चौथा हिस्सा
चौथा हिस्सा
पिता जी सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे, कमाई आधी और खर्चे अभी पूरे थे, और माँ के बारे में क्या कहूँ- अपने बच्चों पर जान न्यौछावर करने वाली एक माँ ही तो होती है, जो अपनी पूरी जिंदगी बच्चों के नाम कर देती है। बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा करती है, उनको अच्छे संस्कार देती है, समाज में बैठने लायक बनाती है और ये उम्मीद करती है कि बच्चे बड़े होकर माँ-बाप का सहारा बनेंगे।
शांता बेन ने अपने दोनों बेटों को अच्छी शिक्षा दी और एक काबिल इंसान बनाया। एक बेटा विदेश में नौकरी करने चला गया और दूसरा उसी शहर में रहता था लेकिन माँ-बाप से दूर। दोनों बेटों की शादी हो चुकी थी, दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी में खुश थे, और माँ-बाप के मरने का इंतजार कर रहे थे, कि कब वो इस दुनिया से विदा हों, और कब उनकी जमीन, उनका घर, उनका पैसा हम आपस में बांट लें। शांता बेन की सबसे छोटी एक बेटी भी थी, जिसकी शादी पास ही के एक शहर में हुई थी। जो कभी कभी माँ से मिलने आया करती थी।
अचानक एक दिन पिता की तबीयत बिगड़ी तो माँ ने अपने दोनों बेटों पास खबर की। छोटा बेटा जो उसी शहर में रहता था, वह माँ के पास आ गया और पिता को हॉस्पिटल ले गया, तब तक बेटी भी आ चुकी थी। विदेश में रह रहा बेटा दो दिन बाद आया, क्योंकि वे बहुत ज्यादा व्यस्त था। कुछ ही दिनों में पिता की तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी तो हॉस्पिटल वालों ने भी जवाब दे दिया और पिता का स्वर्गवास हो गया। पिता लगभग 10 दिन हॉस्पिटल में रहे। इन 10 दिनों में दोनों बेटों के कुछ रुपए भी ख़र्च हुए।
अभी तक पिता की तेरहवीं भी नहीं हुई थीं कि दोनों बेटों में बटवारे को लेकर झगड़े होने लगे, और जीवनसाथी के बिछड़ने के बाद पूरी तरह टूट चुकी माँ के सामने जाकर खड़े हो गये और बोले "माँ, नगदी, घर और गहनों" का अभी के अभी 2 हिस्सों में बटवारा कर दो, वैसे भी इन 10 दिनों में हमारा खर्चा भी बहुत हो गया है। यह कहते हुए दोनों बेटों ने पिता की दवाइयां और यहाँ तक कि उनके अंतिम संस्कार आदि में हुए ख़र्चे की लिस्ट भी माँ के हाथों में थमा दी।
यह सब देखकर माँ को बहुत आघात पहुंचा, कि जिस औलाद के लिए एक माँ दुनिया भर की मुसीबतें झेलती है, आज वही औलाद खुद मुसीबत बनकर उसके सामने खड़ी है।
(दो-दो बेटे-बहू होने के बाद भी माँ-बाप को अकेले रहना पड़ता है, क्या इसी दिन के लिए माँ-बाप औलाद पैदा करते हैं ? क्या बच्चों का कोई उत्तरदायित्व नहीं है कि वो बुजुर्ग माँ-बाप की सेवा कर सकें। क्या माँ-बाप के दिये संस्कार सब विफल हो जाते हैं ? लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि जैसा व्यवहार आज अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं वैसा ही व्यवहार कल इनके बच्चे इनके साथ करेंगे।)
इतना सब कुछ देखने के बाद और हिस्से की बात सुनकर माँ बोली- क्या तुम दोनों, अपनी बहन को कुछ नहीं देना चाहते, आखिरकार वो तुम्हारी छोटी बहन है। "नहीं" दोनों एक स्वर में बोले- उसकी शादी हो चुकी है, अब उसका इस घर पर कोई हक़ नहीं, घर का बटवारा दो हिस्सों में ही होगा।।
अब माँ की बूढ़ी हड्डियों में उतनी जान नहीं थी कि वह आसानी से अपना जीवन यापन कर सके। अब उसे सहारे की जरूरत थी। तब माँ ने कहा - मैं किसके पास रहूँगी, अब तुम्हारे पिता तो रहे नहीं? दोनों बेटे एक दूसरे की तरफ देखने लगे और दोनों अपनी अपनी मजबूरी बताकर माँ को अपने साथ नहीं रखना चाहता थे।। सब की नज़र केवल उनके घर और पैसे पर थी।
माँ- बाप ने अब तक जो कुछ भी इकट्ठा किया था, (चाहे वो रुपये हों, गहने हों या फिर घर) सब कुछ उनकी कड़ी मेहनत का फल था, जिस पर केवल और केवल माता पिता का ही हक़ होना चाहिये। वो चाहें तो किसी को दें अन्यथा ना दें।।
शांता बेन की छोटी बेटी भी अब तक आ चुकी थी। सबसे छोटी होते हुए भी उसने अपने भाइयों को बहुत समझाया, कि माँ इस वृद्धावस्था में कहाँ जाएगी लेकिन दोनों बेटे कुछ भी समझने को तैयार ही नहीं थे।
इतना सब कुछ देखने के बाद माँ ने ऊँचे स्वर में आवाज दी और सबको शांत किया, और कड़े शब्दों में कहा - कि 'नगदी, घर और गहने, सभी के 4 हिस्से होंगे।
"ऐसा क्यों'" बेटों ने तेज स्वर में पूछा- तब माँ ने कहा - दो हिस्से दोनों बेटों के, तीसरा हिस्सा बेटी का और चौथा हिस्सा मेरा।..…..
चौथे हिस्से का नाम सुनकर दोनों बेटे बौखला कर कहते हैं, माँ तुम्हें हिस्से क्या जरूरत है ? तुम कभी मेरे पास कभी छोटे भाई के पास रह लेना।। लेकिन इस बार माँ का इरादा कुछ और था।
माँ ने पूरी ज़िंदगी बच्चों के लिए कुर्बान कर दी और मिला क्या "अपने ही मकान का एक छोटा सा हिस्सा"।। कुछ दिन बाद ही माँ अपने हिस्से को अनाथ आश्रम को दान कर देती है और वो भी स्वर्ग सिधार जाती है।।
निष्कर्ष: सभी लोग अपने माता-पिता से प्यार करें, उनके साथ समय बितायें। उनका तिरस्कार/अपमान न करें। माता-पिता का आशीर्वाद ही सबसे बड़ा धन है।