॉल में प्रवेश किया तो वहां खड़े कुछ लोगों ने आकर फूलों से आकाश का स्वागत किया। रजनीश चकित होकर आकाश की तरफ देख रहे थे। तभी एक सज्जन ने बताया कि आपके बेटे के हाथों में जादू है। आज हम उसकी पेंटिंग की गूढ़ता देख हम सब उसके कायल हो गए है। रजनीश ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, तो क्या सारे पेंटिंग आकाश के बनाए हुए हैं। आश्चर्य से देखते हुए वह आगे बढ़ने लगे। आज से पहले कभी उन्होंने इतना गौरान्वित महसूस नहीं किया था। हमेशा उन्होंने आकाश को नीचा दिखाया पर सच कहती थी उसकी मां आकाश तो औरों से जुदा है बिल्कुल आकाश की तरह ही विशाल है जिसकी थाह हम लगा नहीं सकते। हर पेंटिंग्स में छिपी कहानी को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। कुछ देर बाद आकाश उनके पास आया। रजनीश ने उसे देखते ही गले से लगा लिया। आंखों से आंसू बह निकले। इन आंसुओं में पछतावा धूल गया था। आकाश से बहुत कुछ कहना चाहते थे पर आज उनकी मौन ही उनकी जुबां बन गई थी। आकाश की इस उपलब्धि ने पिता पुत्र के बीच की दूरी को पाट दिया था। आकाश भी तो कहना चाहता था -देखिए मैं भी अब भैया की तरह बन गया हूं ,पर कह न पाया। दोनों के बीच के मौन ने रिश्ते पर छाए काले बादल को हटा दिया था। अब बाहर चांदनी फैली थी जिसमें सब कुछ साफ साफ दिखाई पड़ने लगा।
