चाणक्य
चाणक्य
“बेटा, तेरे चेहरे पर गहरे काले निशान हैं! तू ठीक तो है न?” अचानक बेटे को द्वार पर देख पिता की ममता छलक पड़ी।
“ बाबूजी , आप अधिक चिंता न करें...मैं बिल्कुल ठीक हूँ।” बेटे ने कहते हुये पिता के चरण स्पर्श किए।
“भगवान् का लाख-लाख शुक्र, तू दुश्मन के चंगुल से छूटकर सही सलामत घर वापस आ गया। तेरी सलामती की खबर सुनने के लिए हमलोग यहाँ पिछले चौबीस घंटों से टीवी के आगे चिपके बैठे थे। घर में न किसी को खाने का होश था और न ही सोने का ! दुश्मन के चंगुल से छूटकर तेरा इस तरह जिंदा लौटकर घर आना एक ईश्वरीय चमत्कार ही तो है। देख, तू अब घर आ गया है, दरिंदों के दिए गहरे जख्म जब तक तेरे चेहरे से मिट नहीं जाते , कुछ दिनों तक यहाँ आराम से रह।” बेटे को साथ लेकर पिता अंदर कमरे में प्रवेश किए।
“ मुझे आराम की जरूरत नहीं है। बस आपसे आशीर्वाद लेने आया हूँ। बाबूजी, जिसी दिन फौज में भर्ती हुआ था उसी दिन से मैं भारत माँ के लिए तन-मन से समर्पित हो गया। मेरा जख्म तो उस दिन भरेगा, जिस दिन दुश्मन से अपना बदला ले कर रहूँगा। इसलिए मुझे जल्द से जल्द सरहद पार लौटना है।लेकिन ,आप तनिक चिंता न करें। मेरे रगों में ये जो देशभक्ति की भावना भरी हुई है न, सब आपका ही तो देन है। मुझे सब याद है, बचपन में आप चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, महाराणा प्रताप , तिलक, झाँसी की रानी... जैसे महान क्रांतिकारी वीरों की गाथा सुनाते थे। आपको सब पता है, इसी राष्ट्र-प्रेम के खातिर इनलोगों ने अपना जीवन दाव पर लगा दिया। तभी तो आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं।
बाबूजी, इनकी शहादत को हम कैसे भूल सकते ! यदि हम नौजवान इनके नक्शेकदमपर नहीं चलेंगे तो हमारा देश फिर से गुलामी की जंजीर में जकड़ जाएगा ! दुश्मन तो हरवक्त चारों ओर घात लगाये बैठे रहता है। समाज में बढ़ रहे आतंकवादियों से सम्पूर्ण देश त्रस्त है| कभी स्वर्ग कहे जाने वाले 'कश्मीर' की क्या दुर्गति और दुर्दशा हुई , किसी भारतवासियों से छिपी नहीं है ! राष्ट्र की क्षति कितनी पीड़ादायक होती है, यह हमें कश्मीर की दुर्दशा और चीनी आक्रमण के स्मरण मात्र से अनुभव हो जाता है।”
“बेटा ! तुम्हारे मुँह से आज यह सब सुनकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। तुम भारत माँ के सच्चे सपूत हो। तुम्हारा नाम 'चाणक्य' रखना मुझे बेहद तर्कसंगत और बेहद सार्थक लग रहा है।”
“ मेरा नाम, चाणक्य ! यहाँ इससे क्या तात्पर्य है? मैं समझा नहीं !?” फौजी बेटे ने आश्चर्यचकित पूछा।
“ ध्यान से सुनो, चाणक्य एक शिक्षक थे...उनके पास धन बहुत सीमित था। परंतु उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। वो सुदूर पश्चिम तक्षशिला से... पूरब... मगध में आकर ,तत्कालीन शासक के अत्याचार के विरूद्ध अपना संगठन खड़ा किये और वही... ‘मौर्यवंश’ कहलाया।
यह एक ऐसा संगठन था, जिसका शासक... एक अनाम गोत्र का बालक ‘चन्द्रगुप्त’ बन गया। मौर्यवंश के शासन के पहले भारत में कोई अखिल भारतीय शासन नहीं था। भारत, अलग-अलग सोलह महाजनपदों में बंटा था , जिसका बागडोर प्रांतीय सरकार के हाथ में थीं। मौर्यवंश ऐसा संगठन बना, जिसने भारत को पहली बार एक प्रशासनिक सूत्र में बाँध दिया। इन सब के पीछे मात्र चाणक्य की अटूट राष्ट्रभक्ति की भावना ही थी। ठीक वैसी ही झलक आज मुझे तुझमें दिख रही है। बेटा !सुन, जिस भारत माँ का लाल तुझ जैसा हो, उस माँ को टुकड़ों में कोई नहीं बाँट सकता ! और न ही कोई उसे जंजीरों में जकड़ने का दुःसाहस कर सकता है !
विजयी भव। देशभक्तों की सूची में तेरा नाम हमेशा के लिए अमर रहेगा।
“माता भूमिः पुत्रोहं पर्थिव्याः” ---
ऐसा कहकर एक गरीब पिता ने अपने फौजी बेटे को आशीर्वाद से धनी कर दिया।